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शरद्वान गौतम

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शरद्वान गौतम पौराणिक धर्मग्रंथों के अनुसार घोर तपस्वी थे। कौरवों तथा पाण्डवों के कुलगुरु कृपाचार्य को इन्हीं का अंश कहा जाता है।

  • शरद्वान गौतम घोर तपस्वी थे, जिनकी गिनती उस समय के महर्षियों में की जाती थी।
  • उनकी विकट तपस्या ने इन्द्र को अत्यंत चिंता में डाल दिया था।
  • इन्द्र ने शरद्वान की तपस्या को भंग करने के लिए 'जानपदी' नामक देवकन्या को उनके आश्रम में भेजा।
  • जानपदी के सौंदर्य पर मुग्ध होकर शरद्वान गौतम का अनजाने ही वीर्यपात हो गया। वह वीर्य सरकंडे के समूह पर गिरकर दो भागों में विभक्त हो गया, जिससे एक कन्या और एक पुत्र का जन्म हुआ।
  • शरद्वान धनुर्वेत्ता थे। वे धनुष बाण तथा काला मृगचर्म वहीं छोड़कर कहीं चले गये।
  • शिकार खेलते हुए हस्तिनापुर के महाराज शांतनु को वे शिशु प्राप्त हुए। उन दोनों का नाम 'कृपि' और 'कृप' रखकर शांतनु ने उनका लालन-पालन किया।
  • अपने पिता के ही सदृश कृपाचार्य भी परम धनुर्धर हुए। शरद्वान गौतम ने गुप्त रूप से उनको धनुर्विद्या सिखायी थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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