अनुग्रह नारायण सिंह

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
अनुग्रह नारायण सिंह
BiharVibhuti Dr Anugrah Narayan Sinha.jpg
पूरा नाम अनुग्रह नारायण सिंह
अन्य नाम अनुग्रह बाबू
जन्म 18 जून ,1887
जन्म भूमि बिहार
मृत्यु 5 जुलाई, 1957
मृत्यु स्थान पटना
नागरिकता भारतीय
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पद बिहार के प्रथम उप मुख्यमंत्री
कार्य काल 2 जनवरी, 1946 से 05 जुलाई,1957
शिक्षा स्नातक, बी. एल., क़ानून में मास्टर डिग्री और डॉक्टरेट
विद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय, प्रेसीडेंसी कॉलेज (कलकत्ता)
भाषा हिन्दी,अंग्रेज़ी
पुरस्कार-उपाधि बिहार विभूति
विशेष योगदान भारत की स्वतन्त्रता, अहिंसक आन्दोलन, सत्याग्रह
संबंधित लेख असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह आदि

अनुग्रह नारायण सिंह (अंग्रेज़ी: Anugrah Narayan Sinha, जन्म: 18 जून ,1887; मृत्यु: 5 जुलाई, 1957) भारतीय राजनेता और बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री, सह वित्तमंत्री (1946-1957) थे। अनुग्रह बाबू (1887-1957) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, वकील, राजनीतिज्ञ तथा आधुनिक बिहार के निर्माता रहे थे। उन्हें 'बिहार विभूति' के रूप में जाना जाता था। वह स्वाधीनता आंदोलन के योद्धा थे। स्वाधीनता के बाद राष्ट्र निर्माण व जनकल्याण के कार्यो में उन्होंने सक्रिय योगदान दिया। अनुग्रह बाबू ने महात्मा गांधी एवं डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के साथ राष्ट्रीय आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।

आधुनिक बिहार के निर्माता

डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा मानवतावादी प्रगतिशील विचारक एवं दलितों के उत्थान के प्रबल समर्थक और आधुनिक बिहार के निर्माताओं में से एक थे। उनका जीवन दर्शन देश की अखंड स्वतंत्रता और नवनिर्माण की भावनाआ से सराबोर रहा। उनका सौभ्य, स्निग्ध, शीतल, परोपकारी, अहंकारहीन और दर्पोदीप्त शख़्सियत बिहार के जनगणमन पर अधिकार किए हुए था। वे शरीर से दुर्बल, कृषकाय थे, पर इस अर्थ में महाप्राण कोई संकट उनके ओठों की मुस्कुराहट नहीं छीन सका। उनमें शक्ति और शील एकाकार हो गये थे और इसीलिए वे बुद्धिजीवियों को विशेष प्रिय थे। बिहार के विकास में उनका योगदान अतुलनीय है। राज्य के प्रशासनिक ढांचा को तैयार करने का काम अनुग्रह बाबू ने किया था। इन्होंने राज्य के प्रथम उप मुख्यमंत्री और सह वित्तमंत्री के रूप में 11 वर्षों तक बिहार की अनवरत सेवा की।

