अखिल भारतीय हिन्दी संस्था संघ

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अखिल भारतीय हिन्दी संस्था संघ दिल्ली में स्थित एक हिंदी सेवी संस्था है। देश में पिछले 60 वर्षों से अधिक समय से राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का प्रचार करने के लिए प्रत्येक प्रदेश की अपनी आवश्यकता और समय की अनुकूलता के अनुसार वहाँ संस्थाएँ स्थापित हुईं और उन्होंने जनता में राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति आस्था और अनुकूलता बढ़ाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। हिन्दी की परीक्षाओं का संचालन, शिक्षण, प्रकाशन तथा इसी तरह की भिन्न-भिन्न पोषण प्रवृत्तियों द्वारा इन संस्थाओं ने महत्वपूर्ण कार्य किया है और आज भी कर रही है। इनके कार्यों और आपसी संबंधों में सहयोग, समानता, समन्वय और एकसूत्रता लाकर देश में हिन्दी प्रचार के लिए राष्ट्रीय मंच स्थापित करना बहुत ज़रूरी था।

स्थापना

कई वर्षों तक सरकार के प्रयत्न तथा हिन्दी प्रचार करने वाली परीक्षा मान्यता-प्राप्त संस्थाओं के सहयोग से 4 अगस्त 1964 को दिल्ली में अखिल भारतीय हिन्दी संस्था संघ की स्थापना हुई। संघ के सदस्य निम्नलिखित उद्देश्यों के अनुसार होंगे:

  1. उन स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाओं के दो-दो प्रतिनिधि, जिनकी परीक्षाएँ एल. एल. सी. या उसकी समकक्ष या उसमें उच्च परीक्षा के स्तर तक भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैं अथवा भारत सरकार संघ के परामर्श से भविष्य में जिनकी परीक्षाओं को मान्यता दे।
  2. प्रत्येक राज्य सरकार और संघ सरकार का एक-एक प्रतिनिधि।
  3. भारत सरकार के दो प्रतिनिधि (एक शिक्षा मंत्रालय का तथा दूसरा गृह मंत्रालय का)।
  4. सहयोजित सदस्य।

कार्यसमिति के अधिकार

कार्यसमिति को यह अधिकार होगा कि वह हिन्दी के कार्य से संबद्ध किसी संस्था या संस्थाओं को एक-एक प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दे सकती है अथवा उक्त कार्य से संबद्ध किसी प्रमुख व्यक्ति को संस्था के सदस्य के रूप में सहयोजित कर सकती है, किंतु ऐसे प्रतिनिधि और सहयोजित व्यक्तियों की, जो दोनों ही संघ के सहयोजित सदस्य समझे जाएँगे, संख्या कुल मिलाकर चार से अधिक न होगी और उनका कार्यकाल एक बार में तीन वर्ष से अधिक न होगा। जिन संस्थाओं को प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दिया जाएगा उनसे भी संस्थाओं की तरह सदस्यता शुल्क लिया जाएगा, किंतु सहयोजित व्यक्तियों द्वारा शुल्क देय न होगा। संघ का प्रत्येक सदस्य उसे नामजद करने वाली संस्था जब तक चाहेगी तब तक सदस्य बना रहेगा। किंतु यदि भारत सरकार संबंधित संस्था की परीक्षा की मान्यता को रद्द कर दे तो वह सदस्य संघ का सदस्य नहीं रहेगा।

संघ अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निम्नलिखित कार्य कर रहा है
  1. संघ की ओर से पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण भारत की स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाओं के कार्य-कलापों का अध्ययन करने, उनकी समस्याओं का अध्ययन एवं समाधान करने, हिन्दी के प्रचार और प्रसार की दृष्टि से आवश्यक योजनाओं को कार्यांन्वित करने के लिए क्षेत्रीय हिन्दी प्रचारकों, कार्यकर्ताओं के शिविरों का आयोजन।
  2. अखिल भारतीय स्तर पर हिन्दी कार्यकर्ताओं के सम्मेलन तथा शिविरों का आयोजन।
  3. हिन्दी तथा हिन्दीतर प्रदेशों के विद्वानों के भाषणों की व्यवस्था।
  4. हिन्दीतर भाषी वरिष्ठ साहित्यकारों की हिन्दी प्रदेशों में सद्भावना यात्राएँ।
  5. स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाओं के कार्यों में समन्वय स्थापित करना।
  6. हिन्दीतर भाषी लेखकों की पुस्तकों की प्रदर्शनी का आयोजन।

