जग्गी वासुदेव का जीवन परिचय

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जग्गी वासुदेव का जीवन परिचय
जग्गी वासुदेव
पूरा नाम सद्गुरु जग्गी वासुदेव
जन्म 3 सितम्बर, 1957
जन्म भूमि मैसूर, कर्नाटक
अभिभावक पिता- डॉ. वासुदेव और माता- सुशीला वासुदेव
पति/पत्नी विजयकुमारी
संतान राधे जग्गी
गुरु श्रीराघवेन्द्र राव
कर्म भूमि भारत
भाषा अंग्रेज़ी
शिक्षा स्‍नातक
विद्यालय मैसूर विश्‍वविद्यालय
पुरस्कार-उपाधि पद्म विभूषण, 2017
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी जग्गी वासुदेव ईशा फ़ाउंडेशन के संस्थापक है। ईशा फ़ाउंडेशन भारत सहित संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, लेबनान, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में योग कार्यक्रम सिखाता है, साथ ही साथ यह कई सामाजिक और सामुदायिक विकास योजनाओं पर भी काम करता है।
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सद्गुरु जग्गी वासुदेव एक योगी, सद्गुरु और दिव्‍यदर्शी हैं। उनको 'सद्गुरु' भी कहा जाता है। वह ईशा फाउंडेशन संस्‍थान के संस्थापक हैं। ईशा फाउंडेशन भारत सहित संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, लेबनान, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में योग कार्यक्रम सिखाता है साथ ही साथ कई सामाजिक और सामुदायिक विकास योजनाओं पर भी काम करता है।

परिचय

सद्गुरु जग्गी वासुदेव का जन्‍म 3 सितंबर, 1957 को कर्नाटक राज्‍य के मैसूर शहर में हुआ। उनकी माता का नाम सुशीला वासुदेव था। उनके पिता एक डॉ. डॉक्टर थे, बचपन से ही वासुदेव दूसरों की तुलना में काफी अलग थे। तेरह साल की उम्र में उन्होंने श्रीराघवेन्द्र राव, जिन्‍हें मल्‍लाडिहल्‍लि स्वामी के नाम से जाना जाता है, से प्राणायाम और आसन जैसे योग सीखे। मैसूर विश्‍वविद्यालय से उन्‍होंने अंग्रेज़ी भाषा में स्नातक की उपाधि प्राप्‍त की। जब वासुदेव पच्चीस वर्ष के थे, तो उन्होंने एक असामान्य घटना देखी, जो उन्हें जीवन और भौतिक वस्तुओं दूर और त्याग की ओर ले गयी। उनकी पत्नी का नाम विजयाकुमारी व पुत्री राधे जग्गी हैं।

आध्यात्मिक अनुभव

सद्गुरु जग्गी वासुदेव को 25 वर्ष की उम्र में अनायास ही बड़े विचित्र रूप से गहन आत्‍म अनुभूति हुई, जिसने उनके जीवन की दिशा को ही बदल दिया। एक दोपहर, जग्गी वासुदेव मैसूर में चामुंडी पहाड़ियों पर चढ़े और एक चट्टान पर बैठ गए। तब उनकी आँखे पूरी खुली हुई थीं। अचानक, उन्‍हें शरीर से परे का अनुभव हुआ। उन्हें लगा कि वह अपने शरीर में नहीं हैं, बल्कि हर जगह फैल गए हैं, चट्टानों में, पेड़ों में, पृथ्वी में। जब तक वह अपने होश में वापस आये, उससे पहले से ही शाम हो गई थी। उसके बाद के दिनों में, वासुदेव ने एक बार फिर से इसी स्थिति का अनुभव किया। वह अगले तीन या चार दिनों के लिए भोजन और नींद त्याग देते थे। इस घटना ने पूरी तरह से उनके जीवन जीने का तरीका बदल दिया। जग्गी वासुदेव ने अपना पूरा जीवन अपने अनुभवों को साझा करने के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सद्गुरु जग्गी वासुदेव (हिंदी) www.1hindi.com। अभिगमन तिथि: 13 अगस्त, 2017।

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