राग सारंग
सुण लीजो[1] बिनती मोरी, मैं शरण गही प्रभु तेरी।
तुम (तो) पतित अनेक उधारे, भवसागर से तारे॥
मैं सबका तो नाम[2] न जानूं, कोई कोई नाम उचारे।
अम्बरीष सुदामा नामा, तुम पहुंचाये निज धामा॥
ध्रुव जो पांच वर्ष के बालक, तुम दरस दिये घनस्यामा।
धना भक्त का खेत जमाया, कबिरा का बैल चराया[3]॥
सबरी का जूंठा फल खाया, तुम काज किये मनभाया[4]।
सदना औ सेना नाई को तुम कीन्हा अपनाई॥
करमा[5] की खिचड़ी खाई, तुम गणिका पार लगाई।
मीरां प्रभु तुरे रंगराती या जानत सब दुनियाई॥