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'''तिलाधक महाविहार''' [[बिहार]] राज्य में [[नालंदा]] के खंडहरों से महज 40 किमी दूर एक प्राचीन विश्वविद्यालय है, जिसकी खोज हाल ही में की गई है। यह क़रीब 1500 साल पुराना और एक किमी के इलाके में फैला हुआ है। बिहार की पहचान हजारों साल पुराने [[नालंदा विश्वविद्यालय|नालंदा]] और [[विक्रमशिला विश्वविद्यालय]] से है। बिहार का पुरातत्व विभाग खुदाई कर रहा है। खुदाई में मिले अवशेष और संरचना को देखने लोग जुटने लगे हैं।
 
'''तिलाधक महाविहार''' [[बिहार]] राज्य में [[नालंदा]] के खंडहरों से महज 40 किमी दूर एक प्राचीन विश्वविद्यालय है, जिसकी खोज हाल ही में की गई है। यह क़रीब 1500 साल पुराना और एक किमी के इलाके में फैला हुआ है। बिहार की पहचान हजारों साल पुराने [[नालंदा विश्वविद्यालय|नालंदा]] और [[विक्रमशिला विश्वविद्यालय]] से है। बिहार का पुरातत्व विभाग खुदाई कर रहा है। खुदाई में मिले अवशेष और संरचना को देखने लोग जुटने लगे हैं।
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
'तिलाधक महाविहार' नालंदा के एकंगरसराय के तेल्हाड़ा में है। वर्ष 2010 में यहाँ खुदाई शुरू की गई थी। लगभग चार साल बाद वर्ष 2014 में इसके [[अवशेष]] मिले। क़रीब 1300 साल पहले (सातवीं शताब्दी) चीनी यात्री [[ह्वेनसांग]] ने इन इलाक़ों का दौरा किया था। उनके ब्योरे में इस इलाके का नाम 'तेलीद्का' बताया गया है। जैसा उन्होंने विवरण दिया था वैसा ही खुदाई में मिल रहा है। ब्योरे के मुताबिक 'तिलाधक महाविहार' में बौद्ध समुदाय के लोग उच्च शिक्षा हासिल करते थे। इसकी स्थापना पांचवीं सदी में हुई थी। वहां तीन मंदिरों के भी अवशेष मिले हैं। पुरातत्व विभाग के मुताबिक यहां मिले एक बड़े प्लेटफॉर्म पर एक हजार बौद्ध श्रद्धालु साथ बैठकर प्रार्थना करते थे। अवशेषों से लगता है कि नालंदा से छात्र शोध के लिए 'तिलाधक महाविहार' जाते थे। संभावना जताई जा रही है कि नालंदा विश्वविद्यालय के प्रतियोगी के तौर पर इसकी स्थापना की गई हो। खुदाई में [[मिट्टी]] के दो-दो इंच के शिल्ट पर छात्रों के नाम लिखे हैं। बिहार के वर्तमान पुरातत्व निदेशक अतुल कुमार वर्मा के अनुसार यहाँ खुदाई का काम अभी कई साल चलेगा। फिलहाल वहां एक संग्रहालय बनाने की योजना है। जहां पर अवशेषों की प्रदर्शनी लगेगी।'<ref>{{cite web |url=http://tatkalnews.com/news/21223-BHASKAR-JAN-15-%E0%A4%B9%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%97-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A5-%E0%A4%95%E0%A4%B0.aspx |title=हजार लोग साथ करते थे प्रार्थना नालंदा से 40 किमी दूर है यह विवि, ह्वेनसांग की किताब में है ब्योरा |accessmonthday=15 जनवरी |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=तत्काल न्यूज डॉट कॉम |language=हिंदी }} </ref>
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====जलाए जाने के भी प्रमाण मिले====
 
