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नगरीय बस्ती

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तीव्र नगरीय विकास एक नूतन परिघटना है। कुछ समय पूर्व तक बहुत ही कम बस्तियाँ कुछ हज़ार से अधिक निवासियों वाली थी। प्रथम नगरीय बस्ती लंदन नगर की जनसंख्या लगभग 1810 ई. तक 10 लाख हो गई थी। 1982 में विश्व में क़रीब 175 नगर 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले थे। 1800 में विश्व की केवल 3 प्रतिशत जनसंख्या नगरीय बस्तियों में निवास करती थी जबकि वर्तमान समय में 48 प्रतिशत जनसंख्या नगरों में निवास करती है। ग्रामीण बस्तियों के विपरीत नगरीय बस्तियाँ सामान्यत: संहत और विशाल आकार की होती हैं। ये बस्तियाँ अनेक प्रकार के अकृषि, आर्थिक और प्रशासकीय प्रकार्यों में संलग्न होती हैं। नगर अपने चारों ओर के क्षेत्रों से प्रकार्यात्मक रूप में जुड़ा हुआ होता है। अत: वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय कई बार प्रत्यक्ष रूप से और कई बार मंडी शहरों और नगरों की श्रृंखला के माध्यम से संपन्न होता है। इस प्रकार नगर गाँवों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से जुड़े होते हैं और वे परस्पर भी जुड़े हुए होते हैं।

विश्व में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत

वर्ष प्रतिशत
1800 3
1850 6
1900 14
1950 30
1982 37
2001 48

1991 के अनुसार

1991 की भारतीय जनगणना में नगरीय बस्ती को इस प्रकार परिभाषित किया है। 'सभी स्थान जहाँ नगरपालिका, निगम, छावनी बोर्ड (कैंटोनमेंट बोर्ड) या अधिसूचित नगरीय क्षेत्र समिति (नोटीफाइड टाउन एरिया कमेटी) हो एवं कम से कम 5000 व्यक्ति वहाँ निवास करते हों, 75 प्रतिशत पुरुष श्रमिक गैर कृषि कार्यों में संलग्न हों व जनसंख्या का घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो, ऐसे स्थान या क्षेत्र को नगरीय बस्ती कहेंगे'।

नगरीय बस्तियों का वर्गीकरण

नगरीय क्षेत्रों की परिभाषा एक देश से दूसरे देश में भिन्न है वर्गीकरण के कुछ सामान्य आधार जनसंख्या का आकार, मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले व्यवसाय एवं प्रशासकीय ढाँचा है।

जनसंख्या का आकार

नगरीय क्षेत्रों को परिभाषित करने के लिए अधिकतर देशों ने इसी मापदंड को अपनाया है। नगरीय क्षेत्र की श्रेणी में आने के लिए जनसंख्या के आकार की निचली सीमा कोलंबिया में 1500, अर्जेंटाइना एवं पुर्तग़ाल में 2000, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं थाईलैंड में 2500, भारत में 5000 एवं जापान में 30,000 व्यक्ति हैं। भारत में जनसंख्या के अतिरिक्त जनसंख्या घनत्व भी 400 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर होना चाहिए एवं साथ ही साथ गैर-कृषि कार्य में लगी जनसंख्या को भी ध्यान में रखा जाता है। विभिन्न देशों में जनसंख्या घनत्व अधिक या कम होने की स्थिति में घनत्व वाला मापदंड उसी के अनुरूप बढ़ा या घटा दिया जाता है। डेनमार्क, स्वीडन एवं पिनलैंड में 250 व्यक्तियों की जनसंख्या वाले सभी क्षेत्र नगरीय क्षेत्र कहलाते हैं। आइसलैंड में नगर होने के लिए न्यूनतम जनसंख्या 300 मनुष्य होनी चाहिए जबकि कनाडा एवं वेनेजुएला में यह संख्या 1000 व्यक्ति है।

