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बसवराज राजगुरु
बसवराज राजगुरु
पूरा नाम पंडित बसवराज राजगुरु
जन्म 24 अगस्त, 1917
मृत्यु 1991
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण, 1991

पद्म श्री, 1975

प्रसिद्धि शास्त्रीय गायक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सन 1940 के दशक की शुरुआत तक बसवराज की प्रसिद्धि पूरे देश में फैल गई थी, और उन्होंने देश भर में संगीत कार्यक्रम आयोजित किए। वह आठ से अधिक भाषाओं में गा सकते थे और उनके प्रदर्शनों की सूची में ठुमरी, नाट्य संगीत, ग़ज़ल और वचन शामिल थे।

बसवराज राजगुरु (अंग्रेज़ी: Basavaraj Rajguru, जन्म- 24 अगस्त, 1917; मृत्यु- 1991) प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक थे, जिन्हें 'हिंदुस्तानी संगीत का राजा' कहा जाता है। पंडित मल्लिकार्जुन मंसूर और कुमार गंधर्व के साथ पंडित बसवराज राजगुरु ने संगीतकारों की धारवाड़ त्रिमूर्ति का गठन किया था। उन्हें कर्नाटक विश्वविद्यालय से कई पुरस्कार और मानद डॉक्टरेट की उपाधि मिली थी। बसवराज राजगुरु को लगभग 40 रागों का व्यापक ज्ञान था और उनके प्रदर्शनों की सूची में ग़ज़ल, ठुमरी और ख्याल शामिल थे।

परिचय

बसवराज राजगुरु जिनका जन्म 24 अगस्त, 1917 को हुआ था, किराना घराने में शास्त्रीय संगीत में सर्वश्रेष्ठ थे। वह अपने समकालीनों भीमसेन जोशी और गंगूबाई हंगल के बीच जाने पहचाने जाते थे। बसवराज राजगुरु का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था, जिसका संगीत, ज्योतिष और शिक्षा के क्षेत्र में मजबूत आधार था। उन्होंने संगीत में प्रारंभिक प्रशिक्षण अपने पिता, जो एक प्रसिद्ध कर्नाटक संगीतकार थे, से प्राप्त किया। पिता की मृत्यु के बाद 13 वर्षीय बसवराज उनके शिष्य के रूप में पचाक्षरी गवई में शामिल हो गए। बसवराज राजगुरु ने अपना पहला सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम सन 1936 में हम्पी में एक संगीत कार्यक्रम में अपने गुरु के साथ दिया। अपने गुरु की मृत्यु के बाद उन्होंने सवाई गंधर्व, सुरेश बाबू माने, उस्ताद वहीद खान और उस्ताद लतीफ खान जैसे दिग्गजों से प्रशिक्षण लिया।[1]

कॅरियर और उपलब्धियाँ

सन 1940 के दशक की शुरुआत तक बसवराज की प्रसिद्धि पूरे देश में फैल गई थी, और उन्होंने देश भर में संगीत कार्यक्रम आयोजित किए। वह आठ से अधिक भाषाओं में गा सकते थे और उनके प्रदर्शनों की सूची में ठुमरी, नाट्य संगीत, ग़ज़ल और वचन शामिल थे। उनके बहुत सारे प्रशंसक थे और एक शिक्षक के रूप में उनकी काफी मांग थी। अपने पूरे जीवन में बसवराज राजगुरु सख्त शाकाहारी और शराब न पीने वाले थे। संगीत समारोहों के लिए यात्रा करते समय वह इस बात का विशेष ध्यान रखते थे कि उन्हें पीने का पानी भी धारवाड़ से लाना पड़ता था। सन 1947 में वह चमत्कारिक ढंग से बच निकले थे, जब वह भारत-पाकिस्तान सीमा पर दंगाई भीड़ से बाल-बाल बच गये।

बसवराज राजगुरु अपनी आवाज का बहुत ख्याल रखते थे और इसी वजह से उनकी आवाज की लय वर्षों तक वैसी ही बनी रही। उनकी आवाज़ तीन सप्तक में फैली हुई थी और तीन घरानों: किराना, पटियाला और ग्वालियर के उनके विश्वकोश ज्ञान ने, 12 शिक्षकों से प्राप्त करके उन्हें संगीत का एक विशाल भंडार दिया।[1]

पुरस्कार व सम्मान

मृत्यु

सन 1991 में बसवराज राजगुरु अमेरिका जाने के लिए विमान में सवार होने जा रहे थे, तभी उन्हें मामूली दिल का दौरा पड़ा। जुलाई महीने में उन्होंने आखिरी सांस ली और उनके अंतिम समय में उनके शिष्य नचिकेत शर्मा उनके साथ थे।

व्यक्तित्व

बसवराज राजगुरु पूर्णतावादी थे। अपने विद्यार्थियों से अनुच्छेदों को तब तक कई बार दोहराते थे, जब तक कि वे उसे सही न कर लें। उनके शिष्यों में नचिकेत शर्मा, अशोक हग्गनवार, गणपति भट्ट और परमेश्वर हेगड़े शामिल हैं। बसवराज राजगुरु बहुत विनम्र व्यक्ति थे। उन्हें दिखावटी लोगों से कोई सहानुभूति नहीं थी। अपने युवा दिनों में 1955 में नांदेड़ में एक संगीत कार्यक्रम में पंडित बसवराज राजगुरु ने लगातार 12 घंटे तक गाना गाया था।

1940 के दशक में उन्हें उस्ताद निशाद खान की उत्कृष्ट पूरिया प्रस्तुति से मुकाबला करने की चुनौती मिली थी। बसवराज राजगुरु ने चुनौती स्वीकार की और राग सोहनी का एक त्रुटिहीन संस्करण प्रस्तुत किया। पंडित बसवराज की रिकॉर्डिंग आज भी हिंदुस्तानी संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 The King of Hindustani Music (हिंदी) karnataka.com। अभिगमन तिथि: 03 मई, 2024।

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