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==इतिहास==
 
==इतिहास==
 
भारतीय जन संचार संस्थान की स्थापना [[17 अगस्त]], [[1965]] में हुई। इसका उद्घाटन तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री [[इंदिरा गांधी]] ने किया। प्रारंभ में भारतीय जन संचार संस्थान (आई.आई.एम.सी) का आकार बहुत छोटा था जिसमें [[यूनेस्को]] के दो परामर्शदाता भी शामिल थे। प्रारम्भ के कुछ वर्षों में संस्थान ने मुख्यतः केन्द्रीय सूचना सेवा के अधिकारियों के लिए पाठ्यक्रम आयोजित किये तथा लघु स्तर पर शोध अध्ययन किये। वर्ष 1969 में, अफ्रीकी एशियाई देशों के मध्यम स्तर के श्रमजीवी पत्रकारों के लिए, “विकासशील देशों के लिए पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम” का एक प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरु किया। तत्पश्चात् संस्थान ने केन्द्र/राज्य सरकारों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों के विभिन्न मीडिया/प्रचार संगठनों में कार्यरत संचार कर्मियों की प्रशिक्षण संबंधी बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक सप्ताह से 3 महीने की अवधि के कई विशेष पाठ्यक्रम भी शुरु किये। विगत वर्षों में भारतीय जन संचार संस्थान का विस्तार हुआ है और अब यह नियमित स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रमों का भी आयोजन करता है।
 
भारतीय जन संचार संस्थान की स्थापना [[17 अगस्त]], [[1965]] में हुई। इसका उद्घाटन तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री [[इंदिरा गांधी]] ने किया। प्रारंभ में भारतीय जन संचार संस्थान (आई.आई.एम.सी) का आकार बहुत छोटा था जिसमें [[यूनेस्को]] के दो परामर्शदाता भी शामिल थे। प्रारम्भ के कुछ वर्षों में संस्थान ने मुख्यतः केन्द्रीय सूचना सेवा के अधिकारियों के लिए पाठ्यक्रम आयोजित किये तथा लघु स्तर पर शोध अध्ययन किये। वर्ष 1969 में, अफ्रीकी एशियाई देशों के मध्यम स्तर के श्रमजीवी पत्रकारों के लिए, “विकासशील देशों के लिए पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम” का एक प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरु किया। तत्पश्चात् संस्थान ने केन्द्र/राज्य सरकारों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों के विभिन्न मीडिया/प्रचार संगठनों में कार्यरत संचार कर्मियों की प्रशिक्षण संबंधी बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक सप्ताह से 3 महीने की अवधि के कई विशेष पाठ्यक्रम भी शुरु किये। विगत वर्षों में भारतीय जन संचार संस्थान का विस्तार हुआ है और अब यह नियमित स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रमों का भी आयोजन करता है।
 
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==भाषा==
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भारतीय जन संचार संस्थान विश्व का ऐसा पहला और एकमात्र संस्थान है, जिसने अब तक [[उर्दू]], [[उड़िया]], [[गुजराती]], [[मराठी]] और [[हिन्दी]] जैसी पांच आधुनिक भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित किए। संस्थान के प्रशिक्षण कार्यक्रमों और उनमें प्रशिक्षित युवा संचारकर्मियों ने देश-विदेश के संचार परिदृश्य पर जो छाप छोड़ी उससे यह मांग पैदा हुई कि संस्थान के केन्द्र देश के अन्य क्षेत्रों में भी खोले जाने चाहिए। पूर्वी भारत की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 1993 में ढेंकनाल ([[उड़ीसा]]) में पहला केन्द्र खोला गया। इस समय वहां [[अंग्रेज़ी]] एवं उड़िया माध्यम से स्नातकोत्तर पत्रकारिता डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलाये जा रहे हैं। इसमें प्रशिक्षित छात्रों को भी [[दिल्ली]] में पढ़े हुए छात्रों की तरह कई राज्यों के समाचार पत्रों में तुरन्त रोजगार मिला है ।
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==योगदान==
 
