"प्रयोग:कविता सा.-1" के अवतरणों में अंतर
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कविता भाटिया (चर्चा | योगदान) |
कविता भाटिया (चर्चा | योगदान) |
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-उस्ताद सौयद अली | -उस्ताद सौयद अली | ||
− | {निम्नलिखित में मूर्तिकार कौन है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-81,प्रश्न-29 | + | {निम्नलिखित में [[मूर्तिकार]] कौन है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-81,प्रश्न-29 |
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-हुसैन | -हुसैन | ||
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+[[देवी प्रसाद रायचौधरी]] | +[[देवी प्रसाद रायचौधरी]] | ||
− | {कौन-सा चित्रकार लोकचित्रों से प्रभावित था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-85,प्रश्न-67 | + | {कौन-सा [[चित्रकार]] लोकचित्रों से प्रभावित था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-85,प्रश्न-67 |
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-के.के. हेब्बर | -के.के. हेब्बर | ||
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{निम्न में कौन युग्म सुमेलित नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-226,प्रश्न-303 | {निम्न में कौन युग्म सुमेलित नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-226,प्रश्न-303 | ||
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− | -उस्ताद जाकिर हुसैन-तबला | + | -[[उस्ताद जाकिर हुसैन]]-तबला |
-श्रीमती एन. राजन-वायलिन | -श्रीमती एन. राजन-वायलिन | ||
+श्री अमजद अली खा-सितार | +श्री अमजद अली खा-सितार | ||
-पंडित हरिप्रसाद चौरसिआ-बांसुरी | -पंडित हरिप्रसाद चौरसिआ-बांसुरी | ||
− | ||श्री अमजद अली खां, सरोद वादक हैं न कि सितारवादक शेष युग्म सुमेलित है। | + | ||[[अमजद अली खां|श्री अमजद अली खां]], सरोद वादक हैं न कि सितारवादक शेष युग्म सुमेलित है। |
{अजंता में क्यूरेट की नियुक्ति हुई- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-30,प्रश्न-10 | {अजंता में क्यूरेट की नियुक्ति हुई- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-30,प्रश्न-10 | ||
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||वर्ष 1908 में अजंता में क्यूरेट की नियुक्ति की गई। | ||वर्ष 1908 में अजंता में क्यूरेट की नियुक्ति की गई। | ||
− | {भारत के किस कलाकार को पिकासो के बराबर माना जाता है?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-100,प्रश्न-20 | + | {[[भारत]] के किस कलाकार को पिकासो के बराबर माना जाता है?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-100,प्रश्न-20 |
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− | -सतीश गुजराल | + | -[[सतीश गुजराल]] |
− | +एम.एफ. हुसैन | + | +[[एम.एफ. हुसैन]] |
-जी.आर. संतोष | -जी.आर. संतोष | ||
-राम कुमार | -राम कुमार | ||
− | ||मकबूल फिदा हुसैन के महाभारत शृंखला के कुछ चित्र वर्ष 1971 में ब्राजील में पाब्लो पिकासो के चित्रों के साथ प्रदर्शित हुए थे। मकबूल फिदा हुसैन को 'भारत का पिकासो' माना जाता है। | + | ||[[मकबूल फिदा हुसैन]] के [[महाभारत]] शृंखला के कुछ चित्र वर्ष 1971 में ब्राजील में पाब्लो पिकासो के चित्रों के साथ प्रदर्शित हुए थे। मकबूल फिदा हुसैन को 'भारत का पिकासो' माना जाता है। |
{[[राजा रवि वर्मा]] के चित्रों का विषय क्या था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-91,प्रश्न-17 | {[[राजा रवि वर्मा]] के चित्रों का विषय क्या था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-91,प्रश्न-17 | ||
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-राजनैतिक | -राजनैतिक | ||
− | {फ्रा एंजेलिको किस शैली का चित्रकार है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-111,प्रश्न-60 | + | {फ्रा एंजेलिको किस शैली का [[चित्रकार]] है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-111,प्रश्न-60 |
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-बैरोक | -बैरोक | ||
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+पुनर्जागरण | +पुनर्जागरण | ||
-पूर्व-रेफेलाइट | -पूर्व-रेफेलाइट | ||
− | ||फ्रा एंजेलिको पुनरुत्थानकाल (पुनर्जागरण) के रोमिनिक चित्रकारों में सर्वश्रेष्ठ चित्रकार था। इसने अपनी कला को धर्म के प्रचार में लगाया। इसके प्रमुख चित्र हैं- मिस्त्र को पलायन, कुमार का अभिषेक, भविष्यवादी रेवइत संगीतज्ञ, अंतिम न्याय आदि। | + | ||फ्रा एंजेलिको पुनरुत्थानकाल (पुनर्जागरण) के रोमिनिक चित्रकारों में सर्वश्रेष्ठ [[चित्रकार]] था। इसने अपनी कला को धर्म के प्रचार में लगाया। इसके प्रमुख चित्र हैं- मिस्त्र को पलायन, कुमार का अभिषेक, भविष्यवादी रेवइत संगीतज्ञ, अंतिम न्याय आदि। |
{घनवाद आंदोलन समाप्त हो गया- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-130,प्रश्न-43 | {घनवाद आंदोलन समाप्त हो गया- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-130,प्रश्न-43 | ||
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+1925 ई. में | +1925 ई. में | ||
-1926 ई. में | -1926 ई. में | ||
− | ||वर्ष 1907 में पाब्लो पिकासो ने अपनी प्रसिद्ध कृति 'Les Demoiselles Avignon' का पेरिस में प्रदर्शन किया, जिससे घनवादी आंदोलन की आधारशिला रखी गई जो वर्ष 1925 में समाप्त हो गया। वर्ष 1914 के बाद दुनिया के सभी विकसित देशों में घनवादी कलाकृतियां बनाने लगीं एवं 1925 तक घनवाद निश्चल हुआ। घनवाद के प्रणेता पिकासो ने वर्ष 1925 में 'तीन नर्तक' चित्र बना कर घनवाद से विदा ली और इसके साथ ही घनवादी आंदोलन समाप्त हुआ यद्यपि बीसवीं शताब्दी की कला व निर्माण क्षेत्र पर अमित प्रभाव छोड़ गया। | + | ||वर्ष 1907 में पाब्लो पिकासो ने अपनी प्रसिद्ध कृति 'Les Demoiselles Avignon' का पेरिस में प्रदर्शन किया, जिससे घनवादी आंदोलन की आधारशिला रखी गई जो वर्ष [[1925]] में समाप्त हो गया। वर्ष [[1914]] के बाद दुनिया के सभी विकसित देशों में घनवादी कलाकृतियां बनाने लगीं एवं 1925 तक घनवाद निश्चल हुआ। घनवाद के प्रणेता पिकासो ने वर्ष 1925 में 'तीन नर्तक' चित्र बना कर घनवाद से विदा ली और इसके साथ ही घनवादी आंदोलन समाप्त हुआ यद्यपि बीसवीं शताब्दी की कला व निर्माण क्षेत्र पर अमित प्रभाव छोड़ गया। |
{इटली का वयोवृद्ध कलाचार्य कहा जाता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-145,प्रश्न-53 | {इटली का वयोवृद्ध कलाचार्य कहा जाता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-145,प्रश्न-53 | ||
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-ड्यूरर को | -ड्यूरर को | ||
-टिन्टोरेट्टो को | -टिन्टोरेट्टो को | ||
− | ||टिशियन अथवा तिजिआनो वेचेल्लिको को 'इटली का वयोवृद्ध कालाचार्य' कहा जाता है। संभवत: इटालियन कलाकारों में सर्वाधिक आयु उसी ने प्राप्त की है। उसने 'कुमारी का स्वर्गारोहण' चित्र आरंभ किया जो 1518 ई. में पूर्ण हुआ। यह चित्र वेनिस में पुनरुत्थान का प्रथम उद्घोष है। 1520 ई. में उसने बैकस तथा एरियाने शीर्षक चित्र की रचना की जिसमें झूठे प्रेमी थीसिस द्वारा परित्यक्त एरियाने को मंदिर का देवता बैकस अपने रथ से उतरकर सांत्वना दे रहा है। 1532 ई. में वह बोलोना में चार्ल्स पंचम से मिला जहां उसने ऑस्ट्रियन चित्रकार द्वारा अंकित चार्ल्स के एक चित्र की इतनी सुंदर अनुकृति की कि सम्राट ने उसे 1533 ई. में अपना दरबारी बना लिया। ईसा की कब्र में लिराना (The Entomdment) नामक चित्र को अपूर्ण छोड़कर 1576 ई. में वह चल बसा। इस चित्र को उसके शिष्य पाल्मा जिओवाने ने पूर्ण किया। 'फ्लोरो' (1515 ई.) टिशियन द्वारा चित्रित प्रसिद्ध चित्र है। | + | ||टिशियन अथवा तिजिआनो वेचेल्लिको को 'इटली का वयोवृद्ध कालाचार्य' कहा जाता है। संभवत: इटालियन कलाकारों में सर्वाधिक आयु उसी ने प्राप्त की है। उसने 'कुमारी का स्वर्गारोहण' चित्र आरंभ किया जो 1518 ई. में पूर्ण हुआ। यह चित्र वेनिस में पुनरुत्थान का प्रथम उद्घोष है। 