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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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#सं.ग्रं-मेइए (Millet) : ले लांग द मांद (पेरिस); बाबूराम सक्सेना : सामान्य भाषाविज्ञान (प्रयोग)।
 
#सं.ग्रं-मेइए (Millet) : ले लांग द मांद (पेरिस); बाबूराम सक्सेना : सामान्य भाषाविज्ञान (प्रयोग)।
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07:54, 27 मई 2018 का अवतरण

अफ्रीकी भाषाएँ अफ्रीका महाद्वीप में बुशमैन (बुल्मनिवासी), वांटू, सूडान तथा सामी--हामी--परिवार की भाषाएँ बोली जाती हैं। अफ्रीका के समस्त उत्तरी भग में सामी भषाओं का आधिपत्य प्राय: दो हजार वर्षों से रहा है। इधर दो तीन शताब्दियों से दक्षिण के कोने पर और समस्त पश्चिमी किनारे पर यूरोपीय जातियों ने कब्जा करके मूल निवासियों को महाद्वीप मे भीतरी भागों की ओर हटा दिया। किंतु अब अफ्रीकी निवासियों में जागृति हो चली है और फलस्वरूप उनकी निजी भाषाएँ अपना अधिकार प्राप्त कर रही हैं।

बुशमैन परिवार

इस जाति के लोग दक्षिणी अफीका मे मूल निवासी समझे जाते हैं। इनकी बहुत सी बोलियाँ हैं ग्रामगीतों और ग्रामकथाओं को छोड़कर इन बोलियों में कोई अन्य साहित्य नहीं है। रूप की दृष्टि से ये भाषाएँ अंत में प्रत्यय जोड़नेवाली योगात्मक अश्लिष्ट अवस्था में हैं। इनके कुछ लक्षण सूडान परिवार की भाषाओं से मिलते हैं। और कुछ बांटू परिवार की जुलू की ध्वनियों पर इस परिवार की भाषाओं का प्रभाव पड़ा हो। बुशमैन में छह 'क्लिक' ध्वनियाँ भी हैं। लिंग पुरुषत्व और स्त्रीत्व पर निर्भर न होकर प्राणिवर्ग और अप्राणिवर्ग पर अवलंबित है और इस बात से द्राविड़ भाषाओं के चेतन और अचेतन लिंग से समता रखता हैं। बहुवचन बनाने के कई ढंग हैं जिनमें अभ्यास मुख्य है। होटेंटाट भाषाएँ भी बुशमैन के अंतर्गत समझी जाती हैं। होटेंटाट शब्द प्राय: एकाक्षर होते हैं। तीन वचन (एक, द्वि, बहु) होते हैं। उत्तम पुरुष के द्विवचन और बहुवचन के सर्वनाम के दो रूप (वाच्यसमावेशक और व्यतिरिक्त) पाए जाते हैं सूर का भी अस्तित्व है।

बांटू परिवार

ये भाषाएँ प्राय: समस्त दक्षिणी अफ्रीका में, भूमध्यरेखा के नीचे के भागों मे बोली जाती हैं। इनके दक्षिण पश्चिम में होटेंटाट और बुशमैन हैं और उत्तर में सूडान परिवार की विभिन्न भाषाएँ। इस परिवार में करीब एक सौ पचास भाषाएँ हैं जो तीन ( पूर्वी, मध्यवर्ती, पश्चिमी) समूहों में बाँटी जाती हैं। इन भाषाओं में कोई साहित्य नहीं हैं। प्रधान भाषाएँ काफिर, जूलू, सेसुतो, कांगो और स्वहीली हैं।

बांटू भाषाएँ

बांटू भाषाएँ योगात्मक अश्लिष्ट आकृति की है और परस्पर सुसंबद्ध हें इनका प्रधान लक्षण अपसर्ग जोड़कर पद बनाने का हैं और परस्पर सुसंबद्ध हैं। इनका प्रधान लक्षण उपसर्ग जोड़कर पद बनाने का हे। अंत में प्रत्यय जाऐंड़कर भी पद बनाए जाते है, पर उपसर्ग की अपेक्षा कम। उदाहरण के लिए संप्रदान कारक का अर्थ 'कु' उपसर्ग से निकलता हैं, यथा कुति (हमको), कुनि (उनको), कुजे (उसको)। बहुवचन--अबंतु (बहुत से आदमी), अमुंतु (एक आदमी)। बांटू भाषाओं का दूसरा प्रधान लक्षण ध्वनिसामंजस्य है। ये भाषाएँ सूनने मे मधुर होती हैं। सभी शब्द स्वरांत होते हैं और संयुक्त व्यंजनों का अभाव सा है।

सूडान परिवार

सूडान परिवार ये भाषाएँ भूमध्यरेखा के उत्तर में पश्चिम से पूर्व तक फैली हुई हैं। इनके उत्तर मे हामी परिवार की भाषाएँ हें। कुल 435 भाषाओं मे से केवल पाँच छ: ही लिपिबद्ध पाई जाती हैं। इनमे बाईं, मोम, कनूरी-हाउसा तथा प्यूल मुख्य हैं। नूबी में चौथी से सातवीं सदी ईसवी के कोप्ती लिपि मे लिशे लेख मिलते हैं।

