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वीणा पुस्तक रंजित हस्ते, भगवती भारती देवी नमस्ते ॥</poem></span></blockquote>
  
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सदगुण वैभव शालिनी त्रिभुवन विख्याता ॥ जय.....
जय सरस्वती माता जय जय हे सरस्वती माता |
 
सदगुण वैभव शालिनी त्रिभुवन विख्याता॥ जय.....
 
  
 
चंद्रवदनि पदमासिनी घुति मंगलकारी |
 
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जय सरस्वती माता जय जय हे सरस्वती माता |
 
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आरती करूं सरस्वती मातु, हमारी हो भव भय हारी हो |
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हंस वाहन पदमासन तेरा, शुभ्र वस्त्र अनुपम है तेरा |
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रावण का मन कैसे फेर, वर मागंत वन गया सबेरा |
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यह सब कृपा तिहरी, उपकारी हो मातु हमारी हो |
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तमोज्ञान नाशक तुम रवि हो, हम आम्बुजन विकास करती हो |
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मंगल भवन मातु सरस्वती हो, बहुमूकन वाचल करती हो |
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विद्या देने वाली वीण, धारी हो मातु हमारी ||
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तुम्हारी कृपा गणनायक, लायक, विष्णु भये जग के पालक |
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अम्बा कहाई सृष्टी की कारण, भये शम्भु संसार ही घालक ||
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बंदौं आदि भवानी जग, सुखकारी हो मातु हमारी |
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सद्र्बुद्धि विधाबल मोहि, दीजै, तुम अज्ञान हटा कर लीजै ||
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जन्मभूति हित अर्पण कीजौ, कर्मवीर भस्महिं कर लीजौ ||
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जन्मभूमि हित अर्पण कीजै, कर्मवीर भस्महिं कर दीजै ||
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ऐसी विनय हमारी  भवभव, हरी, मातु हमारी हो, आरती करूं सरस्वती मातु |
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12:15, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण

कज्जल पुरित लोचन भारे, स्तन युग शोभित मुक्त हारे |
वीणा पुस्तक रंजित हस्ते, भगवती भारती देवी नमस्ते ॥

जय सरस्वती माता जय जय हे सरस्वती माता |
सदगुण वैभव शालिनी त्रिभुवन विख्याता ॥ जय.....

चंद्रवदनि पदमासिनी घुति मंगलकारी |
सोहें शुभ हंस सवारी अतुल तेजधारी ॥ जय.....

बायेँ कर में वीणा दायें कर में माला |
शीश मुकुट मणी सोहें गल मोतियन माला ॥ जय.....

देवी शरण जो आयें उनका उद्धार किया |
पैठी मंथरा दासी रावण संहार किया ॥ जय.....

विद्या ज्ञान प्रदायिनी ज्ञान प्रकाश भरो |
मोह और अज्ञान तिमिर का जग से नाश करो ॥ जय.....

धुप दिप फल मेवा माँ स्वीकार करो |
ज्ञानचक्षु दे माता भव से उद्धार करो ॥ जय.....

माँ सरस्वती जी की आरती जो कोई नर गावें |
हितकारी सुखकारी ग्यान भक्ती पावें ॥ जय.....

जय सरस्वती माता जय जय हे सरस्वती माता |
सदगुण वैभव शालिनी त्रिभुवन विख्याता ॥ जय.....


आरती करूं सरस्वती मातु, हमारी हो भव भय हारी हो |
हंस वाहन पदमासन तेरा, शुभ्र वस्त्र अनुपम है तेरा |
रावण का मन कैसे फेर, वर मागंत वन गया सबेरा |
यह सब कृपा तिहरी, उपकारी हो मातु हमारी हो |
तमोज्ञान नाशक तुम रवि हो, हम आम्बुजन विकास करती हो |
मंगल भवन मातु सरस्वती हो, बहुमूकन वाचल करती हो |
विद्या देने वाली वीण, धारी हो मातु हमारी ||
तुम्हारी कृपा गणनायक, लायक, विष्णु भये जग के पालक |
अम्बा कहाई सृष्टी की कारण, भये शम्भु संसार ही घालक ||
बंदौं आदि भवानी जग, सुखकारी हो मातु हमारी |
सद्र्बुद्धि विधाबल मोहि, दीजै, तुम अज्ञान हटा कर लीजै ||
जन्मभूति हित अर्पण कीजौ, कर्मवीर भस्महिं कर लीजौ ||
जन्मभूमि हित अर्पण कीजै, कर्मवीर भस्महिं कर दीजै ||
ऐसी विनय हमारी भवभव, हरी, मातु हमारी हो, आरती करूं सरस्वती मातु |


इन्हें भी देखें: सरस्वती देवी, सरस्वती प्रार्थना एवं सरस्वती चालीसा

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