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अमरावती [[महाराष्ट्र]] प्रान्त का एक शहर है। यह [[इन्द्र]] देवता की नगरी के रूप में विख्यात है। जिस नगरी में [[देवता]] लोग रहते हैं। इसे इन्द्रपुरी भी कहते हैं। इसके पर्याय हैं-  
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अमरावती [[महाराष्ट्र]] प्रान्त का एक जिला एवं उसका प्रधान नगर है। अमरावती रुई के व्यापार के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ रुई के तथा तेल निकालने के कई कारखाने भी हैं। यह [[इन्द्र]] देवता की नगरी के रूप में विख्यात है। जिस नगरी में [[देवता]] लोग रहते हैं। इसे '''इन्द्रपुरी''' भी कहते हैं। इसके पर्याय हैं-  
 
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===स्थिति===
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अमारवती जिला अ. 21° 46¢ उ. से 20° 32¢ उ. तथा दे. 76° 38¢ पू. से 78° 27¢ पू. तक फैला हुआ, बरार के [[उत्तर (दिशा)|उत्तरी]] तथा उत्तर पूर्वी भाग में बसा है। अमरावती जिले का प्रधान नगर अमरावती समुद्रतल से 1,118 फुट की उँचाई पर (अ. 20° 56¢ उ. और दे. 77° 47¢ पू.) स्थित है। अमरावती जिले को दो पृथक्‌ भागों में विभाजित किया जा सकता है:-
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#पैनघाट की उर्वरा तथा समतल घाटी जो [[पूर्व दिशा|पूर्व]] की ओर निकली हुई मोर्सी ताल्क को छोड़कर लगभग चौकोर है। समुद्रतल से इस समतल भाग की उँचाई लगभग 800 फुट है।
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#उत्तरी बरार का पहाड़ी भाग जो [[सतपुड़ा की पहाड़ियाँ|सतपुड़ा]] का एक अंश है, और भिन्न-भिन्न समयों में भिन्न नामों से प्रसिद्ध था; जैसे, बाँडा, गांगरा, मेलघाट।
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===स्थापथ्य काल===
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अमरावती की स्थापना [[रघुजी भोंसले]] ने 18वीं शताब्दी में की थी। [[वास्तुकला]] के सौंदर्य के दो प्रतीक अभी भी अमरावती में मिलते हैं-
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#एक कुख्यात राजा विसेनचंदा की हवेली और,
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# दूसरा शहर के चारों ओर की दीवार।
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यह चहारदीवारी पत्थर की बनी, 20 से 26 फुट उँची तथा सवा दो मील लंबी है। इसे निजाम सरकार ने [[पिंडारी|पिंडारियों]] से धनी सौदागरों को बचाने के लिए सन्‌ 1804 में बनाया था। इसमें पाँच फाटक तथा चार खिड़कियाँ हैं। इनमें से एक खिड़की खूनखारी नाम से कुख्यात है, जिसके पास 1816 में मुहर्रम के दिन 700 व्यक्तियों की हत्या हुई थी। अमरावती नगर दो भागों में विभाजित है-
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#पुरानी अमरावती तथा,
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#नई अमरावती।
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*पुरानी अमरावती दीवार के भीतर बसी है और इसके रास्ते संकीर्ण तथा आबादी घनी तथा जलनिकासी की व्यवस्था निकृष्ट है।
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*नई अमरावती दीवार के बाहर वर्तमान समय में बनी हे और इसकी जलनिकासी व्यवस्था, मकानों के ढंग आदि अपेक्षाकृत अच्छे हैं।
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*अमरावती नगर के अनेक घरों में आज भी पच्चीकारी की बनी काली लकड़ी के बारजे (बरामदे) मिलते हैं जो प्राचीन काल की एक विशेषता थी।
 
*सीमान्त प्रदेश  (पाकिस्तान) में [[जलालाबाद]] से दो मील पश्चिम नगरहार है। [[फ़ाह्यान]] इसको 'नेकिये-लोहो' कहता है। [[पालि भाषा|पालि]] साहित्य की अमरावती यही है।  
 
