एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "०"।

"बैजनाथ" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "चिन्ह" to "चिह्न")
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
 
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
 
[[Category:पौराणिक कोश]]
 
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:धार्मिक चिन्ह]]
+
[[Category:धार्मिक चिह्न]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

11:00, 1 मार्च 2012 का अवतरण

बैजनाथ भगवान शिव के एक शिवलिंग का नाम है, जो उत्तराखण्ड के कांगड़ा में स्थित है। शिवभक्त लंका का राजा रावण इस शिवलिंग को उठाकर नहीं ले जा पाया था। तब यह शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित हो गया, जहाँ पर उसे रखा गया था। 'बैजू' नामक एक चरवाहे की नित्य पूजा-पाठ से ही इस शिवलिंग का नाम 'बैजनाथ' पड़ गया।

कथा

ब्रह्मा के पुत्र पुलस्त्य (सप्त ऋषियों में से एक) की तीन पत्नियाँ थी। पहली से कुबेर, दूसरी से रावण और कुंभकर्ण, तीसरी से विभीषण का जन्म हुआ। रावण ने बल प्राप्ति के निमित्त घोर तपस्या की। शिव ने प्रकट होकर रावण को शिवलिंग अपने नगर तक ले जाने की अनुमति दी। साथ ही कहा कि मार्ग में पृथ्वी पर रख देने पर लिंग वहीं स्थापित हो जाएगा। रावण शिव के दिये दो लिंग 'कांवरी' में लेकर चला। मार्ग मे लघुशंका के कारण, उसने कांवरी किसी 'बैजू' नामक चरवाहे को पकड़ा दी। शिवलिंग इतने भारी हो गए कि उन्हें वहीं पृथ्वी पर रख देना पड़ा। वे वहीं पर स्थापित हो गए। रावण उन्हें अपनी नगरी तक नहीं ले जाया पाया।जो लिंग कांवरी के अगले भाग में था, चन्द्रभाल नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा जो पिछले भाग में था, वैद्यनाथ कहलाया।

नामकरण

चरवाहा बैजू प्रतिदिन वैद्यनाथ की पूजा करने लगा। एक दिन उसके घर में उत्सव था। वह भोजन करने के लिए बैठा, तभी स्मरण आया कि शिवलिंग पूजा नहीं की है। सो वह वैद्यनाथ की पूजा के लिए गया। सब लोग उससे रुष्ट हो गए। शिव और पार्वती ने प्रसन्न होकर उसकी इच्छानुसार वर दिया कि वह नित्य पूजा में लगा रहे तथा उसके नाम के आधार पर वह शिवलिंग भी 'बैजनाथ' कहलाए।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय मिथक कोश |लेखक: डॉ. उषा पुरी विद्यावाचस्पति |प्रकाशक: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 203 |

  1. शिवपुराण, 8|43-47

संबंधित लेख