अरविडु वंश

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अरविडु वंश अथवा 'कर्णाट राजवंश' (1570-1650 ई.) की स्थापना 1570 ई. के लगभग तिरुमल ने सदाशिव राय को अपदस्थ कर पेनुगोण्डा में की थी। यह वंश दक्षिण भारत के विजयनगर साम्राज्य का चौथा और अंतिम वंश था। पेनुगोण्डा इस वंश की राजधानी थी।

शासक राजा

अरविडु वंश को बीजापुर, अहमदनगर और गोलकुंडा की मिली-जुली सेनाओं द्वारा 1565 में तालीकोट या 'रक्ष तंगडी' की लडाई में विजयनगर की विनाशकारी हार विरासत के तौर पर मिली थी। इस वंश के तिरुमल का उत्तराधिकारी रंग द्वितीय हुआ था। रंग द्वितीय के बाद वेंकट द्वितीय शासक हुआ। उसने चन्द्रगिरि को अपना मुख्यालय बनाया था। विजयनगर साम्राज्य के महान् शासकों की श्रंखला की यह अन्तिम कड़ी थी। वेंकट द्वितीय ने स्पेन के फ़िलिप तृतीय से सीधा पत्र व्यवहार किया और वहाँ से ईसाई पादरियों को आमंत्रित किया। उसके शासन काल में ही वाडियार ने 1612 ई. में मैसूर राज्य की स्थापना की थी। वेंकट द्वितीय चित्रकला में विशेष रुचि रखता था।

पतन

इस वंश के अन्तिम शासक के समय में मैसूर, बेदनूर, तंजौर आदि स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हो गई। विजयनगर साम्राज्य लगभग तीन शताब्दी से अधिक समय तक जीवित रहा। बाद के समय में अंग्रेज़ ईस्ट इंडिया कंपनी के कारण राजाओं की सत्ता का क्षय हो गया। इस वंश के अंतिम शासक रंग तृतीय को वेल्लोर के एक छोटे से प्रदेश तक सीमित कर दिया गया था। 1664 की लड़ाई में यह प्रदेश भी बीजापुर और गोलकुंडा की सेना के पास चला गया और इसके साथ ही अरविडु वंश का पतन हो गया।


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