जनसंचार रुचि के प्रमुख क्षेत्र के रूप में उभरा है और समाज के विकास और सशक्तिकरण में इसका बहुत योगदान है हालांकि शास्त्र के रूप में यह नया है फिर भी इसका महत्व तेजी से बढ़ा है और छात्र-छात्राओं के लिए यह बड़ा आकर्षण बन गया है। संचार माध्यमों के विस्तार में सूचना क्रांति ने प्रमुख भूमिका निभायी है। इसने छात्रों, शिक्षकों और संचारकर्मियों के लिए कई बड़ी चुनौतियां खड़ी की हैं। प्रौद्योगिकी में जितनी तेजी से बदलाव आ रहा है, उतनी ही तेजी से इस शास्त्र का स्वरूप भी बदल रहा है। शिक्षा के किसी दूसरे क्षेत्र में ऐसा नहीं हो रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी से उभर रही चुनौती भारतीय जन संचार संस्थान के प्रशिक्षण का अनिवार्य अंग है।
 
जनसंचार रुचि के प्रमुख क्षेत्र के रूप में उभरा है और समाज के विकास और सशक्तिकरण में इसका बहुत योगदान है हालांकि शास्त्र के रूप में यह नया है फिर भी इसका महत्व तेजी से बढ़ा है और छात्र-छात्राओं के लिए यह बड़ा आकर्षण बन गया है। संचार माध्यमों के विस्तार में सूचना क्रांति ने प्रमुख भूमिका निभायी है। इसने छात्रों, शिक्षकों और संचारकर्मियों के लिए कई बड़ी चुनौतियां खड़ी की हैं। प्रौद्योगिकी में जितनी तेजी से बदलाव आ रहा है, उतनी ही तेजी से इस शास्त्र का स्वरूप भी बदल रहा है। शिक्षा के किसी दूसरे क्षेत्र में ऐसा नहीं हो रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी से उभर रही चुनौती भारतीय जन संचार संस्थान के प्रशिक्षण का अनिवार्य अंग है।
 
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संस्थान संचार को विकास का उत्प्रेरक मानता है और विश्वस्तरीय शिक्षण, प्रशिक्षण और शोध के द्वारा समाज को लाभ पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह अत्यंत प्रतियोगी विश्व से प्राप्त चुनौतियों का सामना करने के लिए विद्यार्थियों को तैयार कर रहा है। संस्थान के प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रतियोगी विश्व की चुनौतियों और विकासशील देश की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैें। इस अर्थ में भारतीय जन संचार संस्थान देश और विदेश के जनसंचार प्रशिक्षण केन्द्रों से अलग है। यही विशेषता इस संस्थान के विद्यार्थियों को अलग पहचान और चरित्र प्रदान करती है। भारतीय जन संचार संस्थान को जनसंचार के शिक्षण, प्रशिक्षण तथा शोघ के क्षेत्र मे गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। प्रतिवर्ष मीडिया और व्यावसायिक निकायों में किए जाने वाले मूल्यांकनों से जिसका आभास होता है। पिछले दो दशकों से भी अधिक समय में संस्थान ने अपनी गतिविधियां बढ़ाई हैं तेजी से बढ़ते हुए मीडिया और संचार उद्योग के लिए आवश्यक प्रशिक्षित कर्मियों की मांग पूरी करने के लिए कई विशेष पाठ्यक्रम शुरू किए है। सूचना उद्योग में हो रही नई पहलकदमियों से जो चुनौतियां पैदा हो रही हैं, उनसे निपटने के लिए संस्थान अपने कार्यक्रमों में सुधार के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है।<br />
संस्थान संचार को विकास का उत्प्रेरक मानता है और विश्वस्तरीय शिक्षण, प्रशिक्षण और शोध के द्वारा समाज को लाभ पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह अत्यंत प्रतियोगी विश्व से प्राप्त चुनौतियों का सामना करने के लिए विद्यार्थियों को तैयार कर रहा है। संस्थान के प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रतियोगी विश्व की चुनौतियों और विकासशील देश की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैें। इस अर्थ में भारतीय जन संचार संस्थान देश और विदेश के जनसंचार प्रशिक्षण केन्द्रों से अलग है। यही विशेषता इस संस्थान के विद्यार्थियों को अलग पहचान और चरित्र प्रदान करती है।
 
 
 
भारतीय जन संचार संस्थान को जनसंचार के शिक्षण, प्रशिक्षण तथा शोघ के क्षेत्र मे गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। प्रतिवर्ष मीडिया और व्यावसायिक निकायों में किए जाने वाले मूल्यांकनों से जिसका आभास होता है।
 
 
 
पिछले दो दशकों से भी अधिक समय में संस्थान ने अपनी गतिविधियां बढ़ाई हैं तेजी से बढ़ते हुए मीडिया और संचार उद्योग के लिए आवश्यक प्रशिक्षित कर्मियों की मांग पूरी करने के लिए कई विशेष पाठ्यक्रम शुरू किए है। सूचना उद्योग में हो रही नई पहलकदमियों से जो चुनौतियां पैदा हो रही हैं, उनसे निपटने के लिए संस्थान अपने कार्यक्रमों में सुधार के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है।
 
 
 
 
हर वर्ष उद्योग की नई जरूरतों के अनुसार पाठ्यविषयों में परिवर्तन किया जाता है और संस्थान की परिषद के जरिए भारत भर के संचार विशेषज्ञों से आए सुझावों को शामिल किया जाता है। संस्थान का प्रबंध एक स्वशासी भारतीय जन संचार संस्थान समिति करती है। यह समिति सोसायटी पंजीकरण कानून, 1860 के अन्तर्गत पंजीकृत है। इसका पूरा खर्च सूचना और प्रसारण मंत्रालय के जरिए [[भारत सरकार]] उठाती है। भारतीय जन संचार संस्थान समिति की बैठक वर्ष में एक बार होती है। कार्यकारी परिषद प्रबंध कार्य करती है। दोनों ही समितियों में अध्यक्ष एंव संस्थान के महानिदेशक के अलावा भारत सरकार के प्रतिनिधियों के अलावा विख्यात संचारकर्मी और संकाय के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
 
हर वर्ष उद्योग की नई जरूरतों के अनुसार पाठ्यविषयों में परिवर्तन किया जाता है और संस्थान की परिषद के जरिए भारत भर के संचार विशेषज्ञों से आए सुझावों को शामिल किया जाता है। संस्थान का प्रबंध एक स्वशासी भारतीय जन संचार संस्थान समिति करती है। यह समिति सोसायटी पंजीकरण कानून, 1860 के अन्तर्गत पंजीकृत है। इसका पूरा खर्च सूचना और प्रसारण मंत्रालय के जरिए [[भारत सरकार]] उठाती है। भारतीय जन संचार संस्थान समिति की बैठक वर्ष में एक बार होती है। कार्यकारी परिषद प्रबंध कार्य करती है। दोनों ही समितियों में अध्यक्ष एंव संस्थान के महानिदेशक के अलावा भारत सरकार के प्रतिनिधियों के अलावा विख्यात संचारकर्मी और संकाय के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
  
संस्थान का उद्घाटन 17 अगस्त 1965 को तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने किया था। इसकी शुरूआत बहुत कम कर्मचारियों से हुई । उस समय इसके कार्य में युनेस्को के दो सलाहकार भी मदद दे रहे थे । शुरू के कुछ वर्षों में संस्थान ने मुख्यतः केन्द्रीय सूचना सेवा के अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया। कुछ शोध परियोजनाएं भी हाथ में ली गईं।
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{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
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==टीका-टिप्पणी और संदर्भ==
1969 में संस्थान के एक महत्वपूर्ण अन्तरराष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आरम्भ किया। अंग्रेजी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम में एशिया और अफ्रीका के युवा पत्रकारों को प्रवेश दिया गया। केन्द्र और राज्य सरकारों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के प्रचार/जनसम्पर्क विभागों से जुड़े हुए संचारकर्मियों के प्रशिक्षण की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए कुछ विशेष अल्पकालीन पाठ्यक्रम शुरू किए गए। इनकी अवधि एक सप्ताह से तीन महीने तक थी।
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==बाहरी कड़ियाँ==
भारतीय जन संचार संस्थान विश्व का ऐसा पहला और एकमात्र संस्थान है, जिसने अब तक उर्दू, उडि़या, गुजराती, मराठी और हिन्दी जैसी पांच आधुनिक भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित किएसंस्थान के प्रशिक्षण कार्यक्रमों और उनमें प्रशिक्षित युवा संचारकर्मियों ने देश-विदेश के संचार परिदृश्य पर जो छाप छोड़ी उससे यह मांग पैदा हुई कि संस्थान के केन्द्र देश के अन्य क्षेत्रों में भी खोले जाने चाहिए । पूर्वी भारत की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 1993 में ढेंकनाल (उड़ीसा) में पहला केन्द्र खोला गया ।
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*[http://www.iimc.gov.in/content/Hindi/index.aspx आधिकारिक वेबसाइट]
 
