"गीता 11:7" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - " मे " to " में ")
छो (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}")
पंक्ति 56: पंक्ति 56:
 
<tr>
 
<tr>
 
<td>
 
<td>
 +
{{प्रचार}}
 
{{गीता2}}
 
{{गीता2}}
 
</td>
 
</td>

05:50, 14 जून 2011 का अवतरण

गीता अध्याय-11 श्लोक-7 / Gita Chapter-11 Verse-7


इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि ।।7।।



हे <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! अब इस मेरे शरीर में एक जगह स्थित चराचर सहित सम्पूर्ण जगत् को देख तथा और भी जो कुछ देखना चाहता हो सो देख ।।7।।

Arjuna, behold as concentrated within this body of mine the entire creation consisting of both animate and inanimate beings, and whatever else you desire to see. (7)


गुडाकेश = हे अर्जुन; अद्य = अब; इह = इस; मम = मेरे; देहे = शरीरमें; एकस्थम् = एक जगह स्थित हुए; सचराचरम् = चराचरसहित; कृत्स्त्रम् = संपूर्ण; जगत् = जगत् को; अन्यत् = और; च = भी; यत् =जो(कुछ); द्रष्टुम् = देखना; इच्छसि = चाहता है(सो देख)



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)