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*तुलुव वंश की स्थापना 'नरस नायक' द्वारा 1503 ई. में [[विजय नगर साम्राज्य|विजयनगर]] में हुई थी।
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*'''तुलुव वंश''' (1505-1570 ई.) की स्थापना नरसा नायक के पुत्र 'वीर नरसिंह' ने की थी।
*इस वंश ने 1565 ई. तक शासन किया।  
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*[[इतिहास]] में इसे 'द्वितीय बलापहार' की संज्ञा दी गई है।
*इसमें छ: राजा हुए–
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*1505 में नरसिंह ने [[सालुव वंश]] के नरेश [[इम्माडि नरसिंह]] की हत्या करके स्वंय [[विजयनगर साम्राज्य]] के सिंहासन पर अधिकार कर लिया और [[तुलुव वंश]] की स्थापना की।
#नरस नायक (1503-1505 ई.);
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*नरसिंह का पूरा शासन काल आन्तरिक विद्रोह एवं आक्रमणों के प्रभावित था।
#नरस नायक का पुत्र नरसिंह (1505-1509 ई.);
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*1509 ई. में वीर नरसिंह की मृत्यु हो गयी।
#नरस नायक का भाई कृष्णदेव राय (1509-1529 ई.), जो कि अपने वंश का सबसे प्रतापी राजा था और उसके काल में राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया।
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*यद्यपि उसका शासन काल अल्प रहा, परन्तु फिर भी उसने सेना को सुसंगठित किया था।
#1529 से 1542 ई. तक नरस नायक का भाई अच्युत और
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*उसने अपने नागरिकों को युद्धप्रिय तथा मजबूत बनने के लिय प्रेरित किया था।
#उसके बाद 1542 ई. में नरस नायक का पुत्र वेंकट प्रथम और
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*वीर नरसिंह ने [[पुर्तग़ाली]] गवर्नर अल्मीडा से उसके द्वारा लाये गये सभी घोड़ों को ख़रीदने के लिए एक समझौता किया था।
#फिर (1542-1565 ई. तक) नरस नायक का चचेरा भाई सदाशिव शासक रहा।
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*उसने अपने राज्य से विवाह कर को हटाकर एक उदार नीति को आरंभ किया।
*अन्तिम राजा के शासनकाल में [[बीजापुर]], [[गोलकुण्डा]] और [[अहमदनगर]] के सुल्तानों ने मिलकर विजयनगर राज्य पर हमला किया और 1565 ई. में तालीकोट के युद्ध में राजा को परास्त कर दिया।
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*नूनिज द्वारा वीर नरसिंह का वर्णन एक ‘धार्मिक राजा’ के रूप में किया गया है, जो पवित्र स्थानों पर दान किया करता था।
*उन्होंने राजधानी में लूटपाट करने के पश्चात् उसे उजाड़ डाला।
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*वीर नरसिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका अनुज 'कृष्णदेव राय' सिंहासनारूढ़ हुआ।
*सदाशिव पेन्कोण्डा भाग गया, जहाँ वह 1570 ई. में मार डाला गया।
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==तुलुव वंशी शासक==
*इस प्रकार विजयनगर और तुलुव वंश का अन्त हो गया।
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12:41, 25 मार्च 2011 का अवतरण

  • तुलुव वंश (1505-1570 ई.) की स्थापना नरसा नायक के पुत्र 'वीर नरसिंह' ने की थी।
  • इतिहास में इसे 'द्वितीय बलापहार' की संज्ञा दी गई है।
  • 1505 में नरसिंह ने सालुव वंश के नरेश इम्माडि नरसिंह की हत्या करके स्वंय विजयनगर साम्राज्य के सिंहासन पर अधिकार कर लिया और तुलुव वंश की स्थापना की।
  • नरसिंह का पूरा शासन काल आन्तरिक विद्रोह एवं आक्रमणों के प्रभावित था।
  • 1509 ई. में वीर नरसिंह की मृत्यु हो गयी।
  • यद्यपि उसका शासन काल अल्प रहा, परन्तु फिर भी उसने सेना को सुसंगठित किया था।
  • उसने अपने नागरिकों को युद्धप्रिय तथा मजबूत बनने के लिय प्रेरित किया था।
  • वीर नरसिंह ने पुर्तग़ाली गवर्नर अल्मीडा से उसके द्वारा लाये गये सभी घोड़ों को ख़रीदने के लिए एक समझौता किया था।
  • उसने अपने राज्य से विवाह कर को हटाकर एक उदार नीति को आरंभ किया।
  • नूनिज द्वारा वीर नरसिंह का वर्णन एक ‘धार्मिक राजा’ के रूप में किया गया है, जो पवित्र स्थानों पर दान किया करता था।
  • वीर नरसिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका अनुज 'कृष्णदेव राय' सिंहासनारूढ़ हुआ।

तुलुव वंशी शासक

तुलुव वंशी शासकों का विवरण निम्न प्रकार से है-

  1. कृष्णदेव राय (1509-1529 ई.)
  2. अच्युतदेव राय (1529-1542 ई.)
  3. सदाशिव राय (1542-1570 ई.)


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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