रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन

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रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन का प्रतीक चिह्न
विवरण रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) रक्षा प्रणालियों के डिजाइन एवं विकास के लिए समर्पित है और तीनों रक्षा सेवाओं की अभिव्यक्त गुणात्मक आवश्यकताओं के अनुसार विश्व स्तर के हथियार प्रणालियों और उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की दिशा में काम करता है।
स्थापना 1958
मुख्यालय डीआरडीओ भवन, नई दिल्ली
अधीन यह संगठन रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के अधीन काम करता है।
जिम्मेदार मंत्री रक्षामंत्री (भारत)
उद्देश्य विश्व-स्तरीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकीय आधार स्थापित कर भारत को समृद्ध बनाना और अपनी रक्षा सेना को अंतर्राष्ट्रीय रूप से प्रतिस्पर्धी प्रणालियों और समाधानों से लैसकर उन्हें निर्णायक लाभ प्रदान करना।
डीआरडीओ पुरस्कार डीआरडीओ में कुल 17 पुरस्कार हैं, जिनमें से 4 पुरस्कार संबंधित प्रयोगशालाओं/स्थापनाओं के निदेशकों द्वारा उनके वैज्ञानिकों तथा तकनीकी, प्रशासनिक एवं संबद्ध काडर सहित अन्य सहायक स्टाफ के उत्कृष्ट योगदान को मान्यता देने हेतु प्रदान किये जाते हैं। शेष 13 पुरस्कारों का निर्णय डीआरडीओ मुख्यालय में किया जाता है जिसके लिए प्रत्येक वर्ष सभी प्रयोगशालाओं/स्थापनाओं से नामांकन मंगाए जाते हैं। ये पुरस्कार सामान्यत: भारत के प्रधानमंत्री द्वारा "राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस" पर प्रदान किये जाते हैं जो प्रति वर्ष 11 मई के दिन होता है।
अन्य जानकारी डीआरडीओ सैन्य प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में काम करता है, जिसमें वैमानिकी, शस्त्रों, संग्राम वाहनों, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग प्रणालियों, मिसाइल, सामग्री, नौसेना प्रणालियों, उन्नत कंप्यूटिंग, सिमुलेशन और जीवन विज्ञान शामिल है।
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रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (अंग्रेज़ी: Defence Research & Development Organisation, संक्षिप्त रूप- डीआरडीओ) रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के अधीन काम करता है। डीआरडीओ रक्षा प्रणालियों के डिजाइन एवं विकास के लिए समर्पित है और तीनों रक्षा सेवाओं की अभिव्यक्त गुणात्मक आवश्यकताओं के अनुसार विश्व स्तर के हथियार प्रणालियों और उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की दिशा में काम करता है। डीआरडीओ सैन्य प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में काम करता है, जिसमें वैमानिकी, शस्त्रों, संग्राम वाहनों, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग प्रणालियों, मिसाइल, सामग्री, नौसेना प्रणालियों, उन्नत कंप्यूटिंग, सिमुलेशन और जीवन विज्ञान शामिल है। डीआरडीओ अत्याधुनिक आयुध प्रौद्योगिकी की आवश्यकतापूर्ति के साथ-साथ समाज के लिए स्पिन ऑफ लाभ देकर राष्ट्र निर्माण में योगदान देता रहा है।[1]

डीआरडीओ का उद्देश्य

  • "विश्व-स्तरीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकीय आधार स्थापित कर भारत को समृद्ध बनाना और अपनी रक्षा सेना को अंतर्राष्ट्रीय रूप से प्रतिस्पर्धी प्रणालियों और समाधानों से लैसकर उन्हें निर्णायक लाभ प्रदान करना।"
  • अपनी रक्षा सेवाओं के लिए अत्याधुनिक सेंसर, शस्त्र प्रणालियां, मंच और सहयोगी उपकरण अभिकल्पित करना, विकसित करना और उत्पादन के लिए तैयार करना।
  • संग्रामी प्रभावकारिता अधिकतम करने और सैनिकों की बेहतरी को बढ़ावा देने के लिए रक्षा सेवाओं को तकनीकी समाधान प्रदान करना।
  • अवरचना तथा गुणवत्तापूर्ण प्रतिबद्ध श्रमशक्ति विकसित करना और मजबूत प्रौद्योगिकी आधार निर्मित करना।[1]

