"अनमोल वचन 5" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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* विज्ञान के चमत्कार हमारा जीवन सहज बनाते हैं पर प्रकृति के चमत्कार धूप, पानी और वनस्पति के बिना तो जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं। - मुक्ता | * विज्ञान के चमत्कार हमारा जीवन सहज बनाते हैं पर प्रकृति के चमत्कार धूप, पानी और वनस्पति के बिना तो जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं। - मुक्ता | ||
− | ==विनोबा | + | ==विनोबा भावे== |
* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा | * मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा | ||
* जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती। - विनोबा | * जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती। - विनोबा | ||
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* मौन और एकान्त, आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं। — विनोबा भावे | * मौन और एकान्त, आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं। — विनोबा भावे | ||
* हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है। — आचार्य विनबा भावे | * हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है। — आचार्य विनबा भावे | ||
+ | * गरीब वह नहीं जिसके पास कम है, बल्कि धनवान होते हुए भी जिसकी इच्छा कम नहीं हुई है, वह सबसे अधिक गरीब है। - विनोबा भावे | ||
+ | * सिर्फ धन कम रहने से कोई गरीब नहीं होता, यदि कोई व्यक्ति धनवान है और इसकी इच्छाएं ढेरों हैं तो वही सबसे गरीब है। - विनोबा भावे | ||
+ | * सेवा के लिये पैसे की जरूरत नहीं होती जरूरत है अपना संकुचित जीवन छोड़ने की, गरीबों से एकरूप होने की। - विनोबा भावे | ||
+ | * जिस त्याग से अभिमान उत्पन्न होता है, वह त्याग नहीं, त्याग से शांति मिलनी चाहिए, अंतत: अभिमान का त्याग ही सच्चा त्याग है। - विनोबा भावे | ||
==प्रेमचंद== | ==प्रेमचंद== | ||
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* मै एक मजदूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं। - प्रेमचंद | * मै एक मजदूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं। - प्रेमचंद | ||
* निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है। — प्रेमचन्द | * निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है। — प्रेमचन्द | ||
+ | * बल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद कोई नहीं सुनता। - प्रेमचन्द | ||
+ | * दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है। - प्रेमचन्द | ||
+ | * संसार के सारे नाते स्नेह के नाते हैं, जहां स्नेह नहीं वहां कुछ नहीं है। - प्रेमचन्द | ||
+ | * जिस बंदे को पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए मर्यादा और इज्जत ढोंग है। - प्रेमचंद | ||
+ | * खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है, जीवन नाम है, आगे बढ़ते रहने की लगन का। - मुंशी प्रेमचंद | ||
+ | * जीवन की दुर्घटनाओं में अक्सर बड़े महत्व के नैतिक पहलू छिपे हुए होते हैं!!! - प्रेमचंद | ||
+ | * नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है। - प्रेमचंद | ||
+ | * अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है, पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं। - प्रेमचंद | ||
==चाणक्य== | ==चाणक्य== | ||
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* एक बार काम शुरू कर लें तो असफलता का डर नहीं रखें और न ही काम को छोड़ें। निष्ठा से काम करने वाले ही सबसे सुखी हैं। - चाणक्य | * एक बार काम शुरू कर लें तो असफलता का डर नहीं रखें और न ही काम को छोड़ें। निष्ठा से काम करने वाले ही सबसे सुखी हैं। - चाणक्य | ||
* संसार एक कड़वा वृक्ष है, इसके दो फल ही अमृत जैसे मीठे होते हैं - एक मधुर वाणी और दूसरी सज्जनों की संगति। - चाणक्य | * संसार एक कड़वा वृक्ष है, इसके दो फल ही अमृत जैसे मीठे होते हैं - एक मधुर वाणी और दूसरी सज्जनों की संगति। - चाणक्य | ||
+ | * उत्तमता गुणों से आती है, ऊंचे आसन पर बैठ जाने से नहीं, महल के शिखर पर बैठने से कौआ गरूड़ नहीं हो जाता। - चाणक्य नीति | ||