विशेषताएँ

  • इसके अतिरिक्त संघ हिन्दी परीक्षाओं के माध्यम द्वारा होने वाले प्रचार का मूल्यांकन करता है। हिन्दीतर प्रदेशों में हिन्दी शिक्षण और शिक्षकों की कठिनाइयों के बारे में विचार-विनिमय करता हे। संस्थाओं द्वारा होने वाले हिन्दी प्रचार और शिक्षणात्मक कार्यनीति के संबंध में विचार करता है।
  • हिन्दीतर भाषी हिन्दी लेखकों की संगोष्ठियों, सम्मेलनों का आयोजन करता है। हिन्दीतर भाषी हिन्दी लेखकों तथा छात्रों का अभिनंदन करता है। हिन्दीतर भाषी हिन्दी लेखकों की रचनाओं का संस्थाओं के सहयोग से प्रकाशन करता है।
  • भारत सरकार ने नई परीक्षाओं को मान्यता देने की दृष्टि से सिफारिश करने का काम संघ को सौंपा है। उसके संबंध में संघ ने आवश्यक नीति-नियम निर्धारित किए है। आवश्यकता पड़ने पर संघ की ओर से परीक्षा-मान्यता की इच्छा रखने वाली संस्थाओं का निरीक्षण भी किया जाता है।
  • भारत सरकार की केंद्रीय हिन्दी समिति तथा विभिन्न मंत्रालयों में गठित हिन्दी सलाहकार समितियों, हिन्दी शिक्षा समितियों, परीक्षाओं की मान्यता समिति तथा केंद्रीय हिन्दी संस्थान आगरा में संघ के प्रतिनिधि नामित किए जाते हैं। इस प्रकार भारत सरकार, राज्य सरकारों संघराज्य क्षेत्र, सदस्य संस्थाओं, शिक्षा मंत्रालयों तथा केंद्रीय हिन्दी निदेशालय के साथ संघ सहयोगी सपंर्क रखकर कार्य करता है।
  • संघ ने स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाओं की परीक्षाओं का स्तर ऊंचा करने, उनमें अधिक व्यवस्था लाने, आवश्यक नियम बनाने तथा कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए जो परीक्षा नियमावली तैयार की है उसे शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार ने स्वीकार किया है।
  • संघ से संबंधित सभी हिन्दी संस्थाएँ इस परीक्षा नियमावली के अनुसार अपनी परीक्षाओं का संचालन कर रही हैं। इसके अतिरिक्त संघ ने स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाओं द्वारा संचालित हिन्दी परीक्षाओं के स्तर को ध्यान में रखते हुए एक आदर्श पाठ्यक्रम का निर्माण किया है।
  • संघ ने राष्ट्रभाषा प्रचार का इतिहास प्रकाशित किया है। इसमें समस्त भारत में हिन्दी प्रचार का प्रारंभ, प्रगति और वर्तमान स्थिति का विवरण दिया गया है। इसके अतिरिक्त संघ की ओर से ऐसे क्षेत्रों में जहाँ की भाषाएँ और बोलियाँ अलग-अलग है उनके सामाजिक रीति-रिवाज, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक पक्षों को देवनागरी लिपि में प्रकाशित करने की योजना बनाई गई है।
  • इस योजना के अंतर्गत पूर्वांचल के मेघालय, अरुणाचल, नागालैंड तथा मिज़ोरम प्रदेश के संबंध में आवश्यक जानकारी देने के लिए पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं। इस प्रकार अखिल भारतीय हिन्दी संस्था संघ की पूर्व–पीठिका, उद्देश्य, नियमावली, गठन, नीति और कार्य-प्रणाली की दृष्टि से हिन्दी और हिन्दीतर प्रदेश की संस्थाओं, सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर होने वाले कार्य तथा सभी दिशाओं में काम करने वाली संस्थाओं का संगम-स्थान है।
  • यह सच्चे अर्थ में हिन्दी प्रचार के लिए राष्ट्रीय एवं सहयोगी मंच है। संघ की सदस्य-संस्थाएँ तथा सरकारी प्रतिनिधि परस्पर स्नेहभाव, सदेच्छा, सहानुभूति के आदान-प्रदान द्वारा सहयोगी पद्धति से काम करते हैं। यह अपने ही में एक अभूतपूर्व और आनंददायी घटना है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लोंढे, शंकरराव। हिन्दी की स्वैच्छिक संस्थाएँ (हिंदी) भारतकोश। अभिगमन तिथि: 29 मार्च, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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