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==संबंधित लेख==
इस समय वहां अंग्रेजी एवं उडि़या माध्यम से स्नातकोत्तर पत्रकारिता डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलाये जा रहे है। इसमें प्रशिक्षित छात्रों को भी दिल्ली में पढ़े हुए छात्रों की तरह कई राज्यों के समाचार पत्रों में तुरन्त रोजगार मिला है ।
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{{भारत के संस्थान}}
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[[Category:भारत सरकार के संस्थान]]
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[[Category:संचार]]
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[[Category:समाज कोश]]
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14:07, 4 सितम्बर 2016 का अवतरण

भारतीय जन संचार संस्थान (अंग्रेज़ी: Indian Institute of Mass Communication- संक्षिप्त नाम: आईआईएमसी/ IIMC) पत्रकारिता और जनसंचार के शिक्षण-प्रशिक्षण और शोध के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्थान है। इसकी स्थापना 1967 में भारत और तीसरी दुनिया के अन्य देशों में पत्रकारिता और जनसंचार के लिए क्षमताएँ पैदा करने हेतु की गई।

मिशन

भारतीय जन संचार संस्थान, ज्ञान आधारित सूचना समाज के निर्माण, मानव विकास, सशक्तिकरण एवं सहभागी जनतंत्र में योगदान देने, जिसके केन्द्र में अनेकत्व, सार्वभौमिक मूल्य और नैतिकता होगी, के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए मीडिया शिक्षा, शोध, विस्तार एवं प्रशिक्षण के भूमंडलीय स्तर निर्धारित करेगा। एक गतिशील शिक्षण एवं कार्य वातावरण तैयार करना जो नये विचारों, रचनात्मकता, शोध और विद्वत्ता का पोषक हो और जो मीडिया और जनसंचार के क्षेत्र में अग्रणियों और प्रवर्तकों को विकसित करे।

इतिहास

भारतीय जन संचार संस्थान की स्थापना 17 अगस्त, 1965 में हुई। इसका उद्घाटन तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी ने किया। प्रारंभ में भारतीय जन संचार संस्थान (आई.आई.एम.सी) का आकार बहुत छोटा था जिसमें यूनेस्को के दो परामर्शदाता भी शामिल थे। प्रारम्भ के कुछ वर्षों में संस्थान ने मुख्यतः केन्द्रीय सूचना सेवा के अधिकारियों के लिए पाठ्यक्रम आयोजित किये तथा लघु स्तर पर शोध अध्ययन किये। वर्ष 1969 में, अफ्रीकी एशियाई देशों के मध्यम स्तर के श्रमजीवी पत्रकारों के लिए, “विकासशील देशों के लिए पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम” का एक प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरु किया। तत्पश्चात् संस्थान ने केन्द्र/राज्य सरकारों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों के विभिन्न मीडिया/प्रचार संगठनों में कार्यरत संचार कर्मियों की प्रशिक्षण संबंधी बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक सप्ताह से 3 महीने की अवधि के कई विशेष पाठ्यक्रम भी शुरु किये। विगत वर्षों में भारतीय जन संचार संस्थान का विस्तार हुआ है और अब यह नियमित स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रमों का भी आयोजन करता है।

भाषा

भारतीय जन संचार संस्थान विश्व का ऐसा पहला और एकमात्र संस्थान है, जिसने अब तक उर्दू, उड़िया, गुजराती, मराठी और हिन्दी जैसी पांच आधुनिक भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित किए। संस्थान के प्रशिक्षण कार्यक्रमों और उनमें प्रशिक्षित युवा संचारकर्मियों ने देश-विदेश के संचार परिदृश्य पर जो छाप छोड़ी उससे यह मांग पैदा हुई कि संस्थान के केन्द्र देश के अन्य क्षेत्रों में भी खोले जाने चाहिए। पूर्वी भारत की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 1993 में ढेंकनाल (उड़ीसा) में पहला केन्द्र खोला गया। इस समय वहां अंग्रेज़ी एवं उड़िया माध्यम से स्नातकोत्तर पत्रकारिता डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलाये जा रहे हैं। इसमें प्रशिक्षित छात्रों को भी दिल्ली में पढ़े हुए छात्रों की तरह कई राज्यों के समाचार पत्रों में तुरन्त रोजगार मिला है ।

योगदान

जनसंचार रुचि के प्रमुख क्षेत्र के रूप में उभरा है और समाज के विकास और सशक्तिकरण में इसका बहुत योगदान है हालांकि शास्त्र के रूप में यह नया है फिर भी इसका महत्व तेजी से बढ़ा है और छात्र-छात्राओं के लिए यह बड़ा आकर्षण बन गया है। संचार माध्यमों के विस्तार में सूचना क्रांति ने प्रमुख भूमिका निभायी है। इसने छात्रों, शिक्षकों और संचारकर्मियों के लिए कई बड़ी चुनौतियां खड़ी की हैं। प्रौद्योगिकी में जितनी तेजी से बदलाव आ रहा है, उतनी ही तेजी से इस शास्त्र का स्वरूप भी बदल रहा है। शिक्षा के किसी दूसरे क्षेत्र में ऐसा नहीं हो रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी से उभर रही चुनौती भारतीय जन संचार संस्थान के प्रशिक्षण का अनिवार्य अंग है। संस्थान संचार को विकास का उत्प्रेरक मानता है और विश्वस्तरीय शिक्षण, प्रशिक्षण और शोध के द्वारा समाज को लाभ पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह अत्यंत प्रतियोगी विश्व से प्राप्त चुनौतियों का सामना करने के लिए विद्यार्थियों को तैयार कर रहा है। संस्थान के प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रतियोगी विश्व की चुनौतियों और विकासशील देश की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैें। इस अर्थ में भारतीय जन संचार संस्थान देश और विदेश के जनसंचार प्रशिक्षण केन्द्रों से अलग है। यही विशेषता इस संस्थान के विद्यार्थियों को अलग पहचान और चरित्र प्रदान करती है। भारतीय जन संचार संस्थान को जनसंचार के शिक्षण, प्रशिक्षण तथा शोघ के क्षेत्र मे गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। प्रतिवर्ष मीडिया और व्यावसायिक निकायों में किए जाने वाले मूल्यांकनों से जिसका आभास होता है। पिछले दो दशकों से भी अधिक समय में संस्थान ने अपनी गतिविधियां बढ़ाई हैं तेजी से बढ़ते हुए मीडिया और संचार उद्योग के लिए आवश्यक प्रशिक्षित कर्मियों की मांग पूरी करने के लिए कई विशेष पाठ्यक्रम शुरू किए है। सूचना उद्योग में हो रही नई पहलकदमियों से जो चुनौतियां पैदा हो रही हैं, उनसे निपटने के लिए संस्थान अपने कार्यक्रमों में सुधार के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है।
हर वर्ष उद्योग की नई जरूरतों के अनुसार पाठ्यविषयों में परिवर्तन किया जाता है और संस्थान की परिषद के जरिए भारत भर के संचार विशेषज्ञों से आए सुझावों को शामिल किया जाता है। संस्थान का प्रबंध एक स्वशासी भारतीय जन संचार संस्थान समिति करती है। यह समिति सोसायटी पंजीकरण कानून, 1860 के अन्तर्गत पंजीकृत है। इसका पूरा खर्च सूचना और प्रसारण मंत्रालय के जरिए भारत सरकार उठाती है। भारतीय जन संचार संस्थान समिति की बैठक वर्ष में एक बार होती है। कार्यकारी परिषद प्रबंध कार्य करती है। दोनों ही समितियों में अध्यक्ष एंव संस्थान के महानिदेशक के अलावा भारत सरकार के प्रतिनिधियों के अलावा विख्यात संचारकर्मी और संकाय के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।


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