व्यावसायिक संरचना

जनसंख्या के आकार के अतिरिक्त कुछ देशों में जैसे भारत में प्रमुख आर्थिक गतिविधियों को भी नगरीय बस्तियाँ निर्दिष्ट करने के लिए मापदंड माना जाता है। इसी प्रकार इटली में उस बस्ती को नगरीय कहा जाता है जिसकी आर्थिक रूप से उत्पादक जनसंख्या का 50 प्रतिशत गैर कृषि कार्यों में संलग्न हो। भारत में यह मापदंड 75 प्रतिशत का रखा गया है।

प्रशासन

कुछ देशों में किसी बस्ती को नगरीय बस्ती में वर्गीकृत करने हेतु प्रशासनिक ढाँचे को मापदंड माना जाता है। उदाहरण के लिए भारत में किसी भी आकार की बस्तियों को नगर के रूप में वर्गीकृत किया जाता है यदि वहाँ नगरपालिका, छावनी बोर्ड या अधिसूचित नगरीय क्षेत्र समिति है। इसी प्रकार लैटिन अमेरिका के देश ब्राजील एवं बोलीविया में जनसंख्या आकार का ध्यान नहीं रखते हुए किसी भी प्रशासकीय केंद्र को नगरीय केंद्र माना जाता है।

स्थिति

नगरीय केंद्रों की स्थिति उनके द्वारा संपन्न कार्यों के आधार पर देखी जाती है। उदाहरण के तौर पर किसी अवकाश सैरगाह की स्थिति के लिए जो आवश्यक बातें होनी चाहिए वो औद्योगिक नगर, सेना नगर या एक समुद्री पत्तन नगर के लिए आवश्यक स्थितियों से भिन्न होती हैं। सामरिक नगरों की स्थिति ऐसी जगह हो जहाँ इसे प्राकृतिक सुरक्षा मिले; खनिज नगरों के लिए क्षेत्र में आर्थिक दृष्टिकोण से उपयोगी खनिजों का पाया जाना आवश्यक है; औद्योगिक नगरों के लिए स्थानीय शक्ति के साधन एवं कच्चा माल; पर्यटन केंद्र के लिए आकर्षक दृश्य या सामुदि्रक तट, औषधीय जल वाला झरना या कोई ऐतिहासिक अवशेष; पत्तन के लिए पोताश्रय का होना। प्राचीन नगरीय बस्तियों की स्थिति, जल, गृह निर्माण सामग्री एवं उपजाऊ भूमि उपलब्धता पर निर्भर रहती थी। यद्यपि वर्तमान में भी उपरोक्त कारकों का महत्त्व कम नहीं हुआ है फिर भी आधुनिक प्रौद्योगिकी के कारण ऐसे क्षेत्रों में भी नगरीय बस्तियाँ विकसित हो रही हैं जहाँ उपरोक्त सुविधाएँ न हों। पाइपलाइन के द्वारा जल दूर-दूर तक पहुँचाया जा सकता है एवं यातायात के साधनों के माध्यम से गृह निर्माण सामग्री भी दूरस्थ क्षेत्रों से प्राप्त की जा सकती है। नगरों के विस्तार में स्थान के अलावा उनकी स्थिति भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जो नगर महत्त्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग के निकट स्थित हैं उनका विकास तेज़ी से हुआ है।

नगरीय क्षेत्रों के कार्य

प्राचीन नगर, प्रशासन, व्यापार, उद्योग, सुरक्षा एवं धार्मिक महत्त्व के केंद्र हुआ करते थे। वर्तमान समय में सुरक्षा तथा धर्म का कार्यात्मक विभेदीकरण के रूप में महत्त्व घटा है, परंतु कई अन्य कार्य इस सूची में जुड़ गए हैं। आजकल कई नए कार्य जैसे मनोरंजनात्मक, यातायात, खनन, निर्माण, आवासीय तथा सबसे नवीन सूचना प्रौद्योगिकी आदि कुछ विशिष्ट नगरों में संपन्न होते हैं। इनमें से कुछ कार्यों के लिए नगरीय केंद्रों को समीप के ग्रामीण क्षेत्रों से किसी भी प्रकार के आधारभूत संबंधों की आवश्यकता नहीं होती है।