डीआरडीओ पुरस्कार

डीआरडीओ के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और उद्योगों तथा अकादमिक संस्थानों में साझीदारों को राष्ट्रीय सुरक्षा तथा आत्मनिर्भरता के लक्ष्य में योगदान हेतु प्रेरित करने के लिए डीआरडीओ पुरस्कार योजना, अपने वर्तमान स्वरूप में, वर्ष 1999 में आरंभ की गई थी। इसलिए, भारत सरकार द्वारा संस्थापित वर्तमान पुरस्कार योजना का उद्देश्य डीआरडीओ के वैज्ञानिकों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) में हमारे साझीदारों, निजी फर्मों के साथ ही साथ अकादमिक संस्थानों को महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के विकास, प्रयोगशालाओं से उद्योगों तक प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण तथा अत्याधुनिक रक्षा प्रणालियों के उत्पादनीकरण की गति तेज करने के लिए प्रोत्साहित करना है।

इस योजना में कुल 17 पुरस्कार हैं, जिनमें से 4 पुरस्कार संबंधित प्रयोगशालाओं/स्थापनाओं के निदेशकों द्वारा उनके वैज्ञानिकों तथा तकनीकी, प्रशासनिक एवं संबद्ध काडर सहित अन्य सहायक स्टाफ के उत्कृष्ट योगदान को मान्यता देने हेतु प्रदान किये जाते हैं। शेष 13 पुरस्कारों का निर्णय डीआरडीओ मुख्यालय में किया जाता है जिसके लिए प्रत्येक वर्ष सभी प्रयोगशालाओं/स्थापनाओं से नामांकन मंगाए जाते हैं। नामांकनों की आरंभिक जांच भर्ती एवं आकलन केंद्र (आरएसी) के अध्यक्षता में जांच समिति द्वारा की जाती है। इसके बाद, पुरस्कारों को अंतिम रूप देने के लिए छांटे गये नामांकनों की जांच सर्वोच्च समिति द्वारा की जाती है जिसमें दो बाह्य विशेषज्ञ भी होते हैं। ये पुरस्कार सामान्यत: भारत के प्रधानमंत्री द्वारा "राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस" पर प्रदान किये जाते हैं जो प्रति वर्ष 11 मई के दिन होता है।[1]

जैव विज्ञान अनुसंधान बोर्ड

जैव विज्ञान अनुसंधान बोर्ड (एल.एस.आर.बी) जैव वैज्ञानिक एवं जैव औषधि विज्ञानों, मनोविज्ञान एवं शरीरविज्ञान, जैव-अभियांत्रिकी, विशेषीकृत उच्च उन्नतांश कृषि, खाद्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे व्यापक विषयों पर जैव विज्ञानों में अनुसंधान के प्रस्तावों को समर्थन देता है। बोर्ड ने देश में जैव विज्ञानों एवं संबद्ध क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करने के लिए आई आई टी, विश्वविद्यालयों, चिकित्सा एवं जैव विज्ञान संस्थानों, कॉलेजों और उद्योगों सहित अन्य शोध केंद्रों मे शोध प्रतिभाओं को पोषित करने के लिए एक सहायता अनुदान योजना संस्थापित की है। इस योजना के अंतर्गत अनुमोदित शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों या कॉलेजों, विभागों या सरकारी तथा गैर-सरकारी दोनों क्षेत्रों की प्रयोगशालाओं को अनुदान दिये जाते हैं। इस योजना का समन्वय एलएसआरबी के अध्यक्ष द्वारा विभिन्न अनुशासनों को समाहित करते हुए गठित किए गए अनेक विशेषज्ञ पैनलों के माध्यम से किया जाता है।

जैव विज्ञान अनुसंधान बोर्ड (एल.एस.आर.बी) के उद्देश्य इस प्रकार हैं-
  • तकनीकी जानकारी और विशेषज्ञता सहित राष्ट्रीय संसाधनों के सुदृढ़ीकरण एवं उपयोग के ज़रिये देश में जैव विज्ञानों के ज्ञान-आधार को विस्तारित तथा गहरा बनाना।
  • सक्रिय सैनिकों को समर्थन प्रदान करने के लिए शोध वैज्ञानिकों के बीच विचारों एवं विशेषज्ञता के पर-निषेचन को उत्प्रेरित करना।
  • जैवचिकित्सा और जैवप्रौद्योगिकी उत्पादों के विकास, विनिर्माण तथा उपयोग के लिए संबद्ध ज्ञान के क्षेत्र में आधारभूत योग्यता का उन्नयन करना।
  • परस्पर सहयोग तथा अन्य अकादमिक विनिमयों के जरिए विदेशी स्थलों से प्रतिभा तथा विशेषज्ञता आकर्षित करने के लिए उपयुक्त परिस्थितियां सृजित करना।

