अभिनव धर्मभूषणयति

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  • जैन तार्किकों में ये अधिक लोकप्रिय और उल्लेखनीय हैं।
  • इनकीं 'न्यायदीपिका' एक ऐसी महत्त्वपूर्ण एवं यशस्वी कृति है जो न्यायशास्त्र में प्रवेश करने के लिए बहुत ही सुगम और सरल है।
  • न्यायशास्त्र के प्राथमिक अभ्यासी इसी के माध्यम से अकलंकदेव और विद्यानन्द के दुरूह एवं जटिल न्यायग्रन्थों में प्रवेश करते हैं।
  • न्याय का ऐसा कोई विषय नहीं छूटा जिसका धर्मभूषणयति ने इसमें संक्षेपत: और सरल भाषा में प्रतिपादन न किया हो।
  • प्रमाण, प्रमाण के भेदों, नय और नय के भेदों के अलावा अनेकान्त, सप्तभंगी, वीतरागकथा, विजिगीषुकथा जैसे विषयों का भी इस छोटी-सी कृति में समावेश कर उनका संक्षेप में विशद निरूपण किया है।
  • अनुमान का विवेचन तो ग्रन्थ के बहुभाग में निबद्ध है और बड़े सरल ढंग से उसे दिया है।
  • वास्तव में यह अभिनव धर्मभूषण की प्रतिभा, योग्यता और कुशलता की परिचायिका कृति है।
  • इनका समय ई. 1358 से 1418 है।

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