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'''प्राग्ज्योतिषपुर''' अथवा '''प्राग्ज्योतिष''' [[असम]] या [[कामरूप]] की प्राचीन राजधानी थी, जो [[गुवाहाटी]] के निकट बसी हुई थी। 'कालिकापुराण' के अनुसार [[ब्रह्मा]] ने प्राचीन काल में यहाँ स्थित होकर [[नक्षत्र|नक्षत्रों]] की सृष्टि की थी। इसलिए यह नगरी प्राक् (पूर्व या प्राचीन) + ज्योतिष (नक्षत्र) कहलायी। [[महाभारत]] में यहाँ के राजा [[नरकासुर]] का [[श्रीकृष्ण]] द्वारा वध किये जाने का उल्लेख मिलता है।
'''प्राग्ज्योतिषपुर अथवा प्राग्ज्योतिष''' [[असम]] या कामरूप की प्राचीन राजधानी जो [[गुवाहाटी]] के निकट बसा था।
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*कालिका पुराण के अनुसार [[ब्रह्मा]] ने प्राचीन काल में यहाँ स्थित होकर [[नक्षत्र|नक्षत्रों]] की सृष्टि की थी। इसलिए यह नगरी प्राक् (पूर्व या प्राचीन) + ज्योतिष (नक्षत्र) कहलायी गई।
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*[[महाभारत]] तथा पुराणों में प्राग्ज्योतिष का उल्लेख है। [[रामायण]] के अनुसार [[कुश]] के पुत्र अमूर्तराज ने यहाँ की राजधानी प्राग्ज्योतिषपुर को बसाया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=557, परिशिष्ट 'क'|url=}}</ref>
*[[महाभारत]] में यहाँ के राजा [[नरकासुर]] का [[श्रीकृष्ण]] द्वारा वध किये जाने का उल्लेख मिलता है।  
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*कामरूप नरेश भगदत्त ने [[कौरव|कौरवों]] की ओर से युद्ध में भाग लिया था। [[महाभारत]] में भगदत्त को प्राग्ज्योतिष नरेश भी कहा गया है।
*कामरूप नरेश भगदत्त ने [[कौरव|कौरवों]] की ओर से युद्ध में भाग लिया था।  
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*[[कालिदास]] ने [[रघुवंश]] में [[रघु]] द्वारा प्राग्ज्योतिष नरेश की पराजय का काव्यमय वर्णन किया है।  
*महाभारत में भगदत्त को प्राग्ज्योतिष नरेश भी कहा गया है। [[कालिदास]] ने [[रघुवंश]] में रघु द्वारा प्राग्ज्योतिष नरेश की पराजय का काव्यमय वर्णन किया है।  
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*कालिदास के वर्णनानुसार प्राग्ज्योतिष 'लौहित्य' ([[ब्रह्मपुत्र]]) के पार पूर्वी तट पर स्थित था।  
*कालिदास के वर्णनानुसार प्राग्ज्योतिष लौहित्य ([[ब्रह्मपुत्र]]) के पार पूर्वी तट पर स्थित था।  
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*[[वराहमिहिर]], [[राजशेखर]] आदि इसे पूर्व का देश मानते हैं।  
*[[वराहमिहिर]], राजशेखर आदि इसे पूर्व का देश मानते हैं।  
 
 
*[[समुद्रगुप्त]] की प्रयाग प्रशस्ति में हरिषेण ने स्पष्टतः यहाँ के शासक को समुद्रगुप्त के अधीन बताया है।  
 
*[[समुद्रगुप्त]] की प्रयाग प्रशस्ति में हरिषेण ने स्पष्टतः यहाँ के शासक को समुद्रगुप्त के अधीन बताया है।  
 
*[[अपसढ़]] के लेख में परवर्ती गुप्त शासक महासेन गुप्त द्वारा लौहित्य के तट पर कामरूप के शासक सुस्थित्वर्मा की पराजय का उल्लेख है।  
 
*[[अपसढ़]] के लेख में परवर्ती गुप्त शासक महासेन गुप्त द्वारा लौहित्य के तट पर कामरूप के शासक सुस्थित्वर्मा की पराजय का उल्लेख है।  
 
 
*[[हर्षचरित]] तथा [[युवानच्वांग]] के वृत्तांत में भी प्राग्ज्योतिष का वर्णन है।  
 
*[[हर्षचरित]] तथा [[युवानच्वांग]] के वृत्तांत में भी प्राग्ज्योतिष का वर्णन है।  
 
*हर्षचरित उल्लेख करता है कि प्राग्ज्योतिष नरेश ने हंसवेग नामक दूत हर्ष के पास भेजा था।     
 
