"आंग्ल-मराठा युद्ध तृतीय" के अवतरणों में अंतर

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'''तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध''' 1817 ई. से 1818 ई. तक लड़ा गया। यह युद्ध अन्तिम रूप से [[लॉर्ड हेस्टिंग्स]] के [[भारत]] के [[गवर्नर-जनरल]] बनने के बाद लड़ा गया। अंग्रेजों ने नवम्बर, 1817 में [[महादजी शिन्दे]] के साथ [[ग्वालियर की सन्धि]] की, जिसके अनुसार महादजी शिन्दे, [[पिंडारी|पिंडारियों]] के दमन में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] का सहयोग करेगा और साथ ही [[चंबल नदी]] से दक्षिण-पश्चिम के राज्यों पर अपना प्रभाव हटा लेगा। जून, 1817 में अंग्रेज़ों ने [[पेशवा]] से [[पूना की सन्धि]] की, जिसके तहत पेशवा ने [[मराठा]] संघ की अध्यक्षता त्याग दी। इन सन्धियों के पहले ही सम्पन्न हुई मई, 1816 ई. की [[नागपुर की सन्धि]] को भोंसले ने अब स्वीकार कर लिया। कालान्तर में सन्धि का उल्लंघन करते हुए पेशवा, भोसलें एवं होल्कर ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की। परिणामस्वरूप 'किर्की' में पेशवा, 'सीताबर्डी' में भोंसले एवं 'महीदपुर' में होल्कर की सेनाओं को अंग्रेज़ों की सेना ने बुरी तरह पराजित किया। इन संघर्षों के बाद मराठों की सैन्य शक्ति समाप्त हो गई। जनवरी, 1818 ई. में होल्कर ने अंग्रेज़ों से [[मंदसौर की सन्धि]] की, जिसके अनुसार उसने [[राजपूत]] राज्यों पर से अपने अधिकार वापस ले लिए। [[पेशवा]] [[बाजीराव द्वितीय]] ने कोरेगाँव एवं अण्टी के युद्ध में हारने के बाद फ़रवरी, 1818 ई. में अंग्रेज़ों के सामने आत्म-समर्पण कर दिया। अंग्रेज़ों ने पेशवा के पद को ही समाप्त कर बाजीराव द्वितीय को [[कानपुर]] के निकट [[बिठूर]] में पेशन पर जीने के लिए भेज दिया, जहाँ पर 1853 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। मराठों के पतन में सर्वाधिक योगदान बाजीराव द्वितीय का ही था।
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*'''तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध''' 1817 ई. से 1818 ई. तक लड़ा गया।
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*यह युद्ध अन्तिम रूप से [[वारेन हेस्टिंग्स]] के [[भारत]] के [[गवर्नर-जनरल]] बनने के बाद लड़ा गया।
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*अंग्रेजों ने नवम्बर, 1817 में [[महादजी शिन्दे]] के साथ [[ग्वालियर की सन्धि]] की, जिसके अनुसार महादजी शिन्दे, [[पिंडारी|पिंडारियों]] के दमन में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] का सहयोग करेगा।
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*साथ ही यह भी कि महादजी शिन्दे [[चंबल नदी]] से दक्षिण-पश्चिम के राज्यों पर से अपना प्रभाव हटा लेगा।
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*जून, 1817 में अंग्रेज़ों ने [[पेशवा]] से [[पूना की सन्धि]] की, जिसके तहत पेशवा ने [[मराठा]] संघ की अध्यक्षता त्याग दी।
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*इन सन्धियों के पहले ही सम्पन्न हुई मई, 1816 ई. की [[नागपुर की सन्धि]] को भोंसले ने अब स्वीकार कर लिया।
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*कालान्तर में सन्धि का उल्लंघन करते हुए पेशवा, भोसलें एवं होल्कर ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की।
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*परिणामस्वरूप 'किर्की' में पेशवा, 'सीताबर्डी' में भोंसले एवं 'महीदपुर' में होल्कर की सेनाओं को अंग्रेज़ों की सेना ने बुरी तरह पराजित किया।
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*इन संघर्षों के बाद मराठों की सैन्य शक्ति अब पूरी तरह से समाप्त हो गई।
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*अंग्रेज़ों ने पेशवा के पद को ही समाप्त कर बाजीराव द्वितीय को [[कानपुर]] के निकट [[बिठूर]] में पेशन पर जीने के लिए भेज दिया, जहाँ पर 1853 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
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*मराठों के पतन में सर्वाधिक योगदान बाजीराव द्वितीय का ही था।
  
 
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06:26, 13 जुलाई 2011 का अवतरण

  • साथ ही यह भी कि महादजी शिन्दे चंबल नदी से दक्षिण-पश्चिम के राज्यों पर से अपना प्रभाव हटा लेगा।
  • जून, 1817 में अंग्रेज़ों ने पेशवा से पूना की सन्धि की, जिसके तहत पेशवा ने मराठा संघ की अध्यक्षता त्याग दी।
  • इन सन्धियों के पहले ही सम्पन्न हुई मई, 1816 ई. की नागपुर की सन्धि को भोंसले ने अब स्वीकार कर लिया।
  • कालान्तर में सन्धि का उल्लंघन करते हुए पेशवा, भोसलें एवं होल्कर ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की।
  • परिणामस्वरूप 'किर्की' में पेशवा, 'सीताबर्डी' में भोंसले एवं 'महीदपुर' में होल्कर की सेनाओं को अंग्रेज़ों की सेना ने बुरी तरह पराजित किया।
  • इन संघर्षों के बाद मराठों की सैन्य शक्ति अब पूरी तरह से समाप्त हो गई।
  • जनवरी, 1818 ई. में होल्कर ने अंग्रेज़ों से मंदसौर की सन्धि की, जिसके अनुसार उसने राजपूत राज्यों पर से अपने अधिकार वापस ले लिए।
  • पेशवा बाजीराव द्वितीय ने कोरेगाँव एवं अण्टी के युद्ध में हारने के बाद फ़रवरी, 1818 ई. में अंग्रेज़ों के सामने आत्म-समर्पण कर दिया।
  • अंग्रेज़ों ने पेशवा के पद को ही समाप्त कर बाजीराव द्वितीय को कानपुर के निकट बिठूर में पेशन पर जीने के लिए भेज दिया, जहाँ पर 1853 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
  • मराठों के पतन में सर्वाधिक योगदान बाजीराव द्वितीय का ही था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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