*सीमान्त प्रदेश  (पाकिस्तान) में [[जलालाबाद]] से दो मील पश्चिम नगरहार है। [[फ़ाह्यान]] इसको 'नेकिये-लोहो' कहता है। [[पालि भाषा|पालि]] साहित्य की अमरावती यही है।  
*कोण्डण्ण [[बुद्ध]] के समय में यह नगर अठारह '[[ली]]' विस्तृत था। यहीं पर उनका प्रथम उपदेश हुआ था।
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===धार्मिक स्थल===
*अमरावती नामक स्तूप, जो दक्षिण [[भारत]] के कृष्णा ज़िले में बेजवाड़ा से पश्चिम और [[धरणीकोटा]] के दक्षिण कृष्णा के दक्षिण तट पर स्थित है। [[हुएन-सांग]] का पूर्व शैल संघाराम यही है। यह स्तूप 370-380 ई. में आन्ध्रभृत्य राजाओं द्वारा निर्मित हुआ था।<ref>जर्नल ऑफ रायल एशियाटिक सोसायटी, जिल्द 3,पृ., 132 ।</ref>
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हिंदुओं की पौराणिक [[किंवदंती]] के अनुसार अमरावती [[सुमेरु पर्वत]] पर स्थित देवताओं की नगरी है जहाँ जरा, मृत्यु, शोक, ताप कुछ भी नहीं होता। अमरावती में [[हिन्दू|हिंदुओं]] के तथा [[जैन|जैनियों]] के कई मंदिर हैं। इनमें से अंबादेवी का मंदिर सबसे महत्वपूर्ण है। लोग कहते हैं, इस मंदिर को बने लगभग एक हजार वर्ष हो गए और संभवत: अमरावती का नाम भी इसी से प्रचलित हुआ, यद्यपि इससे कतिपय विद्वान सहमत नहीं हैं। अमरावती में मालटेकरी नामक एक [[पर्वत|पहाड़]] है जो इस समय चाँदमारी के रूप में व्यवहृत होता है। [[किंवदंती]] है कि यहाँ [[पिंडारी]] लोगों ने बहुत धन दौलत गाड़ रखा है। अमरावती का जल यहाँ के वाडाली तालाब से आता है। यह तालाब लगभग दो वर्ग मील की भूमि से पानी एकत्रित करता है और 150 लाख घन फुट पानी धारण कर सकता है।
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===अन्य===
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[[मद्रास]] के गुंटूर जिले में भी अमरावती नामक एक प्राचीन नगर है। [[कृष्णा नदी]] के दक्षिण तट पर (अ. 16° 35¢ उ. तथा दे. 80° 24¢ पू.) स्थित है। इसका [[स्तूप]] तथा संगमरमर पत्थर की रेलिंग की मूर्तियाँ भारतीय शिल्पकला के उत्तम प्रतीक हैं। [[शिलालेख]] के अनुसार इस अमरावती का प्रथम स्तूप ई. पू. 200 वर्ष पहले बना था और अन्य स्तूप पीछे कुषाणों के समय में तैयार हुए। इन स्तूपों की कई सुंदर मूर्तियाँ ब्रिटिश म्यूजियम तथा [[मद्रास]] के अजायबघर में रखी गई हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=190 |url=}}</ref>
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11:05, 30 मई 2018 का अवतरण

Disamb2.jpg अमरावती एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- अमरावती (बहुविकल्पी)

अमरावती महाराष्ट्र प्रान्त का एक जिला एवं उसका प्रधान नगर है। अमरावती रुई के व्यापार के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ रुई के तथा तेल निकालने के कई कारखाने भी हैं। यह इन्द्र देवता की नगरी के रूप में विख्यात है। जिस नगरी में देवता लोग रहते हैं। इसे इन्द्रपुरी भी कहते हैं। इसके पर्याय हैं-

  1. पूषभासा
  2. देवपू:
  3. महेन्द्रनगरी
  4. अमरा और
  5. सुरपुरी

स्थिति

अमारवती जिला अ. 21° 46¢ उ. से 20° 32¢ उ. तथा दे. 76° 38¢ पू. से 78° 27¢ पू. तक फैला हुआ, बरार के उत्तरी तथा उत्तर पूर्वी भाग में बसा है। अमरावती जिले का प्रधान नगर अमरावती समुद्रतल से 1,118 फुट की उँचाई पर (अ. 20° 56¢ उ. और दे. 77° 47¢ पू.) स्थित है। अमरावती जिले को दो पृथक्‌ भागों में विभाजित किया जा सकता है:-

  1. पैनघाट की उर्वरा तथा समतल घाटी जो पूर्व की ओर निकली हुई मोर्सी ताल्क को छोड़कर लगभग चौकोर है। समुद्रतल से इस समतल भाग की उँचाई लगभग 800 फुट है।
  2. उत्तरी बरार का पहाड़ी भाग जो सतपुड़ा का एक अंश है, और भिन्न-भिन्न समयों में भिन्न नामों से प्रसिद्ध था; जैसे, बाँडा, गांगरा, मेलघाट।