इन भाषाओं की आकृति मुख्य रूप से अयोगात्मक एकाक्षर धातुओं के अस्तित्व और उपसर्ग तथा प्रत्ययों के नितांत अभाव के कारण चीनी भाषाओं की तरह यहाँ भी अर्थ का भेद सूरो पर आधारित हैं। शब्दों मे लिंग नहीं होता । आवश्यकता पड़ने पर नर और मादा मे बोधक शब्दों द्वारा लिंग दिखाया जाता हैं। बहुवचन का भाव साफ-साफ इन भाषाओं मे नही झलकता। वाक्य अधिकांशत: छोटे छोटे, एक संज्ञा और एक क्रिया के होते हैं। सूडानी भाषाओं में एक तरह के मुहावरे होते हैं जिन्हें ध्वनिचित, शब्दचित्र या वर्णनात्मक क्रियाविशेष कह सकते हैं: जैसे, ईव भाषा मे 'जो' धातु का अर्थ चलना होता है और इससे कई दर्जन मुहावरे बनते हैं जिनका अर्थ सीधे चलना, जल्दी चलना, छोटे छोटे कदम रखकर चलना, लंबे आदमी की चाल चलना, चूहे आदि छोटे जानवरों की तरह चलना, इत्यादि अर्थ प्रकट होते है।

सूडान परिवार मे चार समूह हैं_
सेनेगल भाषाएँ,
ईव भाषाएँ,
मध्य अफ्रीका समूह और
नील नदी के ऊपरी हिस्से की बोलियाँ।

सूडान और बांटू दोनों परिवारों मे कुछ समान लक्षण पाए जाते हैं। दोनों मे संज्ञाओं को विभिन्न गणों में विभक्त करते हैं। इस विभाग के अभाव में संज्ञा और क्रिया का भेद केवल वाक्य में शब्द के स्थान से ही प्रकट होता है। सुर भी दोनों मे प्राय: मिलते हैं।

सामी-हामी-परिवार

हामी भाग की भाषाएँ समस्त उत्तरी अफ्रीका में फैली हुई हैं और इनको बोलनेवाली कुछ जातियाँ दक्षिण और मध्यवर्ती अफ्रीका में घुसती चली गई हैं। सामी भाग की भाषाएँ मुख्य रूप से एशिया मे बोली जाती हैं पर उनकी प्रधान भाषा अरबी ने सारे अत्तरी अफ्रीका में भी घर कर लिया है। पश्चिम मे मोरक्को से लेकर पूरव में स्वेज तक तथा समस्त मिस्र में यही शासन तथा साहित्य की मुख्य भाषा है। अल्जीरिया और मोरक्को की राजभाषा अरबी है ही। हब्शी राजभाषा सामी है।
सामी-हामी परिवार के हामी भाग के पाँच मुख्य लक्षण हैं :
(1) पद बनाने के लिए संज्ञाओं में उपसर्ग और क्रियाओं में प्रत्यय लगाए जाते हैं,
(2) क्रिया के काल का बोध उतना नहीं होता जितना क्रिया के पूर्ण जाए जाने या अपूर्ण रहने का,
(3) लिंगभेद पुरुषत्व और स्त्रीत्व पर अबलंबित न होकर आधार पर है। बड़े और शक्तिशाली जीव और पदार्थ (तलवार, बड़ी मोटी घास, बड़ी चट्टान, हाथी चाहे नर हो या मादा, आदि के बोधक शब्द) स्त्रीलिंग में होते हैं,
(4) हामी की केवल एक भाषा (नामी) मे द्विवचन मिलता है, अन्यों मे नहीं । बहुवचन बनाने के कई ढंग हैं। अनाज, बालू, घास आदि छोटी चीजाऐं को समूहस्वरूप बहुवचन में ही रखा जाता है और यदि एकत्व का विचार करना होता है तो प्रत्यय जुड़ता है जैसे लिस्‌ (बहुत से आँसू), लिस (एक आँसू), बिल्‌ (पतिंगे), बिल (एक पतिंग),
(5) हामी भाषाओं का एक विचित्र लक्षण बहुवचन में लिंगभेद कर देना है। इस नियम को ध्रुवाभिमुख कहते हैं। जैसे सोमाली भाषा में लिबि हिद्दू (शेर पु.)। लिबिहह्यहोदि (बहुत से शेर, स्त्री.), होयोदि (माता, स्त्री.), होयो इंकि (माताएँ, पु.)। बहुत से शेर स्त्रीलिंग में और बहुत सी माताएँ पुल्लिंग में हैं।

हामी भाषाओं मे विभक्तिसूचक प्रत्यय नहीं पाए जाते। ये भाषाएँ परस्पर काफी भिन्न हैं पर सर्वनाम-त्‌ प्रत्ययांत स्त्रीलिंग आदि एकतासूचक लक्षण हैं। हामी की मुख्य प्राचीन भाषाएँ मिस्री और कोप्ती थीं। मिस्री भाषा के लेख छह हजार वर्ष पूर्व तक के मिलते हैं। इसके दो रूप थे--एक धर्मग्रंथों का और दूसरा जनसाधारण का। जनसाधारण की मिस्री की ही एक भाषा कोप्ती है जिसके ईसवी दूसरी सदी से आठवीं सदी तक के ग्रंथ मिलतक हैं। यह 16वीं सदी तक की बोलचाल की भाषा थी। वर्तमान भाषाओं में हब्श देश की खमीर, पूर्वी अफ्रीका के कुशी समूह की, सोमालीलैंड की सोमाली और लीबियाकी लीबी (या बबर) प्रसिद्ध हैं। वर्तमान काल की मिस्त्री भाषा गठन में बहुत सरल और सीधी हैं। उसकी धातुएँ (मूल शब्द) कुछ एकाक्षर है और कुछ अनेकाक्षर।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं-मेइए (Millet) : ले लांग द मांद (पेरिस); बाबूराम सक्सेना : सामान्य भाषाविज्ञान (प्रयोग)।
  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 161-62 |

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