"उज्जयिनी" के अवतरणों में अंतर

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'''प्राचीन उज्जयिनी'''<br />
 
'''प्राचीन उज्जयिनी'''<br />
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[[उज्जैन]] [[भारत]] के [[मध्य प्रदेश]] राज्य का एक प्रमुख शहर है, जो [[क्षिप्रा नदी]] के किनारे बसा है। यह एक अत्यन्त प्राचीन शहर है। यह [[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य|विक्रमादित्य]] के राज्य की राजधानी थी। इसे "[[कालिदास]] की नगरी" के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर 12 [[वर्ष]] पर [[सिंहस्थ कुंभ|सिंहस्थ कुंभ मेला]] लगता है। [[शिव|भगवान शिव]] के [[ज्योतिर्लिंग|12 ज्योतिर्लिंगों]] में से एक महाकाल इस नगरी में स्थित है। उज्जैन मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर [[इन्दौर]] से 55 कि.मी. पर है। इसके प्राचीन नाम [[अवन्तिका]], उज्जयिनी, कनकश्रन्गा आदि हैं। उज्जैन मन्दिरों की नगरी है। यहाँ कई [[तीर्थ स्थल]] हैं। इसकी जनसंख्या लगभग 4 लाख है। यह सात मोक्षदायिनी नगरियों, [[सप्तपुरी|सप्तपुरियों]] में आता है।
उज्जैन [[भारत]] के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है जो [[क्षिप्रा नदी]] के किनारे बसा है। यह एक अत्यन्त प्राचीन शहर है। यह [[विक्रमादित्य]] के राज्य की राजधानी थी। इसे [[कालिदास]] की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर 12 वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान [[शिव]] के [[ज्योतिर्लिंग|12 ज्योतिर्लिंगों]] में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है । उज्जैन मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर [[इन्दौर]] से 55 किमी पर है। उज्जैन के प्राचीन नाम अवन्तिका, उज्जयिनी, कनकश्रन्गा आदि है। उज्जैन मन्दिरों की नगरी है। यहाँ कई तीर्थ स्थल हैं। इसकी जनसंख्या लगभग 4 लाख है। यह सात मोक्षदायिनी नगरियों, सप्तपुरियों में आता है।
 
  
*इसका प्राचीनतम नाम अवन्तिका, अवन्ति नामक राजा के नाम पर था। <ref> [[स्कन्द पुराण]]</ref>  
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*इसका प्राचीनतम नाम अवन्तिका, अवन्ति नामक राजा के नाम पर था।<ref>[[स्कन्द पुराण]]</ref>  
 
*इस जगह को [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] का नाभिदेश कहा गया है।  
 
*इस जगह को [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] का नाभिदेश कहा गया है।  
*[[महर्षि सान्दीपनि]] का आश्रम भी यहीं था।  
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*[[महर्षि सान्दीपनि]] का [[आश्रम]] भी यहीं था।  
*उज्जयिनी महाराज विक्रमादित्य की राजधानी थी।  
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*उज्जयिनी '''महाराज विक्रमादित्य''' की राजधानी थी।  
*भारतीय ज्योतिष शास्त्र में देशान्तर की शून्य रेखा उज्जयिनी से प्रारम्भ हुई मानी जाती है।  
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*भारतीय ज्योतिषशास्त्र में [[देशान्तर]] की शून्य रेखा उज्जयिनी से प्रारम्भ हुई मानी जाती है।  
*यहाँ बारह वर्ष में एक बार [[कुम्भ मेला]] लगता है।  
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*यहाँ बारह [[वर्ष]] में एक बार '[[कुम्भ मेला]]' लगता है।  
*इसकी गणना सात पवित्र पुरियों में है।
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*उज्जयिनी की गणना 'सात पवित्र पुरियों' में की जाती है।
*[[अयोध्या]] [[मथुरा]] माया [[काशी]] कांशी अवन्तिका।
 
