https://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/api.php?action=feedcontributions&user=%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A3%E0%A5%81&feedformat=atomBharatkosh - सदस्य योगदान [hi]2024-03-28T21:52:34Zसदस्य योगदानMediaWiki 1.35.6https://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0&diff=298454बिल्वेश्वर2012-10-14T11:51:03Z<p>रेणु: </p>
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<div>'''बिल्वेश्वर''' [[गुजरात]] के शहर [[काठियावाड़]] में स्थित है। <br />
*इस स्थान पर पहुंचने के लिए [[पोरबंदर]] से 17 मील दूर साखूपुर से मार्ग जाता है। <br />
*यह तीर्थ महाभारतकालीन बताया जाता है तथा किंवदंती के अनुसार [[श्रीकृष्ण]] ने यहाँ [[शिव]] की अराधना की थी।<br />
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<div>'''बिल्वेश्वर''' [[काठियावाड़]], [[गुजरात]] में स्थित है। <br />
*इस स्थान पर पहुंचने के लिए [[पोरबंदर]] से 17 मील दूर साखूपुर से मार्ग जाता है। <br />
*यह तीर्थ महाभारतकालीन बताया जाता है तथा किंवदंती के अनुसार [[श्रीकृष्ण]] ने यहाँ [[शिव]] की अराधना की थी।<br />
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
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<div>'''बिल्वेश्वर''' [[काठियावाड़]], [[गुजरात]] में स्थित है। <br />
*इस स्थान पर पहुंचने के लिए [[पोरबंदर]] से 17 मील दूर साखूपुर से मार्ग जाता है। <br />
*यह तीर्थ महाभारतकालीन बताया जाता है तथा किंवदंती के अनुसार [[श्रीकृष्ण]] ने यहाँ [[शिव]] की अराधना की थी।<br />
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
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<hr />
<div>[[चित्र:Dwarkadhish-Temple-Dwarka-Gujarat-1.jpg|thumb|[[द्वारिकाधीश मंदिर द्वारिका|द्वारिकाधीश मन्दिर]], द्वारका, [[गुजरात]]]]<br />
'''द्वारका''' दक्षिण-पश्चिम [[गुजरात]] राज्य, पश्चिम-मध्य भारत का प्रसिद्ध नगर है। यह [[काठियावाड़]] [[प्रायद्वीप]] के छोटे पश्चिमी विस्तार, ओखामंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर स्थित है। द्वारका कई द्वारों का शहर ([[संस्कृत]] में द्वारका या द्वारवती) को जगत या जिगत के रूप में भी जाना जाता है। द्वारका भगवान [[कृष्ण]] की पौराणिक राजधानी थी, जिन्होंने [[मथुरा]] से पलायन के बाद इसकी स्थापना की थी। इसकी पवित्रता के कारण यह [[सप्त पुरियां|सात प्रमुख हिंदु तीर्थस्थलों]] में से एक है, हालांकि इस नगर के मूल मंदिरों को 1372 में [[दिल्ली]] के शासकों ने नष्ट कर दिया था। नगर का अधिकार राजस्व तीर्थयात्रियों से मिलता है; [[ज्वार]]-[[बाजरा]], [[घी]], [[तिलहन]] और [[नमक]] यहां के बंदरगाह से जहाज़ों द्वारा भेजे जाते हैं। वस्तुत: द्वारका दो हैं-<br />
#गोमती द्वारका<br />
#बेट द्वारका, गोमती द्वारका धाम है, बेट द्वारका पुरी है। बेट द्वारका के लिए समुद्र मार्ग से जाना पड़ता है।<br />
मान्यता है कि द्वारका को [[श्रीकृष्ण]] ने बसाया था और [[मथुरा]] से यदुवंशियों को लाकर इस संपन्न नगर को उनकी राजधानी बनाया था, किंतु उस वैभव के कोई चिह्न अब नहीं दिखाई देते। कहते हैं, यहाँ जो राज्य स्थापित किया गया उसका राज्यकाल मुख्य भूमि में स्थित द्वारका अर्थात गोमती द्वारका से चलता था। बेट द्वारका रहने का स्थान था। (यहाँ समुद्र में ज्वार के समय एक तालाब पानी से भर जाता है। उसे गोमती कहते हैं। इसी कारण द्वारका गोमती द्वारका भी कहलाती है)। यह [[भारत]] की सात पवित्र पुरियों में से एक हैं, जिनकी सूची निम्नांकित है:<br /><br />
<blockquote>[[अयोध्या]] [[मथुरा]] माया [[काशी]] काशी अवन्तिका।<br /><br />
पुरी द्वारवती जैव सप्तैता मोक्षदायिका:॥</blockquote><br />
==कुशस्थली==<br />
*गुजरात का द्वारका शहर वह स्थान है जहाँ 5000 वर्ष पूर्व [[कृष्ण|भगवान कृष्ण]] ने मथुरा छोड़ने के बाद द्वारका नगरी बसाई थी। जिस स्थान पर उनका निजी महल 'हरि गृह' था। वहाँ आज प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर है। इसलिए कृष्ण भक्तों की दृष्टि में यह एक महान तीर्थ है। <br />
*द्वारका का प्राचीन नाम है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर [[यज्ञ]] करने के कारण ही इस नगरी का नाम [[कुशस्थली, द्वारका|कुशस्थली]] हुआ था। बाद में त्रिविक्रम भगवान ने कुश नामक दानव का वध भी यहीं किया था। त्रिविक्रम का मंदिर द्वारका में रणछोड़जी के मंदिर के निकट है। ऐसा जान पड़ता है कि महाराज रैवतक ([[बलराम]] की पत्नी [[रेवती (बलराम की पत्नी)|रेवती]] के पिता) ने प्रथम बार, समुद्र में से कुछ भूमि बाहर निकाल कर यह नगरी बसाई होगी। <br />
{{दाँयाबक्सा|पाठ=मान्यता है कि द्वारका को [[श्रीकृष्ण]] ने बसाया था और [[मथुरा]] से यदुवंशियों को लाकर इस संपन्न नगर को उनकी राजधानी बनाया था, किंतु उस वैभव के कोई चिह्न अब नहीं दिखाई देते। |विचारक=}} <br />
*[[हरिवंश पुराण]] <ref>हरिवंश पुराण 1,11,4</ref> के अनुसार [[कुशस्थली, द्वारका|कुशस्थली]] उस प्रदेश का नाम था जहां यादवों ने द्वारका बसाई थी। <br />
*[[विष्णु पुराण]] के अनुसार,<ref>'आनर्तस्यापि रेवतनामा पुत्रोजज्ञे योऽसावानर्तविषयं बुभुजे पुरीं च कुशस्थलीमध्युवास' विष्णु पुराण 4,1,64.</ref> आनर्त के रेवत नामक पुत्र हुआ जिसने कुशस्थली नामक पुरी में रह कर [[आनर्त]] पर राज्य किया। विष्णु पुराण <ref>विष्णु पुराण 4,1,91</ref> से सूचित होता है कि प्राचीन कुशावती के स्थान पर ही श्रीकृष्ण ने द्वारका बसाई थी। <br />
<blockquote>'कुशस्थली या तव भूप रम्या पुरी पुराभूदमरावतीव, सा द्वारका संप्रति तत्र चास्ते स केशवांशो बलदेवनामा'।</blockquote><br />
*कुशावती का अन्य नाम कुशावर्त भी है। एक प्राचीन किंवदंती में द्वारका का संबंध 'पुण्यजनों' से बताया गया है। ये 'पुण्यजन' वैदिक 'पणिक' या 'पणि' हो सकते हैं। अनेक विद्वानों का मत है कि पणिक या पणि प्राचीन ग्रीस के फिनीशियनों का ही भारतीय नाम था। ये लोग अपने को कुश की संतान मानते थे<ref>वेडल-मेकर्स आव सिविलीजेशन, पृ0 80</ref>। इस प्रकार कुशस्थली या कुशावर्त नाम बहुत प्राचीन सिद्ध होता है। [[पुराण|पुराणों]] के वंशवृत्त में शार्यातों के मूल पुरुष शर्याति की राजधानी भी कुशस्थली बताई गई है। <br />
*महाभारत, <ref>महाभारत सभा पर्व 14,50</ref> के अनुसार कुशस्थली [[रैवतक|रैवतक पर्वत]] से घिरी हुई थी-'कुशस्थली पुरी रम्या रैवतेनोपशोभितम्'। [[जरासंध]] के आक्रमण से बचने के लिए श्रीकृष्ण मथुरा से कुशस्थली आ गए थे और यहीं उन्होंने नई नगरी द्वारका बसाई थी। पुरी की रक्षा के लिए उन्होंने अभेद्य दुर्ग की रचना की थी जहाँ रह कर स्त्रियां भी युद्ध कर सकती थीं। <br />
<blockquote>'तथैव दुर्गसंस्कारं देवैरपि दुरासदम्, स्त्रियोऽपियस्यां युध्येयु: किमु वृष्णिमहारथा:'।<ref>महाभारत, सभा पर्व 14,51</ref></blockquote><br />
* भगवान [[कृष्ण]] के जीवन से सम्बन्ध होने के कारण इसका विशेष महत्त्व है। [[महाभारत]] के वर्णनानुसार कृष्ण का जन्म [[मथुरा]] में [[कंस]] तथा दूसरे दैत्यों के वध के लिए हुआ। इस कार्य को पूरा करने के पश्चात वे द्वारका ([[काठियावाड़]]) चले गये। आज भी गुजरात में स्मार्त ढंग की कृष्णभक्ति प्रचलित है। यहाँ के दो प्रसिद्ध मन्दिर 'रणछोड़राय' के हैं, अर्थात् उस व्यक्ति से सम्बन्धित हैं जिसने ऋण (कर्ज) छुड़ा दिया। इसमें [[जरासंध]] से भय से कृष्ण द्वारा मथुरा छोड़कर द्वारका भाग जाने का अर्थ भी निहित है। किन्तु वास्तव में 'बोढाणा' भक्त की प्रीति से कृष्ण का द्वारका से [[डाकौर]] चुपके से चला आना और पंडों के प्रति भक्त का ऋण चुकाना- यह भाव संनिहित है। ये दोनों मन्दिर डाकौर (अहमदाबाद के समीप) तथा द्वारका में हैं। दोनों में वैदिक नियमानुसार ही यज्ञ आदि किये जाते हैं।<br />
* तीर्थयात्रा में यहाँ आकर गोपीचन्दन लगाने का विशेष महत्त्व समझा जाता है। यह आगे चलकर कृष्ण के नेतृत्व में यादवों की राजधानी हो गयी थी। यह चारों धामों में एक धाम भी है। कृष्ण के अन्तर्धान होने के पश्चात प्राचीन द्वारकापुरी समुद्र में डूब गयी। केवल भगवान का मन्दिर समुद्र ने नहीं डुबोया। यह नगरी [[सौराष्ट्र]] ([[काठियावाड़]]) में पश्चिमी समुद्रतट पर स्थित है।<br />
====विशेषता====<br />
यहाँ के विशाल भवन [[सूर्य]] और [[चंद्रमा]] के समान प्रकाशवान् तथा मेरू के समान उच्च थे। नगरी के चतुर्दिक चौड़ी खाइयां थीं जो [[गंगा नदी|गंगा]] और [[सिन्धु नदी|सिंधु]] के समान जान पड़ती थीं और जिनके जल में [[कमल]] के पुष्प खिले थे तथा हंस आदि पक्षी क्रीड़ा करते थे<ref>'पद्यषंडाकुलाभिश्च हंससेवितवारिभि: गंगासिंधुप्रकाशाभि: परिखाभिरंलंकृता महाभारत सभा पर्व 38</ref>। सूर्य के समान प्रकाशित होने वाला एक परकोटा नगरी को सुशोभित करता था जिससे वह श्वेत मेघों से घिरे हुए आकाश के समान दिखाई देती थी <ref>'प्राकारेणार्कवर्णेन पांडरेण विराजिता, वियन् मूर्घिनिविष्टेन द्योरिवाभ्रपरिच्छदा' महाभारत सभा पर्व 38</ref>। रमणीय द्वारकापुरी की पूर्वदिशा में महाकाय रैवतक नामक पर्वत (वर्तमान गिरनार) उसके आभूषण के समान अपने शिखरों सहित सुशोभित होता था <ref>'भाति रैवतक: शैलो रम्यसनुर्महाजिर:, पूर्वस्यां दिशिरम्यायां द्वारकायां विभूषणम्'महाभारत सभा पर्व 38</ref>। नगरी के दक्षिण में लतावेष्ट, पश्चिम में सुकक्ष और उत्तर में वेष्णुमंत पर्वत स्थित थे और इन पर्वतों के चतुर्दिक् अनेक उद्यान थे। महानगरी द्वारका के पचास प्रवेश द्वार थे- <ref>'महापुरी द्वारवतीं पंचाशद्भिर्मुखै र्युताम्' महाभारत सभा पर्व 38</ref>। शायद इन्हीं बहुसंख्यक द्वारों के कारण पुरी का नाम द्वारका या द्वारवती था। पुरी चारों ओर गंभीर सागर से घिरी हुई थी। सुन्दर प्रासादों से भरी हुई द्वारका श्वेत अटारियों से सुशोभित थी। तीक्ष्ण यन्त्र, शतघ्नियां , अनेक यन्त्रजाल और लौहचक्र द्वारका की रक्षा करते थे-<ref>'तीक्ष्णयन्त्रशतघ्नीभिर्यन्त्रजालै: समन्वितां आयसैश्च महाचक्रैर्ददर्श। महाभारत सभा पर्व 38</ref>। द्वारका की लम्बाई बारह योजना तथा चौड़ाई आठ [[योजन]] थी तथा उसका उपनिवेश (उपनगर) परिमाण में इसका द्विगुण था <ref>'अष्ट योजन विस्तीर्णामचलां द्वादशायताम् द्विगुणोपनिवेशांच ददर्श द्वारकांपुरीम्'महाभारत सभा पर्व 38</ref>। द्वारका के आठ राजमार्ग और सोलह चौराहे थे जिन्हें शुक्राचार्य की नीति के अनुसार बनाया गया था।<ref> ('अष्टमार्गां महाकक्ष्यां महाषोडशचत्वराम् एव मार्गपरिक्षिप्तां साक्षादुशनसाकृताम्'महाभारत [[सभा पर्व महाभारत|सभा पर्व]] 38)</ref> द्वारका के भवन मणि, स्वर्ण, वैदूर्य तथा संगमरमर आदि से निर्मित थे। श्रीकृष्ण का राजप्रासाद चार योजन लंबा-चौड़ा था, वह प्रासादों तथा क्रीड़ापर्वतों से संपन्न था। उसे साक्षात् विश्वकर्मा ने बनाया था <ref>'साक्षाद् भगवतों वेश्म विहिंत विश्वकर्मणा, ददृशुर्देवदेवस्य-चतुर्योजनमायतम्, तावदेव च विस्तीर्णमप्रेमयं महाधनै:, प्रासादवरसंपन्नं युक्तं जगति पर्वतै:'</ref>। श्रीकृष्ण के स्वर्गारोहण के पश्चात समग्र द्वारका, श्रीकृष्ण का भवन छोड़कर समुद्रसात हो गयी थी जैसा कि [[विष्णु पुराण]] के इस उल्लेख से सिद्ध होता है-<br />
<blockquote>'प्लावयामास तां शून्यां द्वारकां च महोदधि: वासुदेवगृहं त्वेकं न प्लावयति सागर:,<ref>विष्णु. 5,38,9</ref></blockquote><br />
