हुआ सवेरा -वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
तनवीर क़ाज़ी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 27 मई 2013 का अवतरण (' {| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र= Virendra khare-...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
हुआ सवेरा -वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’
वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’
जन्म 18 अगस्त, 1968
जन्म स्थान किशनगढ़, छतरपुर, मध्यप्रदेश
मुख्य रचनाएँ शेष बची चौथाई रात (ग़ज़ल संग्रह), सुबह की दस्तक (ग़ज़ल-गीत संग्रह), अंगारों पर शबनम (ग़ज़ल संग्रह)
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ की रचनाएँ


हुआ सवेरा हमें आफ़ताब मिल ही गया
अँधेरी शब को करारा जवाब मिल ही गया

अगरचे हो गयीं काँटों से उंगलियाँ ज़ख़्मी
मगर मुझे वो महकता गुलाब मिल ही गया

हवा ने डाल दिया गेसुओं को चेहरे पर
हसीन रूख़ को तुम्हारे नक़ाब मिल ही गया

तुझे भी बावली कहने लगी है ये दुनिया
मुझे भी अहले-जुनूँ का खिताब मिल ही गया

लो ख़त्म हो गया उजडे़ मनाज़िरों का सफ़र
उदास आँखों को मनचाहा ख़्वाब मिल ही गया

बढ़ा के हाथ अचानक पलट गया साक़ी
मैं मुतमइन था कि जामे-शराब मिल ही गया

चमकती धूप में समझे हैं काँच के टुकड़े
कि मोतियों सा उन्हें आबो ताब मिल ही गया

पिला रहा है तो दिल से पिलाये जा साक़ी
न कर गुरूर जो कारे-सवाब मिल ही गया

बहुत ही बच के निकलता है वो ‘अकेला’ से
करेगा क्या, जो ये ख़ानाख़राब मिल ही गया

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख