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'''इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल''' का संघटन 1861 ई. के 'इंडियन कौंसिल्स एक्ट' के द्वारा किया गया। यह उस समय [[वायसराय]] की 'एक्जीक्यूटिव कौंसिल' (कार्यकारिणी समिति) ही थी, जिसका विस्तार करके छह से बारह मनोनीत सदस्य नियुक्त कर दिए गए थे। इनमें कम से कम आधे ग़ैर सरकारी सदस्य होते थे। 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' के पहले तीन ग़ैर सरकारी भारतीय सदस्य महाराज [[पटियाला]], महाराज [[बनारस]] और [[ग्वालियर]] के सर दिनकरराव थे। उसके क़ानून बनाने के अधिकार अत्यन्त सीमित थे।
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'''इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल''' का संघटन 1861 ई. के '[[इण्डियन कौंसिल्स एक्ट]]' के द्वारा किया गया। यह उस समय [[वायसराय]] की 'एक्जीक्यूटिव कौंसिल' (कार्यकारिणी समिति) ही थी, जिसका विस्तार करके छह से बारह मनोनीत सदस्य नियुक्त कर दिए गए थे। इनमें कम से कम आधे ग़ैर सरकारी सदस्य होते थे। 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' के पहले तीन ग़ैर सरकारी भारतीय सदस्य महाराज [[पटियाला]], महाराज [[बनारस]] और [[ग्वालियर]] के सर दिनकरराव थे। उसके क़ानून बनाने के अधिकार अत्यन्त सीमित थे।
 
==सदस्यों की नियुक्ति==
 
==सदस्यों की नियुक्ति==
1892 ई. के 'इंडियन कौंसिल एक्ट' के द्वारा 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' के सदस्यों की संख्या बढ़ा दी  गई। इसके अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बारह से बढ़ाकर सोलह कर दी गई। इनमें अधिक से अधिक छह मनोनीत सदस्य सरकारी सदस्य होते थे। दस ग़ैर सरकारी सदस्यों में चार प्रान्तीय लेजिस्लेटिव कौंसिलों द्वारा चुने जाते थे, एक [[कलकत्ता]] के 'चैम्बर आफ़ कामर्स' (वाणिज्य संघ) द्वारा चुना जाता था और बाकी पाँच [[गवर्नर-जनरल]] के द्वारा मनोनीत किए जाते थे। 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' के कार्यों का भी विस्तार किया गया। इसे बजट पर बहस करने और प्रश्न करने का अधिकार भी दे दिया गया।
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1892 ई. के 'इण्डियन कौंसिल एक्ट' के द्वारा 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' के सदस्यों की संख्या बढ़ा दी  गई। इसके अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बारह से बढ़ाकर सोलह कर दी गई। इनमें अधिक से अधिक छह मनोनीत सदस्य सरकारी सदस्य होते थे। दस ग़ैर सरकारी सदस्यों में चार प्रान्तीय लेजिस्लेटिव कौंसिलों द्वारा चुने जाते थे, एक [[कलकत्ता]] के 'चैम्बर आफ़ कामर्स' (वाणिज्य संघ) द्वारा चुना जाता था और बाकी पाँच [[गवर्नर-जनरल]] के द्वारा मनोनीत किए जाते थे। 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' के कार्यों का भी विस्तार किया गया। इसे बजट पर बहस करने और प्रश्न करने का अधिकार भी दे दिया गया।
 
==कौंसिल का विस्तार==
 
==कौंसिल का विस्तार==
 
1909 ई. के 'गवर्नमंट ऑफ़ इंडिया एक्ट' द्वारा 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' में और परिवर्तन किया गया। उसके सदस्यों की संख्या बढ़ाकर साठ कर दी गई। जिनमें अठ्ठाईस मनोनीति  सरकारी सदस्य होते थे, पाँच मनोनीत ग़ैर सरकारी सदस्य होते थे और सत्ताइस ग़ैर सरकारी सदस्य प्रान्तीय लेजिस्लेटिव कौंसिलों, [[मुसलमान|मुसलमानों]] तथा वाणिज्य संघों के द्वारा चुने जाते थे। इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल के कार्यों का भी विस्तार किया गया। उसे बजट तथा कुछ सार्वजनिक महत्व के प्रश्नों पर प्रस्ताव पेश करने का अधिकार दे दिया गया। प्रस्ताव सिफ़ारिश के रूप में होते थे और सरकार उन्हें स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं थी। गवर्नर-जनरल अपने इच्छानुसार कौंसिल के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर सकता था और किसी भी प्रस्ताव को पेश होने से रोक सकता था।
 