प्रारंभिक जीवन

अनुग्रह बाबू का जन्म बिहार के पोईअवा नामक गांव में 18 जून, 1887 को हुआ था। उनके पिता ठाकुर विशेश्वर दयाल सिंह जी अपने इलाके के एक वीर पुरुष थे। पांच बसंत जब वे पार कर गये तो उनकी शिक्षा का श्रीगणेश हुआ। सन्‌ 1900 में औरंगाबाद मिडिल स्कूल, 1904 में गया ज़िला स्कूल और 1908 में पटना कॉलेज में प्रविष्ट हुए। जिस समय ये पटना कॉलेज में आये, उस समय देश के शिक्षित व्यक्तियों के हृदय में परतंत्रता की वेदना का अनुभव होने लगा था। ग़ुलामी की जंजीर में जक़डी हुई मानवता का चित्कार अब उन्हें सुनायी प़डने लगा था। वे उस जंजीर को तोड़ फेंकने के लिए व्याकुल होने लगे थे। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा योगिराज अरविंद जैसी महान् आत्माओं का प्रादुर्भाव हो चुका था। इन महान् आत्माओं के कार्यकलापों तथा व्याख्यानों का समुचित प्रभाव अनुग्रह बाबू के हृदय पर प़डा। उनका हृदय भी भारत माता की सेवा के लिए तड़प उठा और वे उस पावन मार्ग पर अग्रसर हो गये। सर्फूद्दीन के नेतृत्व में ‘बिहारी छात्र सम्मेलन’ नामक संस्था संगठित की गई, जिसमें देशरत्न डॉ. राजेन्द्र बाबू ऐसे मेधावी छात्रों को कार्य करने तथा नेतृत्व करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन

Blockquote-open.gif मेरा परिचय अनुग्रह बाबू से बिहारी छात्र सम्मेलन में ही पहले पहल हुआ था। मैं उनकी संगठन शक्ति और हाथ में आए हुए कार्य में उत्साह देखकर मुग्ध हो गया और वह भावना समय बीतने से कम न होकर अधिक गहरी होती गई। Blockquote-close.gif

इन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध चम्पारण से अपना सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था। अनुग्रह बाबू के हृदय में सेवा की उच्च भावना तो बाल्यकाल से ही था, उसे कार्य रूप में परिणत करने तथा उसे पूर्ण रूप से विकसित करने का सुअवसर भी उन्हें इस संगठन में प्रविष्ट होने पर मिल गया। सन्‌ 1910 में आई ए की परीक्षा भी उन्होंने प्रथम श्रेणी में पास की फिर बीए में प्रवेश किया। उसी वर्ष महामना पोलक साहब जो महात्मा गांधी के सहकर्मी थे, पटना पधारे, अफ़्रीका के प्रवासी भारतीयों के बारे में जो उनका व्याख्यान हुआ। उससे अनुग्रह बाबू बहुत प्रभावित हुए। उसी वर्ष प्रयाग में अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन हुआ, जिसमें वे अपनी उत्साही सहपाठियों के साथ गये। उस अधिवेशन में महामना गोखले आदि विद्वान् राष्ट्रभक्तों के भाषणों को सुनने का स्वर्ण अवसर भी इन्हें प्राप्त हुआ, जिससे वे ब़डे प्रभावित हुए। अनुग्रह बाबू विद्यार्थी जीवन में ही संगठनशक्ति तथा कार्य संचालन की काबिलियत हासिल कर ली थी। सन्‌ 1914 में इतिहास से एम.ए. करने के बाद 1915 में बी एल की परीक्षा में भी सफलता प्राप्त की। भागलपुर के तेजनारायण जुविल कॉलेज में इतिहास के एक प्रोफेसर की आवश्यकता हुई। अपने साथियों के परामर्श करने के पश्चात् तुरंत उन्होंने अपना आवेदन पत्र भेज दिया और उस पद पर उनकी नियुक्ति हो गई। वर्ष 1916 में उन्होंने कॉलेज की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पटना हाईकोर्ट में वकालत प्रारंभ कर दी। वकालत के सिलसिले में सरलता की मूर्ति देशरत्न राजेन्द्र बाबू के संसर्ग में अधिक रहने का सुअवसर भी इन्हें प्राप्त हुआ और उनसे पेशे को उन्नत करने की प्रेरणा भी मिली। कलकत्ते में भी उन्हें राजेन्द्र बाबू के सम्पर्क में रहने का स्वर्ण अवसर मिला था। जिस समय राजेन्द्र बाबू लॉ कॉलेज में अध्यापक थे, उसी समय उसी कॉलेज में वे एक विद्यार्थी थे। इसलिये वे राजेन्द्र बाबू की प्रतिष्ठा किया करते थे।