<br />
==पर्यटन स्थल==<br />
द्वारका के पर्यटन स्थलों में जगत मंदिर; 48मीटर ऊंचा खूब नक़्क़ाशीदार मीनार वाला पांच मंज़िला प्राचीन मंदिर 32 किमी दूर [[शंखोद्वार]] द्वीप में प्रसिद्ध रणछोड़रायजी मंदिर एवं मत्स्यवतार मंदिर; गोपी झील तथा द्वारिकावन शामिल है। द्वारिका में व्यापक रूप से सीमेंट का काम होता है। <br />
====मोक्ष तीर्थ====<br />
{{Main|मोक्ष तीर्थ, द्वारका}}<br />
[[चित्र:Nageshwar-Mahadev-Gujarat-1.jpg|thumb|नंगेश्वर महादेव, द्वारका, [[गुजरात]]]]<br />
हिन्दुओं के चार धामों में से एक गुजरात की द्वारिकापुरी मोक्ष तीर्थ के रूप में जानी जाती है। पूर्णावतार [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के आदेश पर [[विश्वकर्मा]] ने इस नगरी का निर्माण किया था। श्रीकृष्ण ने मथुरा से सब यादवों को लाकर द्वारका में बसाया था। [[महाभारत]] में द्वारका का विस्तृत वर्णन है जिसका कुछ अंश इस प्रकार है-द्वारका के मुख्य द्वार का नाम वर्धमान था<ref>'वर्धमानपुरद्वारमाससाद पुरोत्तमम्' महाभारत सभा पर्व 38</ref>। नगरी के सब ओर सुन्दर उद्यानों में रमणीय वृक्ष शोभायमान थे, जिनमें नाना प्रकार के फल-फूल लगे थे। <br />
====द्वारिकाधीश मंदिर====<br />
{{Main|द्वारिकाधीश मंदिर द्वारिका}}<br />
[[चित्र:Dwarkadhish-Temple-Dwarka-Gujarat-2.jpg|thumb|[[द्वारिकाधीश मंदिर द्वारका|द्वारिकाधीश मन्दिर]], द्वारका, [[गुजरात]]<br /> Dwarkadhish Temple, Dwarka, Gujarat]]<br />
द्वारिकाधीश मंदिर कांकरोली में राजसमन्द झील के किनारे पाल पर स्थित है। [[मेवाड़]] के चार धाम में से एक द्वारिकाधीश मंदिर भी आता है, द्वारिकाधीश काफ़ी समय पूर्व संवत 1726-27 में यहाँ [[ब्रज]] से कांकरोली पधारे थे। मंदिर सात मंज़िला है। भीतर चांदी के सिंहासन पर काले पत्थर की श्रीकृष्ण की चतुर्भुजी मूर्ति है। कहते हैं, यह मूल मूर्ति नहीं है। मूल मूर्ति डाकोर में है। द्वारिकाधीश मंदिर से लगभग 2 किमी दूर एकांत में रुक्मिणी का मंदिर है। कहते हैं, दुर्वासा के शाप के कारण उन्हें एकांत में रहना पड़ा। कहा जाता है कि उस समय [[भारत]] में बाहर से आए आक्रमणकारियों का सर्वत्र भय व्याप्त था, क्योंकि वे आक्रमणकारी न सिर्फ़ मंदिरों कि अतुल धन संपदा को लूट लेते थे बल्कि उन भव्य मंदिरों व मूर्तियों को भी तोड कर नष्ट कर देते थे। तब मेवाड यहाँ के पराक्रमी व निर्भीक राजाओं के लिये प्रसिद्ध था। सर्वप्रथम प्रभु द्वारिकाधीश को आसोटिया के समीप देवल मंगरी पर एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया, तत्पश्चात उन्हें कांकरोली के इस भव्य मंदिर में बड़े उत्साहपूर्वक लाया गया। आज भी द्वारका की महिमा है। यह चार धामों में एक है। सात पुरियों में एक पुरी है। इसकी सुन्दरता बखानी नहीं जाती। समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरें उठती है और इसके किनारों को इस तरह धोती है, जैसे इसके पैर पखार रही हों। पहले तो [[मथुरा]] ही कृष्ण की राजधानी थी। पर मथुरा उन्होंने छोड़ दी और द्वारका बसाई। द्वारका एक छोटा-सा-कस्बा है। कस्बे के एक हिस्से के चारों ओर चहारदीवारी खिंची है इसके भीतर ही सारे बड़े-बड़े मन्दिर है। द्वारका के दक्षिण में एक लम्बा ताल है। इसे गोमती तालाब कहते हैं। द्वारका में द्वारकाधीश मंदिर के निकट ही [[आदि शंकराचार्य]] द्वारा देश में स्थापित चार मठों में से एक मठ भी है।<br />
====नागेश्वर ज्योतिर्लिंग====<br />
{{Main|नागेश्वर ज्योतिर्लिंग}}<br />
[[चित्र:Nageshwar-Temple.jpg|thumb|250px|[[नागेश्वर ज्योतिर्लिंग|नागेश्वर मन्दिर]], द्वारका, [[गुजरात]]]]<br />
श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग [[गुजरात]] प्रान्त के द्वारकापुरी से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। यह स्थान गोमती द्वारका से बेट द्वारका जाते समय रास्ते में ही पड़ता है। द्वारका से नागेश्वर-मन्दिर के लिए बस,टैक्सी आदि सड़क मार्ग के अच्छे साधन उपलब्ध होते हैं। रेलमार्ग में [[राजकोट]] से [[जामनगर]] और जामनगर रेलवे से द्वारका पहुँचा जाता है। <br />
====रणछोड़ जी मंदिर====<br />
{{Main|रणछोड़ जी मंदिर, द्वारका}}<br />
कहा जाता है कृष्ण के भवन के स्थान पर ही रणछोड़ जी का मूल मंदिर है। यह परकोटे के अंदर घिरा हुआ है और सात-मंज़िला है। इसके उच्चशिखर पर संभवत: संसार की सबसे विशाल ध्वजा लहराती है। यह ध्वजा पूरे एक थान कपड़े से बनती है। द्वारकापुरी [[महाभारत]] के समय तक तीर्थों में परिगणित नहीं थी। <br />
*जैन सूत्र अंतकृतदशांग में द्वारवती के 12 योजन लंबे, 9 योजन चौड़े विस्तार का उल्लेख है तथा इसे कुबेर द्वारा निर्मित बताया गया है और इसके वैभव और सौंदर्य के कारण इसकी तुलना अलका से की गई है। रैवतक पर्वत को नगर के उत्तरपूर्व में स्थित बताया गया है। पर्वत के शिखर पर नंदन-वन का उल्लेख है। <br />
*[[भागवत पुराण|श्रीमद् भागवत]] में भी द्वारका का महाभारत से मिलता जुलता वर्णन है। इसमें भी द्वारका को 12 [[योजन]] के परिमाण का कहा गया है तथा इसे यंत्रों द्वारा सुरक्षित तथा उद्यानों, विस्तीर्ण मार्गों एवं ऊंची अट्टालिकाओं से विभूषित बताया गया है,<ref> 'इति संमन्त्र्य भगवान दुर्ग द्वादशयोजनम्, अंत: समुद्रेनगरं कृत्स्नाद्भुतमचीकरत्। दृश्यते यत्र हि त्वाष्ट्रं विज्ञानं शिल्प नैपुणम् , रथ्याचत्वरवीथीभियथावास्तु विनिर्मितम्। सुरद्रुमलतोद्यानविचत्रोपवनान्वितम्, हेमश्रृंगै र्दिविस्पृग्भि: स्फाटिकाट्टालगोपुरै:' श्रीमद्भागवत 10,50, 50-52</ref>। <br />
<br />
{{लेख प्रगति <br />
|आधार=<br />
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 <br />
|माध्यमिक= <br />
|पूर्णता= <br />
|शोध=<br />
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<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== <br />
<references/> <br />
==संबंधित लेख==<br />
{{सप्तपुरी}}{{कृष्ण}}{{गुजरात के पर्यटन स्थल}}{{कृष्ण2}}<br />
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]<br />
[[Category:पर्यटन कोश]] <br />
[[Category:ऐतिहासिक स्थल]] <br />
[[Category:गुजरात के धार्मिक स्थल]]<br />
[[Category:गुजरात के पर्यटन स्थल]]<br />
[[Category:गुजरात के ऐतिहासिक स्थान]]<br />
__INDEX__<br />
__NOTOC__<br />
{{सुलेख}}</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%9C%E0%A4%A0%E0%A4%B0_%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6&diff=294757जठर देश2012-09-27T06:05:35Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>'''जठर देश''' का उल्लेख [[विष्णु पुराण]]<ref>[[विष्णु पुराण]] 2, 2, 29</ref> में हुआ है-<br />
<br />
<blockquote>'मेरोरनन्तरांगेषु जठरादिष्ववस्थिता: शंखकूटाऽथ ऋषभो हंसो नागस्तथापर: कालंजाद्याश्च तथा उत्तरकेसराचला:'</blockquote><br />
<br />
अर्थात "मेरु के अति समीप और जठर आदि देशों में स्थित [[शंखकूट]], ऋषभ, हंस, नाग और कलंज आदि [[पर्वत]] उत्तर दिशा के केसराचल हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=354|url=}}</ref><br />
<br />
*यदि [[मेरु पर्वत|मेरु]] या सुमेरु को उत्तरी ध्रुव का प्रदेश माना जाए तो जठर को वर्तमान साइबेरिया में स्थित मानना चाहिए। किंतु [[विष्णु पुराण]] का यह वर्णन बहुत अंशों में काल्पनिक जान पड़ता है।<br />
*जठर नामक पर्वत का भी उल्लेख विष्णु पुराण<ref>विष्णु पुराण 2, 2, 20</ref> में है-<br />
<blockquote>'जठरो देवकूटश्च मर्यादा पर्वतावुभौ तौ दक्षिणोत्तरायामावानील निषधायतौ।'</blockquote><br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
==संबंधित लेख==<br />
{{पौराणिक स्थान}}<br />
[[Category:पौराणिक स्थान]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:विदेशी स्थान]]<br />
__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2&diff=294756अरवाल2012-09-27T05:58:12Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>'''अरवाल''' सरोवर का उल्लेख [[महावंश]]<ref>[[महावंश]] 12-9-11</ref> में है। <br />
*अरवाल का अभिज्ञान [[मंडी ज़िला|ज़िला मंडी]] ([[हिमाचल प्रदेश]]) में स्थित [[रवालसर]] के साथ किया गया है। <br />
*महावंश के वर्णन के अनुसार मुज्झन्तिक स्थविर ने इस सरोवर के निकट रहने वाले एक क्रूर नागराज का गर्व चूर किया था। <br />
*सरोवर की स्थिति [[कश्मीर]]-[[गंधार]] देश में बताई गई है। <br />
<br />
{{संदर्भ ग्रंथ}}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
==बाहरी कड़ियाँ==<br />
==संबंधित लेख==<br />
{{हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}<br />
[[Category:हिमाचल प्रदेश]]<br />
[[Category:हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]]<br />
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]<br />
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__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%9A%E0%A4%BE:%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%81&diff=294535साँचा:भारत की नदियाँ2012-09-26T07:28:19Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>{{Navbox<br />
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}}<noinclude>[[Category:भूगोल के साँचे]]<references/></noinclude></div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A5%80_%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80&diff=294534शरावती नदी2012-09-26T07:27:47Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>*शरावती नदी ज़िला शिभोगा में स्थित अबंतीर्थ नामक स्थान से निस्सृत हुई है। <br />
*कहा जाता है कि यह सरिता [[श्रीराम]] के बाण मारने से प्रकट हुई थी। <br />
*प्रसिद्ध जोग प्रपात इसी नदी में है। <br />
*अमरकोश<ref>अमरकोश 1,10,34</ref> में शरावती नामोलेख है-‘शरावती वेत्रवती चान्द्रभगं सरस्वती’। <br />
*[[महाभारत]], [[भीष्मपर्व महाभारत|भीष्मपर्व]]<ref>भीष्मपर्व 9,20</ref> में इसका पग्रोप्णी ([[ताप्ती नदी|ताप्ती]]), वेणा (पेन गंगा), भीमरथी ([[भीमा नदी|भीमा]]) और [[कावेरी नदी|कावेरी]] के साथ वर्णन है- ‘शरावती सयोप्णीं च वेणां भीमरथीमपि, कावेरी चुलुकां दापि वाणी शतबलाभपि’। <br />
*शरावती का झरना जोग प्राप्त या जेरुसोप्पा शिसोगा से 62 मील दूर है। <br />
*इस जगप्रसिद्ध झरने की ऊंचाई 830 फुट है। <br />
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{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
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==बाहरी कड़ियाँ==<br />
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==संबंधित लेख==<br />
{{भारत की नदियाँ}}<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:भारत की नदियाँ]]<br />
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__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A5%80_%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80&diff=294533शरावती नदी2012-09-26T07:26:12Z<p>रेणु: द्वारावली का नाम बदलकर शरावती नदी कर दिया गया है</p>
<hr />
<div>*शरावती नदी ज़िला शिभोगा में स्थित अबंतीर्थ नामक स्थान से निस्सृत हुई है। <br />