1909 ई. के 'गवर्नमंट ऑफ़ इंडिया एक्ट' द्वारा 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' में और परिवर्तन किया गया। उसके सदस्यों की संख्या बढ़ाकर साठ कर दी गई। जिनमें अठ्ठाईस मनोनीति  सरकारी सदस्य होते थे, पाँच मनोनीत ग़ैर सरकारी सदस्य होते थे और सत्ताइस ग़ैर सरकारी सदस्य प्रान्तीय लेजिस्लेटिव कौंसिलों, [[मुसलमान|मुसलमानों]] तथा वाणिज्य संघों के द्वारा चुने जाते थे। इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल के कार्यों का भी विस्तार किया गया। उसे बजट तथा कुछ सार्वजनिक महत्व के प्रश्नों पर प्रस्ताव पेश करने का अधिकार दे दिया गया। प्रस्ताव सिफ़ारिश के रूप में होते थे और सरकार उन्हें स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं थी। गवर्नर-जनरल अपने इच्छानुसार कौंसिल के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर सकता था और किसी भी प्रस्ताव को पेश होने से रोक सकता था।
==इंडियन लेजिस्लेटिव असेम्बली==
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==इण्डियन लेजिस्लेटिव असेम्बली==
1919 के 'गवर्नमेंट ऑफ़ एक्ट' द्वारा और परिवर्तन किया गया। यह एक्ट मांटेग्यू चेम्सफ़ोर्ड रिपोर्ट पर आधृत था। एक्ट के अंतर्गत केन्द्र में दो सदनों वाले विधान मंडल की स्थापना की गई। 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' को अब 'इंडियन लेजिस्लेटिव असेम्बली' में विलीन कर दिया गया और उसके सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 145 कर दी गई। इनमें से 105 सदस्य निर्वाचित होते थे। केन्द्रीय असेम्बली के क़ानून बनाने के अधिकारों का विस्तार कर दिया गया तथा प्रशासन स्तर पर नियंत्रण बढ़ा दिया गया।
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1919 के 'गवर्नमेंट ऑफ़ एक्ट' द्वारा और परिवर्तन किया गया। यह एक्ट मांटेग्यू चेम्सफ़ोर्ड रिपोर्ट पर आधृत था। एक्ट के अंतर्गत केन्द्र में दो सदनों वाले विधान मंडल की स्थापना की गई। 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' को अब 'इण्डियन लेजिस्लेटिव असेम्बली' में विलीन कर दिया गया और उसके सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 145 कर दी गई। इनमें से 105 सदस्य निर्वाचित होते थे। केन्द्रीय असेम्बली के क़ानून बनाने के अधिकारों का विस्तार कर दिया गया तथा प्रशासन स्तर पर नियंत्रण बढ़ा दिया गया।
  
 
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इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल का संघटन 1861 ई. के 'इण्डियन कौंसिल्स एक्ट' के द्वारा किया गया। यह उस समय वायसराय की 'एक्जीक्यूटिव कौंसिल' (कार्यकारिणी समिति) ही थी, जिसका विस्तार करके छह से बारह मनोनीत सदस्य नियुक्त कर दिए गए थे। इनमें कम से कम आधे ग़ैर सरकारी सदस्य होते थे। 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' के पहले तीन ग़ैर सरकारी भारतीय सदस्य महाराज पटियाला, महाराज बनारस और ग्वालियर के सर दिनकरराव थे। उसके क़ानून बनाने के अधिकार अत्यन्त सीमित थे।

सदस्यों की नियुक्ति

1892 ई. के 'इण्डियन कौंसिल एक्ट' के द्वारा 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' के सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। इसके अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बारह से बढ़ाकर सोलह कर दी गई। इनमें अधिक से अधिक छह मनोनीत सदस्य सरकारी सदस्य होते थे। दस ग़ैर सरकारी सदस्यों में चार प्रान्तीय लेजिस्लेटिव कौंसिलों द्वारा चुने जाते थे, एक कलकत्ता के 'चैम्बर आफ़ कामर्स' (वाणिज्य संघ) द्वारा चुना जाता था और बाकी पाँच गवर्नर-जनरल के द्वारा मनोनीत किए जाते थे। 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' के कार्यों का भी विस्तार किया गया। इसे बजट पर बहस करने और प्रश्न करने का अधिकार भी दे दिया गया।

कौंसिल का विस्तार

1909 ई. के 'गवर्नमंट ऑफ़ इंडिया एक्ट' द्वारा 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' में और परिवर्तन किया गया। उसके सदस्यों की संख्या बढ़ाकर साठ कर दी गई। जिनमें अठ्ठाईस मनोनीति सरकारी सदस्य होते थे, पाँच मनोनीत ग़ैर सरकारी सदस्य होते थे और सत्ताइस ग़ैर सरकारी सदस्य प्रान्तीय लेजिस्लेटिव कौंसिलों, मुसलमानों तथा वाणिज्य संघों के द्वारा चुने जाते थे। इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल के कार्यों का भी विस्तार किया गया। उसे बजट तथा कुछ सार्वजनिक महत्व के प्रश्नों पर प्रस्ताव पेश करने का अधिकार दे दिया गया। प्रस्ताव सिफ़ारिश के रूप में होते थे और सरकार उन्हें स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं थी। गवर्नर-जनरल अपने इच्छानुसार कौंसिल के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर सकता था और किसी भी प्रस्ताव को पेश होने से रोक सकता था।

इण्डियन लेजिस्लेटिव असेम्बली

1919 के 'गवर्नमेंट ऑफ़ एक्ट' द्वारा और परिवर्तन किया गया। यह एक्ट मांटेग्यू चेम्सफ़ोर्ड रिपोर्ट पर आधृत था। एक्ट के अंतर्गत केन्द्र में दो सदनों वाले विधान मंडल की स्थापना की गई। 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल' को अब 'इण्डियन लेजिस्लेटिव असेम्बली' में विलीन कर दिया गया और उसके सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 145 कर दी गई। इनमें से 105 सदस्य निर्वाचित होते थे। केन्द्रीय असेम्बली के क़ानून बनाने के अधिकारों का विस्तार कर दिया गया तथा प्रशासन स्तर पर नियंत्रण बढ़ा दिया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 53।

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