भारत में नगरों का विकास

भारत में नगरों का अभ्युदय प्रागैतिहासिक काल से हुआ है। यहाँ तक कि सिंधु घाटी सभ्यता के युग में भी हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे नगर अस्तित्व में थे। इसके बाद का समय नगरों के विकास का साक्षी है। यह समय 18वीं शताब्दी में यूरोपियों के भारत आने तक आवधिक उतार-चढ़ावों से भरा रहा। विभिन्न युगों में उनके विकास के आधार पर भारतीय नगरों को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-

  • प्राचीन नगर
  • मध्यकालीन नगर और
  • आधुनिक नगर।

प्राचीन नगर

भारत में 2000 से अधिक वर्षों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाले अनेक नगर हैं। इनमें से अधिकांश का विकास धार्मिक अथवा सांस्कृतिक केंद्रों के रूप में हुआ है। वाराणसी इनमें से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगर हैं। प्रयाग (इलाहाबाद), पाटलिपुत्र (पटना), मदुरई देश में प्राचीन नगरों के कुछ अन्य उदाहरण हैं।

मध्यकालीन नगर

वर्तमान के लगभग 100 नगरों का इतिहास मध्यकाल से जुड़ा है। इनमें से अधिकांश का विकास रजवाड़ों और राज्यों के मुख्यालयों के रूप में हुआ। ये क़िला नगर हैं जिनका निर्माण प्राचीन नगरों के खंडहरों पर हुआ है। ऐसे नगरों में दिल्ली, हैदराबाद, जयपुर, लखनऊ, आगरा और नागपुर महत्त्वपूर्ण हैं।

आधुनिक नगर

अंग्रेज़ों और अन्य यूरोपियों ने भारत में अनेक नगरों का विकास किया। तटीय स्थानों पर अपने पैर जमाते हुए उन्होंने सर्वप्रथम सूरत, दमन, गोआ, पांडिचेरी इत्यादि जैसे व्यापारिक पत्तन विकसित किए। अंग्रेज़ों ने तीन मुख्य मुम्बई (बम्बई), चेन्नई (मद्रास) और कोलकाता (कलकत्ता) पर अपनी पकड़ मज़बूत की और उनका अंग्रेज़ी शैली में निर्माण किया। अपनी प्रभाविता को प्रत्यक्ष रूप से अथवा रजवाड़ों पर नियंत्रण के माध्यम से तेज़ी से बढ़ाते हुए उन्होंने प्रशासनिक केंद्रों, ग्रीष्मकालीन विश्राम स्थलों के रूप में पर्वतीय नगरों को स्थापित किया और उनमें सिविल, प्रशासनिक और सैन्य क्षेत्रों को जोड़ा। 1850 के बाद आधुनिक उद्योगों पर आधारित नगरों का भी जन्म हुआ। जमशेदपुर इसका एक उदाहरण है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्, अनेक नगर प्रशासनिक केंद्रों, जैसे- चंडीगढ़, भुवनेश्वर, गांधीनगर, दिसपुर इत्यादि और औद्योगिक केंद्रों जैसे दुर्गापुर, भिलाई, सिंदरी, बरौनी के रूप में विकसित हुए। कुछ पुराने नगर महानगरों के चारों ओर अनुषंगी नगरों के रूप में विकसित हुए जैसे दिल्ली के चारों ओर गाज़ियाबाद, रोहतक और गुड़गाँव इत्यादि। ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ते निवेश के साथ पूरे देश में बड़ी संख्या में मध्यम और छोटे नगरों का विकास हुआ है।

भारत में नगरीकरण

नगरीकरण के स्तर का माप कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में किया जाता है। वर्ष 2001 में भारत में नगरीकरण का स्तर 28 प्रतिशत था जो विकसित देशों की तुलना में काफ़ी कम है। 20वीं शताब्दी के दौरान नगरीय जनसंख्या 11 गुना बढ़ी है। नगरीय केंद्रों के विवर्धन और नए नगरों के आविर्भाव ने देश में नगरीय जनसंख्या की वृद्धि और नगरीकरण में सार्थक भूमिका निभाई है। किंतु नगरीकरण की वृद्धि दर पिछले दो दशकों में धीमी हुई है।

नगरों का प्रकार्यात्मक वर्गीकरण

अपनी केंद्रीय अथवा नोडीय स्थान की भूमिका के अतिरिक्त अनेक शहर और नगर विशेषीकृत सेवाओं का निष्पादन करते हैं। कुछ शहरों और नगरों को कुछ निश्चित प्रकार्यों में विशिष्टता प्राप्त होती हैं और उन्हें कुछ विशिष्ट क्रियाओं, उत्पादनों अथवा सेवाओं के लिए जाना जाता है। फिर भी प्रत्येक शहर अनेक प्रकार्य करता है। प्रमुख अथवा विशेषीकृत प्रकार्यों के आधार पर भारतीय नगरों को मोटे तौर पर निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है -

प्रशासन शहर और नगर

उच्चतर क्रम के प्रशासनिक मुख्यालयों वाले शहरों को प्रशासन नगर कहते हैं, जैसे कि चंडीगढ़, नई दिल्ली, भोपाल, शिलांग, गुवाहाटी, इंफाल, श्रीनगर, गांधी नगर, जयपुर, चेन्नई इत्यादि।

औद्योगिक नगर

मुंबई, सेलम, कोयंबटूर, मोदीनगर, जमशेदपुर, हुगली, भिलाई इत्यादि के विकास का प्रमुख अभिप्रेरक बल उद्योगों का विकास रहा है।

परिवहन नगर

ये पत्तन नगर जो मुख्यत: आयात और निर्यात कार्यों में संलग्न रहते हैं, जैसे- कांडला, कोच्चि, कोझीकोड, विशाखापट्नम, इत्यादि अथवा आंतरिक परिवहन की धुरियाँ जैसे धुलिया, मुग़लसराय, इटारसी, कटनी इत्यादि हो सकते हैं।

वाणिज्यिक नगर

व्यापार और वाणिज्य में विशिष्टता प्राप्त शहरों और नगरों को इस वर्ग में रखा जाता है। कोलकाता, सहारनपुर, सतना इत्यादि कुछ उदाहरण हैं।

खनन नगर

ये नगर खनिज समृद्ध क्षेत्रों में विकसित हुए हैं जैसे रानीगंज, झरिया, डिगबोई, अंकलेश्वर, सिंगरौली इत्यादि।

गैरिसन (छावनी) नगर

इन नगरों का उदय गैरिसन नगरों के रूप में हुआ है, जैसे अंबाला, जालंधर, महू, बबीना, उधमपुर इत्यादि।

धार्मिक और सांस्कृतिक नगर

वाराणसी, मथुरा, अमृतसर, मदुरै, पुरी, अजमेर, पुष्कर, तिरुपति, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, उज्जैन अपने धार्मिक/सांस्कृतिक महत्त्व के कारण प्रसिद्ध हुए।

शैक्षिक नगर

मुख्य परिसर नगरों में से कुछ नगर शिक्षा केंद्रों के रूप में विकसित हुए जैसे रुड़की, वाराणसी, अलीगढ़, पिलानी, इलाहाबाद

पर्यटन नगर

नैनीताल, मसूरी, शिमला, पचमढ़ी, जोधपुर, जैसलमेर, उडगमंडलम (ऊटी), माउंट आबू कुछ पर्यटन गंतव्य स्थान हैं। नगर अपने प्रकार्यों में स्थिर नहीं है उनके गतिशील स्वभाव के कारण प्रकार्यों में परिवर्तन हो जाता है।

विशेषीकृत नगर भी महानगर बनने पर बहुप्रकार्यात्मक बन जाते हैं जिनमें उद्योग व्यवसाय, प्रशासन, परिवहन इत्यादि महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। प्रकार्य इतने अंतर्ग्रंथित हो जाते हैं कि नगर को किसी विशेष प्रकार्य वर्ग में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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