किसी से बात कोई आजकल नहीं होती
इसीलिए तो मुकम्म्ल ग़ज़ल नहीं होती
ग़ज़ल सी लगती है लेकिन ग़ज़ल नहीं होती
सभी की ज़िंदगी खिलता कँवल नहीं होती
तमाम उम्र तजुर्बात ये सिखाते हैं
कोई भी राह शुरू में सहल नहीं होती
मुझे भी उससे कोई बात अब नहीं करनी
अब उसकी ओर से जब तक पहल नहीं होती
वो जब भी हँसती है कितनी उदास लगती है
वो इक पहेली है जो मुझसे हल नहीं होती