*हर्षचरित उल्लेख करता है कि प्राग्ज्योतिष नरेश ने हंसवेग नामक दूत हर्ष के पास भेजा था।     
*युवानच्वांग लिखता है कि वह कामरूप के शासक भास्कर वर्मा के अनुरोध पर कामरूप आया था।  
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*[[युवानच्वांग]] लिखता है कि वह कामरूप के शासक [[भास्कर वर्मा]] के अनुरोध पर कामरूप आया था।  
*युवानच्वांग लिखता है की भूमि ऊँची-नीची लेकिन उपजाऊ और नम थी तथा निवासी ईमानदार और मेहनती थे। उसने आगे लिखा है कि यहाँ के निवासी कृष्ण मतावलम्बी थे।  
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*युवानच्वांग लिखता है कि भूमि ऊँची-नीची लेकिन उपजाऊ और नम थी तथा निवासी ईमानदार और मेहनती थे। उसने आगे लिखा है कि यहाँ के निवासी [[कृष्ण]] मतावलम्बी थे।  
 
*प्राग्ज्योतिष का अन्य नाम कामाख्या भी मिलता है।  
 
*प्राग्ज्योतिष का अन्य नाम कामाख्या भी मिलता है।  
 
*प्राचीन काल में प्राग्ज्योतिषपुर में एक शैव मन्दिर था। कामाख्या महान् तांत्रिक केन्द्र के रूप में विख्यात था।  
 
*प्राचीन काल में प्राग्ज्योतिषपुर में एक शैव मन्दिर था। कामाख्या महान् तांत्रिक केन्द्र के रूप में विख्यात था।  
 
*वी.बी. आठवले प्राग्ज्योतिषपुर को आनर्त या [[काठियावाड़]] में स्थित मानते हैं। यह सम्भव है कि इस नाम के दो नगर या जनपद रहे हों।  
 
*वी.बी. आठवले प्राग्ज्योतिषपुर को आनर्त या [[काठियावाड़]] में स्थित मानते हैं। यह सम्भव है कि इस नाम के दो नगर या जनपद रहे हों।  
  
 
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प्राग्ज्योतिषपुर अथवा प्राग्ज्योतिष असम या कामरूप की प्राचीन राजधानी थी, जो गुवाहाटी के निकट बसी हुई थी। 'कालिकापुराण' के अनुसार ब्रह्मा ने प्राचीन काल में यहाँ स्थित होकर नक्षत्रों की सृष्टि की थी। इसलिए यह नगरी प्राक् (पूर्व या प्राचीन) + ज्योतिष (नक्षत्र) कहलायी। महाभारत में यहाँ के राजा नरकासुर का श्रीकृष्ण द्वारा वध किये जाने का उल्लेख मिलता है।

  • महाभारत तथा पुराणों में प्राग्ज्योतिष का उल्लेख है। रामायण के अनुसार कुश के पुत्र अमूर्तराज ने यहाँ की राजधानी प्राग्ज्योतिषपुर को बसाया था।[1]
  • कामरूप नरेश भगदत्त ने कौरवों की ओर से युद्ध में भाग लिया था। महाभारत में भगदत्त को प्राग्ज्योतिष नरेश भी कहा गया है।
  • कालिदास ने रघुवंश में रघु द्वारा प्राग्ज्योतिष नरेश की पराजय का काव्यमय वर्णन किया है।
  • कालिदास के वर्णनानुसार प्राग्ज्योतिष 'लौहित्य' (ब्रह्मपुत्र) के पार पूर्वी तट पर स्थित था।
  • वराहमिहिर, राजशेखर आदि इसे पूर्व का देश मानते हैं।
  • समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में हरिषेण ने स्पष्टतः यहाँ के शासक को समुद्रगुप्त के अधीन बताया है।
  • अपसढ़ के लेख में परवर्ती गुप्त शासक महासेन गुप्त द्वारा लौहित्य के तट पर कामरूप के शासक सुस्थित्वर्मा की पराजय का उल्लेख है।
  • हर्षचरित तथा युवानच्वांग के वृत्तांत में भी प्राग्ज्योतिष का वर्णन है।
  • हर्षचरित उल्लेख करता है कि प्राग्ज्योतिष नरेश ने हंसवेग नामक दूत हर्ष के पास भेजा था।
  • युवानच्वांग लिखता है कि वह कामरूप के शासक भास्कर वर्मा के अनुरोध पर कामरूप आया था।
  • युवानच्वांग लिखता है कि भूमि ऊँची-नीची लेकिन उपजाऊ और नम थी तथा निवासी ईमानदार और मेहनती थे। उसने आगे लिखा है कि यहाँ के निवासी कृष्ण मतावलम्बी थे।
  • प्राग्ज्योतिष का अन्य नाम कामाख्या भी मिलता है।
  • प्राचीन काल में प्राग्ज्योतिषपुर में एक शैव मन्दिर था। कामाख्या महान् तांत्रिक केन्द्र के रूप में विख्यात था।
  • वी.बी. आठवले प्राग्ज्योतिषपुर को आनर्त या काठियावाड़ में स्थित मानते हैं। यह सम्भव है कि इस नाम के दो नगर या जनपद रहे हों।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 557, परिशिष्ट 'क' |

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