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त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥ | त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥ | ||
तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई॥1॥ | तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई॥1॥ | ||
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− | + | [[सीता|सीता जी]] हाथ जोड़कर त्रिजटा से बोलीं- हे माता! तू मेरी विपत्ति की संगिनी है। जल्दी कोई ऐसा उपाय कर जिससे मैं शरीर छोड़ सकूँ। विरह असह्म हो चला है, अब यह सहा नहीं जाता॥1॥ | |
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05:05, 11 जून 2016 के समय का अवतरण
त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, दोहा, छंद और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | सुन्दरकाण्ड |
त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥ |
- भावार्थ
सीता जी हाथ जोड़कर त्रिजटा से बोलीं- हे माता! तू मेरी विपत्ति की संगिनी है। जल्दी कोई ऐसा उपाय कर जिससे मैं शरीर छोड़ सकूँ। विरह असह्म हो चला है, अब यह सहा नहीं जाता॥1॥
त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख