महाभारत युद्ध अठारहवाँ दिन

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महाभारत युद्ध में अठारहवें दिन शल्य को सामने देखकर युधिष्ठिर ने अर्जुन से कहा- "तुम संसप्तकों से युद्ध करो। भीम कृपाचार्य से मोर्चा लेंगे तथा मैं शल्य से युद्ध करूँगा।"

  • शल्य और युधिष्ठिर भिड़ गए। चारों ओर से शल्य पर आक्रमण होने लगे। वे ढाल और तलवार लेकर रथ से कूदे तथा युधिष्ठिर को मारने दौड़े। इसी समय युधिष्ठिर ने शल्य पर एक घातक शक्ति का प्रयोग किया, जिससे शल्य की मृत्यु हो गई। कौरव सेना भाग खड़ी हुई। इसी समय दुर्योधन पांडवों के सामने आ डटा। सहदेव शकुनि पर झपटे।
  • शकुनि का पुत्र उलूक अपने पिता की रक्षा के लिए बढ़ा, पर सहदेव ने उसके प्राण ले लिये। सहदेव ने शकुनि पर भी एक तीर छोड़ा तथा शकुनि भी मारा गया।
  • दुर्योधन शकुनि की मृत्यु के बाद अकेले गदा लेकर रणक्षेत्र से बाहर पैदल ही निकल गया। वह दूर सरोवर में जाकर छिप गया। उसे छिपते हुए कुछ लोगों ने देख लिया।
  • श्रीकृष्ण ने कहा कि- "बिना दुर्योधन का वध किए पूरी विजय नहीं मिल सकती।" उसी समय गाँव से आने वाले लोगों ने बताया कि उस सरोवर में एक मुकुटधारी व्यक्ति को छिपते हुए हमने देखा है। कृष्ण के कहने पर भीम ने दुर्योधन को अपशब्द कहकर ललकारा। दुर्योधन सरोवर से बाहर आ गया। उसी समय उसके गुरु बलराम उधर से आ निकले। कृष्ण ने दुर्योधन को युद्ध के लिए तैयार हो जाने को कहा। दुर्योधन ने कहा- "मैं युद्ध के लिए तैयार हूँ, पर धर्म युद्ध होगा और मेरे गुरु बलराम निरीक्षक होंगे।"[1]
  • भीम तथा दुर्योधन में गदा युद्ध छिड़ गया। श्रीकृष्ण ने अपनी जाँघ पर थपकी मारी, जिससे भीम को दुर्योधन की जाँघ तोड़ने की अपनी प्रतिज्ञा याद आ गई। गदा युद्ध में कमर के नीचे प्रहार नहीं किया जाता, फिर भी अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करने हेतु भीम ने दुर्योधन की जाँघ पर गदा प्रहार किया, जिससे उसकी जंघा टूट गई। गिरते ही भीम ने उसके सिर पर प्रहार किया। बलराम इस अन्याय युद्ध को देख क्रोधित होकर भीम को मारने दौड़े, पर श्रीकृष्ण ने उन्हें शांत कर दिया। दुर्योधन के गिरते ही पांडवों की विजय हो गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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