आनन्द कुमारस्वामी

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सुविख्यात कलामर्मज्ञ डॉ. आनन्द कुमार स्वामी का जन्म 22 अगस्त, 1877 ई. को कोलुपित्या कोलम्बो (श्रीलंका) में हुआ था। उनके पिता सर मुतुकुमार स्वामी इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी पास करने वाले पहले हिन्दू थे। वहाँ उन्होंने ऐलिजाबेथ क्ले नामक अंग्रेज़ महिला से विवाह किया। विवाह के चार वर्ष बाद ही जब कुमार स्वामी केवल दो वर्ष के थे, पिता को देहान्त हो गया। अंग्रेज़ माता ने उनका पालन-पोषण किया।

बहुमुखी व्यक्तित्व

कुमार स्वामी ने लंदन यूनिवर्सिटी से भू-विज्ञान और वनस्पतिशास्त्र की शिक्षा पाई और इंग्लैण्ड के मिनरालजिकल सर्वे के डायरेक्टर हो गए। 1906 ई. में लंदन से डी.एस.सी करने के बाद उनकी रुचि ललित कलाओं की ओर झुकी और भारत तथा दक्षिण पूर्व एशिया का भ्रमण करके प्राचीन मूर्तियों और चित्रों का अध्ययन करने लगे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। धर्म, दर्शन, पराविद्या, मूर्ति और चित्रकला, भारतीय साहित्य, इस्लामी कला, संगीत, विज्ञान सभी क्षेत्रों की खोज में उन्होंने अपनी मौलिकता का परिचय दिया। उनकी एक विशिष्ट देन है-कला के सन्दर्भ में उपनिषदों के भावतत्व का निरूपण।

रचनाएँ

1911 ई. में उन्होंने इंग्लैण्ड में ‘इंडियन सोसायटी’ की नीव डाली। 1917 ई. में वे बोस्टन के ललित कला संग्रहालय के भारतीय विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए और मृत्युपर्यन्त उस पद पर रहे। न्यूयार्क में भी उन्होंने ‘इंडियन कल्चर सेंटर’ स्थापित किया। भारतीय कला तथा दर्शन पर उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की। ‘आर्ट एण्ड स्वदेशी’, ‘आई एण्ड क्राफ़्ट्स ऑफ़ इंडिया एण्ड सीलोन’, ‘मिथ्स ऑफ़ हिन्दूज एण्ड बुद्धिस्ट’, ‘बुद्ध एण्ड द गास्पेल ऑफ़ बुद्धिज्म’, ‘इंट्रोडक्शन टु इंडियन आर्ट’, ‘हिस्ट्री ऑफ़ इंडियन एण्ड इंडोनेशियन आर्ट’, ‘ए न्यू एप्रोच टु वेदाज’ और ‘लिविंग थाट्स ऑफ़ गौतमादि बुद्धा’ उनमें से कुछ मुख्य हैं। उनके कुछ ग्रन्थ फ़्रेंच भाषा में भी प्रकाशित हुए। उनके इस कला सम्बन्धी योगदान को देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि, वे वैज्ञानिक क्षेत्र के व्यक्ति थे।

निधन

डॉ. कुमार स्वामी का निधन 70 वर्ष की उम्र में 1947 ई. में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 168 |


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