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'''अंकोटक''' एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थान है, जिसकी गणना [[गुप्तकाल]] में 'लाट देश' के मुख्य नगरों में की जाती थी।
'''अंकोटक''' एक ऐतिहासिक स्थान है। जिसकी गणना [[गुप्तकाल]] में लाट देश के मुख्य नगरों में की जाती है।
 
*खुदाई में अनेक प्राचीन जैन धातु-प्रतिमाएँ यहाँ से प्राप्त हुई थीं जिनमें से कुछ का परिचय जरनल ऑव ओरियंटल इंस्टीट्यूट<ref>बड़ौदा, जिल्द 1, पृष्ठ 72-79</ref> में दिया गया है।
 
*एक जिनाचार्य की प्रतिमा पर यह [[अभिलेख]] उत्कीर्ण है- ओं देव धर्मोऽयं निदृत्ति कुले जिनभद्र वाचनाचार्यस्य'।
 
*[[गुजरात]] के [[पुरातत्त्व]] के विद्वान श्री उमाकांत प्रेमानंद शाह का कथन है कि ये जिनभद्र क्षमाश्रमण-विशेषावश्यक भाध्य के रचयिता ही हैं।
 
*वे इस प्रतिमा का निर्माणकाल, अभिलेख की लिपि के आधार पर, 550-600 ई. मानते हैं।
 
 
 
 
 
  
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*एक जिनाचार्य की प्रतिमा पर यह [[अभिलेख]] उत्कीर्ण है- 'ओं देव धर्मोऽयं निदृत्ति कुले जिनभद्र वाचनाचार्यस्य।'
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*[[गुजरात]] के [[पुरातत्त्व]] विद्वान श्री उमाकांत प्रेमानंद शाह का कथन है कि ये जिनभद्र क्षमाश्रमण-विशेषावश्यक भाष्य के रचयिता ही हैं।
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*उमाकांत प्रेमानंद शाह इस प्रतिमा का निर्माणकाल, अभिलेख की लिपि के आधार पर 550-600 ई. मानते हैं।
  
 
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07:23, 12 दिसम्बर 2011 का अवतरण

अंकोटक एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थान है, जिसकी गणना गुप्तकाल में 'लाट देश' के मुख्य नगरों में की जाती थी।

  • इस स्थान से खुदाई में जैन धर्म की अनेक प्राचीन धातु से निर्मित प्रतिमाएँ प्राप्त हुई थीं।
  • इन प्रतिमाओं में से कुछ का परिचय 'जरनल ऑव ओरियंटल इंस्टीट्यूट'[1] में दिया गया है।
  • एक जिनाचार्य की प्रतिमा पर यह अभिलेख उत्कीर्ण है- 'ओं देव धर्मोऽयं निदृत्ति कुले जिनभद्र वाचनाचार्यस्य।'
  • गुजरात के पुरातत्त्व विद्वान श्री उमाकांत प्रेमानंद शाह का कथन है कि ये जिनभद्र क्षमाश्रमण-विशेषावश्यक भाष्य के रचयिता ही हैं।
  • उमाकांत प्रेमानंद शाह इस प्रतिमा का निर्माणकाल, अभिलेख की लिपि के आधार पर 550-600 ई. मानते हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बड़ौदा, जिल्द 1, पृष्ठ 72-79

बाहरी कड़ियाँ

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