*कहा जाता है कि यह सरिता [[श्रीराम]] के बाण मारने से प्रकट हुई थी। <br />
*प्रसिद्ध जोग प्रपात इसी नदी में है। <br />
*अमरकोश<ref>अमरकोश 1,10,34</ref> में शरावती नामोलेख है-‘शरावती वेत्रवती चान्द्रभगं सरस्वती’। <br />
*[[महाभारत]], [[भीष्मपर्व महाभारत|भीष्मपर्व]]<ref>भीष्मपर्व 9,20</ref> में इसका पग्रोप्णी ([[ताप्ती नदी|ताप्ती]]), वेणा (पेन गंगा), भीमरथी ([[भीमा नदी|भीमा]]) और [[कावेरी नदी|कावेरी]] के साथ वर्णन है- ‘शरावती सयोप्णीं च वेणां भीमरथीमपि, कावेरी चुलुकां दापि वाणी शतबलाभपि’। <br />
*शरावती का झरना जोग प्राप्त या जेरुसोप्पा शिसोगा से 62 मील दूर है। <br />
*इस जगप्रसिद्ध झरने की ऊंचाई 830 फुट है। <br />
<br />
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{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
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==बाहरी कड़ियाँ==<br />
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==संबंधित लेख==<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:नया पन्ना सितम्बर-2012]]<br />
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__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%A4%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%83%E0%A4%82%E0%A4%97_%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4&diff=294532शतश्रृंग पर्वत2012-09-26T07:24:44Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>'''शतश्रृंग''' [[हिमालय]] के उत्तर में स्थित पर्वत है जहाँ [[महाभारत]] के अनुसार महाराज [[पांडु]], [[माद्री]] और [[कुंती]] के साथ जाकर रहने लगे थे। <br />
*यहीं पांचो पांडवों की देवताओं के आह्वन द्वारा उत्पत्ति हुई शतश्रंग तक पहुंचने में पांडु को चैवरथ कालकूट और हिमालय को पार करने के बाद गंधमादन, इंदुद्युम्न सर तथा हंसकूट के उत्तर में जाना पड़ा था -‘स चैत्ररथमासाद्य कालकूटमतीत्य च हिमंवन्तमतिक्रम्य प्रययौ गंधमादनम्। <br />
रक्ष्याभाणो महाभूतैः सिद्धैश्च परमर्षिभिः उवास स महाराज तापसः समतप्यत’।<ref>महाभारत, [[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]] 118,48.49-50</ref> <br />
*शतश्रृंग निवासियों को पांडु के पांचों पुत्रों से बड़ा प्रेम था -<br />
‘मुदं परमिकां लेभे ननन्द च नराधिपः ऋषाणामपि सर्वेषां शतश्रंगनिवासिनाम्’।<ref>आदिपर्व 122,124</ref> <br />
*यहीं किसी असंयम के कारण और किसी ऋषि के शाप के कारण पांडु की मृत्यु हुई थी और उनका अंतिम संस्कार शतश्रंग निवासियों को ही करना पड़ा था-<br />
‘अर्हतस्तस्य कृत्यानि शतश्रृंरंगनिवासिनः, तापसा विधियवच्चक्रुश्चारणाऋषिभिः सह’<ref>महाभारत आदिपर्व 124,1 से आगे दाक्षिणात्य पाठ</ref> <br />
*प्रसंगानुसार यह पर्वत हिमालय की उत्तरी श्रृंखला में स्थित जान पड़ता है। <br />
*यहां से [[हस्तिनापुर]] तक के मार्ग को महाभारत में बहुत लम्बा बताया है -<br />
‘प्रपन्न दीर्घपध्बानं संक्षिप्तं तदमन्यत’।<ref> आदिपर्व 125,8</ref><br />
<br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
==बाहरी कड़ियाँ==<br />
==संबंधित लेख==<br />
{{महाभारत}}<br />
[[Category:महाभारत]]<br />
[[Category:पौराणिक कोश]]<br />
[[Category:पौराणिक स्थान]]<br />
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__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE:%E0%A4%B6%E0%A4%A4%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97_%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4&diff=294531वार्ता:शतश्रंग पर्वत2012-09-26T07:21:28Z<p>रेणु: वार्ता:शतश्रंग पर्वत का नाम बदलकर वार्ता:शतश्रृंग पर्वत कर दिया गया है</p>
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<div>'''शतश्रंग''' [[हिमालय]] के उत्तर में स्थित पर्वत है जहाँ [[महाभारत]] के अनुसार महाराज [[पांडु]], [[माद्री]] और [[कुंती]] के साथ जाकर रहने लगे थे। <br />
*यहीं पांचो पांडवों की देवताओं के आह्वन द्वारा उत्पत्ति हुई शतश्रंग तक पहुंचने में पांडु को चैवरथ कालकूट और हिमालय को पार करने के बाद गंधमादन, इंदुद्युम्न सर तथा हंसकूट के उत्तर में जाना पड़ा था -‘स चैत्ररथमासाद्य कालकूटमतीत्य च हिमंवन्तमतिक्रम्य प्रययौ गंधमादनम्। <br />
रक्ष्याभाणो महाभूतैः सिद्धैश्च परमर्षिभिः उवास स महाराज तापसः समतप्यत’।<ref>महाभारत, [[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]] 118,48.49-50</ref> <br />
*शतश्रंग निवासियों को पांडु के पांचों पुत्रों से बड़ा प्रेम था -<br />
‘मुदं परमिकां लेभे ननन्द च नराधिपः ऋषाणामपि सर्वेषां शतश्रंगनिवासिनाम्’।<ref>आदिपर्व 122,124</ref> <br />
*यहीं किसी असंयम के कारण और किसी ऋषि के शाप के कारण पांडु की मृत्यु हुई थी और उनका अंतिम संस्कार शतश्रंग निवासियों को ही करना पड़ा था-<br />
‘अर्हतस्तस्य कृत्यानि शतश्रंगनिवासिनः, तापसा विधियवच्चक्रुश्चारणाऋषिभिः सह’<ref>महाभारत आदिपर्व 124,1 से आगे दाक्षिणात्य पाठ</ref> <br />
*प्रसंगानुसार यह पर्वत हिमालय की उत्तरी श्रृंखला में स्थित जान पड़ता है। <br />
*यहां से [[हस्तिनापुर]] तक के मार्ग को महाभारत में बहुत लम्बा बताया है -<br />
‘प्रपन्न दीर्घपध्बानं संक्षिप्तं तदमन्यत’।<ref> आदिपर्व 125,8</ref><br />
<br />
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{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
==बाहरी कड़ियाँ==<br />
==संबंधित लेख==<br />
{{महाभारत}}<br />
[[Category:महाभारत]]<br />
[[Category:पौराणिक कोश]]<br />
[[Category:पौराणिक स्थान]]<br />
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__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%9A%E0%A4%BE:%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%81&diff=294328साँचा:भारत की नदियाँ2012-09-25T06:35:01Z<p>रेणु: </p>
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<div>{{Navbox<br />
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}}<noinclude>[[Category:भूगोल के साँचे]]<references/></noinclude></div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A5%80&diff=294327शशिमती2012-09-25T06:34:37Z<p>रेणु: शशिमती का नाम बदलकर शशिमती नदी कर दिया गया है</p>
<hr />
<div>#REDIRECT [[शशिमती नदी]]</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A5%80_%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80&diff=294326शशिमती नदी2012-09-25T06:34:37Z<p>रेणु: शशिमती का नाम बदलकर शशिमती नदी कर दिया गया है</p>
<hr />
<div>*शशिमती नदी [[गुजरात]] राज्य के [[सौराष्ट्र]] में है ।<br />
*हालार प्रदेश में प्रवाहित होने वाली नदी जिसे अब ससोई कहते है। <br />
*ससोई शशिमती का अपभ्रंश है। <br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
<br />
==बाहरी कड़ियाँ==<br />
<br />
==संबंधित लेख==<br />
{{भारत की नदियाँ}}<br />
[[Category:गुजरात]]<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:भारत की नदियाँ]]<br />
__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0&diff=294325सौराष्ट्र2012-09-25T06:33:15Z<p>रेणु: /* सौराष्ट्र के नाम */</p>
<hr />
<div>सौराष्ट्र, वर्तमान [[काठियावाड़]]-प्रदेश, जो प्रायद्वीपीय क्षेत्र है। [[महाभारत]] के समय द्वारिकापुरी इसी क्षेत्र में स्थित थी। सुराष्ट्र या सौराष्ट्र को [[सहदेव]] ने अपनी दिग्विजय यात्रा के प्रसंग में विजित किया था। [[विष्णु पुराण]] में अपरान्त के साथ सौराष्ट्र का उल्लेख है।<ref>'तथा परान्ताः सौराष्ट्राः शूराभीरास्तथार्बुदाः' विष्णुपुराण 2, 3, 16</ref> विष्णुपुराण<ref>विष्णुपुराण 2, 24, 68</ref> में सौराष्ट्र में शूद्रों का राज्य बताया गया है, 'सौराष्ट्र विषयांश्च शूद्राद्याभोक्ष्यन्ति'।<br />
{{tocright}} <br />
==इतिहास==<br />
इतिहास प्रसिद्ध सोमनाथ का मन्दिर सौराष्ट्र ही की विभूति था। रैवतकपर्वत गिरनार पर्वतमाला का ही एक भाग था। [[अशोक]], [[रुद्रदामन]] तथा गुप्त सम्राट [[स्कन्दगुप्त]] के समय के महत्त्वपूर्ण अभिलेख [[जूनागढ़]] के निकट एक चट्टान पर अंकित हैं, जिससे प्राचीन काल में इस प्रदेश के महत्त्व पर प्रकाश पड़ता है। रुद्रदामन के अभिलेख में सुराष्ट्र पर [[शक]] क्षत्रपों का प्रभुत्व बताया गया है। जान पड़ता है कि [[अलक्षेन्द्र]] के [[पंजाब]] पर आक्रमण के समय वहाँ निवास करने वाली जाति कठ जिसने यवन सम्राट के दाँत खट्टे कर दिए थे, कालान्तर में पंजाब छोड़कर दक्षिण की ओर आ गई और सौराष्ट्र में बस गई, जिससे इस देश का नाम काठियावाड़ भी हो गया। इतिहास के अधिकांश काल में सौराष्ट्र पर [[गुजरात]] नरेशों का अधिकार रहा और गुजरात के इतिहास के साथ ही इसका भाग्य बंधा रहा।<br />
====पुरास्थल====<br />
[[गुजरात]] के काठियावाड़ प्राय:द्वीप में भादर नदी के समीप स्थित [[रंगपुर (गुजरात)|रंगपुर]] की खुदाई 1953-1954 ई. में 'ए. रंगनाथ राव' द्वारा की गई। यहाँ पर पूर्व हड़प्पा कालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। यहाँ मिले कच्ची ईटों के दुर्ग, नालियां, मृदभांड, बांट, पत्थर के फलक आदि महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ धान की भूसी के ढेर मिले हैं। यहाँ उत्तरोत्तर हड़प्पा संस्कृति के भी साक्ष्य पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।<br />
<br />
==सौराष्ट्र के नाम==<br />
सौराष्ट्र के कई भागों के नाम हमें इतिहास में मिलते हैं। <br />
*हालार (उत्तर-पश्चिमी भाग), <br />
*सोरठ (पश्चिमी भाग), <br />
*गोहिलवाड़ (दक्षिण-पूर्वी भाग) आदि। <br />
इसी इलाके में बब्बर शेर या सिंह पाया जाता है। सौराष्ट्र के बारे में एक प्राचीन कहावत प्रसिद्ध है–'सौराष्ट्र पंचरत्नानि नदीनारीतुरंगमाः चतुर्थः सोमनाथश्च पंचमम् हरिदर्शनम्'; इस श्लोक में सौराष्ट्र की मनोहर नदियों–जैसे चन्द्रभागा, भद्रावती, प्राची-सरस्वती, [[शशिमती]], वेत्रवती, पलाशिनी और सुवर्णसिकता; घोघा आदि प्रदेशों की लोक-कथाओं में वर्णित सुन्दर नारियों, सुन्दर अरबी जाति के तेज़ घोड़ों और सोमनाथ और [[कृष्ण]] की पुण्यनगरी [[द्वारिका]] के मन्दिरों को सौराष्ट्र के रत्न बताया गया है। <br />
<br />
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{{प्रचार}}<br />
{{लेख प्रगति<br />
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{{संदर्भ ग्रंथ}}<br />
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
==संबंधित लेख==<br />
{{गुजरात के ऐतिहासिक स्थान}}<br />
{{गुजरात के पर्यटन स्थल}}<br />
[[Category:गुजरात]]<br />
[[Category:गुजरात के ऐतिहासिक स्थान]]<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:प्रायद्वीप]]<br />
[[Category:भूगोल कोश]]<br />
__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A5%80_%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80&diff=294324शशिमती नदी2012-09-25T06:33:05Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>*शशिमती नदी [[गुजरात]] राज्य के [[सौराष्ट्र]] में है ।<br />
*हालार प्रदेश में प्रवाहित होने वाली नदी जिसे अब ससोई कहते है। <br />
