हम जुवती, पति गेलाह बिदेस, लग नहि बसए पड़उसिहु लेस ! सासु ननन्द किछुआओ नहि जान, आँखि रतौन्धी, सुनए न कान ! जागह पथिक, जाह जनु भोर , राति अन्धार, गाम बड़ चोर सपनेहु भाओर न देअ कोटबार, पओलेहु लोते न करए बिचार ! नृप इथि काहु करथि नहि साति , पुरख महत सब हमर सजाति ! विद्यापति कवि एह रस गाब , उकुतिहि भाव जनाब !