+ | * गुणों से ही मानव की पहचान होती है, ऊंचे सिंहासन पर बैठने से नहीं। महल के उच्च शिखर पर बैठने के बावजूद कौवे का गरूड़ होना असंभव है। - चाणक्य | ||
+ | * जो वर्तमान में कमाया हुआ धन जोड़ता नहीं, उसे भविष्य में पछताना पड़ता है। - चाणक्य | ||
==रामधारी सिंह दिनकर== | ==रामधारी सिंह दिनकर== | ||
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* हमारा कर्तव्य है कि हम अपने शरीर को स्वस्थ रखें... अन्यथा हम अपने मन को सक्षम और शुद्ध नहीं रख पाएंगे। - बुद्ध | * हमारा कर्तव्य है कि हम अपने शरीर को स्वस्थ रखें... अन्यथा हम अपने मन को सक्षम और शुद्ध नहीं रख पाएंगे। - बुद्ध | ||
* द्वेष को द्वेष से नहीं बल्कि प्रेम से ही समाप्त किया जा सकता है; यह नियम अटल है। - बुद्ध | * द्वेष को द्वेष से नहीं बल्कि प्रेम से ही समाप्त किया जा सकता है; यह नियम अटल है। - बुद्ध | ||
+ | * जिस तरह उबलते हुए पानी में हम अपना, प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते उसी तरह क्रोध की अवस्था में यह नहीं समझ पाते कि हमारी भलाई किस बात में है। - महात्मा बुद्ध | ||
+ | * दुनिया में तीन चीजें कभी लम्बे समय तक छिपी नहीं रह सकती, पहली है सूर्य, दूसरी चन्द्रमा और तीसरी है सत्य। - गौतम बुद्ध | ||
+ | * जिसने स्वयं को वश में कर लिया है, संसार की कोई शक्ति उसकी विजय, को पराजय में नहीं बदल सकती। - महात्मा बुद्ध | ||
+ | * झूठ सबसे बड़ा पाप है, झूठ की थैली में अन्य सभी पाप समा सकते हैं, झूठ को छोड़ दो तो तुम्हारे अन्य पाप कर्म धीरे-धीरे स्वत: ही छूट जाएंगे। - गौतम बुद्ध | ||
+ | * वही काम करना ठीक है, जिसे करने के बाद पछताना न पड़े और जिसके फल को प्रसन्न मन से भोग सकें। - गौतम बुद्ध | ||
+ | * जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते - भगवान बुद्ध | ||
==रवींद्रनाथ ठाकुर== | ==रवींद्रनाथ ठाकुर== | ||
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* को लाभो गुणिसंगमः (लाभ क्या है? गुणियों का साथ) — भर्तृहरि | * को लाभो गुणिसंगमः (लाभ क्या है? गुणियों का साथ) — भर्तृहरि | ||
* दान, भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं। जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है। — भर्तृहरि | * दान, भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं। जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है। — भर्तृहरि | ||
+ | * जब तक शरीर स्वस्थ है, इन्द्रियों की शक्ति क्षीण नहीं हुई तथा बुढ़ापा नहीं आया है, तब तक समझदार को अपने हित साध लेने चाहिए। - भर्तृहरि | ||
==सत्यसाई बाबा== | ==सत्यसाई बाबा== | ||
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* आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। - महात्मा गांधी | * आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। - महात्मा गांधी | ||
* मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी | * मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी | ||
− | * सत्याग्रह | + | * सत्याग्रह बल प्रयोग के विपरीत होता है, हिंसा के संपूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गई है। - महात्मा गांधी |
* दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, सत्य, दया और आत्मबल पर है। - महात्मा गांधी | * दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, सत्य, दया और आत्मबल पर है। - महात्मा गांधी | ||
* पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। - महात्मा गांधी | * पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। - महात्मा गांधी | ||
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* चिंता के समान शरीर का क्षय और कुछ नहीं करता, और जिसे ईश्वर में जरा भी विश्वास है उसे किसी भी विषय में चिंता करने में ग्लानि होनी चाहिए। - महात्मा गांधी | * चिंता के समान शरीर का क्षय और कुछ नहीं करता, और जिसे ईश्वर में जरा भी विश्वास है उसे किसी भी विषय में चिंता करने में ग्लानि होनी चाहिए। - महात्मा गांधी | ||
* पाप से नफरत करो, पापी से प्यार। - महात्मा गान्धी (1869-1948) | * पाप से नफरत करो, पापी से प्यार। - महात्मा गान्धी (1869-1948) | ||