*ससोई शशिमती का अपभ्रंश है। <br />
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{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
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==बाहरी कड़ियाँ==<br />
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==संबंधित लेख==<br />
{{भारत की नदियाँ}}<br />
[[Category:गुजरात]]<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:भारत की नदियाँ]]<br />
__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A5%80_%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80&diff=294322शशिमती नदी2012-09-25T06:31:12Z<p>रेणु: '*शशिमती गुजरात राज्य के सौराष्ट्र में स्थित है। *...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
<hr />
<div>*शशिमती [[गुजरात]] राज्य के [[सौराष्ट्र]] में स्थित है।<br />
*हालार प्रदेश में प्रवाहित होने वाली नदी जिसे अब ससोई कहते है। <br />
*ससोई शशिमती का अपभ्रंश है। <br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
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==बाहरी कड़ियाँ==<br />
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==संबंधित लेख==<br />
[[Category:गुजरात]]<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
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__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B0&diff=294184शलातुर2012-09-24T07:11:06Z<p>रेणु: उद्भांडपुर को अनुप्रेषित (रिडायरेक्ट)</p>
<hr />
<div>#REDIRECT [[उद्भांडपुर]]</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A5%80_%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80&diff=294181शरावती नदी2012-09-24T06:56:33Z<p>रेणु: '*शरावती नदी ज़िला शिभोगा में स्थित अबंतीर्थ नामक स्...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
<hr />
<div>*शरावती नदी ज़िला शिभोगा में स्थित अबंतीर्थ नामक स्थान से निस्सृत हुई है। <br />
*कहा जाता है कि यह सरिता [[श्रीराम]] के बाण मारने से प्रकट हुई थी। <br />
*प्रसिद्ध जोग प्रपात इसी नदी में है। <br />
*अमरकोश<ref>अमरकोश 1,10,34</ref> में शरावती नामोलेख है-‘शरावती वेत्रवती चान्द्रभगं सरस्वती’। <br />
*[[महाभारत]], [[भीष्मपर्व महाभारत|भीष्मपर्व]]<ref>भीष्मपर्व 9,20</ref> में इसका पग्रोप्णी ([[ताप्ती नदी|ताप्ती]]), वेणा (पेन गंगा), भीमरथी ([[भीमा नदी|भीमा]]) और [[कावेरी नदी|कावेरी]] के साथ वर्णन है- ‘शरावती सयोप्णीं च वेणां भीमरथीमपि, कावेरी चुलुकां दापि वाणी शतबलाभपि’। <br />
*शरावती का झरना जोग प्राप्त या जेरुसोप्पा शिसोगा से 62 मील दूर है। <br />
*इस जगप्रसिद्ध झरने की ऊंचाई 830 फुट है। <br />
<br />
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{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
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==बाहरी कड़ियाँ==<br />
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==संबंधित लेख==<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:नया पन्ना सितम्बर-2012]]<br />
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__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%8A%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0&diff=294173ऊनकेश्वर2012-09-24T06:25:34Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>*ऊनकेश्वर [[महाराष्ट्र]] राज्य के यवतमाल ज़िला के पास [[आदिलाबाद]] के निकट अतिप्राचीन स्थान है। इसे ओनकदेव भी कहते हैं। <br />
*जनश्रुति है कि इस स्थान पर [[रामायण]] काल में [[शरभंग ऋषि]] का आश्रम था। <br />
*भगवान [[राम]] वनवासकाल में इस स्थान पर कुछ समय के लिए आए थे। <br />
*[[रामायण]]<ref>[[रामायण|वाल्मीकि रामायण]], अरण्य कांड, सर्ग 5, 3</ref> में [[शरभंगाश्रम]] का यह उल्लेख है- <br />
<poem>'अभिगच्छामहे शीघ्रं शरभंगं तपोधनम्, <br />
आश्रमं शरभंगस्य राघबोऽभिजगाम है।</poem> <br />
*[[कालिदास]] ने शरभंगाश्रम का सुन्दर वर्णन [[राम]]-[[सीता]] की [[लंका]] से [[अयोध्या]] तक की विमान यात्रा के प्रसंग में इस प्रकार किया है- <br />
<poem>'अद: शरण्यं: शरभंग नाम्नस्तपोवनं पावनमाहिताग्ने:, <br />
चिराय संतर्प्य समिद्भरग्निं यो मंत्रपूतां तनुमप्यहौषीत्:'।<ref>[[रघुवंश]] 13, 45</ref><ref>देखें शरभंगाश्रम</ref></poem> <br />
*ऊनकेश्वर मं गरम पानी का एक कुंड है जिसे, कहा जाता है कि, श्रीराम ने बाण से पृथ्वी भेद कर शरभंग के लिए प्रकट किया था। <br />
<br />
{{प्रचार}}<br />
<br />
{{संदर्भ ग्रंथ}}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
==बाहरी कड़ियाँ==<br />
<br />
==संबंधित लेख==<br />
{{महाराष्ट्र के ऐतिहासिक स्थान}}<br />
[[Category:महाराष्ट्र]]<br />
[[Category:महाराष्ट्र के ऐतिहासिक स्थान]]<br />
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]<br />
[[Category:रामायण]]<br />
__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE&diff=294172शरभंगाश्रम2012-09-24T06:17:22Z<p>रेणु: ''''शरभंगाश्रम''' ज़िला बांदा ([[उत्तर प्रद...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
<hr />
<div>'''शरभंगाश्रम''' [[बांदा ज़िला|ज़िला बांदा]] ([[उत्तर प्रदेश]]) में इलाहबाद मानिकपुर रेलमार्ग के जैतवारा स्टेशन से लगभग 15 मील दूर वनप्रांत के नाम से प्रसिद्ध स्थान है। <br />
*इसे शरभंगार कहा जाता है। <br />
*यहाँ श्रीराम का एक मन्दिर स्थित है। <br />
*शरभंगाश्रम का उल्लेख [[बाल्मीकि]] तथा [[कालिदास]] के अतिरिक्त [[तुलसीदास]] ने भी किया है-<br />
<poem>‘पुनि आये जहं मुनि सरभंगा,<br />
सुन्दर अनुज जानकी संगा’। <br />
</poem><br />
*यह स्थान विरधन्वन के निकट ही स्थित था। <br />
*अभ्यात्म॰ आरण्य॰<ref>अभ्यात्म॰ आरण्य॰ 2,1</ref> में इसका वर्णन इस प्रकार है-<br />
<poem>‘विराधें स्वगंते रामो लक्ष्मणेन च सीतया, <br />
जगाम शरभंगस्य वनं सर्वसुखाबहम्’।</poem> <br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
<br />
==बाहरी कड़ियाँ==<br />
<br />
==संबंधित लेख==<br />
<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:उत्तर प्रदेश]]<br />
__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%9A%E0%A4%BE:%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%81&diff=291270साँचा:भारत की नदियाँ2012-09-09T06:02:22Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>{{Navbox<br />
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|list2 =[[अचिरवती नदी|अचिरवती]] '''·''' [[अंध नदी]] '''·''' [[अंशुमती नदी]] '''·''' [[अतिवती नदी|अतिवती]] '''·''' [[अपरनंदा नदी|अपरनंदा]] '''·''' [[अनुतप्ता नदी|अनुतप्ता]] '''·''' [[अमृता नदी|अमृता]] '''·''' [[अवटोदा नदी|अवटोदा]] '''·''' [[अश्व नदी|अश्व]] '''·''' [[असिक्नी नदी|असिक्नी]] '''·''' [[आकाशगंगा नदी|आकाशगंगा]] '''·''' [[आत्रेयी नदी|आत्रेयी]] '''·''' [[आपगा नदी|आपगा]] '''·''' [[आमू नदी|आमू]] '''·''' [[आर्यकुल्या नदी|आर्यकुल्या]] [[कुलिंगा नदी|कुलिंगा]] '''·''' [[इक्षुमती नदी|इक्षुमती]] '''·''' [[इरावती नदी|इरावती]] '''·''' [[उत्तरगा]] '''·''' [[प्रवरा नदी]] '''·''' [[उत्पलावती नदी|उत्पलावती]] '''·''' [[उर्णावती नदी|उर्णावती]] [[चंद्रवसा नदी|चंद्रवसा]] '''·''' [[तृतीया नदी]] '''·''' [[उषा नदी|उषा]] '''·''' [[ऋषिकुल्या]] '''·''' [[ऋषितोया नदी|ऋषितोया]] '''·''' [[एरण्डी नदी|एरण्डी]] '''·''' [[ओधवती नदी|ओधवती]] '''·''' [[त्रिमासा नदी]] '''·''' [[कंकावती नदी|कंकावती]] '''·''' [[ककुदमान नदी|ककुदमान]] '''·''' [[कदंब नदी|कदंब]] '''·''' [[देविका]] '''·''' [[नवालिका नदी]] '''·''' [[तोया नदी]] '''·''' [[कपिनी नदी|कपिनी]] '''·''' [[चित्रसेना नदी|चित्रसेना]] '''·''' [[कपिला नदी|कपिला]] '''·''' [[केशिनी नदी]] '''·''' [[कपिशा नदी|कपिशा]] '''·''' [[कुमुद्वती नदी|कुमुद्वती]] '''·''' [[कृष्णवेणा नदी|कृष्णवेणा]] '''·''' [[निर्विन्ध्या]] '''·''' [[करिंद नदी|करिंद]] '''·''' [[करीषिणी नदी|करीषिणी]] '''·''' [[कर्णदा नदी|कर्णदा]] '''·''' [[चर्मण्वती नदी|चर्मण्वती]] '''·''' [[दशार्ण नदी|दशार्ण]] '''·''' [[दृषद्वती नदी|दृषद्वती]] '''·''' [[पयोष्णी नदी]] '''·''' [[भीमा नदी|भीमा]] '''·''' [[चक्रनदी]] '''·''' [[सरयू नदी|सरयू]] '''·''' [[हिरण्यवती नदी|हिरण्यवती]] '''·''' [[गंधवती नदी|गंधवती]] '''·''' [[गौतमी नदी|गौतमी]] '''·''' [[धृतमती नदी|धृतमती]] '''·''' [[कृष्णवेणी नदी|कृष्णवेणी]] '''·''' [[कालमही नदी|कालमही]] '''·''' [[कौशिकी नदी|कौशिकी]] '''·''' [[चित्रवाहा नदी|चित्रवाहा]] '''·''' [[कुमारी नदी|कुमारी]] '''·''' [[ओधवती नदी|ओधवती]] '''·''' [[चक्षु नदी|चक्षु]] '''·''' [[इक्षु नदी|इक्षु]] '''·''' [[नंदा]] '''·''' [[मालिनी नदी|मालिनी]] '''·''' [[कालिका नदी|कालिका ]] '''·''' [[चित्रोत्पला नदी|चित्रोत्पला]] '''·''' [[धेनुका नदी]] '''·''' [[धूपतापा नदी|धूपतापा]] '''·''' [[योनि नदी|योनि]] '''·''' [[करतोया नदी|करतोया]] '''·''' [[त्रिविदा नदी|त्रिविदा]] '''·''' [[मुरला नदी|मुरला]] '''·''' [[मुक्ता नदी|मुक्ता]] '''·''' [[धेनुका नदी|धेनुका]] '''·''' [[धूतपापा नदी|धूतपापा]] '''·''' [[धौम्यगंगा नदी|धौम्यगंगा]] '''·''' [[निवृत्ति नदी|निवृत्ति]] '''·''' [[पवित्रा नदी|पवित्रा]] '''·''' [[पारदा नदी|पारदा]] '''·''' [[पावनी नदी|पावनी]] '''·''' [[पुष्पजा नदी|पुष्पजा]] '''·''' [[सकरनी नदी]] '''·''' [[पयस्विनी नदी|पयस्विनी]] '''·''' [[प्रतीची नदी|प्रतीची]] '''·''' [[प्रवेणी नदी]] '''·''' [[परुष्णी नदी|परुष्णी]] '''·''' [[त्रिसामा नदी]] '''·''' [[मरुद्वृधा नदी]] '''·''' [[ज्योतिरथ्या नदी]] '''·''' [[लोनी नदी]] '''·''' [[तिलोत्तमा नदी]] '''·''' [[हरिणी नदी|हरिणी]] '''·''' [[हिरण्या नदी|हिरण्या]] '''·''' [[हिरण्याक्षी नदी|हिरण्याक्षी]]<br />
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}}<noinclude>[[Category:भूगोल के साँचे]]<references/></noinclude></div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BE_%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80&diff=291267शरदंडा नदी2012-09-09T06:01:43Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>'''शरदंडा''' [[वाल्मीकि रामायण]], [[अयोध्या काण्ड वा. रा.|अयोध्याकाण्ड]]<ref>अयोध्याकाण्ड 68,16</ref> में उल्लिखित एक नदी है जो [[अयोध्या]] के दूतों को [[केकय देश]] जाते समय मार्ग में मिली थी-<br />
<br />
‘तें प्रसन्नोदकां दिव्यां नानाविहग सेविताम्, उपातिजग्मुर्वेगेन शरदंडां जलाकुलाम्।’ <br />
*प्रसंग से यह [[सतलुज नदी|सतलज]] के पास बहने बाली कोई नदी जान पड़ती है। <br />
*एक मत के अनुसार यह वर्तमान सरहिंद नदी है। <br />
*‘वेद धरातल’ नामक ग्रंथ के<ref>वेद धरातल पृ॰ 646</ref> में यह मत प्रकट किया गया है कि यह नदी शरावती या रावी है।<br />
*पराशरतुत्र में शरदंड देश का उल्लेख है। <br />