गांधीजी का सत्याग्रह

उन्हें वकालत करते हुए अभी एक वर्ष भी नहीं बीता था कि चम्पारण में नील आंदोलन उठ ख़डा हुआ। इस आंदोलन ने उनके जीवन की धारा ही बदल दी। चम्पारण के किसानों की तबाही का समाचार जब महात्मा गांधी से सुने तो वे करुणा से विचलित हो उठे।

Blockquote-open.gif जो देशभक्त जेल में अनुग्रह बाबू के चौके में खाते थे, वे जब जेल से निकले तो यह कहते निकले कि अनुग्रह बाबू सचमुच प्रांत के अर्थमंत्री पद के योग्य हैं। इस काम में उनसे कोई बाज़ी नहीं मार सकता।"- Blockquote-close.gif

मुजफ़्फ़रपुर के कमिश्नर की राय के विरुद्ध गांधीजी चम्पारण गये और जांच कार्य प्रारंभ कर दिया।

चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के दौरान डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और अनुग्रह नारायण सिन्हा

अत्याचारों की जांच प्रारंभ हुई। इसमें कुछ ऐसे वकीलों की आवश्यकता थी, जो निर्भीकता पूर्वक कार्य कर सकें और समय आने पर जेल जाने के लिए भी तैयार रहें। इस विकट कार्य के लिए वृज किशोर बाबू के प्रोत्साहन पर राजेन्द्र बाबू के साथ ही अनुग्रह बाबू भी तत्पर हो गये। उन्होंने इसकी तनिक भी चिंता नहीं की कि उनका पेशा नया है और उन्हें भारी क्षति उठानी प़ड सकती है। एक बार जो त्याग के मार्ग पर आगे ब़ढ चुका है, उसे भला इन तुच्छ चीज़ों का क्या भय हो सकता है। चम्पारण का किसान आंदोलन 45 महीनों तक ज़ोर शोर से चलता रहा। अनुग्रह बाबू बराबर उसमें काम करते रहे और आखिर तक डटे रहे । स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता का पाठ उन्हें गांधीजी के आश्रम में ही रहकर प़ढने का सुअवसर प्राप्त हुआ। अनुग्रह बाबू ने चम्पारण के नील आंदोलन में गांधीजी के साथ लगन और निर्भीकता के साथ काम किया और आंदोलन को सफल बनाकर उनके आदेशानुसार 1917 में पटना आये। बापू के साथ रहने से उन्हें जो आत्मिक बल प्राप्त हुआ, वही इनके जीवन का संबल बना। सन्‌ 1920 के दिसंबर में नागपुर में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ, जिसमें अनुग्रह बाबू ने भी भाग लिया। सन्‌ 1929 के दिसंबर में सरदार पटेल ने किसान संगठन के सिलसिले में मुंगेर आदि शहरों का दौरा किया, तब अनुग्रह बाबू सभी जगह उनके साथ थे। 26 जनवरी 1930 को सारे देश में स्वतंत्रता की घोषणा प़ढी गई। अनुग्रह बाबू को भी कई स्थानों में घोषणा पत्र प़ढना प़ढा। कुछ दिनों के बाद महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया। उस सिलसिले में उन्हें चम्पारण, मुजफ़्फ़रपुर आदि स्थानों का दौरा करना प़डा। 26 जनवरी, 1933 को जब पटना में घोषणा प़ढ रहे थे, उसी समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें पंद्रह मास की सज़ा हुई और उन्हें हज़ारीबाग़ जेल भेज दिया गया। जिस समय वे जेल में थे, बिहार में इतिहास विख्यात प्रलयंकारी भूकंप आया। हृदय विदारक समाचारों को प़ढकर उनका हृदय दर्द से कराह उठा। चहारदीवारी के अंदर बंद रहने के कारण ये कोई राहत कार्य नहीं कर सकते थे। लेकिन सरकार ने तीन हफ्तों के बाद इन्हें छ़ोड दिया। छूटते ही अनुग्रह बाबू राहत कार्य में संलग्न हो गये। राजेन्द्र बाबू के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इन्होंने अथक परिश्रम के साथ पीड़ित मानवता की सेवा की। मुजफ़्फ़रपुर, मुंगेर आदि शहरों का दौरा किया। इसके लिये राजेन्द्र बाबू की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी, जिसके उपाध्यक्ष अनुग्रह बाबू चुने गये तथा खूब लगन के साथ सेवा कार्य किया। सन्‌ 1940 को मार्च महीने में अखिल भारतीय कांग्रेस का अधिवेशन रामग़ढ में हुआ। अधिवेशन का संपूर्ण भार अनुग्रह बाबू के कंधे पर था। उसमें जो अपनी तत्परता दिखलाई उसके फलस्वरूप ही कांग्रेस का अधिवेशन सफल हुआ। देश की परिस्थिति को देखते हुए जब गांधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह अपनाया तब उनके प्रिय सहयोगी अनुग्रह बाबू कब चूकने वाले थे। फलस्वरूप 1940 को वह गिरफ्तार कर लिये गये और अगस्त 1941 में रिहा हुए।