+ | * आशा अमर है उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। - महात्मा गांधी | ||
+ | * शरीर-बल से प्राप्त सत्ता मानव देह की, तरह क्षणभंगुर रहेगी, जबकि आत्मबल से प्राप्त सत्ता अजर-अमर। - महात्मा गांधी | ||
+ | * मन ज्यों-ज्यों हिंसा से दूर हटता है, त्यों-त्यों दुख शांत हो जाता है। - महात्मा बुद्ध | ||
+ | * जो कला आत्मा को आत्मदर्शन की शिक्षा नहीं देती, वह कला नहीं है। - महात्मा गांधी | ||
+ | * आत्मसंयम, अनुशासन और बलिदान के बिना राहत या मुक्ति की आशा नहीं की जा सकती। - महात्मा गांधी | ||
+ | * काहिली और मन की पवित्रता, एक साथ नहीं रह सकतीं। - महात्मा गांधी | ||
+ | * इच्छा से दुख आता है, इच्छा से भय, आता है, जो इच्छाओं से मुक्त है वह न दुख जानता है न भय। - महात्मा गांधी | ||
+ | * हंसी मन की गांठे बड़ी आसानी से खोल देती है मेरे मन की भी और तुम्हारे मन की भी। - महात्मा गांधी | ||
+ | * सुन्दर दिखने के लिये भड़कीले, कपड़े पहनने की बजाय अपने, गुणों को बढ़ाना चाहिए। - महात्मा गांधी | ||
+ | * जिसे पुस्तकें पढ़ने का शौक है, वह सब जगह सुखी रह सकता है। - महात्मा गांधी | ||
+ | * मौन सर्वोत्तम भाषण है, अगर बोलना, जरूरी हो तो भी कम से कम बोलो, एक शब्द से काम चले तो दो नहीं। - महात्मा गांधी | ||
+ | * कर्म को सचेत होकर और सोच समझकर विवेक द्वारा करना चाहिए अन्यथा हानि होती है!!! - महात्मा गांधी | ||
+ | * प्रेम करने वाला व्यक्ति कभी भी उद्दंड, अत्याचारी और स्वार्थी नहीं होता। - महात्मा गांधी | ||
+ | * विज्ञान को विज्ञान तभी कह सकते हैं, जब वह शरीर, मन और आत्मा की भूख मिटाने की पूरी ताकत रखता हो। - महात्मा गांधी | ||
+ | * जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है, जिनमें योग्यता है उनका ध्यान उस ओर जाता ही नहीं है। - महात्मा गांधी | ||
+ | * आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नही होती!! - महात्मा गांधी | ||
+ | * अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है, वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। - महात्मा गांधी | ||
+ | * पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती, बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। - महात्मा गांधी | ||
+ | * हृदय की सच्ची प्रार्थना से ही हमें सच्चे कर्तव्य का पता चलता है, आखिर में तो कर्तव्य करना ही प्रार्थना बन जाता है। - महात्मा गांधी | ||
==स्वामी विवेकानंद== | ==स्वामी विवेकानंद== | ||
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* महान कार्य महान त्याग से ही सम्पन्न होते हैं। — स्वामी विवेकानन्द | * महान कार्य महान त्याग से ही सम्पन्न होते हैं। — स्वामी विवेकानन्द | ||
* धर्म वह संकल्पना है जो एक सामान्य पशुवत मानव को प्रथम इंसान और फिर भगवान बनाने का सामर्थय रखती है। - स्वामी विवेकांनंद | * धर्म वह संकल्पना है जो एक सामान्य पशुवत मानव को प्रथम इंसान और फिर भगवान बनाने का सामर्थय रखती है। - स्वामी विवेकांनंद | ||
+ | * इच्छा रूपी समुद्र सदा अतृप्त रहता है उसकी मांगे ज्यों-ज्यों पूरी की जाती हैं, त्यों-त्यों और गर्जन करता है। - स्वामी विवेकानन्द | ||
+ | * आदर्श को पकड़ने के लिए सहस्त्र बार, आगे बढ़ों और यदि फिर भी असफल, हो जाओ तो एकबार नया प्रयास, अवश्य करो। - स्वामी विवेकानन्द | ||
+ | * लक्ष्य को ही अपना जीवन कार्य समझो हर, समय उसका चिंतन करो उसी का स्वप्न, देखो और उसी के सहारे जीवित रहो। - स्वामी विवेकानन्द | ||
+ | * जितनी हम दूसरों की भलाई करते हैं, उतना ही हमारा ह़दय शुद्ध होता है और उसमें ईश्वर निवास करता है। - विवेकानन्द | ||
+ | * धन से नहीं, संतान से भी नहीं अमृत स्थिति की प्राप्ति केवल त्याग से ही होती है। - स्वामी विवेकानन्द | ||
+ | * इस संसार में जो अपने आप पर, भरोसा नहीं करता वह नास्तिक है। - स्वामी विवेकानन्द | ||
+ | * आप ईश्वर में तब तक विश्वास नहीं, कर पाएंगे जब तक आप अपने आप में विश्वास नहीं करते। - स्वामी विवेकानन्द | ||
+ | * हमारे व्यक्तित्व की उत्पत्ति हमारे विचारों में है, इसलिए ध्यान रखें कि आप क्या विचारते हैं, शब्द गौण हैं, विचार मुख्य हैं और उनका, असर दूर तक होता है। - स्वामी विवेकानन्द | ||
