अनासक्ति आश्रम

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गांधी जी की विश्राम स्थली, अनासक्ति आश्रम

अनासक्ति आश्रम उत्तराखंड राज्य के एक खूबसूरत छोटे से स्टेशन कौसानी में स्थित है जो मुख्यतः हिमालय दर्शन के लिए जाना जाता है। यह कवि सुमित्रानंदन पन्त की जन्मभूमि भी है, साथ ही यहाँ आसपास चाय के बागान और प्राचीन मंदिर भी स्थित हैं।

इतिहास

यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य की मिसाल इस तथ्य से समझी जा सकती है कि वर्ष 1929 में जब पूज्य बापू महात्मा गांधी भारत के दौरे पर निकले थे तब अपनी थकान मिटाने के उद्देश्य से यहां एक चाय बागान के मालिक के अतिथि गृह में दो दिवसीय विश्राम हेतु यहाँ आये परन्तु यहाँ आने के बाद कौसानी के उस पार हिममंडित पर्वतमालाओं पर पड़ती सूर्य की स्वर्णमयी किरणों को देखकर इतना मुग्ध हो गये कि अपने दो दिन के प्रवास को भूलकर लगातार चौदह दिन तक यहाँ रूके रहे। अपने प्रवास के दौरान उन्होंने गीता पर आधारित अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘अनासक्ति योग’ की रचना का प्रारंभिक चरण पूरा कर डाला।

गांधी जी की विश्राम स्थली

आश्रम में आयोजित दैनिक सामूहिक प्रार्थना सभा

महात्मा गांधी की विश्राम स्थली रहा चाय बागान का वह अतिथि गृह कालान्तर में ज़िला पंचायत का डाक बंगला बन गया और अविभाजित उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय सुचेता कृपलानी द्वारा गांधी जी की स्मृति को तरोताजा रखने के लिये ‘उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि’ को प्रदान कर दिया गया। यह आश्रम महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए बनाया गया था इसीलिये महात्मा जी की अमर कृति ‘अनासक्ति योग ’ के नाम पर उनकी विश्राम स्थली को ‘अनासक्ति आश्रम’ का नाम दिया गया है। महात्मा गांधी ने 1929 में जब इस स्थान की यात्रा की थी तो इसके प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत होकर इसे ‘भारत का स्विट्जरलैंड’ की संज्ञा दी थी। आश्रम में गांधी जी के जीवन से जुड़ी पुस्तकों और फोटोग्राफ्स का अच्छा संग्रह है और एक छोटी-सी बुकशॉप भी है। यहाँ एक छोटा-सा प्रार्थना कक्ष भी है, जहाँ हर दिन सुबह और शाम प्रार्थना सभा आयोजित होती है। आश्रम के क्रियाकलापों में सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली कार्यक्रम गांधी जी की सामूहिक प्रार्थना ही है। यह प्रार्थना इस आश्रम के दैनिक दिनचर्या का विशेष अंग है।

विश्राम स्थल

गांधीजी के अल्प निवास से प्रसिद्ध हुआ यह स्थान अब गांधीजी के जीवन की झांकियों और उनके जीवन दर्शन के लिए जाना जाता है। यहाँ रूकने की भी व्यवस्था है। आश्रमवासियों को कुछ नियमों का पालन करना होता है, जैसे प्रार्थना सभा में अनिवार्य उपस्थिति, मद्य-मांस आदि का पूर्णतयः निषेध इत्यादि। यहाँ आने वाले लोग भी प्रार्थना सभा में शामिल हो सकते हैं जो कि एक नियत समय पर होती है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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