====जलाए जाने के भी प्रमाण मिले====
 
'तिलाधक महाविहार' में सातवीं सदी के शुरू में पढ़ाई बंद हो गई थी। पाल काल में फिर पढ़ाई शुरू हुई। इसके बाद 12वीं सदी में [[बख़्तियार ख़िलजी]] ने इस विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी। यहाँ से मिल रहे प्रमाणों से जलाए जाने की बात साबित होती है। यहाँ खुदाई में एक फीट मोटी राख की परत मिली है। बख़्तियार ख़िलजी ने यहाँ पर एक मस्जिद बनवाई थी। उसके स्तम्भों में घड़ा और [[कमल]] के चित्र बने हैं।
 
'तिलाधक महाविहार' में सातवीं सदी के शुरू में पढ़ाई बंद हो गई थी। पाल काल में फिर पढ़ाई शुरू हुई। इसके बाद 12वीं सदी में [[बख़्तियार ख़िलजी]] ने इस विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी। यहाँ से मिल रहे प्रमाणों से जलाए जाने की बात साबित होती है। यहाँ खुदाई में एक फीट मोटी राख की परत मिली है। बख़्तियार ख़िलजी ने यहाँ पर एक मस्जिद बनवाई थी। उसके स्तम्भों में घड़ा और [[कमल]] के चित्र बने हैं।

09:53, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

तिलाधक महाविहार बिहार राज्य में नालंदा के खंडहरों से महज 40 किमी दूर एक प्राचीन विश्वविद्यालय है, जिसकी खोज हाल ही में की गई है। यह क़रीब 1500 साल पुराना और एक किमी के इलाके में फैला हुआ है। बिहार की पहचान हजारों साल पुराने नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय से है। बिहार का पुरातत्व विभाग खुदाई कर रहा है। खुदाई में मिले अवशेष और संरचना को देखने लोग जुटने लगे हैं।

इतिहास

'तिलाधक महाविहार' नालंदा के एकंगरसराय के तेल्हाड़ा में है। वर्ष 2010 में यहाँ खुदाई शुरू की गई थी। लगभग चार साल बाद वर्ष 2014 में इसके अवशेष मिले। क़रीब 1300 साल पहले (सातवीं शताब्दी) चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इन इलाक़ों का दौरा किया था। उनके ब्योरे में इस इलाके का नाम 'तेलीद्का' बताया गया है। जैसा उन्होंने विवरण दिया था वैसा ही खुदाई में मिल रहा है। ब्योरे के मुताबिक़ 'तिलाधक महाविहार' में बौद्ध समुदाय के लोग उच्च शिक्षा हासिल करते थे। इसकी स्थापना पांचवीं सदी में हुई थी। वहां तीन मंदिरों के भी अवशेष मिले हैं। पुरातत्व विभाग के मुताबिक़ यहां मिले एक बड़े प्लेटफॉर्म पर एक हजार बौद्ध श्रद्धालु साथ बैठकर प्रार्थना करते थे। अवशेषों से लगता है कि नालंदा से छात्र शोध के लिए 'तिलाधक महाविहार' जाते थे। संभावना जताई जा रही है कि नालंदा विश्वविद्यालय के प्रतियोगी के तौर पर इसकी स्थापना की गई हो। खुदाई में मिट्टी के दो-दो इंच के शिल्ट पर छात्रों के नाम लिखे हैं। बिहार के वर्तमान पुरातत्व निदेशक अतुल कुमार वर्मा के अनुसार यहाँ खुदाई का काम अभी कई साल चलेगा। फिलहाल वहां एक संग्रहालय बनाने की योजना है। जहां पर अवशेषों की प्रदर्शनी लगेगी।'[1]

जलाए जाने के भी प्रमाण मिले

'तिलाधक महाविहार' में सातवीं सदी के शुरू में पढ़ाई बंद हो गई थी। पाल काल में फिर पढ़ाई शुरू हुई। इसके बाद 12वीं सदी में बख़्तियार ख़िलजी ने इस विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी। यहाँ से मिल रहे प्रमाणों से जलाए जाने की बात साबित होती है। यहाँ खुदाई में एक फीट मोटी राख की परत मिली है। बख़्तियार ख़िलजी ने यहाँ पर एक मस्जिद बनवाई थी। उसके स्तम्भों में घड़ा और कमल के चित्र बने हैं।



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