+ | * जिसने अकेले रहकर अकेलेपन को जीता उसने सब कुछ जीता। - विवेकानन्द | ||
+ | * श्रद्धा का अर्थ अंधविश्वास नहीं है। किसी ग्रंथ में कुछ लिखा हुआ या किसी व्यक्ति का कुछ कहा हुआ अपने अनुभव बिना सच मानना श्रद्धा नहीं है। - स्वामी विवेकानन्द | ||
+ | * जब हर मनुष्य अपने आप पर व एक - दूसरे पर विश्वास करने लगेगा, आस्थावान बन जाएगा तो यह धरती ही स्वर्ग बन जाएगी। - स्वामी विवेकानन्द | ||
+ | * पीछे मत देखो आगे देखो, अनंत उर्जा, अनंत उत्साह, अनंत साहस और अनंत धैर्य तभी महान कार्य, किये जा सकते हैं। - विवेकानन्द | ||
+ | * अपने सामने एक ही साध्य रखना चाहिए, जब तक वह सिद्ध न हो तब तक उसी की, धुन में मगन रहो, तभी सफलता मिलती है। - स्वामी विवेकानन्द | ||
==नेता जी सुभाष चंद्र बोस== | ==नेता जी सुभाष चंद्र बोस== | ||
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* बिना जोश के आज तक कोई भी महान कार्य नहीं हुआ। - सुभाष चंद्र बोस | * बिना जोश के आज तक कोई भी महान कार्य नहीं हुआ। - सुभाष चंद्र बोस | ||
* तुम मुझे खून दो, मै तुन्हे आजादी दूँगा। - नेता जी सुभाषचंद्र बोस | * तुम मुझे खून दो, मै तुन्हे आजादी दूँगा। - नेता जी सुभाषचंद्र बोस | ||
+ | * जिस व्यक्ति के हृदय में संगीत का स्पंदन नहीं है वह व्यक्ति कर्म और चिंतन द्वारा कभी महान नहीं बन सकता। - सुभाष चन्द्र बोस | ||
==जयशंकर प्रसाद== | ==जयशंकर प्रसाद== | ||
पंक्ति 261: | पंक्ति 316: | ||
* अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है। - जयशंकर प्रसाद | * अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है। - जयशंकर प्रसाद | ||
* मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली-भांति परिचित रहता है, पर उसे अपने बल से भी अवगत होना चाहिये। — जयशंकर प्रसाद | * मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली-भांति परिचित रहता है, पर उसे अपने बल से भी अवगत होना चाहिये। — जयशंकर प्रसाद | ||
+ | * दरिद्रता सब पापों की जननी है, तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है। - जयशंकर प्रसाद | ||
+ | * मनुष्यता का एक पक्ष वह भी है, जहां वर्ण, धर्म और देश को भूलकर मनुष्य, मनुष्य के लिए प्यार करता हैं। - जयशंकर प्रसाद | ||
==कहावत== | ==कहावत== | ||
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* कीरति भनिति भूति भलि सो, सुरसरि सम सबकँह हित होई॥ - तुलसीदास | * कीरति भनिति भूति भलि सो, सुरसरि सम सबकँह हित होई॥ - तुलसीदास | ||
* गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा। (हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है) — गोस्वामी तुलसीदास | * गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा। (हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है) — गोस्वामी तुलसीदास | ||
+ | * ईश्वर ने संसार को कर्म प्रधान बना रखा है, इसमें जो मनुष्य जैसा कर्म करता है उसको, वैसा ही फल प्राप्त होता है।। - गोस्वामी तुलसीदास | ||
+ | * वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर अपनी, छाया में दूसरों का ताप दूर करता है। - तुलसीदास | ||
+ | * अवसर आने पर मनुष्य यदि कौड़ी (दाम) देने में चूक जाये जो तो फिर लाख रूपया देने से क्या होता है ? द्वितीया के चंद्रमा को न देखा जाए फिर पक्ष भर चंद्रमा उदय रहे, उससे क्या होगा? - तुलसीदास | ||
==रहीम== | ==रहीम== | ||
पंक्ति 330: | पंक्ति 390: | ||
* कबिरा घास न निन्दिये जो पाँवन तर होय। उड़ि कै परै जो आँख में खरो दुहेलो होय॥ - कबीर | * कबिरा घास न निन्दिये जो पाँवन तर होय। उड़ि कै परै जो आँख में खरो दुहेलो होय॥ - कबीर | ||
* यदि सदगुरु मिल जाये तो जानो सब मिल गया, फिर कुछ मिलना शेष नहीं रहा। यदि सदगुरु नहीं मिले तो समझों कोई नहीं मिला, क्योंकि माता-पिता, पुत्र और भाई तो घर-घर में होते हैं। ये सांसारिक नाते सभी को सुलभ है, परन्तु सदगुरु की प्राप्ति दुर्लभ है। - कबीरदास | * यदि सदगुरु मिल जाये तो जानो सब मिल गया, फिर कुछ मिलना शेष नहीं रहा। यदि सदगुरु नहीं मिले तो समझों कोई नहीं मिला, क्योंकि माता-पिता, पुत्र और भाई तो घर-घर में होते हैं। ये सांसारिक नाते सभी को सुलभ है, परन्तु सदगुरु की प्राप्ति दुर्लभ है। - कबीरदास | ||