नौसैनिक अनुसंधान बोर्ड

नौसैनिक अनुसंधान बोर्ड (एनआरबी) का गठन सामुद्रिक प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में मौलिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करने और नौसैनिक पर्यावरण से संबंधित ज्ञान-आधार को सुदृढ़ एवं गहरा बनाने के लिए अगस्त 1996 में किया गया था। बोर्ड ने देश में मौलिक अनुसंधान, अभिकल्प एवं विकास को प्रोत्साहित करने के लिए शोध प्रतिभाओं को पोषित करने तथा आईआईटी, विश्वविद्यालयों, उच्चतर प्रौद्योगिकी संस्थानों, इंजीनियरिंग संस्थानों और उद्योगों सहित अन्य शोध केंद्रों में शोध सुविधाएं सृजित करने के लिए एक सहायता अनुदान योजना संस्थापित की है।

नौसैनिक अनुसंधान बोर्ड (एनआरबी) के उद्देश्य इस प्रकार हैं-
  • उभरती हुई प्रतिभाओं को, विशेष रूप से अकादमिक संस्थानों में, समर्थन तथा सहायता प्रदान कर हमारी भावी नौसेना के लिए व्यापक रूप से प्रासंगिक उपयुक्त वैज्ञानिक अनुशासनों में मौलिक अनुसंधान को प्रोत्साहित तथा वित्तपोषित करना।
  • नौसेना के लिए प्रयुक्त होने की संभावना वाले ज्ञान-आधार को सृजित तथा विकसित करना।

वैमानिकी अनुसंधान एवं विकास बोर्ड

वैमानिकी अनुसंधान एवं विकास बोर्ड (एआरडीबी) की स्थापना भारत सरकार ने अकादमिक संस्थानों और राष्ट्रीय विज्ञान प्रयोगशालाओं में वैमानिकी प्रणालियों के लिए संभावित अनुप्रयोगों वाले भविष्योन्मुखी, वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकीय क्षेत्रों में अनुसंधान का समन्वय करने, वित्त प्रदान करने तथा संवेदनशील बनाने के लिए की थी। इस उद्देश्य से, प्रति वर्ष रु. 5 करोड़ का सहायता अनुदान चिन्हित किया गया है। परियोजना गतिविधियों के अतिरिक्त बोर्ड चुनिंदा क्षेत्रों जैसे संगणकीय तरल गतिकी, प्रणाली अभिकल्प एवं अभियांत्रिकी तथा सम्मिश्र संरचना प्रौद्योगिकी में उत्कृष्टता केंद्रों को प्रोत्साहित करता है; कुछ अन्य केंद्र भी विचाराधीन हैं। एआरडीबी के वित्तपोषण के माध्यम से विकसित बौद्धिक संपदा अनुदान प्राप्तकर्ता संस्थान के साथ साझा की जाती है। बोर्ड संगोष्ठियों, भारत एवं विदेश में शोधपत्रों की प्रस्तुति, पुस्तकों के लेखन और स्कूली बच्चों में वैज्ञानिक अभिवृत्ति के विकास को भी प्रोत्साहित करता है।[1]

आयुध अनुसंधान बोर्ड

आयुध अनुसंधान बोर्ड (एआरएमआरईबी) का गठन 1997 में आयुध अनुशासन के लिए उपयोगी वैज्ञानिक क्षेत्रों में नवोन्मेषी अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया था। बोर्ड का गठन भावी चुनौतियों का सामना करने के लिए आयुधों के क्षेत्र में बौद्धिक, भौतिक अवरचना और वैज्ञानिक समझदारी को उन्नत करने के उद्देश्य से किया गया था। आयुध एक संश्लिष्ट बहु-अनुशासनिक क्षेत्र होने के कारण इसमें प्राक्षेपिकी एवं वायुगतिकी, पदार्थ एवं धातुविज्ञान, यांत्रिक एवं इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग, ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कंप्यूटर तकनीक, विस्फोटक एवं अग्निक्रीड़ाविज्ञान, मॉडलिंग, सिमुलेशन तथा प्रणाली विश्लेषण आदि शामिल होते हैं। बोर्ड के अंतर्गत तीन अनुसंधान पैनल कार्यरत हैं जिनके दायरे में आयुध अनुशासन का संपूर्ण वर्णक्रम आ जाता है।

