"कांची शक्तिपीठ" के अवतरणों में अंतर
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==पौराणिक मान्यताएँ== | ==पौराणिक मान्यताएँ== | ||
− | कामाक्षी देवी को कामकोटि भी कहा जाता है तथा मान्यता है कि यह मंदिर [[शंकराचार्य]] द्वारा निर्मित है। देवी कामाक्षी के नेत्र इतने कमनीय या सुंदर हैं कि उन्हें कामाक्षी संज्ञा दी गई। वस्तुतः कामाक्षी में मात्र कमनीय या काम्यता ही नहीं, | + | कामाक्षी देवी को 'कामकोटि' भी कहा जाता है तथा मान्यता है कि यह मंदिर [[शंकराचार्य]] द्वारा निर्मित है। देवी कामाक्षी के नेत्र इतने कमनीय या सुंदर हैं कि उन्हें कामाक्षी संज्ञा दी गई। वस्तुतः कामाक्षी में मात्र कमनीय या काम्यता ही नहीं, वरन् कुछ बीजाक्षरों का यांत्रिक महत्त्व भी है। 'क' कार [[ब्रह्मा]] का, 'अ' कार [[विष्णु]] का, 'म' कार [[महेश्वर]] का वाचक है। इसीलिए कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप हैं। [[सूर्य]]-[[चंद्रमा|चंद्र]] उनके प्रधान नेत्र हैं, [[अग्नि]] उनके भाल पर चिन्मय ज्योति से प्रज्ज्वलित तृतीय नेत्र है। कामाक्षी में एक और सामंजस्य है 'का' [[सरस्वती]] का। 'माँ' [[महालक्ष्मी]] का द्योतक है। इस प्रकार कामाक्षी के नाम में सरस्वती तथा लक्ष्मी का युगल-भाव समाहित है। शंकराचार्य ने- |
:सुधा सिन्धोर्मध्ये सुर विरटिवाटी परिवृत्तं मणिद्वीपे नीपोपपवनवति चिंतामणि गृहे। शिवाकारे मंचे पर्यंक निलयां भजंति त्वां धन्याः कतिचन चिदानंद लहराम्॥<ref>सौंदर्य लहरी</ref> | :सुधा सिन्धोर्मध्ये सुर विरटिवाटी परिवृत्तं मणिद्वीपे नीपोपपवनवति चिंतामणि गृहे। शिवाकारे मंचे पर्यंक निलयां भजंति त्वां धन्याः कतिचन चिदानंद लहराम्॥<ref>सौंदर्य लहरी</ref> | ||
कहते हुए उन्हें सुधा सागर के बीच [[पारिजात]] वन में मणिद्वीप वासिनी शिवाकार शैय्या पर परम [[शिव]] के साथ परमानंद की अनुभूति करने वाली कहा है। | कहते हुए उन्हें सुधा सागर के बीच [[पारिजात]] वन में मणिद्वीप वासिनी शिवाकार शैय्या पर परम [[शिव]] के साथ परमानंद की अनुभूति करने वाली कहा है। | ||
==प्रतिमाएँ== | ==प्रतिमाएँ== | ||
− | कामाक्षी देवी | + | कामाक्षी देवी त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमूर्ति हैं। एकाम्रेश्वर मंदिर के गर्भगृह में कामाक्षी की सुंदर प्रतिमा है। परिसर में ही [[अन्नपूर्णा देवी|अन्नपूर्णा]] तथा शारदा के भी मंदिर हैं। एक स्थान पर शंकराचार्य की भी मूर्ति है। मंदिर के द्वार पर कामकोटि यंत्र में 'आद्यालक्ष्मी', 'विशालाक्षी', 'संतानलक्ष्मी', 'सौभाग्यलक्ष्मी', 'धनलक्ष्मी', 'वीर्यलक्ष्मी', 'विजयलक्ष्मी', 'धान्यलक्ष्मी' का न्यास किया गया है तथा परिसर में एक सरोवर है। मंदिर के द्वार पर श्री रूपलक्ष्मी सहित चोर महाविष्णु तथा मंदिर के अधिदेवता श्री महाशास्ता के विग्रह हैं, जिनकी संख्या 100 के लगभग है। मंदिर का मुख्य विमान स्वर्णपत्रों से जड़ा हुआ है। |
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==यातायात और आवास== | ==यातायात और आवास== | ||
*निवास हेतु काँची में अनेक धर्मशालाएँ, लाज, होटल आदि मौजूद हैं। | *निवास हेतु काँची में अनेक धर्मशालाएँ, लाज, होटल आदि मौजूद हैं। | ||
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07:41, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
कांची शक्तिपीठ
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वर्णन | तमिलनाडु स्थित 'कांची शक्तिपीठ' भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है। इसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। |
स्थान | काँची, तमिलनाडु |
देवी-देवता | शक्ति 'देवगर्भा' तथा भैरव 'रुरु'। |
संबंधित लेख | शक्तिपीठ, सती |
पौराणिक मान्यता | मान्यतानुसार यह माना जाता है कि इस स्थान पर देवी सती का 'कंकाल' गिरा था। |
अन्य जानकारी | कांची शक्तिपीठ दक्षिण भारत का सर्वप्रधान शक्तिपीठ है। |
कांची शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।
मंदिर
यह शक्तिपीठ तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम नगर में स्थित है। यहाँ देवी का कंकाल गिरा था। शक्ति 'देवगर्भा' तथा भैरव 'रुरु' हैं। यहाँ देवी कामाक्षी का भव्य विशाल मंदिर है, जिसमें त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमूर्ति कामाक्षी देवी की प्रतिमा है। यह दक्षिण भारत का सर्वप्रधान शक्तिपीठ है। काँची के तीन भाग हैं-
- शिवकाँची
- विष्णुकाँची
- जैनकाँची
ये तीनों अलग नहीं हैं। शिवकाँची नगर का बड़ा भाग है, जो स्टेशन से लगभग-2 किलोमीटर है।
पौराणिक मान्यताएँ
कामाक्षी देवी को 'कामकोटि' भी कहा जाता है तथा मान्यता है कि यह मंदिर शंकराचार्य द्वारा निर्मित है। देवी कामाक्षी के नेत्र इतने कमनीय या सुंदर हैं कि उन्हें कामाक्षी संज्ञा दी गई। वस्तुतः कामाक्षी में मात्र कमनीय या काम्यता ही नहीं, वरन् कुछ बीजाक्षरों का यांत्रिक महत्त्व भी है। 'क' कार ब्रह्मा का, 'अ' कार विष्णु का, 'म' कार महेश्वर का वाचक है। इसीलिए कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप हैं। सूर्य-चंद्र उनके प्रधान नेत्र हैं, अग्नि उनके भाल पर चिन्मय ज्योति से प्रज्ज्वलित तृतीय नेत्र है। कामाक्षी में एक और सामंजस्य है 'का' सरस्वती का। 'माँ' महालक्ष्मी का द्योतक है। इस प्रकार कामाक्षी के नाम में सरस्वती तथा लक्ष्मी का युगल-भाव समाहित है। शंकराचार्य ने-
- सुधा सिन्धोर्मध्ये सुर विरटिवाटी परिवृत्तं मणिद्वीपे नीपोपपवनवति चिंतामणि गृहे। शिवाकारे मंचे पर्यंक निलयां भजंति त्वां धन्याः कतिचन चिदानंद लहराम्॥[1]
कहते हुए उन्हें सुधा सागर के बीच पारिजात वन में मणिद्वीप वासिनी शिवाकार शैय्या पर परम शिव के साथ परमानंद की अनुभूति करने वाली कहा है।
प्रतिमाएँ
कामाक्षी देवी त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमूर्ति हैं। एकाम्रेश्वर मंदिर के गर्भगृह में कामाक्षी की सुंदर प्रतिमा है। परिसर में ही अन्नपूर्णा तथा शारदा के भी मंदिर हैं। एक स्थान पर शंकराचार्य की भी मूर्ति है। मंदिर के द्वार पर कामकोटि यंत्र में 'आद्यालक्ष्मी', 'विशालाक्षी', 'संतानलक्ष्मी', 'सौभाग्यलक्ष्मी', 'धनलक्ष्मी', 'वीर्यलक्ष्मी', 'विजयलक्ष्मी', 'धान्यलक्ष्मी' का न्यास किया गया है तथा परिसर में एक सरोवर है। मंदिर के द्वार पर श्री रूपलक्ष्मी सहित चोर महाविष्णु तथा मंदिर के अधिदेवता श्री महाशास्ता के विग्रह हैं, जिनकी संख्या 100 के लगभग है। मंदिर का मुख्य विमान स्वर्णपत्रों से जड़ा हुआ है।
यातायात और आवास
- निवास हेतु काँची में अनेक धर्मशालाएँ, लाज, होटल आदि मौजूद हैं।
- काँची, चेन्नई से 75 किलोमीटर दूर है। यहाँ का नजदीकी विमान स्थान चेन्नई है। 'काँची', चेन्नई, तिरुपति, बैंगलूर से सीधे रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है तथा सड़क मार्ग से भी जुड़ा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सौंदर्य लहरी
संबंधित लेख