ये मुमकिन नहीं -आदित्य चौधरी
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हो सकता है
सूरज न निकले कल
रूक जाएँ नदियाँ भी
हंसिनी भूल कर
हंस को
उड़ जाए, किसी दूर दिशा में
दूर कहीं
अपनी ही कस्तूरी
भूलें हिरन
छोड़ चंदन वृक्ष
चले जाएँ भुजंग
तरस जाय सावन भी
न चले पुरवाई
भूल जाए कोयल
इठलाती अमराई
अपनी बेनूरी पे नर्गिस
भूल जाए रोना
छोड़ दें मोर
अपने पैरों पर
उदास होना
शायद ये सब कुछ हो भी जाए
मगर ये मुमकिन नहीं
कि मुझे तेरी याद न आए
-आदित्य चौधरी
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