+ | * केवल ज्ञान की कथनी से क्या होता है, आचरण में, स्थिरता नहीं है, जैसे कागज का महल देखते ही गिर पड़ता है, वैसे आचरण रहित मनुष्य शीघ्र पतित होता है। - कबीर | ||
==पं. रामप्रताप त्रिपाठी== | ==पं. रामप्रताप त्रिपाठी== | ||
पंक्ति 345: | पंक्ति 406: | ||
* सोचना, कहना व करना सदा समान हो, नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिस्र्वल्लुवर | * सोचना, कहना व करना सदा समान हो, नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिस्र्वल्लुवर | ||
* उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष के समान है। - संत तिरुवल्लुवर | * उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष के समान है। - संत तिरुवल्लुवर | ||
+ | * जो सबके दिल को खुश कर देने वाली वाणी बोलता है, उसके पास दरिद्रता कभी नहीं फटक सकती। - तिरूवल्लुवर | ||
+ | * आलस्य में दरिद्रता बसती है, लेकिन जो, व्यक्ति आलस्य नहीं करते उनकी मेहनत में लक्ष्मी का निवास होता है। - तिरूवल्लुर | ||
+ | * बड़प्पन सदैव ही दूसरों की कमजोरियों, पर पर्दा डालना चाहता है, लेकिन ओछापन, दूसरों की कमियों बताने के सिवा और कुछ करना ही नहीं जानता। - तिरूवल्लुवर | ||
==माघ== | ==माघ== | ||
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* जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें तो यह संसार स्वर्ग बन जाय। — श्रीराम शर्मा आचार्य | * जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें तो यह संसार स्वर्ग बन जाय। — श्रीराम शर्मा आचार्य | ||
* विनय अपयश का नाश करता हैं, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षण का अंत करता है। — श्रीराम शर्मा आचार्य | * विनय अपयश का नाश करता हैं, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षण का अंत करता है। — श्रीराम शर्मा आचार्य | ||
+ | * जब तक व्यक्ति असत्य को ही सत्य समझता रहता है, तब तक उसके मन में सत्य को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न नहीं होती है। - पं. श्रीराम शर्मा | ||
+ | * अवसर तो सभी को जिन्दगी में मिलते हैं, किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीके से इस्तेमाल कुछ ही कर पाते हैं। - श्रीराम शर्मा | ||
==आचार्य रामचंद्र शुक्ल== | ==आचार्य रामचंद्र शुक्ल== | ||
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* पीड़ा से दृष्टि मिलती है, इसलिए आत्मपीड़न ही आत्मदर्शन का माध्यम है। - भगवान महावीर | * पीड़ा से दृष्टि मिलती है, इसलिए आत्मपीड़न ही आत्मदर्शन का माध्यम है। - भगवान महावीर | ||
* आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, मम्त्व रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता। - भगवान महावीर | * आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, मम्त्व रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता। - भगवान महावीर | ||
+ | * वह पुरूष धन्य है जो काम करने में कभी पीछे नहीं हटता, भाग्यलक्ष्मी उसके घर की राह पूछती हुई चली आती है। - भगवान महावीर | ||
==लोकमान्य तिलक== | ==लोकमान्य तिलक== | ||
पंक्ति 400: | पंक्ति 467: | ||
* महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। - जवाहरलाल नेहरू | * महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। - जवाहरलाल नेहरू | ||
* जय उसी की होती है जो अपने को संकट में डालकर कार्य संपन्न करते हैं। जय कायरों की कभी नहीं होती। - जवाहरलाल नेहरू | * जय उसी की होती है जो अपने को संकट में डालकर कार्य संपन्न करते हैं। जय कायरों की कभी नहीं होती। - जवाहरलाल नेहरू | ||
+ | * जो पुस्तकें सबसे अधिक सोचने के लिए मजबूर करती हैं, वही तुम्हारी सबसे बड़ी सहायक हैं। - जवाहरलाल नेहरू | ||
+ | * केवल कर्महीन ही ऐसे होते हैं, जो सदा भाग्य को कोसते हैं और जिनके, पास शिकायतों का अंबार होता है। - जवाहर लाल नेहर | ||
+ | * श्रेष्ठतम मार्ग खोजने की प्रतीक्षा के बजाय, हम गलत रास्ते से बचते रहें और बेहतर रास्ते को अपनाते रहें। - पं. जवाहर लाल नेहरू | ||
+ | * जीवन ताश के खेल के समान है, आप को जो पत्ते मिलते हैं वह नियति है, आप कैसे खेलते हैं वह आपकी स्वेच्छा है। - पं. जवाहर लाल नेहरू | ||
==हरिऔध== | ==हरिऔध== | ||
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* असफलता का मौसम, सफलता के बीज बोने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय होता है। - परमहंस योगानंद | * असफलता का मौसम, सफलता के बीज बोने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय होता है। - परमहंस योगानंद | ||
− | == | + | ==महर्षि अरविंद== |
* सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। - श्री अरविंद | * सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। - श्री अरविंद | ||
* भातृभाव का अस्तित्व केवल आत्मा में और आत्मा के द्वारा ही होता है, यह और किसी के सहारे टिक ही नहीं सकता। - श्री अरविंद | * भातृभाव का अस्तित्व केवल आत्मा में और आत्मा के द्वारा ही होता है, यह और किसी के सहारे टिक ही नहीं सकता। - श्री अरविंद | ||
* कर्म, ज्ञान और भक्ति- ये तीनों जहाँ मिलते हैं वहीं सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ जन्म लेता है। - श्री अरविंद | * कर्म, ज्ञान और भक्ति- ये तीनों जहाँ मिलते हैं वहीं सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ जन्म लेता है। - श्री अरविंद | ||
* अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं। - महर्षि अरविंद | * अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं। - महर्षि अरविंद | ||
+ | * यदि आप चाहते हैं कि लोग आपके साथ सच्चा व्यवहार करें तो आप खुद सच्चे बनें और अन्य लोगों से भी सच्चा व्यवहार करें। - महर्षि अरविन्द | ||
==सरदार पटेल== | ==सरदार पटेल== | ||
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* जब तक हम स्वयं निरपराध न हों तब तक दूसरों पर कोई आक्षेप सफलतापूर्वक नहीं कर सकते। - सरदार पटेल | * जब तक हम स्वयं निरपराध न हों तब तक दूसरों पर कोई आक्षेप सफलतापूर्वक नहीं कर सकते। - सरदार पटेल | ||
* यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर किनारे पर खड़े रहनेवाले कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। - सरदार पटेल | * यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर किनारे पर खड़े रहनेवाले कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। - सरदार पटेल | ||
+ | * शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाए, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम, दे सकता है। - सरदार पटेल | ||
==डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन== | ==डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन== | ||
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* मातृभाषा, मातृ संस्कृति और मातृभूमि ये तीनों सुखकारिणी देवियाँ स्थिर होकर हमारे हृदयासन पर विराजें। - ऋग्वेद | * मातृभाषा, मातृ संस्कृति और मातृभूमि ये तीनों सुखकारिणी देवियाँ स्थिर होकर हमारे हृदयासन पर विराजें। - ऋग्वेद | ||
* चिंता से चित्त को संताप और आत्मा को दुर्बलता प्राप्त होती है, इसलिए चिंता को तो छोड़ ही देना चाहिए। - ऋग्वेद | * चिंता से चित्त को संताप और आत्मा को दुर्बलता प्राप्त होती है, इसलिए चिंता को तो छोड़ ही देना चाहिए। - ऋग्वेद | ||
+ | * मानव जिस लक्ष्य में मन लगा देता है, उसे वह श्रम से हासिल कर सकता है। - ऋग्वेद | ||
==अमिताभ बच्चन== | ==अमिताभ बच्चन== | ||
* दूसरों की ग़लतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि खुद इतनी ग़लतियाँ कर सकें। - अमिताभ बच्चन | * दूसरों की ग़लतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि खुद इतनी ग़लतियाँ कर सकें। - अमिताभ बच्चन | ||
* अगर भगवान से माँग रहे हो तो हल्का बोझ मत माँगो, मजबूत कंधे माँगो। - अमिताभ बच्चन | * अगर भगवान से माँग रहे हो तो हल्का बोझ मत माँगो, मजबूत कंधे माँगो। - अमिताभ बच्चन | ||
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==विदुर== | ==विदुर== | ||
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* जहाँ मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहाँ अन्न की सुरक्षा की जाती है और जहाँ परिवार में कलह नहीं होती, वहाँ लक्ष्मी निवास करती है। - अथर्ववेद | * जहाँ मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहाँ अन्न की सुरक्षा की जाती है और जहाँ परिवार में कलह नहीं होती, वहाँ लक्ष्मी निवास करती है। - अथर्ववेद | ||
* पुण्य की कमाई मेरे घर की शोभा बढ़ाए, पाप की कमाई को मैंने नष्ट कर दिया है। - अथर्ववेद | * पुण्य की कमाई मेरे घर की शोभा बढ़ाए, पाप की कमाई को मैंने नष्ट कर दिया है। - अथर्ववेद | ||
+ | * जो स्वयं संयमित व नियंत्रित है उसे, व्यर्थ में और अधिक नियंत्रित नहीं करना चाहिये, जो अभी अनियंत्रित है, उसी को नियंत्रित किया जाना चाहिए। - अथर्ववेद | ||
==रामनरेश त्रिपाठी== | ==रामनरेश त्रिपाठी== | ||
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* अपने भाई बंधु जिसका आदर करते हैं, दूसरे भी उसका आदर करते हैं। - महाभारत | * अपने भाई बंधु जिसका आदर करते हैं, दूसरे भी उसका आदर करते हैं। - महाभारत | ||
* जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों का ध्यान रखकर उसके एक पत्ते से भी द्रोह नहीं करना चाहिए। - महाभारत | * जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों का ध्यान रखकर उसके एक पत्ते से भी द्रोह नहीं करना चाहिए। - महाभारत | ||
+ | * लक्ष्मी शुभ कार्य से उत्पन्न होती है, चतुरता से बढ़ती है, अत्यन्त निपुणता से, जड़े जमाती है और संयम से स्थिर रहती है। - महाभारत | ||
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+ | ==गीता== | ||
+ | * फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करनेवाला मनुष्य ही मोक्ष प्राप्त करता है। - गीता | ||
+ | * कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्। (कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, फल में कभी भी नहीं) — गीता | ||
==स्वामी रामतीर्थ== | ==स्वामी रामतीर्थ== | ||
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* त्याग निश्चय ही आपके बल को बढ़ा देता है, आपकी शक्तियों को कई गुना कर देता है, आपके पराक्रम को दृढ कर देता है, वही आपको ईश्वर बना देता है। वह आपकी चिंताएं और भय हर लेता है, आप निर्भय तथा आनंदमय हो जाते हैं। - स्वामी रामतीर्थ | * त्याग निश्चय ही आपके बल को बढ़ा देता है, आपकी शक्तियों को कई गुना कर देता है, आपके पराक्रम को दृढ कर देता है, वही आपको ईश्वर बना देता है। वह आपकी चिंताएं और भय हर लेता है, आप निर्भय तथा आनंदमय हो जाते हैं। - स्वामी रामतीर्थ | ||
* सूरज और चांद को आप अपने जन्म के समय से ही देखते चले आ रहे हैं। फिर भी यह नहीं जान पाये कि काम कैसे करने चाहिए? - रामतीर्थ | * सूरज और चांद को आप अपने जन्म के समय से ही देखते चले आ रहे हैं। फिर भी यह नहीं जान पाये कि काम कैसे करने चाहिए? - रामतीर्थ | ||
+ | * कृत्रिम प्रेम बहुत दिनों तक चल नहीं पाता, स्वाभाविक प्रेम की नकल नहीं हो सकती। - स्वामी रामतीर्थ | ||
+ | * जो मनुष्य अपने साथी से घृणा करता है, वह उसी मनुष्य के समान हत्यारा है, जिसने सचमुच हत्या की हो। - स्वामी रामतीर्थ | ||
+ | * आलस्य मृत्यु के समान है, और केवल उद्यम ही आपका जीवन है। - स्वामी रामतीर्थ | ||
+ | * सच्चा पड़ोसी वह नहीं जो तुम्हारे साथ, उसी मकान में रहता है, बल्िक वह है जो तुम्हारे साथ उसी विचार स्तर पर रहता है। - स्वामी रामतीर्थ | ||
+ | * जब तक तुम्हारें अन्दर दूसरों के, अवगुण ढुंढने या उनके दोष देखने, की आदत मौजूद है ईश्वर का साक्षात, करना अत्यंत कठिन है। - स्वामी रामतीर्थ | ||
+ | * व्यक्ति को हानि, पीड़ा और चिंताएं, उसकी किसी आंतरिक दुर्बलता के कारण होती है, उस दुर्बलता को दूर करके कामयाबी मिल सकती है। - स्वामी रामतीर्थ | ||
+ | * दुनियावी चीजों में सुख की तलाश, फिजूल होती है। आनन्द का खजाना, तो कहीं हमारे भीतर ही है। - स्वामी रामतीर्थ | ||
==इंदिरा गांधी== | ==इंदिरा गांधी== | ||
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* आप भींची मुट्ठी से हाथ नहीं मिला सकते। - इंदिरा गांधी | * आप भींची मुट्ठी से हाथ नहीं मिला सकते। - इंदिरा गांधी | ||
* प्रश्न कर पाने की क्षमता ही मानव प्रगति का आधार है। - इंदिरा गांधी | * प्रश्न कर पाने की क्षमता ही मानव प्रगति का आधार है। - इंदिरा गांधी | ||
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==मैथिलीशरण गुप्त== | ==मैथिलीशरण गुप्त== | ||
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* मसीहा को मरे जितना समय हो जाता है कर्मकांड उतना ही प्रबल हो जाता है, अगर आज बुद्ध जीवित होते तो तुम उन्हें पसंद न करते। - आचार्य रजनीश | * मसीहा को मरे जितना समय हो जाता है कर्मकांड उतना ही प्रबल हो जाता है, अगर आज बुद्ध जीवित होते तो तुम उन्हें पसंद न करते। - आचार्य रजनीश | ||
* मेरी सारी शिक्षा दो शब्दो की है प्रेम और ध्यान। - आचार्य रजनीश | * मेरी सारी शिक्षा दो शब्दो की है प्रेम और ध्यान। - आचार्य रजनीश | ||
+ | * धर्म जीवन को परमात्मा में जीने की विधि है, संसार में ऐसे जिया जा सकता है जैसे, कमल सरोवर के कीचड़ में जीते हैं। - आचार्य रजनीश | ||
==स्वामी सुदर्शनाचार्य जी== | ==स्वामी सुदर्शनाचार्य जी== | ||
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* बुद्धिमान मनुष्य अपनी हानि पर कभी नहीं रोते बल्कि साहस के साथ उसकी क्षतिपूर्ति में लग जाते हैं। - विष्णु शर्मा | * बुद्धिमान मनुष्य अपनी हानि पर कभी नहीं रोते बल्कि साहस के साथ उसकी क्षतिपूर्ति में लग जाते हैं। - विष्णु शर्मा | ||
+ | * जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वहीं इस संसार में वास्तव में जीता है। - विष्णु शर्मा | ||
* जैसे रात्रि के बाद भोर का आना या दुख के बाद सुख का आना जीवन चक्र का हिस्सा है वैसे ही प्राचीनता से नवीनता का सफ़र भी निश्चित है। - भावना कुँअर | * जैसे रात्रि के बाद भोर का आना या दुख के बाद सुख का आना जीवन चक्र का हिस्सा है वैसे ही प्राचीनता से नवीनता का सफ़र भी निश्चित है। - भावना कुँअर | ||
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* जैसे उल्लू को सूर्य नहीं दिखाई देता वैसे ही दुष्ट को सौजन्य दिखाई नहीं देता। - स्वामी भजनानंद | * जैसे उल्लू को सूर्य नहीं दिखाई देता वैसे ही दुष्ट को सौजन्य दिखाई नहीं देता। - स्वामी भजनानंद | ||
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* सबसे उत्तम विजय प्रेम की है जो सदैव के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है। - सम्राट अशोक | * सबसे उत्तम विजय प्रेम की है जो सदैव के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है। - सम्राट अशोक | ||
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* हिंदी ही हिंदुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है। हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक ख़रीदें! मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी लेखकों को प्रोत्साहन देंगे? - शास्त्री फ़िलिप | * हिंदी ही हिंदुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है। हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक ख़रीदें! मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी लेखकों को प्रोत्साहन देंगे? - शास्त्री फ़िलिप | ||
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* यदि तुम्हें अपने चुने हुए रास्ते पर विश्वास है, यदि इस पर चलने का साहस है, यदि इसकी कठिनाइयों को जीत लेने की शक्ति है, तो रास्ता तुम्हारा अनुगमन करता है। - धीरूभाई अंबानी | * यदि तुम्हें अपने चुने हुए रास्ते पर विश्वास है, यदि इस पर चलने का साहस है, यदि इसकी कठिनाइयों को जीत लेने की शक्ति है, तो रास्ता तुम्हारा अनुगमन करता है। - धीरूभाई अंबानी | ||
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* जीवन दूध के समुद्र की तरह है, आप इसे जितना मथेंगे आपको इससे उतना ही मक्खन मिलेगा। - घनश्यामदास बिड़ला | * जीवन दूध के समुद्र की तरह है, आप इसे जितना मथेंगे आपको इससे उतना ही मक्खन मिलेगा। - घनश्यामदास बिड़ला | ||
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* वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम हैं। - सामवेद | * वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम हैं। - सामवेद |
18:43, 4 अक्टूबर 2011 का अवतरण
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इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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