*इसके दक्षिण पश्चिम में भूलिंग देश स्थित था। <br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
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==बाहरी कड़ियाँ==<br />
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==संबंधित लेख==<br />
{{भारत की नदियाँ}}<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:रामायण]]<br />
[[Category:भारत की नदियाँ]]<br />
[[Category:नया पन्ना सितम्बर-2012]]<br />
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<hr />
<div>'''कुलिंग''' एक प्राचीन नगरी थी, जिसका उल्लेख [[वाल्मीकि रामायण]], अयोध्याकाण्ड में हुआ है। वाल्मीकि रामायण में इस नगरी का उल्लेख [[अयोध्या]] के दूतों की [[केकय]] यात्रा के प्रसंग में है-<br />
<br />
<blockquote>‘निकूलवृक्षमासाद्य दिव्यं सत्योपयाचनम्, अभिगम्याभिवाद्यं तं कुलिगां प्राविशंपुरीम्’।<ref>[[वाल्मीकि रामायण]], अयोध्याकाण्ड 68, 16.</ref></blockquote><br />
<br />
*उपर्युक्त वर्णन में कुलिंग का उल्लेख [[शरदंडा नदी]] के पश्चात् है। ऐसा जान पड़ता है कि [[सतलुज नदी|सतलुज]] तथा [[व्यास नदी|व्यास]] नदियों के बीच के प्रदेश में इस नगरी की स्थिति रही होगी।<br />
*अयोध्याकाण्ड<ref>अयोध्याकाण्ड 68, 19</ref> में विपाशा या बियास का उल्लेख है।<br />
*यह भी संभव है कि इस नगरी का संबंध कुलिंदों या कुणिंदों से रहा हो, जिनका उल्लेख [[महाभारत]], [[सभापर्व महाभारत|सभापर्व]]<ref>[[महाभारत]], [[सभापर्व महाभारत|सभापर्व]] 26, 4.</ref> में है।<br />
*[[रामायण]] में वर्णित [[कुलिंगा नदी]], कुलिंग प्रदेश की ही कोई नदी जान पड़ती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=209|url=}}</ref><br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
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<references/><br />
==संबंधित लेख==<br />
{{पौराणिक स्थान}}<br />
[[Category:पौराणिक स्थान]][[Category:पौराणिक कोश]]<br />
__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BE_%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80&diff=291264शरदंडा नदी2012-09-09T05:57:34Z<p>रेणु: ''''शरदंडा''' वाल्मीकि रामायण, [[अयोध्या काण्ड वा. रा.|अय...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
<hr />
<div>'''शरदंडा''' [[वाल्मीकि रामायण]], [[अयोध्या काण्ड वा. रा.|अयोध्याकाण्ड]]<ref>अयोध्याकाण्ड 68,16</ref> में उल्लिखित एक नदी है जो [[अयोध्या]] के दूतों को [[केकय देश]] जाते समय मार्ग में मिली थी-<br />
<br />
‘तें प्रसन्नोदकां दिव्यां नानाविहग सेविताम्, उपातिजग्मुर्वेगेन शरदंडां जलाकुलाम्।’ <br />
*प्रसंग से यह [[सतलुज नदी|सतलज]] के पास बहने बाली कोई नदी जान पड़ती है। <br />
*एक मत के अनुसार यह वर्तमान सरहिंद नदी है। <br />
*‘वेद धरातल’ नामक ग्रंथ के<ref>वेद धरातल पृ॰ 646</ref> में यह मत प्रकट किया गया है कि यह नदी शरावती या रावी है।<br />
*पराशरतुत्र में शरदंड देश का उल्लेख है। <br />
*इसके दक्षिण पश्चिम में भूलिंग देश स्थित था। <br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
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==बाहरी कड़ियाँ==<br />
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==संबंधित लेख==<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:रामायण]]<br />
[[Category:नया पन्ना सितम्बर-2012]]<br />
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__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%A4%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%83%E0%A4%82%E0%A4%97_%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4&diff=291052शतश्रृंग पर्वत2012-09-08T07:07:57Z<p>रेणु: ''''शतश्रंग''' हिमालय के उत्तर में स्थित पर्वत है जहाँ [...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
<hr />
<div>'''शतश्रंग''' [[हिमालय]] के उत्तर में स्थित पर्वत है जहाँ [[महाभारत]] के अनुसार महाराज [[पांडु]], [[माद्री]] और [[कुंती]] के साथ जाकर रहने लगे थे। <br />
*यहीं पांचो पांडवों की देवताओं के आह्वन द्वारा उत्पत्ति हुई शतश्रंग तक पहुंचने में पांडु को चैवरथ कालकूट और हिमालय को पार करने के बाद गंधमादन, इंदुद्युम्न सर तथा हंसकूट के उत्तर में जाना पड़ा था -‘स चैत्ररथमासाद्य कालकूटमतीत्य च हिमंवन्तमतिक्रम्य प्रययौ गंधमादनम्। <br />
रक्ष्याभाणो महाभूतैः सिद्धैश्च परमर्षिभिः उवास स महाराज तापसः समतप्यत’।<ref>महाभारत, [[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]] 118,48.49-50</ref> <br />
*शतश्रंग निवासियों को पांडु के पांचों पुत्रों से बड़ा प्रेम था -<br />
‘मुदं परमिकां लेभे ननन्द च नराधिपः ऋषाणामपि सर्वेषां शतश्रंगनिवासिनाम्’।<ref>आदिपर्व 122,124</ref> <br />
*यहीं किसी असंयम के कारण और किसी ऋषि के शाप के कारण पांडु की मृत्यु हुई थी और उनका अंतिम संस्कार शतश्रंग निवासियों को ही करना पड़ा था-<br />
‘अर्हतस्तस्य कृत्यानि शतश्रंगनिवासिनः, तापसा विधियवच्चक्रुश्चारणाऋषिभिः सह’<ref>महाभारत आदिपर्व 124,1 से आगे दाक्षिणात्य पाठ</ref> <br />
*प्रसंगानुसार यह पर्वत हिमालय की उत्तरी श्रृंखला में स्थित जान पड़ता है। <br />
*यहां से [[हस्तिनापुर]] तक के मार्ग को महाभारत में बहुत लम्बा बताया है -<br />
‘प्रपन्न दीर्घपध्बानं संक्षिप्तं तदमन्यत’।<ref> आदिपर्व 125,8</ref><br />
<br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
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==बाहरी कड़ियाँ==<br />
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==संबंधित लेख==<br />
[[Category:महाभारत]]<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:नया पन्ना सितम्बर-2012]]<br />
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__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=290773कोटनिस2012-09-07T06:03:34Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>{{पुनरीक्षण}}<br />
'''कोटनिस''' का वास्तविक नाम 'द्वारकानाथ शांताराम कोटणीस' था। <br />
*कोटनिस द्वितीय विश्वयुद्ध ([[1939]]-[[1945]]) के दौरान गुरिल्ला चीनियों की चिकित्सा सेवा करने वाले भारतीय चिकित्सक थे। <br />
*जिसकी स्मृति में [[चीन]] में एक चिकित्सालय बनाया गया है।<br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
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==बाहरी कड़ियाँ==<br />
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==संबंधित लेख==<br />
{{चिकित्सक}}<br />
[[Category:वैज्ञानिक]]<br />
[[Category:चिकित्सक]]<br />
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__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE:%E0%A4%B6%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0&diff=290645वार्ता:शक्रावतार2012-09-06T08:06:40Z<p>रेणु: '{{वार्ता}}' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
<hr />
<div>{{वार्ता}}</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0&diff=290644शक्रावतार2012-09-06T08:06:19Z<p>रेणु: '*अभिज्ञानशाकुंतल<ref>अभिज्ञानशाकुंतल, अंक 5</ref> के उल्ल...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
<hr />
<div>*अभिज्ञानशाकुंतल<ref>अभिज्ञानशाकुंतल, अंक 5</ref> के उल्लेख के अनुसार [[हस्तिनापुर]] जाते समय शक्रावतार के अन्तर्गत शचीतीर्थ में [[गंगा]] के स्रोत में [[शकुंतला]] की अंगूठी गिरकर खो गई थी-<br />
‘नूनं ते शक्रावताराभ्यन्तरे शचीतीर्थसलिले वन्दमानायाः प्रभ्रष्टमंगुलीयकम्’। <br />
*यह अंगूठी शक्रवतार के धीवर को एक मछली के उदर से प्राप्त हुई थी-<br />
‘श्रृणुत इदानीम् अहं शक्रावतारवासी धीवरः’।<ref>अभिज्ञानशाकुंतल, अंक 6</ref> <br />
*शचीतीर्थ में गंगा की विद्यमानता का उल्लेख इस प्रकार है-<br />
‘शचीतीर्थंवंदमानायाः संख्यास्ते हस्तादुर्गगास्रोतसि परिभ्रष्टम्’।<ref>अभिज्ञानशाकुंतल,अंक 6</ref> <br />
*एक मत के अनुसार शक्रवातार का अभिज्ञान ज़िला मुज़फ्फरपुर ([[उत्तर प्रदेश]]) में गंगा तट पर स्थित शुक्करताल नामक स्थान से किया जा सकता है। <br />
*शुक्करताल शक्रवातार का ही अपभ्रंश जान पड़ता है। <br />
*यह स्थान मालन नदी के निकट स्थित मंडावर ([[बिजनौर ज़िला|ज़िला बिजनौर]]) के सामने गंगा की दूसरी ओर स्थित है। <br />
*मंडावर में कण्वाश्रम की स्थिति परंपरा से मानी जाती है। <br />
*मंडावर से [[हस्तिनापुर]] ([[मेरठ ज़िला|ज़िला मेरठ]]) जाते समय शुक्करताल, गंगा पार करने के पश्चात् दूसरे तट पर मिलता है और इस प्रकार [[कालिदास]] द्वारा वर्णित भौगोलिक परिस्थिति में यह अभिज्ञान ठीक बैठता है। <br />
*शुक्करताल का सम्बन्ध [[शुकदेव]] से बताया जाता है और यह स्थान अवश्य ही बहुत प्राचीन है। <br />
*बहुत संभव है कि शक्रावतार का शक ही शुक्कर बन गया है और इस शब्द का शुकदेव से कोई सम्बन्ध नहीं है।<br />
*[[महाभारत]]<ref>महाभारत, [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] 84, 29</ref> में उल्लिखित शक्रावर्त भी यही स्थान जान पड़ता है।<br />
<br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
<br />
==बाहरी कड़ियाँ==<br />
<br />
==संबंधित लेख==<br />
[[Category:महाभारत]]<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:नया पन्ना सितम्बर-2012]]<br />
<br />
__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE:%E0%A4%B6%E0%A4%95%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%A8&diff=290626वार्ता:शकस्थान2012-09-06T07:46:09Z<p>रेणु: '{{वार्ता}}' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
<hr />
<div>{{वार्ता}}</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%95%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%A8&diff=290624शकस्थान2012-09-06T07:42:53Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>'''शकस्थान''' शकों का मूल निवास स्थान है जो [[ईरान]] के उत्तर-पश्चिमी भाग तथा परिवर्ती प्रदेश में स्थित था। <br />
*इसे सीस्तान कहा जाता है। <br />
*शकस्थान का उल्लेख महामायूरि<ref>महामायूरि 95</ref>, [[मथुरा]] सिहस्तभ-लेख और कंदबनरेश मयूरशर्मन् के चंद्रवल्ली प्रस्तर लेख में है। <br />
*मथुरा-अभिलेख के शब्द है-‘सर्वस सकस्तनस पुयेइ’ जिसका अर्थ हैं कि, [[कनिंघम]] के अनुसार ‘शकस्तान निवासियों के पुण्यार्थ’ है। <br />
*[[शक|शकों]] का उल्लेख [[रामायण]]<ref>रामायण ‘तैरासीत् संवृताभूमिः शकैर्यवनमिश्रितै:' [[बाल काण्ड वा. रा.|बालकाण्ड]] 54,21; कांबोजयवनां श्चैवशकानापत्तनानिच’ [[किष्किन्धा काण्ड वा. रा.|किष्किंधाकाण्ड]] ,43,12</ref>, [[महाभारत]]<ref>महाभारत ‘पहल्वान् बर्बरांश्चैव किरातान् यवनाछकान्’ [[सभापर्व महाभारत|सभापर्व]] 32, 17</ref>, [[मनुस्मृति]]<ref>मनुस्मृति ‘पौड्रकाश्चौड्रद्रविड़ाः कांबोजा यवनाः शकाः’ 10,44 </ref> तथा [[महाभाष्य]]<ref>महाभाष्य द.॰ इडियन एंटिक्बेरी 1875, पृ॰ 244</ref> आदि [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में है।<br />
<br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
<br />
==बाहरी कड़ियाँ==<br />
<br />
==संबंधित लेख==<br />
[[Category:रामायण]]<br />
[[Category:महाभारत]]<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:नया पन्ना सितम्बर-2012]]<br />
<br />
__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%80_%E0%A4%86%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%A3&diff=290622मौर्योत्तरकालीन विदेशी आक्रमण2012-09-06T07:40:11Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>पश्चिमोत्तर [[भारत]] में विदेशियों का आक्रमण सम्भवतः [[मौर्योत्तर काल]] में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना थी। विदेशी आक्रमणकारियों की इस श्रृंखला में सबसे पहले 'बैक्ट्रिन ग्रीक' शासकों का नाम आता है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इन्हें '[[यवन]]' के नाम से जाना जाता है। [[इतिहास]] के इस काल की जानकारी [[बौद्ध]] ग्रंथों, जैसे- बौद्ध जातक, [[दिव्यावदान]], [[ललितविस्तर]], मंजूश्रीमूलकल्प, [[मिलिन्दपन्ह]], गार्गी संहिता, [[मालविकाग्निमित्रम्]] एवं कुछ अभिलेखों, सिक्कों तथा पुरातात्विक खोजों द्वारा प्राप्त होती हैं।<br />
==बैक्ट्रिया साम्राज्य==<br />
[[हिन्दुकुश पर्वत]] एवं 'ऑक्सस' के मध्य में स्थित '[[बैक्ट्रिया]]' अत्यन्त ही उपजाऊ प्रदेश था। इसके उपजाऊपन के कारण ही 'स्ट्रैबो' ने इसे 'अरियाना गौरव' कहा। बैक्ट्रिया में [[यूनानी]] बस्तियों का प्रारम्भ 'एकेमेनिड काल' (लगभग 5 वीं शताब्दी ई.पू.) में हुआ। [[सिकन्दर]] की मृत्यु के पश्चात् बैक्ट्रिया पर [[सेल्युकस]] का अधिपत्य रहा, किन्तु आन्तियोकस द्वितीय के शासन काल में [[पार्थिया]] 'अर्सेक्स' के नेतृत्व में और बैक्ट्रिया 'डायोडोटस' के नेतृत्व में स्वतंत्र हो गया । डायोडोटस की मृत्यु के पश्चात् उसके अवयस्क पुत्र की हत्या कर 'यूथीडेमस' नामक एक महत्वकांशी व्यक्ति ने बैक्ट्रिया की सत्ता हथिया ली। सेल्यूकस वंश के '[[एण्टियोकस तृतीय|आन्तियोकस तृतीय]]' ने 'यूथीडेमस' को बैक्ट्रिया का राजा मान लिया और 206 ई. पू. में [[भारत]] के विरूद्ध एक अभियान का नेतृत्व किया। यह अभियान हिन्दुकुश पर्वत को पार कर [[काबुल]] घाटी के एक शासक सुभगसेन के ख़िलाफ़ किया गया था। सुभगसेन को पॉलिबियस ने 'भारतीयों का राजा' कहा। सम्भवतः सुभगसेन द्वारा सांकेतिक समर्पण के बाद एण्ट्योकस ढेर सारे [[हाथी]] एवं हरजाने की बड़ी धनराशि लेकर वापिस चला गया। इस प्रकार भारत पर जिन प्रमुख यवन राजाओं ने आक्रमण किया, उनका विवरण इस प्रकार से है-<br/><br />
{| class="bharattable-green" border="1" style="margin:5px; float:right"<br />
|+विदेशी आक्रमणकारी और उनके भारतीय नाम<br />
|-<br />
!विदेशी नाम<br />
!भारतीय नाम<br />
|-<br />
| बैक्ट्रियन<br />
| [[यवन]]<br />
|-<br />
| पार्थियन<br />
| [[पहलव]]<br />
|-<br />
| सीथियन<br />
| [[शक]]<br />
|-<br />
| [[यूची क़बीला|यू-ची]]<br />
| [[कुषाण]]<br />
|-<br />
|}<br />
====डेमेट्रियस====<br />
{{main|डेमेट्रियस}}<br />
यूथीडेमस की मृत्यु के बाद उसका पुत्र डेमेट्रियस राजा हुआ। सम्भवतः सिकन्दर के बाद डेमेट्रियस ही पहला यूनानी शासक था, जिसकी सेना भारतीय सीमा में प्रवेश कर सकी। उसने एक बड़ी सेना के साथ लगभग 183 ई.पू. में हिन्दुकुश पर्वत को पार कर [[सिंध]] और [[पंजाब]] पर अधिकार कर लिया। डेमेट्रियस के भारतीय अभियान की पुष्टि [[पतंजलि]] के '[[महाभाष्य]]', 'गार्गी संहिता' एवं 'मालविकाग्निमित्रम्' से होती है। इस प्रकार डेमेट्रियास ने पश्चिमोत्तर भारत में 'इंडो-यूनानी' सत्ता की स्थापना की।<br />
====मीनेंडर====<br />
{{main|मीनेंडर}}<br />
मीनेंडर प्रथम पश्चिमी राजा था, जिसने [[बौद्ध धर्म]] अपनाया और [[मथुरा]] पर शासन किया। उसके राज्य की सीमा- [[बैक्ट्रिया]], [[पंजाब]], [[हिमाचल प्रदेश|हिमाचल]], तथा [[जम्मू]] से मथुरा तक थी। डेमेट्रियस के समान मीनेंडर नामक यवन राजा के भी अनेक सिक्के उत्तर - पश्चिमी भारत में उपलब्ध हुए हैं। मीनेंडर की राजधानी शाकल (सियालकोट) थी। भारत में राज्य करते हुए वह बौद्ध श्रमणों के सम्पर्क में आया और आचार्य [[नागसेन]] से उसने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। बौद्ध ग्रंथों में उसका नाम 'मिलिन्द' आया है। 'मिलिन्द पञ्हो' नाम के पालि ग्रंथ में उसके बौद्ध धर्म को स्वीकृत करने का विवरण दिया गया है।<br />
==भारतीय यूनानी संपर्क का परिणाम==<br />
एक तरफ़ जहाँ [[यूनानी]] लोगों ने भारतीय धर्म से बहुत कुछ सीखा, वहीं दूसरी ओर भारतीयों के [[कला]], [[विज्ञान]], मुद्रा, ज्योतिष आदि क्षेत्रों में यूनानियों से प्रेरणा ग्रहण की। [[धर्म]] एवं [[दर्शन]] के क्षेत्र में यूनानियों ने भारतीय धर्म और दर्शन को ग्रहण किया। सम्राट मीनेंडर ने [[नागसेन]] से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म ग्रहण किया। वहीं दूसरी ओर एण्टियाल किडास के राजदूत हेलियोडोरस ने [[भागवत धर्म]] को स्वीकार किया। उसने बेसनगर में [[गरुड़ध्वज]] की स्थापना की। शायद भोग एवं तपस्या की विधि यूनानी लोगों ने भारत से ग्रहण की। कला के क्षेत्र में यूनानी प्रभाव सर्वथा दृष्टिगोचर होता है। कला की गंधार शैली की नींव इसी समय पड़ी।<br />
====विज्ञान का क्षेत्र====<br />
विज्ञान के क्षेत्र में भारत स्पष्टतः यूनानियों से प्रभावित है। ज्योतिषशास्त्र से भारतीय लोग अधिक प्रभावित हुए। भारतीय ग्रंथों में ज्योतिष के पाँच सिद्धान्तों का वर्णन मिलता है। ये सिद्धाँत हैं-<br /><br />
#पितामह<br />
#वशिष्ट<br />
#सूर्य<br />
#पोलिश और<br />
#रोमक।<br />
<br />
इनमें अन्तिम दो का जन्म यूनानी सम्पर्क से हुआ। टार्न महोदय के अनुसार, भारतीयों ने यूनानियों से निश्चत तिथि से काल गणना की प्रथा. संवतों का प्रयोग, सप्ताह के सात दिनों का विभाजन, विभिन्न ग्रहों के नाम आदि जाना।<br />
====सिक्का निर्माण====<br />
सिक्का निर्माण के क्षेत्र में [[भारत]] यूनानियों का ऋणी है। यूनानियों के सम्पर्क से पूर्व भारत में 'पंचमार्क' व 'आहत' सिक्के प्रयोग में लाए जाते थे। यूनानियों के प्रभाव के कारण भारतीय मुद्रायें सुडौल, लेखयुक्त एवं कलात्मक होने लगीं। यूनानियों ने यहाँ जो सिक्के जारी किए, उसमें एक ओर राजा की आकृति और दूसरी ओर किसी [[देवता]] की मूर्ति का चिह्न बना होता था। सर्वप्रथम सिक्को पर लेख उत्कीर्ण करवाने एवं सोने के सिक्के के लिए प्रयुक्त शब्द यवानिका भारतीय [[संस्कृत]] नाटकों में प्रयुक्त 'पटाक्षे' के लिए यूनानी शब्द है।<br />
==पार्थियन (पहलव) एवं शकों का आक्रमण==<br />
साक्ष्यों के अभाव में अब तक पार्थियन शासकों के विषय में पर्याप्त जानकारी नहीं मिल सकी है। सम्भवतः ई.पू. की पहली शताब्दी में पश्चिमोत्तर भारत के कुछ भागों में पार्थियन या [[पहलव]] लोग शासन कर रहे थे। पहलवों का इतिहास एवं शकों का इतिहास आपस में इतना घुलमिल गया था कि, यह निश्चित कर पाना असंभव हो जाता था कि, कौन शासक पहलव है, और कौन [[शक]]। पहलव शक्ति का वास्तविक संस्थापक 'यूक्रेटाइडीस' का समकालीन 'मिथ्रेडेट्स' था। पहलव मूलतः [[पार्थिया]] के निवासी थे। सीस्तान, [[कंधार]] और [[काबुल]] में मिले सिक्के इस बात की पुष्टि करते हैं कि, पार्थियन लोगों का अधिकार [[बैक्ट्रिया]] के अतिरिक्त इन क्षेत्रों पर भी था। कुछ रोमन एवं चीनी साहित्यों में भी इस बात के संकेत मिलते हैं।<br />
====पहलव शासक====<br />
ऐसा माना जाता है कि, [[भारत]] का प्रथम पार्थियन शासक 'माउस' ई. पू. 90 से ई. पू. 70 था। पहलव शक्ति का वास्तविक संस्थापक 'मिथ्रेडेट्स प्रथम' था। स्वात घाटी एवं [[गंधार]] प्रदेश में अब तक मिले सिक्के पर [[खरोष्ठी लिपि]] में माउस का नाम 'मोय' मिलता है। पहलव व पार्थियन शासकों में सर्वाधिक ख्यातिलब शासक 'गोदोफर्निस (20-41ई.) था। खरोष्ठी लिपि के [[पेशावर]] के यूसुफजाई प्रदेश में प्राप्त अभिलेख 'तख्तेबही' में इसे 'गुदण्हर' एवं [[फ़ारसी भाषा]] में उसका नाम 'विन्दफर्ण' (यश विजयी) मिलता है। तख्तेबही अभिलेख से गोंदोफर्निस का पेशावर पर अधिकार सिद्ध होता है। इसने क़रीब 22 वर्ष तक शासन किया। गोंदोफर्निस के शासन काल में ही प्रथम [[ईसाई धर्म]] प्रचारक 'सेंट थामस' भारत आया। कालान्तर में सेंट थामस की [[मद्रास]] के समीप स्थित म्यालपुर नामक स्थान पर हत्या कर दी गई। कुछ समय पश्चात् '[[यूची क़बीला|यू-ची-जाति]]' के कबीलों ने भारतीय-पार्थियन सत्ता का तहस-नहस कर दिया। पार्थियन राजाओं के सिक्कों पर 'धार्मिक' उपाधि मिलती है, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि, भारतीय संस्कृति से ये भी पूर्णतय: प्रभावित थे।<br />
==शक==<br />
'यू-ची' नामक कबीलों द्वारा लगभग 165 ई.पू. में [[शक|शकों]] को मध्य [[एशिया]] से भगाया गया और भागते हुए शक लोग [[बैक्ट्रिया]] एवं [[पार्थिया]] पर आक्रमण करते हुए भारत पहुँचे। शकों के विषय में प्रारम्भिक जानकारी दारा के नक्शी प्रस्तर लेख से मिलती है। इसके अतिरिक्त अन्य जानकारी स्रोतों में कुछ चीनी ग्रंथ, जिनमें शकों को 'सई' व 'सईवांग' कहा गया है। साथ ही कुछ शकों के पाए गए लेख एवं सिक्कों से भी इस संबंध में जानकारी मिलती है। प्रमुख भारतीय [[साहित्य]], [[पुराण]], [[रामायण]], [[महाभारत]], [[महाभाष्य]], जैनग्रंथ आदि में भी शकों के विषय में जानकारी मिलती है। जैन ग्रंथ 'काल्काचार्य कथानक' में [[उज्जयिनी]] के ऊपर शकों के आक्रमण तथा [[विक्रमादित्य]] द्वारा उन्हे पराजित करने का उल्लेख मिलता है। भारतीय साहित्य में शकों के प्रदेश को 'शकद्वीप' व '[[शकस्थान]]' कहा गया है।<br />
====शकों की शाखाएँ====<br />
भारत के पश्चिमोत्तर प्रांत में बसने वाले शकों ने अपने को '[[क्षत्रप]]' कहा। क्षत्रप शब्द पुराने ईरानी शब्द 'क्षत्रपवन' (प्रान्तीय गर्वनर) से लिया गया था। भारतीय शकों की दो शाखाएँ यहाँ पर शासन कर रही थीं। [[तक्षशिला]] एवं [[मथुरा]] के शक शासक उत्तरी क्षत्रप एवं [[नासिक]] तथा [[उज्जैन]] के शक शासक पश्चिमी क्षत्रप कहलाते थे। तक्षशिला के प्रथम क्षत्रप शासक के रूप में 'मोंग' या 'मोयेज' का (80ई.पू.) उल्लेख मिलता है। इसने गंधार में प्रथम शक राज्य की स्थापना की। प्राप्त सिक्कों के आधार पर इसके साम्राज्य का विस्तार [[पुष्कलावती]], [[कपिशा]] एवं पूर्वी मथुरा तक सिद्ध होता है। अन्य शासकों में एजेज, एजिलिसेज का उल्लेख मिलता है। मथुरा के शक क्षत्रपों के विषय में निश्चित जानकारी का अभाव है। मथुरा के सिंह शीर्ष अभिलेख से राजूल या राजवुल के प्रथम शक क्षत्रप होने का उल्लेख मिलता है। सम्भवतः इनका अधिकार क्षेत्र केवल मथुरा तक ही था।<br />
<br />
पश्चिमी क्षत्रप कालान्तर में 'यू-ची' लोगों से भयभीत होकर दक्षिण की ओर बढ़ आये। पश्चिमी भारत में दो शक वंशों के अस्तित्व के प्रमाण मिलते हैं-<br /><br />
#[[महाराष्ट्र]] का क्षहरात वंश<br />
#कार्दमक ('चष्टन वंश' अथवा [[सौराष्ट्र]] और [[मालवा]] के [[शक]] [[क्षत्रप]])<br />
<br />
[[नासिक]] में शासन करने वाला प्रथम 'क्षहरातवंशी' शक क्षत्रक [[भूमक]] था। इसके विषय में सिक्कों से जानकारी मिलती है। [[गुजरात]], [[काठियावाड़]], मालवा एवं [[राजपूताना]] से प्राप्त सिक्कों में इसके विषय में जानकारी मिलती है।<br />
====नहपान ====<br />
{{main|नहपान}}<br />
