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'''बख्शी ग्रन्थावली-2''' [[हिंदी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] की 'बख्शी ग्रन्थावली' का दूसरा खण्ड है।  इस खण्ड में बख्शी जी का कथा साहित्य और बाल कथाएँ संकलित हैं। बख्शी जी की 'बालकथा माला' में छोटी-छोटी कहानियाँ हैं।  वे कहानियाँ अध्ययन की परिपक्वता एवं लोक कथाओं पर आधारित जीवन को सही दिशा दिखाने में सक्षम कथा-साहित्य संग्रह हैं। [[1916]] में बख्शी जी की पहली मौलिक कहानी 'झलमला' [[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]] में प्रकाशित हुई थी। बख्शी जी के कथा-साहित्य में [[छत्तीसगढ़]] की संस्कृति रची-बसी है। त्योहारों की झलक बख्शी जी के कथा-साहित्य में सर्वत्र दिखाई देती है। छत्तीसगढ़ में 'अखती' ([[अक्षय तृतीया]]) का त्योहार मनाया जाता है। बख्शी जी की 'गुड़िया' कहानी में उसका जीवन्त रूप दिखाई देता है। 'एक कहानी की रचना' में बख्शी जी रोबिंसन क्रूसो की तुलना करते हुए छत्तीसगढ़ की [[महानदी]] एवं यहाँ के काल्पनिक वातावरण और 'हलचली' (कमरछठ) त्योहार की चर्चा करते हुए विषम परिस्थिति में उसकी उपयोगिता को सिद्ध करते हैं। बख्शी जी की लेखनी ही ऐसा विशिष्ट कौशल कर सकती है । कथा-साहित्य और बाल कथाओं के माध्यम से बख्शी जी ने जीवन को सत्य की छाँव में रखने का प्रयास किया है।<ref>{{cite web |url=http://vaniprakashanblog.blogspot.in/2012/06/blog-post_07.html |title=सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में  |accessmonthday=13 दिसम्बर |accessyear=2012 |last=श्रीवास्तव  |first=डॉ. नलिनी |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वाणी प्रकाशन (ब्लॉग) |language=हिंदी }}</ref>
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'''बख्शी ग्रन्थावली-2''' [[हिंदी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] की 'बख्शी ग्रन्थावली' का दूसरा खण्ड है।  इस खण्ड में बख्शी जी का कथा साहित्य और बाल कथाएँ संकलित हैं।  
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बख्शी जी की 'बालकथा माला' में छोटी-छोटी कहानियाँ हैं।  वे कहानियाँ अध्ययन की परिपक्वता एवं लोक कथाओं पर आधारित जीवन को सही दिशा दिखाने में सक्षम कथा-साहित्य संग्रह हैं। [[1916]] में बख्शी जी की पहली मौलिक कहानी 'झलमला' [[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]] में प्रकाशित हुई थी। बख्शी जी के कथा-साहित्य में [[छत्तीसगढ़]] की संस्कृति रची-बसी है। त्योहारों की झलक बख्शी जी के कथा-साहित्य में सर्वत्र दिखाई देती है। छत्तीसगढ़ में 'अखती' ([[अक्षय तृतीया]]) का त्योहार मनाया जाता है। बख्शी जी की 'गुड़िया' कहानी में उसका जीवन्त रूप दिखाई देता है। 'एक कहानी की रचना' में बख्शी जी रोबिंसन क्रूसो की तुलना करते हुए छत्तीसगढ़ की [[महानदी]] एवं यहाँ के काल्पनिक वातावरण और 'हलचली' (कमरछठ) त्योहार की चर्चा करते हुए विषम परिस्थिति में उसकी उपयोगिता को सिद्ध करते हैं। बख्शी जी की लेखनी ही ऐसा विशिष्ट कौशल कर सकती है । कथा-साहित्य और बाल कथाओं के माध्यम से बख्शी जी ने जीवन को सत्य की छाँव में रखने का प्रयास किया है।<ref>{{cite web |url=http://vaniprakashanblog.blogspot.in/2012/06/blog-post_07.html |title=सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में  |accessmonthday=13 दिसम्बर |accessyear=2012 |last=श्रीवास्तव  |first=डॉ. नलिनी |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वाणी प्रकाशन (ब्लॉग) |language=हिंदी }}</ref>
  
  

08:43, 13 दिसम्बर 2012 का अवतरण

बख्शी ग्रन्थावली-2 हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की 'बख्शी ग्रन्थावली' का दूसरा खण्ड है। इस खण्ड में बख्शी जी का कथा साहित्य और बाल कथाएँ संकलित हैं।

बख्शी जी की 'बालकथा माला' में छोटी-छोटी कहानियाँ हैं।  वे कहानियाँ अध्ययन की परिपक्वता एवं लोक कथाओं पर आधारित जीवन को सही दिशा दिखाने में सक्षम कथा-साहित्य संग्रह हैं। 1916 में बख्शी जी की पहली मौलिक कहानी 'झलमला' सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। बख्शी जी के कथा-साहित्य में छत्तीसगढ़ की संस्कृति रची-बसी है। त्योहारों की झलक बख्शी जी के कथा-साहित्य में सर्वत्र दिखाई देती है। छत्तीसगढ़ में 'अखती' (अक्षय तृतीया) का त्योहार मनाया जाता है। बख्शी जी की 'गुड़िया' कहानी में उसका जीवन्त रूप दिखाई देता है। 'एक कहानी की रचना' में बख्शी जी रोबिंसन क्रूसो की तुलना करते हुए छत्तीसगढ़ की महानदी एवं यहाँ के काल्पनिक वातावरण और 'हलचली' (कमरछठ) त्योहार की चर्चा करते हुए विषम परिस्थिति में उसकी उपयोगिता को सिद्ध करते हैं। बख्शी जी की लेखनी ही ऐसा विशिष्ट कौशल कर सकती है । कथा-साहित्य और बाल कथाओं के माध्यम से बख्शी जी ने जीवन को सत्य की छाँव में रखने का प्रयास किया है।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीवास्तव, डॉ. नलिनी। सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वाणी प्रकाशन (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2012।

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