1520 ई. में उसने बैकस तथा एरियाने शीर्षक चित्र की रचना की जिसमें झूठे प्रेमी थीसिस द्वारा परित्यक्त एरियाने को मंदिर का [[देवता]] बैकस अपने रथ से उतरकर सांत्वना दे रहा है। 1532 ई. में वह बोलोना में चार्ल्स पंचम से मिला जहां उसने ऑस्ट्रियन चित्रकार द्वारा अंकित चार्ल्स के एक चित्र की इतनी सुंदर अनुकृति की कि सम्राट ने उसे 1533 ई. में अपना दरबारी बना लिया। ईसा की कब्र में लिराना (The Entomdment) नामक चित्र को अपूर्ण छोड़कर 1576 ई. में वह चल बसा। इस चित्र को उसके शिष्य पाल्मा जिओवाने ने पूर्ण किया। 'फ्लोरो' (1515 ई.) टिशियन द्वारा चित्रित प्रसिद्ध चित्र है। |
{निम्न में से उस चित्रकार की पहचान कीजिए जिसने बंगाल शैली से भिन्न शैली में काम किया- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-87,प्रश्न-77 | {निम्न में से उस चित्रकार की पहचान कीजिए जिसने बंगाल शैली से भिन्न शैली में काम किया- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-87,प्रश्न-77 | ||
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− | - | + | -[[अवनीन्द्रनाथ टैगोर]] |
− | +गगनेन्द्रनाथ टैगोर | + | +[[गगनेन्द्रनाथ टैगोर]] |
-असित कुमार हल्दर | -असित कुमार हल्दर | ||
− | -नंदलाल बोस | + | -[[नंदलाल बोस]] |
||गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने अपने छोटे भाई अबनींद्रनाथ टैगोर के बंगाली कला आंदोलन से अप्रभावित रहकर अपनी व्यक्तिगत कला का सृजन किया। | ||गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने अपने छोटे भाई अबनींद्रनाथ टैगोर के बंगाली कला आंदोलन से अप्रभावित रहकर अपनी व्यक्तिगत कला का सृजन किया। | ||
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{सित्तनवासल गुफा किस राज्य में स्थित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-42,प्रश्न-19 | {सित्तनवासल गुफा किस राज्य में स्थित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-42,प्रश्न-19 | ||
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− | -मध्य प्रदेश | + | -[[मध्य प्रदेश]] |
− | +तमिलनाडु | + | +[[तमिलनाडु]] |
− | -महाराष्ट्र | + | -[[महाराष्ट्र]] |
− | -केरल | + | -[[केरल]] |
− | |सित्तनवासल गुफा जैन धर्म से संबंधित है। यह एक जैन मंदिर है, जिसे चट्टानों को काटकर बनाया गया है। यह सित्तनवासल गांव, पुडुकोट्टई जिला, तमिलनाडु में अवस्थित है। | + | |सित्तनवासल गुफा जैन धर्म से संबंधित है। यह एक जैन मंदिर है, जिसे चट्टानों को काटकर बनाया गया है। यह सित्तनवासल गांव, पुडुकोट्टई जिला, [[तमिलनाडु]] में अवस्थित है। |
− | {'कल्पसूत्र' ग्रंथों के चित्रण किस शैली में हुए? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-43,प्रश्न-23 | + | {'[[कल्पसूत्र]]' ग्रंथों के चित्रण किस शैली में हुए? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-43,प्रश्न-23 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
-पाल शैली | -पाल शैली | ||
− | -राजस्थानी शैली | + | -[[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी शैली]] |
+जैन शैली | +जैन शैली | ||
− | -पहाड़ी शैली | + | -[[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी शैली]] |
||'कल्पसूत्र' नामक जैन ग्रंथों में तीर्थंकरों (पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी आदि) का जीवन चरित वर्णित है। भद्रबाहु इसके रचयिता माने जाते हैं। कल्पसूत्र ग्रंथों के चित्रण जैन शैली में हुए। इस ग्रंथ की रचना महावीर स्वामी के निर्वाण के 150 वर्ष बाद हुई मानी जाती है। | ||'कल्पसूत्र' नामक जैन ग्रंथों में तीर्थंकरों (पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी आदि) का जीवन चरित वर्णित है। भद्रबाहु इसके रचयिता माने जाते हैं। कल्पसूत्र ग्रंथों के चित्रण जैन शैली में हुए। इस ग्रंथ की रचना महावीर स्वामी के निर्वाण के 150 वर्ष बाद हुई मानी जाती है। | ||
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12:29, 12 जनवरी 2018 का अवतरण
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