भूमक के बाद क्षहरातवंश का योग्य शासक [[नहपान]] गद्दी पर बैठा। इसका शासनकाल सम्भवतः 119 से 224 तक रहा। नहपान ने अपनी मुद्राओं पर 'राजा' की उपाधि धारण की। नहपान का साम्राज्य उत्तर में [[अजमेर]] एवं राजपूताना तक विस्तृत था। इसके अन्तर्गत कठियावाड़, दक्षिणी गुजरात, पश्चिमी मालवा, उत्तरी कोंकण, नासिक, [[पूना]] आदि सम्मिलित थे। नहपान का दामाद 'ऋषदत्त' (उषादत्त) नहपान के समय में उसके दक्षिणी प्रान्त गोवर्धन (नासिक) तथा मामल्ल (पूना) का वायसराय था।<br />
====चष्टन====<br />
{{main|चष्टन}}<br />
उज्जयिनी का प्रथम शक क्षत्रप शासक 'कार्दमवंश' का [[चष्टन]] था। इस वंश का शासन काल सम्भवतः 130 ई. से 388 ई. तक माना जाता है। चष्टन सम्भवतः पहले [[कुषाण|कुषाणें]] की अधीनता में सिन्ध क्षेत्र का क्षत्रप था। नहपान की मृत्यु के बाद उसे कुषाण साम्राज्य के दक्षिण पश्चिमी प्रान्त का वायसराय नियुक्त किया गया था। बाद में उसने अपने अभिलेखों में शक संवत् का प्रयोग किया है। 'अन्धै' (कच्छखाड़ी) के अभिलेख से ज्ञात होता है कि,130 ई. में चष्टन अपने पौत्र रुद्रदामन के साथ मिलकर शासन कर रहा था।<br />
====रुद्रदामन====<br />
{{main|रुद्रदामन}}<br />
चष्टन के बाद उसका पौत्र कार्दमक वंशी रुद्रदामन गद्दी पर बैठा। यह इस वंश का सर्वाधिक योग्य शासक था। इसका शासन काल 130 से 150 ई. माना जाता है। [[रुद्रदामन]] के विषय में विस्तृत जानकारी उसके [[जूनागढ़]] ([[गिरनार]]) से शक सम्वत 72 (150 ई.) के अभिलेख से मिलती है। रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से उसके साम्राज्य के पूर्वी एवं पश्चिमी [[मालवा]], [[द्वारका]] के आस-पास के क्षेत्र, [[सौराष्ट्र]], [[कच्छ]], [[सिंधु नदी]] का मुहाना, उत्तरी कोंकण आदि तक विस्तृत होने का उल्लेख मिलता है। इसी अभिलेख में रुद्रदामन द्वारा [[सातवाहन]] नरेश दक्षिण पथस्वामी में ही उसे 'भ्रष्ट-राज-प्रतिष्ठापक' कहा गया है। इसने [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के मंत्री द्वारा बनवायी गई, सुदर्शन झील के पुननिर्माण में भारी धन व्यय करवाया था।<br />
<br />
{{प्रचार}}<br />
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
{{संदर्भ ग्रंथ}}<br />
<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
==संबंधित लेख==<br />
{{मौर्य काल}}<br />
[[Category:मौर्य काल]]<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
__INDEX__<br />
__NOTOC__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE:%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0&diff=290620वार्ता:शंभुपुर2012-09-06T07:38:53Z<p>रेणु: '{{वार्ता}}' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
<hr />
<div>{{वार्ता}}</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%95%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%A8&diff=290619शकस्थान2012-09-06T07:38:12Z<p>रेणु: ''''शकस्थान''' शाको का मूल निवास स्थान है जो ईरान के उत्...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
<hr />
<div>'''शकस्थान''' शाको का मूल निवास स्थान है जो [[ईरान]] के उत्तर-पश्चिमी भाग तथा परिवर्ती प्रदेश मे स्थित था। <br />
*इसे सीस्तान कहा जाता है। <br />
*शकस्थान का उल्लेख महामायूरि<ref>महामायूरि 95</ref>, [[मथुरा]] सिहस्तभ-लेख और कंदबनरेश मयूरशर्मन् के चंद्रवल्ली प्रस्तर लेख में है। <br />
*मथुरा-अभिलेख के शब्द है-‘सर्वस सकस्तनस पुयेइ’ जिसका अर्थ हैं कि, [[कनिंघम]] के अनुसार ‘शकस्तान निवासियों के पुण्यार्थ’ है। <br />
*शकों का उल्लेख [[रामायण]]<ref>रामायण ‘तैरासीत् संवृताभूमिः शकैर्यवनमिश्रितै:' [[बाल काण्ड वा. रा.|बालकाण्ड]] 54,21; कांबोजयवनां श्चैवशकानापत्तनानिच’ [[किष्किन्धा काण्ड वा. रा.|किष्किंधाकाण्ड]] ,43,12</ref>, [[महाभारत]]<ref>महाभारत ‘पहल्वान् बर्बरांश्चैव किरातान् यवनाछकान्’ [[सभापर्व महाभारत|सभापर्व]] 32, 17</ref>, [[मनुस्मृति]]<ref>मनुस्मृति ‘पौड्रकाश्चौड्रद्रविड़ाः कांबोजा यवनाः शकाः’ 10,44 </ref> तथा [[महाभाष्य]]<ref>महाभाष्य द.॰ इडियन एंटिक्बेरी 1875, पृ॰ 244</ref>) आदि [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में है।<br />
<br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
<br />
==बाहरी कड़ियाँ==<br />
<br />
==संबंधित लेख==<br />
[[Category:रामायण]]<br />
[[Category:महाभारत]]<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:नया पन्ना सितम्बर-2012]]<br />
<br />
__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0&diff=290614शंभुपुर2012-09-06T07:20:13Z<p>रेणु: ''''शंभुपुर''' 8वीं शती ई॰ में दक्षिण कंबोडिया (कंबुज) म...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
<hr />
<div>'''शंभुपुर''' 8वीं शती ई॰ में दक्षिण कंबोडिया ([[कंबुज]]) में एक छोटा-सा राज्य है जिसका उल्लेख कंबोडिया के प्राचीन इतिहास में है। <br />
*इस भारतीय उपनिवेश की स्थिति वर्तमान संभोर के निकट थी जो मिकोंग नदी पर है। <br />
*संभोर, शंभुपुर ही का अपभ्रंश है। <br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
<br />
==बाहरी कड़ियाँ==<br />
<br />
==संबंधित लेख==<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:नया पन्ना सितम्बर-2012]]<br />
<br />
__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%AC%E0%A4%B2&diff=290611शंबल2012-09-06T07:17:23Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>*[[विष्णुपुराण]]<ref>विष्णुपुराण 4,24,98</ref> मे शंवलग्राम मे भविष्य के [[कल्कि अवतार]] होने का उल्लेख है- <br />
‘शंबलग्रामप्रधानब्राह्मणस्यविष्णुयशसोगृहेऽष्टगुणार्द्धिसमन्वितः कल्किरूपी जगत्यात्रावतीर्य स्वधर्मेषु चाखिलमेव संस्थापयिष्यति’। <br />
*कुछ लोगों के मत में शंबल ग्राम वर्तमान [[सम्भल|संभल]] है।<br />
*जो की [[उत्तर प्रदेश]] के [[मुरादाबाद ज़िला|मुरादाबाद ज़िले]] में स्थित है।<br />
<br />
'''विस्तार में पढें:-''' [[सम्भल]]<br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
<br />
==बाहरी कड़ियाँ==<br />
<br />
==संबंधित लेख==<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:उत्तर प्रदेश]]<br />
[[Category:नया पन्ना सितम्बर-2012]]<br />
<br />
__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%AC%E0%A4%B2&diff=290610शंबल2012-09-06T07:14:34Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>*[[विष्णुपुराण]]<ref>विष्णुपुराण 4,24,98</ref> मे शंवलग्राम मे भविष्य के [[कल्कि अवतार]] होने का उल्लेख है- <br />
‘शंबलग्रामप्रधानब्राह्मणस्यविष्णुयशसोगृहेऽष्टगुणार्द्धिसमन्वितः कल्किरूपी जगत्यात्रावतीर्य स्वधर्मेषु चाखिलमेव संस्थापयिष्यति’। <br />
*कुछ लोगों के मत में शंवल ग्राम वर्तमान संभल है।<br />
*जो की [[उत्तर प्रदेश]] के [[मुरादाबाद ज़िला|मुरादाबाद ज़िले]] में स्थित है।<br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
<br />
==बाहरी कड़ियाँ==<br />
<br />
==संबंधित लेख==<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
[[Category:उत्तर प्रदेश]]<br />
[[Category:नया पन्ना सितम्बर-2012]]<br />
<br />
__INDEX__</div>रेणुhttps://bharatdiscovery.org/bharatkosh/w/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A4%B2&diff=290606सम्भल2012-09-06T07:04:48Z<p>रेणु: </p>
<hr />
<div>'''सम्भल''' [[उत्तर प्रदेश]] के मुरादाबाद ज़िले में स्थित एक प्राचीन तीर्थ स्थल है। <br />
*[[टॉलमी]] द्वारा उल्लिखित संबकल को संभल से समीकृत किया जाता है। <br />
*यहाँ ऐसी पौराणिक मान्यता है कि [[कलियुग]] में कल्कि अवतार [[शंबल]] नामक ग्राम में होगा। <br />
*लोक मान्यता में सम्भल को ही शंबल माना जाता है। <br />
*मध्यकाल में सम्भल का सामरिक महत्त्व बढ़ गया, क्योंकि यह [[आगरा]] व [[दिल्ली]] के निकट है। <br />
*सम्भल की जागीर [[बाबर]] के आक्रमण के समय अफ़गान सरदारों के हाथ में थी। <br />
*[[बाबर]] ने [[हुमायूँ]] को संभल की जागीर दी लेकिन वहाँ वह बीमार हो गया, अतः आगरा लाया गया। <br />
*इस प्रकार बाबर के बाद हुमायूँ ने साम्राज्य को भाइयों में बाँट दिया और सम्भल [[अस्करी]] को मिला। <br />
*[[शेरशाह सूरी]] ने हुमायूँ सूरी को खदेड़ दिया और अपने दामाद मुबारिज़ ख़ाँ को सम्भल की जागीर दी। <br />
*अब्बास ख़ाँ शेरवानी के अनुसार बाबर के सेनापतियों ने यहाँ कई मन्दिरों को तोड़ा था और [[जैन]] मूर्तियों का खण्डन किया था। <br />
<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
==संबंधित लेख==<br />
{{उत्तर प्रदेश के नगर}}<br />
[[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश के नगर]] [[Category:भारत के नगर]]<br />
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<hr />
<div>*[[विष्णुपुराण]]<ref>विष्णुपुराण 4,24,98</ref> मे शंवलग्राम मे भविष्य के [[कल्कि अवतार]] होने का उल्लेख है- <br />
‘शवलग्रामप्रधानव्राहा्रणस्यविष्णुयशसोगृहेऽष्टगुणाद्धिसमन्वितः कल्किरूपी जगत्यात्राव्रतीर्थ स्वधर्मेषु चाखिलमेव संस्थापयिष्यति’। <br />
*कुछ लोगों के मत में शंवल ग्राम वर्तमान संभल है।<br />
*जो की [[उत्तर प्रदेश]] के [[मुरादाबाद ज़िला|मुरादाबाद ज़िले]] में स्थित है।<br />
<br />
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
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==संबंधित लेख==<br />
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<hr />
<div>'''शंखोद्वार''' [[चंद्रभागा नदी]] के तट पर स्थित तीर्थ है जिसका उल्लेख [[स्कंदपुराण]] मे है। <br />
*स्कंदपुराण की कथा के अनुसार अंधक असुर को मारकर भगवान ने जहां शंखध्वनि की थी, यह वही स्थान है। <br />
*यहाँ एक सूर्य मंदिर स्थित है। <br />
<br />
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
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<hr />
<div>*शंखेश्वर अब वर्तमान में शंखेश्वर-पार्श्र्वनाथ तीर्थ है जो धनपुर ([[गुजरात]]) के निकट है। <br />
*इसका नामोल्लेख जैन स्रोत तीर्थमालाचैत्यवंदन मे इस प्रकार है- <br />
‘जीरावल्लिफलद्वि षारक नगे शैरीस शंखेश्वरे’। <br />
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<hr />
<div>[[विष्णुपुराण]] के अनुसार शंखकूट पर्वत मेरू के उत्तर की ओर स्थित है- <br />
<br />
‘शंख्कूटाऽय ऋषभोहंसो नागस्तथापरः कलंजाघाश्चतथा उत्तरे केसराचलः’।<ref>विष्णुपुराण 2,2,29</ref> <br />
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<hr />
<div>'''होलकोंडा''' [[मैसूर]] के [[गुलबर्गा ज़िला|गुलबर्गा ज़िले]] में स्थित है।<br />
*मध्यकाल में निर्मित मध्य पांच सुन्दर मक़बरे यहाँ स्थित हैं, किन्तु ये भवन किसका स्मारक हैं यह अभी तक अनिश्चित है। <br />
<br />
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<hr />
<div>'''होमनाबाद''' 19वीं शती के पूर्वाध में दाक्षिणात्य संत मानिकप्रभु का निवास्थान माना जाता है। <br />
*होमनाबाद [[मैसूर]] में है।<br />
*उन्होंनें सब धर्मों की एकता पर बहुत जोर दिया था और उन के शिष्य सभी मतों तथा जातियों में पाये जाते थे। <br />
*मानिकप्रभु का मठ होमनाबाद में आज भी देखा जा सकता है। <br />
*यहां उनके शिष्य संत की परम्परा को बनाए हुए हैं।<br />
<br />
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
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<hr />
<div>'''होनहल्ली''' [[मैसूर]] में स्थित है।<br />
*होनहल्ली में [[लोहा]] गलाने के प्राचीन कारखानों के [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं। <br />
*जिससे इस स्थान पर मध्यकाल में लोहा गलाने तथा ढालने के उद्योग की विद्यमानता सिद्ध होती है।<br />
<br />
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
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<hr />
<div>{{Tocright}}<br />
[[कोसी]] तथा [[होडल]] के बीच में [[दिल्ली]]-[[मथुरा]] राजमार्ग के आसपास कोटवन है । इसका पूर्व नाम कोटरवन है । यह स्थान [[चरणपहाड़ी]] से चार मील उत्तर और कुछ पूर्व में है यहाँ शीतल कुण्ड है और सूर्यकुण्ड दर्शनीय है । यह कृष्ण के गोचारण और क्रीड़ा-विलास का स्थान है ।<br />
==शेषशाई==<br />
वासोली से डेढ़ मील दक्षिण तथा कुछ पूर्व दिशा में एक लीला स्थली विराजमान है । पास में ही क्षीरसागर ग्राम है । क्षीरसागर के पश्चिमी तट पर मन्दिर में भगवान अनन्त शैय्या पर शयन कर रहे हैं तथा लक्ष्मीजी उनकी चरण सेवा कर रही हैं । <br />
<br />
'''प्रसंग'''<br />
<br />
किसी समय कौतुकी [[कृष्ण]] [[राधा|राधिका]] एवं सखियों के साथ यहाँ विलास कर रहे थे । किसी प्रसंग में उनके बीच में अनन्तशायी भगवान [[विष्णु]] की कथा-चर्चा उठी । राधिका के हृदय में अनन्तशायी विष्णु की शयन लीला देखने की प्रबल इच्छा हो गयी ।अत: कृष्ण ने स्वयं उन्हें लीला का दर्शन कराया । अनन्तशायी के भाव में आविष्ट हो श्रीकृष्ण ने क्षीरसागर के मध्य सहस्त्र दल कमल के ऊपर शयन किया और राधिका ने लक्ष्मी के आवेश में उनके चरणों की सेवा की । [[गोपी]]-मण्डली इस लीला का दर्शनकर अत्यन्त आश्चर्यचकित हुई । <br />
श्री [[रघुनाथदास गोस्वामी]] ने ब्रजविलास स्तव में इस लीला को इंगित किया है । अतिशय कोमलांगी राधिका श्रीकृष्ण के अतिश कोमल सुमनोहर चरण कमलों को अपने वक्षस्थल के समीप लाकर भी उन्हें अपने वक्षस्थल पर इस भय से धारण नहीं कर सकीं कि कहीं हमारे कर्कश कुचाग्र के स्पर्श से उन्हें कष्ट न हो । उन शेषशायी कृष्ण के मनोरम गोष्ठ में मेरी स्थिति हो ।<ref>यस्य श्रीमच्चरणकमले कोमले कोमलापि'<br />
श्रीराधाचैर्निजसुखकृते सन्नयन्ती कुचाग्रे ।<br />
भीतापयारादय नहि दधातयस्य कार्कशयदोषात<br />
स श्रीगोष्ठे प्रथयतु सदा शेषशायी स्थिति न: ।<br />
(स्तवावली ब्रजविलास, श्लोक-91</ref> श्री[[चैतन्य महाप्रभु]] ब्रजदर्शन के समय यहाँ पर उपस्थित हुए थे तथा इस लीलास्थली का दर्शनकर प्रेमाविष्ट हो गये । यहाँ मनोहर कदम्ब वन है, यहीं पर प्रौढ़नाथ तथा हिण्डोले का दर्शन है । पास ही श्रीवल्लभाचार्य जी की बैठक है । <br />
==खामी गाँव==<br />
इसका अन्य नाम खम्बहर है । यह गाँव [[ब्रज]] की सीमा पर स्थित है । श्रीवज्रनाभ महाराज ने ब्रज की सीमा का निर्णय करने के लिए यहाँ पर पत्थर का एक खम्बा गाढ़ा था । पास ही वनचारी गाँव भी है । ये दोनों गाँव ब्रज की उत्तर-पश्चिम सीमा पर होड़ल से चार मील उत्तर-पूर्व में स्थित हैं । यहाँ लक्ष्मीनारायण और महादेवीजी के दर्शन है ।<br />
==खयेरो==<br />
इसका दूसरा नाम खरेरो भी है । द्वारकापुरी से आकर यहाँ बलदेवजी ने सखाओं से खैर अर्थात मंगल समाचार पूछा था । यह गोचारण का स्थान है । यह स्थान शेषशाई से चार मील दक्षिण में (कुछ पूर्व में) स्थित है । <br />
==बनछौली==<br />
यह गाँव खरेरो से ढ़ाई मील पूर्व तथा पयगाँव से चार मील उत्तर-पश्चिम में स्थित है । यहाँ पर कृष्ण की [[रासलीला]] हुई थी ।<br />
==ऊजानी==<br />
यह गाँव पयगाँव से चार मील उत्तर-पूर्व में छाता –शेरगढ़ राजमार्ग के निकट स्थित है । श्रीकृष्ण की सुमधर वंशीध्वनि को सुनकर [[यमुना नदी|यमुना]]जी उल्टी बहने लगी थीं । ऊजानी शब्द का अर्थ उल्टी बहने से है । आज भी यह दृश्य यहाँ दर्शनीय है ।<br />
<br />
==खेलन वन==<br />
इसका नामान्तर शेरगढ़ है । यह स्थान ऊजानी से दो मील दक्षिण-पूर्व में अवस्थित है । यहाँ पर गोचारण के समय श्रीकृष्ण और श्रीबलराम सखाओं के साथ विविध प्रकार के खेल खेलते थे । राधिका भी यहाँ अपनी सखियों के साथ खेलती थीं । इन्हीं सब कारणों से इस स्थान का नाम खेलन वन है । <br />
<br />
'''प्रसंग'''<br />
<br />
एक समय नन्दबाबा गोप, गोपी और गऊओं के साथ यहीं पर निवास कर रहे थे । वृषभानु बाबा भी अपने पूरे परिवार और गोधन के साथ इधर ही कहीं निवास कर रहे थे । 'जटिला और कुटिला' दोनों ही अपने को [[ब्रज]] में पतिव्रता नारी समझती थीं । ऐसा देखकर एक दिन कृष्ण ने अस्वस्थ होने का बहाना किया । उन्होंने इस प्रकार दिखलाया कि मानो उनके प्राण निकल रहे हों । [[यशोदा]]जी ने वैद्यों तथा मन्त्रज्ञ ब्राह्मणों को बुलवाया , किन्तु वे कुछ भी नहीं कर सके । अंत में योगमाया पूर्णिमाजी वहाँ उपस्थित हुईं । उन्होंने कहा-यदि कोई पतिव्रता नारी मेरे दिये हुए सैंकड़ों छिद्रों से युक्त इस घड़े में [[यमुना नदी|यमुना]] का जल भर लाये और मैं मन्त्रद्वारा [[कृष्ण]] का अभिषेक कर दूँ तो कन्हैया अभी स्वस्थ हो सकता है, अन्यथा बचना असंभव है । यशोदाजी ने जटिला-कुटिला को बुलवाया और उनसे उस विशेष घड़े में यमुना जल लाने के लिए अनुरोध किया । बारी-बारी से वे दोनों यमुना के घाट पर जल भरने के लिए गई, किन्तु जल की एक बूंद भी उस घड़े में लाने में असमर्थ रहीं । वे यमुना घाट पर उक्त कलस को रखकर उधर-से-उधर ही घर लौट गयीं । अब योगमाया पूर्णिमाजी के परामर्श से मैया यशोदा जी ने राधिका से सहस्त्र छिद्रयुक्त उस घड़े में यमुना जल लाने के लिए अनुरोध किया । उनके बार-बार अनुरोध करने पर राधिका उस सहस्त्र छिद्रयुक्त घड़े में यमुनाजल भरकर ले आईं । एक बूंद जल भी उस घड़े में से नीचे नहीं गिरा । पूर्णमासी जी ने उस जल से कृष्ण का [[अभिषेक]] किया । अभिषेक करते ही कृष्ण सम्पूर्णरूप से स्वस्थ हो गये । सारे ब्रजवासी इस अद्भुत घटना को देखकर विस्मित हो गये । फिर तो सर्वत्र ही राधिका जी के पातिव्रत्य धर्म की प्रशंसा होने लगी । यहाँ बलराम कुण्ड, खेलनवन, गोपी घाट, श्रीराधागोविन्दजी, श्रीराधागोपीनाथ और श्रीराधामदनमोहन दर्शनीय हैं ।<br />
<br />
==रामघाट==<br />
शेरगढ़ दो मील पूर्व में यमुना के तट पर रामघाट स्थित है । इस गाँव का वर्तमान नाम ओबे है । यहाँ बलदेवजी ने [[रासलीला]] की थी । [[द्वारिका]] में रहते-रहते श्रीकृष्ण [[बलराम]] को बहुत दिन बीत गये । उनके विरह में ब्रजवासी बड़े ही व्याकुल थे । उनको सांत्वना देने के लिए श्रीकृष्ण ने श्रीबलदेव को ब्रज में भेजा था । उस समय [[नन्द]][[गोकुल]] यहीं आस-पास निवास कर रहा था । बलदेवजी ने चैत्र और वैशाखा दो मास नन्द ब्रज में रहकर माता-पिता, सखा और गोपियों को सांत्वना देने की भरपूर चेष्टा की ।<ref>द्वौ मासौ तत्र चावात्सीन्मधुं माधवमेव च । राम: क्षपासु भगवान् गोपीनां रतिमावहन् ।। श्रीमद्भागवत /10/65/17</ref> अंत में गोपियों की विरह-व्याकुलता को दूर करने के लिए उनके साथ नृत्य और गीत पूर्ण रास का आयोजन किया, किन्तु उनका यह रास अपने यूथ की ब्रजयुवतियों के साथ ही सम्पन्न हुआ ।<ref>ततश्च प्रश्यात्र वसन्तवेषौ श्रीरामकृष्णौ ब्रजसुन्दरीभि: । विक्रीडतु: स्व स्व यूथेश्वरीभि: समं रसज्ञौ कल धौत मण्डितौ ।। नृत्यनतौ गोपीभि: सार्द्ध गायन्तौ रसभावितौ । गायन्तीभिश्च रामाभिर्नृत्यन्तीभिश्च शोभितौ ।। (श्रीमुरारिगुप्तकृत श्रीकृष्णचैतन्यचरित</ref> उस समय वरुणदेव की प्रेरणा से परम सुगन्धमयी वारुणी (वृक्षों मधुर रस) बहने लगी । प्रियाओं के साथ बलदेव जी उस सुगन्धमयी वारुणी (मधु) का पानकर रास-विलास में प्रमत्त हो गये जल-क्रीड़ा तथा गोपियों की पिपासा शान्त करने के लिए उन्होंने कुछ दूर पर बहती हुई यमुना जी को बुलाया, किन्तु न आने पर उन्होंने अपने हलके द्वारा यमुना जी को आकर्षित किया । फिर गोपियों के साथ यमुना जल में जलविहार आदि क्रीड़ाएँ कीं । आज भी यमुना अपना स्वाभाविक प्रवाह छोड़कर रामघाट पर प्रवाहित होती हैं । यमुनाजी स्वयं विशाखाजी हैं । वे कृष्ण प्रिया हैं तथा राधिका की प्रधान सहेली हैं । समुद्रगामिनी यमुना विशाखास्वरूपिणी यमुनाजी का प्रकाश हैं । उन्हीं को बलदेवजी ने अपने हलकी नींक से खींचा था, श्रीकृष्णप्रिया यमुना को नहीं । श्रीनित्यानन्द प्रभु [[ब्रजमंडल]] भ्रमण के समय यहाँ पधारे थे । इस विहार भूमि का दर्शनकर वे भावविष्ट हो गये थे । यहाँ बलरामजी के मन्दिर के पास ही एक अश्वत्थ वृक्ष है, जो बलरामजी के सखा के रूप में प्रसिद्ध हैं । यहीं वह रासलीला हुई थीं । <br />
==ब्रह्मघाट==<br />
रामघाट के पास ही अत्यन्त मनोरम ब्रह्मघाट स्थित है, जहाँ ब्रह्माजी ने श्रीकृष्ण-आराधना के द्वारा बछड़े चुराने का अपराध क्षमा कराया था । <br />
==कच्छवन==<br />
रामघाट के पास ही कच्छवन है । यहाँ पर कृष्ण सखाओं के साथ कछुए बनकर खेला करते थे । <br />
==भूषणवन==<br />
कच्छवन के पास ही भूषणवन है । यहाँ गोचारण के समय सखाओं ने विविध प्रकार के पुष्पों से कृष्ण को भूषित किया था । इसलिए इसका नाम भूषणवन है । <br />
==गुञ्जवन==<br />
भूषणवन के पास ही गुञ्जवन है । यहाँ गोपियों ने गुञ्जा की माला से कृष्ण का अद्भुत श्रृंगार किया था तथा कृष्ण ने गुञ्जामाला के द्वारा राधिका का श्रृंगार किया था । रामघाट से डेढ़ मील दक्षिण- पश्चिम में [[बिहारवन]] है<br />
<br />
<br />
{{संदर्भ ग्रंथ}}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== <br />
<references/><br />
<br /><br />
==संबंधित लेख==<br />
{{ब्रज}}<br />
{{ब्रज के दर्शनीय स्थल}}<br />
{{ब्रज के वन}} <br />
[[Category:ब्रज]]<br />
[[Category:ब्रज के वन]] <br />
[[Category:ब्रज के धार्मिक स्थल]]<br />
[[Category:ब्रज के दर्शनीय स्थल]]<br />
[[Category:पर्यटन कोश]] <br />
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<hr />
<div>'''होडल''' [[दिल्ली]]-[[मथुरा]] रेल मार्ग पर दिल्ली से 53 मील दूर है। <br />
;इतिहास<br />
1720 ई॰ में दिल्ली के मुगल सम्राट मोहम्मदशाह रंगीले और सैयद अब्दुल्ला की सेनाओं में इस स्थान के निकट हुआ था। इस युद्ध में [[भरतपुर]] का संस्थापक चूड़ामन जाट भी अब्दुल्ला की ओर से लड़ा था। अब्दुल्ला की सेना पूरी तरह से नष्ट हो गई थी। अब्दुल्ला तथा उसके भाई हुसैन का परवर्ती मुगलकालीन इतिहास के लेखकों ने नृपकर्ता कहा है क्योंकि इन्होंने दिल्ली के तख़्त पर एक के बाद एक कई बादशाहों को मनमाने तरीके से बिठाकर राज्यशक्ति स्वयं अपने हाथ में रखी थी। भरतपुर के राजा [[सूरजमल]] ने होडलनिवासी चौधरी काशी की पुत्री से विवाह किया था जो आगे चलकर रानी किशोरी या हसिया रानी कहलाई। रानी किशोरी का भरतपुर-राज्य के इतिहास में प्रमुख स्थान है। उसने भरतपुर को कई बार आकस्मिक राजनीतिक दुर्घटनाओं से बचाया था। <br />
<br />
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}<br />
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==<br />
<references/><br />
<br />
==बाहरी कड़ियाँ==<br />
<br />
==संबंधित लेख==<br />
[[Category:दिल्ली]]<br />
[[Category:इतिहास कोश]]<br />
<br />
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