आयुध अनुसंधान बोर्ड के उद्देश्य
  • देश में आयुध अनुशासन की ज्ञान आधारित वृद्धि को पोषित करना, ज्ञान, तकनीकी जानकारी, अनुभव, सुविधाओं और अवरचना के राष्ट्रीय संसाधनों को मजबूत तथा एकीकृत करना।
  • आयुध प्रौद्योगिकी में योगदान देने वाले वैज्ञानिक एवं तकनीकी क्षेत्रों में रक्षा एवं गैर रक्षा विशेषज्ञों के बीच विचारों और अनुभवों के अपेक्षित पर-निषेतन को उत्प्रेरित करना।
  • अकादमिक शिक्षा संस्थानों में आयुध अनुशासन के विशिष्ट क्षेत्रों में शोध कार्यों का आरंभ एवं समन्वयन करना।
  • शोध सहभागिताओं और अन्य अकादमिक विनिमयों के माध्यम से प्रतिभाओं और अनुभव को आकर्षित करने के लिए उचित परिस्थितियों का सृजन करना।
  • आयुधों के क्षेत्र में राष्ट्रीय आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं की दिशा में साहचर्य का दृष्टिकोण अपनाते हुए भी कुंजीभूत क्षेत्रों में योग्यता विकसित करने की दृष्टि से वैश्विक प्रगतियों को ध्यान में रखना।
  • प्रतिस्पर्धी आयुध भंडारों के विकास के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता निर्मित करने में मदद करना और आयुध अनुशासन को वैश्विक परिदृश्य में अग्रिम पंक्ति में रखना।
  • निकट और दूरवर्ती भविष्य, दोनों ही के लिए संग्राम गुणक हेतु उपयोगी प्रौद्योगिकीय नवोन्मेषों का आधार तैयार करना।[1]

बाह्य अनुसंधान / बौद्धिक सम्पदा अधिकार (ईआर/आईपीआर)

डीआरडीओ विविध अकादमिक संस्थानों और अपने सीमा-क्षेत्र के बाहर अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं में डीआरडीओ की सहायता अनुदान योजना के अंतर्गत बुनियादी विज्ञान/प्रयुक्त विज्ञान के क्षेत्र में नई शोध परियोजनाओं को प्रायोजित कर रहा है। ईआर/आईपीआर की संचालक समिति विविध अकादमिक संस्थानों की अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं और उद्योगों से बताए गए प्रारूप में परियोजना प्रस्ताव आमंत्रित करती है। प्रस्ताव की वैज्ञानिक एवं तकनीकी खूबियों पर आधारित समीक्षा के लिए प्रस्ताव को संबंधित डीआरडीओ प्रयोगशालाओं/अकादमिक संस्थानों/अन्य अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं में भेजा जाता है। इसके बाद यदि समीक्षक को परियोजना में किसी तरह के स्पष्टीकरण/संशोधन की आवश्यकता जान पड़ी तो समीक्षक के नाम या पते का खुलासा किए बगैर समीक्षकों की टिप्पणियां परियोजना के जांचकर्त्ताओं को अग्रसारित कर दी जाएंगी। समीक्षकों द्वारा की गई अनुकूल टिप्पणियों के आधार पर कार्यवृत्त तैयार किए जाएंगे और इसे अनुमोदन प्रदान करने/मंजूरी देने के लिए मामले को संबंधित अधिकार प्राप्त प्राधिकारी के सामने प्रस्तुत कर दिया जाएगा। शोध कार्य की प्रगति की समीक्षा डीआरडीओ द्वारा नियमित अंतराल पर की जाती है और परियोजना के जांचकर्त्ता द्वारा संचालक समिति के सामने परियोजना समीक्षा परिषद द्वारा (पीआरसी) तैयार कार्यवृत्त के साथ प्रगति की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। मंजूरी प्राप्त अनुदान से अर्जित पूंजीगत स्वभाव की परिसंपत्तियां डीआरडीओ की संपत्ति होंगी।