इसके उत्तर पश्चिम की ओर ताप्ती, पूर्व की ओर वारधा और बीच से पूर्णा नदी बहती है। जिले की प्रधान उपज रुई है और कुल कृष्य भूमि का 50 प्रतिशत इसी के उत्पादन में लगा है। जिले का क्षेत्रफल लगभग 12,210 कि.मी. है। कोण्डण्ण बुद्ध के समय में यह नगर अठारह 'ली' विस्तृत था। यहीं पर उनका प्रथम उपदेश हुआ था। अमरावती नामक स्तूप, जो दक्षिण भारत के कृष्णा ज़िले में बेजवाड़ा से पश्चिम और धरणीकोटा के दक्षिण कृष्णा के दक्षिण तट पर स्थित है। हुएन-सांग का पूर्व शैल संघाराम यही है। यह स्तूप 370-380 ई. में आन्ध्रभृत्य राजाओं द्वारा निर्मित हुआ था।[1]

स्थापथ्य काल

अमरावती की स्थापना रघुजी भोंसले ने 18वीं शताब्दी में की थी। वास्तुकला के सौंदर्य के दो प्रतीक अभी भी अमरावती में मिलते हैं-

  1. एक कुख्यात राजा विसेनचंदा की हवेली और,
  2. दूसरा शहर के चारों ओर की दीवार।

यह चहारदीवारी पत्थर की बनी, 20 से 26 फुट उँची तथा सवा दो मील लंबी है। इसे निजाम सरकार ने पिंडारियों से धनी सौदागरों को बचाने के लिए सन्‌ 1804 में बनाया था। इसमें पाँच फाटक तथा चार खिड़कियाँ हैं। इनमें से एक खिड़की खूनखारी नाम से कुख्यात है, जिसके पास 1816 में मुहर्रम के दिन 700 व्यक्तियों की हत्या हुई थी। अमरावती नगर दो भागों में विभाजित है-

  1. पुरानी अमरावती तथा,
  2. नई अमरावती।
  • पुरानी अमरावती दीवार के भीतर बसी है और इसके रास्ते संकीर्ण तथा आबादी घनी तथा जलनिकासी की व्यवस्था निकृष्ट है।
  • नई अमरावती दीवार के बाहर वर्तमान समय में बनी हे और इसकी जलनिकासी व्यवस्था, मकानों के ढंग आदि अपेक्षाकृत अच्छे हैं।
  • अमरावती नगर के अनेक घरों में आज भी पच्चीकारी की बनी काली लकड़ी के बारजे (बरामदे) मिलते हैं जो प्राचीन काल की एक विशेषता थी।
  • सीमान्त प्रदेश (पाकिस्तान) में जलालाबाद से दो मील पश्चिम नगरहार है। फ़ाह्यान इसको 'नेकिये-लोहो' कहता है। पालि साहित्य की अमरावती यही है।

धार्मिक स्थल

हिंदुओं की पौराणिक किंवदंती के अनुसार अमरावती सुमेरु पर्वत पर स्थित देवताओं की नगरी है जहाँ जरा, मृत्यु, शोक, ताप कुछ भी नहीं होता। अमरावती में हिंदुओं के तथा जैनियों के कई मंदिर हैं। इनमें से अंबादेवी का मंदिर सबसे महत्वपूर्ण है। लोग कहते हैं, इस मंदिर को बने लगभग एक हजार वर्ष हो गए और संभवत: अमरावती का नाम भी इसी से प्रचलित हुआ, यद्यपि इससे कतिपय विद्वान सहमत नहीं हैं। अमरावती में मालटेकरी नामक एक पहाड़ है जो इस समय चाँदमारी के रूप में व्यवहृत होता है। किंवदंती है कि यहाँ पिंडारी लोगों ने बहुत धन दौलत गाड़ रखा है। अमरावती का जल यहाँ के वाडाली तालाब से आता है। यह तालाब लगभग दो वर्ग मील की भूमि से पानी एकत्रित करता है और 150 लाख घन फुट पानी धारण कर सकता है।

अन्य

मद्रास के गुंटूर जिले में भी अमरावती नामक एक प्राचीन नगर है। कृष्णा नदी के दक्षिण तट पर (अ. 16° 35¢ उ. तथा दे. 80° 24¢ पू.) स्थित है। इसका स्तूप तथा संगमरमर पत्थर की रेलिंग की मूर्तियाँ भारतीय शिल्पकला के उत्तम प्रतीक हैं। शिलालेख के अनुसार इस अमरावती का प्रथम स्तूप ई. पू. 200 वर्ष पहले बना था और अन्य स्तूप पीछे कुषाणों के समय में तैयार हुए। इन स्तूपों की कई सुंदर मूर्तियाँ ब्रिटिश म्यूजियम तथा मद्रास के अजायबघर में रखी गई हैं।[2]




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जर्नल ऑफ रायल एशियाटिक सोसायटी, जिल्द 3,पृ., 132 ।
  2. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 190 |

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