रहिमन निज मन की बिथा -रहीम

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:42, 25 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('<div class="bgrahimdv"> ‘रहिमन’ निज मन की बिथा, मनही राखो गोय ।<br /> स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

‘रहिमन’ निज मन की बिथा, मनही राखो गोय ।
सुनि अठिलैहैं लोग सब , बाँटि न लैहैं कोय ॥

अर्थ

अन्दर के दुःख को अन्दर ही छिपाकर रख लेना चाहिए, उसे सुनकर लोग उल्टे हँसी करेंगे कोई भी दुःख को बाँट नहीं लेगा।


पीछे जाएँ
रहीम के दोहे
आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख