भोजेश्वर मंदिर

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भोजेश्वर मंदिर
भोजेश्वर मंदिर
विवरण 'भोजेश्वर मंदिर' मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 32 किलोमीटर की दूरी पर रायसेन ज़िले की गोहरगंज तहसील के औबेदुल्लागंज विकास खण्ड में स्थित है।
राज्य मध्य प्रदेश
ज़िला भोपाल
निर्माता राजा भोज
निर्माण काल 1010-1053 ई. के मध्य
प्रसिद्धि विशालकाय शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध है।
रेलवे स्टेशन भोपाल
यातायात बसें, ऑटो रिक्शा आदि।
संबंधित लेख भोपाल, राजा भोज


अन्य जानकारी किवदंतियों के अनुसार माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा माता कुंती की पूजा के लिए किया गया था तथा शिवलिंग को एक रात्रि में निर्मित किया गया था।

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भोजेश्वर मंदिर अथवा भोजपुर शिव मंदिर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रायसेन ज़िले की गोहरगंज तहसील के औबेदुल्लागंज विकास खण्ड में स्थित प्राचीन काल के इस मंदिर को यदि उत्तर भारत का सोमनाथ भी कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। भोजपुर गाँव में पहाड़ी पर यह विशाल शिव मंदिर स्थापित है। भोजपुर मंदिर तथा उसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज द्वारा की गई थी। अत: राजा भोज के नाम पर ही इस स्थान को भोजपुर और मंदिर को 'भोजपुर मंदिर' या 'भोजेश्वर मंदिर' कहा गया। बेतवा नदी के किनारे बना उच्च कोटि की वास्तुकला का यह नमूना राजा भोज के मुख्य वास्तुविद और अन्य विद्वान् वास्तुविदों के सहयोग से तैयार हुआ। मन्दिर की विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसका चबूतरा 35 मीटर लम्बा है।

प्रसिद्धि

भोजपुर के शिव मंदिर की प्रसिद्धि यहाँ स्थापित शिवलिंग की वजह से और भी अधिक है। पुरातत्व विभाग द्वारा इस मंदिर को विश्व धरोहर में शामिल कराने के प्रयास जारी हैं। कला और संस्कृति के दृष्टि से यहाँ की धरती प्राचीन काल से ही महत्त्वपूर्ण रही है। स्थापत्य कला में भी भोजपुर नामक स्थान पर भोजेश्‍वर के नाम से विख्यात शिव मंदिर काफ़ी महत्त्वपूर्ण रहा है, जिस कारण इसे "पूर्व का सोमनाथ" कहा गया।

इतिहास

मध्य काल के आरंभ में महान् राजा भोज ने 1010-1053 ई. में भोजपुर की स्थापना की तथा यहाँ पर भगवान शिव का एक भव्य मंदिर भी बनवाया। इस नगर को प्रसिद्धि देने में भोजपुर के 'भोजेश्वर शिव मंदिर' का भी प्रमुख योगदान रहा है। यह मंदिर निर्माण कला का अदभुत उदाहरण है। मंदिर वर्गाकार है, जिसका बाह्य विस्तार बहुत बडा़ है। मंदिर चार स्तंभों के सहारे पर खड़ा है। देखने पर इसका आकार हाथी की सूंड के समान लगता है। यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है। इसका निचला हिस्सा अष्टभुजाकार है, जिसमें फलक बने हुए हैं। शिव मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों पार्श्वों में दो सुंदर प्रतिमाएँ स्थापित हैं, जो सभी को आकृष्ट करती हैं।

मंदिर का शिवलिंग

भोजेश्वर शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग की ऊँचाई प्रभावित करने वाली है। अधिक ऊँचाई वाला यह शिवलिंग स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। शिवलिंग को वर्गाकार एवं विस्तृत फलक वाले चबूतरे पर पाषाण खंडों पर स्थापित किया गया है। मंदिर का शिखर अपूर्ण है, जो कभी भी पूरा नहीं बन पाया। इसको पूरा करने के लिए प्रयास अवशेष रूप में आज भी मौजूद हैं। भोजेश्‍वर मंदिर के पास ही जैन मंदिर भी हैं, जिसमें तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ देखी जा सकती हैं। इतिहासकारों के अनुसार इसके निर्माण की अवधि भी भोजेश्‍वर मंदिर के समय की बताई जाती है।

स्थापत्य

मंदिर का निर्माण रूप एवं शैली बहुत ही सुंदर एवं आकर्षक है। विस्तृत चबूतरे पर बना यह मंदिर कई भागों में विभाजित है। मंदिर को देखने पर भारतीय मंदिर की वास्तुकला के बारे में बहुत बातें ज्ञात होती हैं। जैसे इस हिन्दू मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बना अधुरा गुम्बदाकार छत भारत में ही गुम्बद निर्माण के प्रचलन को दर्शाता है। कुछ इतिहासकार इसे भारत में सबसे पहले गुम्बदीय छत वाली इमारत भी कहते हैं। कुछ किवदंतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा माता कुंती की पूजा के लिए किया गया था तथा इस शिवलिंग को एक रात्रि में निर्मित किया गया था। इस विश्व प्रसिद्घ शिवलिंग की ऊँचाई इक्कीस फिट से भी अधिक है। एक ही पत्थर से निर्मित इतनी बड़ी शिवलिंग अन्य कहीं देखने को नहीं मिलती।

प्रमुख तथ्य

मन्दिर में स्थित शिवलिंग

'भोजपुर शिव मंदिर' या 'भोजेश्वर मंदिर' मध्य प्रदेश के शिव मंदिरों में से मुख्य मंदिर है। इस मंदिर का विशाल एवं भव्य रूप देखकर हर कोई इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता। भोजेश्वर मंदिर के पश्चिम में कभी एक बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। उस झील उस पर एक बाँध भी बना हुआ था, लेकिन अब सिर्फ उसके अवशेष ही यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। बाँध का निर्माण बहुत ही बुद्धिमतापूर्वक किया गया था। दो तरफ़ से पहाड़ियों से घिरी झील को अन्य दो ओर से बालुकाइम के विशाल पाषाण खंडों की मदद से भर दिया गया था। ये पाषाण खंड चार फीट लंबे और 2.5 फीट मोटे थे। छोटा बाँध लगभग 44 फीट ऊँचा था और उसका आधार तल तगभग 300 फीट चौड़ा तथा बड़ा बाँध 24 फीट ऊँचा और ऊपरी सतह पर 100 फीट चौड़ा था। उल्लेखनीय है कि यह बाँध तकरीबन 250 मील के जल प्रसार को रोके हुए था। इस झील को होशंगशाह ने (1405-1434 ई.) में नष्ट करवा दिया।

किंवदंती

गौंड किंवदंती के अनुसार होशंगशाह की फौज को इस बाँध को काटने में तीन महीना का समय लग गया था। कहा जाता है कि इस अपार जलराशि के समाप्त हो जाने के कारण मालवा के जलवायु में परिवर्तन आ गया था। एक अन्य किंवदंती के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस झील के समाप्त हो जाने के कारण मालवा की जलवायु में भी परिवर्तन हो गया था। इस प्रसिद्घ स्थल पर वर्ष में दो बार वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है, जो 'मकर संक्रांति' व 'महाशिवरात्रि पर्व' के समय होता है। इस धार्मिक उत्सव में भाग लेने के लिए दूर दूर से लोग यहाँ पहुँचते हैं।

लिंगराज से समानता

एक समय था, जब भोजपुर से भोपाल तक फैली झील के अन्तिम छोर पर भोजेश्वर मन्दिर खडा दिखाई देता था। मन्दिर निर्माण के लिये जिस पत्थर का प्रयोग किया गया था, उसे भोजपुर के ही पथरीले क्षेत्रों से प्राप्त किया गया था। मन्दिर के समीप और दूर तक पत्थरों और चट्टानों की कटाई के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। 'अर्ली स्टोन टेम्पल्स ऑफ़ ओडिसा' की लेखिका विद्या देहेजिया के अनुसार भोजपुर के शिव मन्दिर और भुवनेश्वर के 'लिंगराज मन्दिर' व कुछ और मन्दिरों के निर्माण में समानता दिखाई देती है। मन्दिर से कुछ दूर बेतवा नदी के किनारे पर माता पार्वती की गुफ़ा है। क्योंकि गुफ़ा नदी के दूसरी ओर है, इसलिये नदी पार जाने के लिये नौकाएँ उपलब्ध हैं। यद्यपि भोजपुर का प्रसिद्ध शिव मन्दिर वीरान पथरीले इलाके में खडा है, परन्तु आज भी यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ में कोई कमी नहीं आई है। प्रतिवर्ष 'महाशिवरात्रि' पर यहाँ लगने वाला मेला देखने लायक़ होता है।

कैसे पहुँचें

भारत के किसी भी कोने से हवाई या रेल मार्ग से भोपाल, मध्य प्रदेश पहुँचा जा सकता है। भोपाल से भोजपुर की दूरी मात्र 32 किलोमीटर है। घूमने के लिये निजी वाहन अधिक उचित रहते हैं। बस स्टैण्ड से भोपाल मण्डीदीप मार्ग पर चलते हुए भोजपुर उतरना चाहिए। यहाँ किराया आठ से दस रुपये प्रति व्यक्ति लगता है। वहाँ से मन्दिर के लिये ऑटो आदि लिया जा सकता है। मन्दिर में या उसके आस-पास ठहरने का कोई स्थान नहीं है, यानि ठहरने के लिये भोपाल ही श्रेष्ठ स्थान रहता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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