परियोजना के जांचकर्त्ता द्वारा परियोजना की समाप्ति पर बाह्य लेखा-परीक्षक प्राधिकारी/वैधानिक लेखा-परीक्षक द्वारा अंकेक्षित खाते, उपयोग प्रमाणपत्र और समापन रिर्पोट को दाखिल किया जाता है। इन परियोजनाओं से सृजित होने वाली बौद्धिक सम्पदा गृह संस्थान से सन्नद्ध होती है, डीआरडीओ प्रयोगशालाओं द्वारा आयोजित सीएआर परियोजनाओं की तरह नहीं जहां यह मूल प्रयोगशाला के साथ सन्नद्ध होती है। ईआर/आईपीआर की संचालक समिति विविध अकादमिक संस्थानों/अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं को डीआरडीओ / सुरक्षा के हित में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सम्मेलन/परिसंवाद/कार्यशाला/सेमिनार संगठित करने के लिए सहायक अनुदान प्रदान करती है। परियोजना के जांचकर्त्ता से परियोजना की समाप्ति पर प्राप्त होने वाली तकनीकी रिपोर्टों को उनके अध्ययन, टिप्पणी और प्रयोग के लिए संबंधित डीआरडीओ प्रयोगशालाओं में परिचालित किया जाता है।[1]

बाइक एम्बुलेंस 'रक्षिता'

भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ​के दिल्ली स्थित नामिकीय औषिध तथा संबद्ध विज्ञान संस्थान ने बाइक आधारित कैजुअल्टी ट्रांसपोर्ट इमरजेंसी वाहन ‘रक्षिता’ को एक समारोह में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल को सौंपा। यह समारोह नई दिल्ली स्थित केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के मुख्यालय में आयोजित किया गया था। डीआएडीओ के डीएस एवं डीजी डॉ. ए. के. सिंह ने 'रक्षिता' के मॉडल को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के महानिदेशक ए.पी. माहेश्वरी को सौंपा, जिसके बाद इस अवसर पर 21 बाइकों के एक दल को झंडी दिखाकर रवाना किया गया।[2]

यह बाइक एम्बुलेंस भारतीय सुरक्षा बलों और आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के सामने आने वाली समस्याओं में तत्काल मदद करेगी। यह कम तीव्र संघर्ष वाले इलाकों से घायलों को निकालने के दौरान जीवन रक्षक सहायता प्रदान करेगी। यह संकीर्ण सड़कों और दूरदराज के इलाकों के लिए उपयुक्त होगी, जहां एम्बुलेंस के माध्यम से पहुंचना मुश्किल और अधिक समय लेने वाला है। यह बाइक एम्बुलेंस अपनी कार्यक्षमता और एकीकृत आपातकालीन चिकित्सा सहायता प्रणाली के चलते चार-पहिया एम्बुलेंस की तुलना में तेजी से रोगियों के लिए एक चिकित्सा आपातकालीन आवश्यकता उपलब्ध करा सकती है।

बाइक एम्बुलेंस 'रक्षिता' में एक स्वनिर्धारित रिक्लाइनिंग कैजुअल्टी इवैक्यूएशन सीट (सीईएस) लगाई गई है, जिसे आवश्यकता के अनुसार उपयोग किया जा सकता है। 'रक्षिता' में हेड इम्मोबिलाइज़र, सुरक्षा हार्नेस जैकेट, हाथों और पैरों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा पट्टियाँ, ड्राइवर के लिए वायरलेस मॉनिटरिंग क्षमता और ऑटो चेतावनी प्रणाली के साथ फ़िज़ियोलॉजिकल पैरामीटर मापने वाले उपकरण भी अन्य प्रमुख विशेषताओं में शामिल है। घायल साथी के हाल की रियल टाइम निगरानी डैशबोर्ड पर लगे एलसीडी पर की जा सकती है। बाइक एंबुलेंस मौके पर ही स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने के लिए एयर स्प्लिंट, मेडिकल और ऑक्सीजन किट से भी लैस है। यह बाइक एम्बुलेंस न केवल अर्धसैनिक और सैन्य बलों के लिए उपयोगी है, बल्कि नागरिकों के लिए भी इसका उपयोग किया जा सकता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 1.5 रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के बारे में (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन। अभिगमन तिथि: 24 नवम्बर, 2012।
  2. DRDO ने CRPF को सौंपी मोटर बाइक एम्बुलेंस 'रक्षिता' (हिंदी) yourstory.com। अभिगमन तिथि: 19 अप्रॅल, 2022।

बाहरी कड़ियाँ

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