'मुझे अपने लिए चिंता नहीं है, किंतु देश के लिए मुझे चिंता है।’ बिहार विभूति डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा

गांधीजी का ‘करो या मरो’ का नारा बुलंद हुआ। 7 अगस्त, 1942 को गांधीजी गिरफ्तार किये गये। सारे देश में एक बार ही बिजली की तरह आंदोलन की आग फैल गई। कांग्रेस कमिटियां जब्त कर ली गई और कांग्रेस नेता जहां के तहां गिरफ्तार कर लिये गये। 10 अगस्त को अनुग्रह बाबू भी जब अपने मित्रों से मिलने गये, एकाएक मार्ग में ही गिरफ्तार कर लिये गये। सन्‌ 1944 में जब सारे कांग्रेसी नेता जेल से मुक्त किये जाने लगे, तो अनुग्रह बाबू भी कारावास की कैद से आज़ाद कर दिये गये।

बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री

अनुग्रह नारायण सिंह

1937 में ही बाबू साहब बिहार प्रान्त के वित्त मंत्री बने। अनुग्रह बाबू बिहार विधानसभा में 1937 से लेकर 1957 तक कांग्रेस विधायक दल के उप नेता थे। 1946 में जब दूसरा मंत्रिमंडल बना तब वित्त और श्रम दोनों विभागों के पहले मंत्री बने और उन्होंने अपने मंत्रित्व काल में विशेषकर श्रम विभाग में अपनी न्याय प्रियता लोकतांत्रिक विचारधारा एवं श्रमिकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का जो परिचय दिया वह सराहनीय ही नहीं अनुकरणीय है। श्रम मंत्री के रूप में अनुग्रह बाबू ने ‘बिहार केन्द्रीय श्रम परामर्श समिति’ के माध्यम से श्रम प्रशासन तथा श्रमिक समस्याओं के समाधान के लिए जो नियम एवं प्रावधान बनाये वे आज पूरे देश के लिये मापदंड के रूप में काम करते हैं। तृतीय मंत्रिमंडल में उन्हें खाद, बीज, मिट्‌टी, मवेशी में सुधार लाने के लिए शोध कार्य करवाए और पहली बार जापानी ढंग से धान उपजाने की पद्धति का प्रचार कराया। पूसा का कृषि अनुसंधान फार्म उनकी ही देन है।

निधन

इस तेजस्वी महापुरुष का निधन 5 जुलाई, 1957 को उनके निवास स्थान पटना में बीमारी के कारण हुआ। उनके सम्मान मे तत्कालीन मुख्यमंत्री ने सात दिन का राजकीय शोक घोषित किया, उनके अन्तिम संस्कार में विशाल जनसमूह उपस्थित था। अनुग्रह बाबू 2 जनवरी, 1946 से अपनी मृत्यु तक बिहार के उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री रहे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका-टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख