बच्‍चे काम पर जा रहे हैं -राजेश जोशी

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बच्‍चे काम पर जा रहे हैं -राजेश जोशी
राजेश जोशी
कवि राजेश जोशी
जन्म 18 जुलाई, 1946
जन्म स्थान नरसिंहगढ़, मध्य प्रदेश
मुख्य रचनाएँ 'समरगाथा- एक लम्बी कविता', एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, दो पंक्तियों के बीच, पतलून पहना आदमी धरती का कल्पतरु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
राजेश जोशी की रचनाएँ

कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्‍चे काम पर जा रहे हैं

सुबह सुबह


बच्‍चे काम पर जा रहे हैं

हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह

भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना

लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह


काम पर क्‍यों जा रहे हैं बच्‍चे?


क्‍या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें

क्‍या दीमकों ने खा लिया हैं

सारी रंग बिरंगी किताबों को

क्‍या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने

क्‍या किसी भूकंप में ढह गई हैं

सारे मदरसों की इमारतें

क्‍या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन

खत्‍म हो गए हैं एकाएक

तो फिर बचा ही क्‍या है इस दुनिया में?

कितना भयानक होता अगर ऐसा होता

भयानक है लेकिन इससे भी ज्‍यादा यह

कि हैं सारी चीज़ें हस्‍बमामूल


पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजते हुए

बच्‍चे, बहुत छोटे छोटे बच्‍चे

काम पर जा रहे हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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