  
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*शेष छ: पुरियों के नम इस प्रकार हैं- [[अयोध्या]], [[मथुरा]], [[हरिद्वार]], [[काशी]], [[कांचीपुरम]] और [[द्वारका]]।
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
प्राचीन संस्कृत तथा पाली साहित्य में अवंती या उज्जयिनी का सैंकड़ों बार उल्लेख हुआ है। [[महाभारत]] सभा0 31,10 में सहदेव द्वारा [[अवंती]] को विजित करने का वर्णन है। [[बौद्धकाल]] में अवंती उत्तरभारत के [[षोडश महाजनपद|षोडश महाजनपदों]] में से थी जिनकी सूची [[अंगुत्तरनिकाय]] में है। [[जैन ग्रंथ]] भगवतीसूत्र में इसी जनपद को [[मालवा]] कहा गया है। इस जनपद में स्थूल रूप से वर्तमान मालवा, [[निमाड़]], और मध्यप्रदेश का बीच का भाग सम्मिलित था। पुराणों के अनुसार अवंती की स्थापना [[यदुवंश क्षत्रिय|यदुवंशी क्षत्रियों]] द्वारा की गई थी। [[बुद्ध]] के समय अवंती का राजा [[चंडप्रद्योत]] था। इसकी पुत्री वासवदत्ता से वत्सनरेश उदयन ने विवाह किया था जिसका उल्लेख भासरचित 'स्वप्नवासवदत्ता' नामक नाटक में है। वासवदत्ता को अवन्ती से संबंधित मानते हुए एक स्थान पर इस नाटक में कहा गया है-<ref> 'हम्! अतिसदृशी खल्वियमार्याय अवंतिकाया:' अंक 6 </ref> चतुर्थ शती ई. पू. में अवन्ती का जनपद [[मौर्य-साम्राज्य]] में सम्मिलित था और उज्जयिनी [[मगध-साम्राज्य]] के पश्चिम प्रांत की राजधानी थी। इससे पूर्व [[मगध]] और अवन्ती का संघर्ष पर्याप्त समय तक चलता रहा था जिसकी सूचना हमें परिशिष्टपर्वन्<ref> परिशिष्टपर्वन् (पृ0 42)</ref> से मिलती है। कथासरित्सागर<ref> कथासरित्सागर (टाँनी का अनुवाद जिल्द 2, पृ0 484)</ref> से यह भी ज्ञात होता है कि अवन्तीराज चंडप्रद्योत के पुत्र पालक ने कौशांबी को अपने राज्य में मिल लिया था।  
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प्राचीन संस्कृत तथा पाली साहित्य में अवंती या उज्जयिनी का सैंकड़ों बार उल्लेख हुआ है। [[महाभारत]]<ref>[[महाभारत]], सभा. 31,10</ref> में सहदेव द्वारा [[अवंती]] को विजित करने का वर्णन है। बौद्धकाल में अवंती उत्तर भारत के [[सोलह महाजनपद|षोडश महाजनपदों]] में से थी जिनकी सूची [[अंगुत्तरनिकाय]] में है। जैन ग्रंथ 'भगवती सूत्र' में इसी जनपद को [[मालवा]] कहा गया है। इस जनपद में स्थूल रूप से वर्तमान मालवा, निमाड़, और मध्यप्रदेश का बीच का भाग सम्मिलित था। पुराणों के अनुसार अवंती की स्थापना [[यदु वंश|यदुवंशी क्षत्रियों]] द्वारा की गई थी। [[बुद्ध]] के समय अवंती का राजा [[चंडप्रद्योत]] था। इसकी पुत्री वासवदत्ता से वत्सनरेश उदयन ने विवाह किया था जिसका उल्लेख भास रचित 'स्वप्नवासवदत्ता' नामक नाटक में है। वासवदत्ता को अवन्ती से संबंधित मानते हुए एक स्थान पर इस [[नाटक]] में कहा गया है कि<ref>'हम्! अतिसदृशी खल्वियमार्याय अवंतिकाया:' अंक 6.</ref> चतुर्थ शती ई. पू. में अवन्ती का जनपद [[मौर्य साम्राज्य]] में सम्मिलित था और उज्जयिनी [[मगध महाजनपद|मगध साम्राज्य]] के पश्चिम प्रांत की राजधानी थी। इससे पूर्व [[मगध]] और अवन्ती का संघर्ष पर्याप्त समय तक चलता रहा था जिसकी सूचना हमें परिशिष्टपर्वन्<ref> परिशिष्टपर्वन् (पृ0 42</ref> से मिलती है। '[[कथासरित्सागर]]'<ref>[[कथासरित्सागर]] (टॉनी का अनुवाद जिल्द 2, पृ0 484</ref> से यह भी ज्ञात होता है कि अवन्तीराज चंडप्रद्योत के पुत्र पालक ने [[कौशांबी]] को अपने राज्य में मिल लिया था।  
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;विष्णुपुराण के अनुसार
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[[विष्णुपुराण]]<ref>[[विष्णुपुराण]] 4,24,68</ref> से विदित होता है कि संभवत: [[गुप्त काल]] से पूर्व अवन्ती पर आभीर इत्यादि शूद्रों या विजातियों का आधिपत्य था।<ref> 'सौराष्ट्रावन्ति.. विषयांश्च- आभीर शूद्राद्या भोक्ष्यन्ते'।</ref> ऐतिहासिक परंपरा से हमें यह भी विदित होता है कि प्रथम शती ई. पू. में (57 ई. पू. के लगभग) विक्रम संवत् के संस्थापक किसी अज्ञात राजा ने शकों को हराकर उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया था। गुप्तकाल में [[चंद्रगुप्त विक्रमादित्य]] ने अवंती को पुन: विजय किया और वहाँ से विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंका। कुछ विद्वानों के मत में 57 ई. पू. में विक्रमादित्य नाम का कोई राजा नहीं था और चंद्रगुप्त द्वितीय ही ने अवंती-विजय के पश्चात् मालव संवत् को जो 57 ई. पू. में प्रारम्भ हुआ था, [[विक्रम संवत]] का नाम दे दिया।
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;युवानच्वांग के यात्रावृत्त से ज्ञात
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चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] के यात्रावृत्त से ज्ञात होता है कि अवन्ती या उज्जयिनी का राज्य उस समय (615-630 ई.) [[मालवा]] राज्य से अलग था और वहाँ एक स्वतन्त्र राजा का शासन था। कहा जाता है [[शंकराचार्य]] के समकालीन अवन्तीनरेश सुधन्वा ने [[जैन धर्म]] का उत्कर्ष सूचित करने के लिए प्राचीन अवन्तिका का नाम उज्जयिनी (विजयकारिणी) कर दिया था, किंतु यह केवल कपोलकल्पना मात्र है, क्योंकि गुप्तकालीन [[कालिदास]] को भी उज्जयिनी नाम ज्ञात था-
  
[[विष्णुपुराण]] 4,24,68 से विदित होता है कि संभवत: गुप्तकाल से पूर्व अवन्ती पर आभीर इत्यादि शूद्रों या विजातियों का आधिपत्य था-<ref> 'सौराष्ट्रावन्ति.. विषयांश्च- आभीर शूद्राद्या भोक्ष्यन्ते'।</ref> ऐतिहासिक परंपरा से हमें यह भी विदित होता है कि प्रथम शती ई. पू. में (57 ई. पू. के लगभग) विक्रम संवत् के संस्थापक किसी अज्ञात राजा ने शकों को हराकर उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया था। गुप्तकाल में चंद्रगुप्त [[विक्रमादित्य]] ने अवंती को पुन: विजय किया और वहाँ से विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंका। कुछ विद्वानों के मत में 57 ई. पू. में विक्रमादित्य नाम का कोई राजा नहीं था और चंद्रगुप्त द्वितीय ही ने अवंती-विजय के पश्चात मालव संवत् को जो 57 ई. पू. में प्रारम्भ हुआ था, विक्रम संवत् का नाम दे दिया।
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'वक्र: पंथा यदपि भवत: प्रस्थिस्योत्तराशां, सौधोत्संगप्रणय-विमुखोमास्म भूरूज्जयिन्या:'<ref> मेघदूत 29</ref>
 
 
चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] के यात्रावृत्त से ज्ञात होता है कि अवन्ती या उज्जयिनी का राज्य उस समय (615-630 ई.) [[मालवाराज्य]] से अलग था और वहाँ एक स्वतन्त्र राजा का शासन था। कहा जाता है [[शंकराचार्य]] के समकालीन अवन्तीनरेश सुधन्वा ने [[जैन धर्म]] का उत्कर्ष सूचित करने के लिए प्राचीन अवन्तिका का नाम उज्जयिनी (विजयकारिणी) कर दिया था किंतु यह केवल कपोलकल्पना मात्र है। क्योंकि गुप्तकालीन [[कालिदास]] को भी उज्जयिनी नाम ज्ञात था,<ref> 'वक्र: पंथा यदपि भवत: प्रस्थिस्योत्तराशां, सौधोत्संगप्रणय-विमुखोमास्म भूरूज्जयिन्या:' पूर्वमेघ0 29।</ref> इसके साथ ही कवि ने अवन्ती का भी उल्लेख किया है- <ref>'प्राप्यावन्तीमुदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान्' पूर्वमेघ 32।</ref> इससे संभवत: यह जान पड़ता है कि कालिदास के समय में अवन्ती उस जनपद का नाम था जिसकी मुख्य नगरी उज्जयिनी थी।
 
 
 
9 वीं व 10वीं शतियों में उज्जयिनी में परमार राजाओं का शासन रहा। तत्पश्चात उन्होंने [[धारानगरी]] में अपनी राजधानी बनाई। मध्यकाल में इस नगरी को मुख्यत: उज्जैन ही कहा जाता था और इसका मालवा के सूबे के एक मुख्य स्थान के रूप में वर्णन मिलता है। [[दिल्ली]] के सुलतान [[इल्तुतमिश]] ने उज्जैन को बुरी तरह से लूटा और यहाँ के महाकाल के अतिप्राचीन मन्दिर को नष्ट कर दिया। (यह मंदिर संभवत: गुप्तकाल से भी पूर्व का था। मेघदूत, पूर्वमेघ 36 में इसका वर्णन है-<ref> 'अप्यन्यस्मिन् जलधर महाकालमासाद्यकाले')</ref> अगले प्राय: पाँच सौ वर्षों तक उज्जैन पर मुसलमानों का आधिपत्य रहा। 1750 ई. में सिंधियानरेशों का शासन यहाँ स्थापित हुआ और 1810 ई. तक उज्जैन में उनकी राजधानी रही। इस वर्ष सिंधिया ने उज्जैन से हटाकर राजधानी [[ग्वालियर]] में बनाई। [[मराठा साम्राज्य|मराठों]] के राज्यकाल में उज्जैन के कुछ प्राचीन मन्दिरों का जीर्णोद्धार किया गया था। इनमें महाकाल का मंदिर भी है। यहीं से [[शिव]] ने [[त्रिपुर]] पर विजय प्राप्त की थी, अत: इसका नाम उज्जयिनी पड़ा।
 
 
 
जैन-ग्रंथ विविध तीर्थ कल्प में मालवा-प्रदेश का ही नाम अवंति या अवंती है। राजा शंबर के पुत्र अभिनंदनदेव का चैत्य अवन्ति के मेद नामक ग्राम में स्थित था। इस चैत्य को मुसलमान सेना ने नष्ट कर दिया था किंतु इस ग्रन्थ के अनुसार वैज नामक व्यापारी की तपस्या से खण्डित मूर्ति फिर से जुड़ गई थी।
 
  
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इसके साथ ही कवि ने अवन्ती का भी उल्लेख किया है<ref>'प्राप्यावन्तीमुदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान्' मेघदूत 32।</ref> इससे संभवत: यह जान पड़ता है कि [[कालिदास]] के समय में अवन्ती उस जनपद का नाम था जिसकी मुख्य नगरी उज्जयिनी थी।
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;महाभारत के अनुसार
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[[अनुशासन पर्व महाभारत|महाभारत अनुशासन पर्व]] में [[विश्वामित्र]] के एक पुत्र उज्जयन का नाम मिलता है। संभव है उज्जयिनी का नाम इसी के नाम पर हो। [[भास]] के नाटक '[[स्वप्नवासवदत्ता]]' में अवंति तथा उज्जयिनी-इन दोनों ही नामों का उल्लेख है-
 +
:'एष उज्जयिनीयो ब्राह्मण:',
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जिससे नाम की अतिप्राचीनता सिद्ध होती है। उज्जयिनी के कई नाम [[संस्कृत साहित्य]] में मिलते हैं जिनमें मुख्य हैं- [[अवंती महाजनपद|अवंती]], [[विशाला]], [[भोगवती]], [[हिरण्यवती]] और पद्मावती।
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;जैन-ग्रंथ विविध तीर्थ
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जैन-ग्रंथ 'विविध तीर्थ कल्प' में [[मालवा]] प्रदेश का ही नाम 'अवंति' या 'अवंती' है। राजा शंबर के पुत्र अभिनंदनदेव का चैत्य अवन्ति के मेद नामक ग्राम में स्थित था। इस चैत्य को [[मुसलमान]] सेना ने नष्ट कर दिया था, किंतु इस [[ग्रन्थ]] के अनुसार वैज नामक व्यापारी की तपस्या से खण्डित मूर्ति फिर से जुड़ गई थी।
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;परमार राजाओं का शासन
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9 वीं व 10वीं शतियों में उज्जयिनी में [[परमार वंश|परमार]] राजाओं का शासन रहा। तत्पश्चात् उन्होंने [[धारानगरी]] में अपनी राजधानी बनाई। [[मध्य काल]] में इस नगरी को मुख्यत: उज्जैन ही कहा जाता था और इसका मालवा के सूबे के एक मुख्य स्थान के रूप में वर्णन मिलता है। [[दिल्ली]] के सुलतान [[इल्तुतमिश]] ने उज्जैन को बुरी तरह से लूटा और यहाँ के [[महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग|महाकाल]] के अतिप्राचीन मन्दिर को नष्ट कर दिया। यह मंदिर संभवत: [[गुप्त काल]] से भी पूर्व का था। [[मेघदूत]]<ref>[[मेघदूत]], पूर्वमेघ 36</ref> में इसका वर्णन है<ref> 'अप्यन्यस्मिन् जलधर महाकालमासाद्यकाले'</ref> अगले प्राय: पाँच सौ वर्षों तक उज्जैन पर मुसलमानों का आधिपत्य रहा। 1750 ई. में सिंधियानरेशों का शासन यहाँ स्थापित हुआ और 1810 ई. तक उज्जैन उनकी राजधानी रही। इस वर्ष सिंधिया ने उज्जैन से हटाकर राजधानी [[ग्वालियर]] में बनाई। [[मराठा साम्राज्य|मराठों]] के राज्यकाल में उज्जैन के कुछ प्राचीन मन्दिरों का जीर्णोद्धार किया गया था। इनमें महाकाल का मंदिर भी है। यहीं से [[शिव]] ने [[त्रिपुर]] पर विजय प्राप्त की थी, अत: इसका नाम उज्जयिनी पड़ा।
 
==मंदिर==
 
==मंदिर==
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====महाकाल का मंदिर====
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[[भारत]] का प्रसिद्ध शैव तीर्थ, जिसका सम्बन्ध ज्योतिर्लिंग महाकाल से है। उज्जयिनी के वर्तमान की तपस्या में मुख्य, महाकाल का मंदिर [[शिप्रा नदी]] के तट पर भूमि के नीचे बना हैं इसका निर्माण प्राचीन मंदिर के स्थान पर रणोजी सिंधिया के मन्त्री रामचन्द्र बाबा ने 19वीं शती के उत्तरार्ध में करवाया था। महाकाल की शिव के द्वादश ज्योतिलिंगों में गणना की जाती है। इसी कारण इस नगरी को [[शिवपुरी]] भी कहा गया है।
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====हरसिद्धि का मन्दिर====
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'हरसिद्धि देवी' का मन्दिर [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] में से एक सिद्धपीठ है। कहा जाता है कि हरसिद्धि देवी का मन्दिर उसी प्राचीन मन्दिर का प्रतिरूप है, जहाँ विक्रमादित्य इस देवी की [[पूजा]] किया करते थे।
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*राजा भर्तृहरि की गुफा संभवत: 11वीं शती का [[अवशेष]] है।
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*चौबीस खंभा दरवाज़ा शायद प्राचीन महाकाल मंदिर के प्रांगण का मुख्य द्वार था।
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*कालीदह महल 1500 ई. में बना था। यहाँ की प्रसिद्ध वेधशाला [[जयपुर]] नरेश [[जयसिंह द्वितीय]] ने 1733 ई. में बनवाई थी। वेधशाला का जीर्णोद्वार [[1925]] ई. में किया गया था।
  
====महाकाल का मंदिर====
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प्राचीन अवंती वर्तमान [[उज्जैन]] के स्थान पर ही बसी थी। यह तथ्य इस बात से सिद्ध होता है कि, शिप्रा नदी, जो आजकल भी उज्जैन के निकट बहती है, प्राचीन साहित्य में भी अवंती के निकट ही वर्णित है-
भारत का प्रसिद्ध शैव तीर्थ, जिसका सम्बन्ध ज्योतिर्लिंग महाकाल से है। उज्जयिनी के वर्तमान की तपस्या में मुख्य, महाकाल का मंदिर शिप्रा नदी के तट पर भूमि के नीचे बना हैं इसका निर्माण प्राचीन मंदिर के स्थान पर रणोजी सिंधिया के मन्त्री रामचन्द्र बाबा ने 19वीं शती के उत्तरार्ध में करवाया था। महाकाल की शिव के द्वादश ज्योतिलिंगों में गणना की जाती है। इसी कारण इस नगरी को [[शिवपुरी]] भी कहा गया है।
 
  
====हरसिद्धि का मन्दिर====
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'यत्र स्त्रीणां हरत्ति सुरतग्लानिमंगानुकूल: शिप्रावात: प्रियतम इव प्रार्थनाचाटुकार:'<ref> मेघदूत 33</ref>
हरसिद्धि देवी का मन्दिर [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] में ही एक सिद्ध पीठ है। कहा जाता है हरसिद्धि का मन्दिर, उसी प्राचीन मन्दिर का प्रतिरूप है। जहाँ विक्रमादित्य इस देवी की पूजा किया करते थे।
 
*राजा भर्तृ हरि की गुफा संभवत: 11वीं शती का अवशेष है।
 
*चौबीस खंभा दरवाजा शायद प्राचीन महाकाल मंदिर के प्रांगण का मुख्य द्वार था।
 
*कालीदह-महल 1500 ई. में बना था। यहाँ की प्रसिद्ध वेधशाला जयपुरनरेश [[जयसिंह]] द्वितीय ने 1733 ई. में बनवाई थी। वेधशाला का जीर्णोद्वार 1925 ई. में किया गया था।
 
  
प्राचीन अवंती वर्तमान उज्जैन के स्थान पर ही बसी थी, यह तथ्य इस बात से सिद्ध होता है कि शिप्रा नदी जो आजकल भी उज्जैन के निकट बहती है, प्राचीन साहित्य में भी अवंती के निकट ही वर्णित है-<ref> 'यत्र स्त्रीणां हरत्ति सुरतग्लानिमंगानुकूल: शिप्रावात: प्रियतम इव प्रार्थनाचाटुकार:' पूर्वमेघ 33।</ref> उज्जैन से एक मील उत्तर की ओर भैरोगढ़ में दूसरी-तीसरी शत्ती ई. पू. की उज्जयिनी के खंडहर पाए गए हैं। यहाँ वैश्या-टेकरी और कुम्हार-टेकरी नाम के टीले हैं जिनका सम्बन्ध प्राचीन किंवदंतियों से है।
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[[उज्जैन]] से एक मील उत्तर की ओर भैरोगढ़ में दूसरी-तीसरी शती ई. पू. की उज्जयिनी के [[खंडहर]] पाए गए हैं। यहाँ 'वेश्या-टेकरी' और 'कुम्हार-टेकरी' नाम के टीले हैं, जिनका सम्बन्ध प्राचीन किंवदंतियों से है।
  
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{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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*ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 87-88| विजयेन्द्र कुमार माथुर |  वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
 
<references/>
 
<references/>
==सम्बंधित लिंक==
+
==संबंधित लेख==
{{सप्तपुरी}}
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{{मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल}}{{सप्तपुरी}}
[[Category:मध्य प्रदेश]] [[Category:मध्य प्रदेश के धार्मिक नगर]] [[Category:इतिहास कोश]]
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[[Category:मध्य प्रदेश]][[Category:मध्य प्रदेश के धार्मिक स्थल]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थानावली]]
[[Category:पर्यटन कोश]] [[Category:ऐतिहासिक स्थल]] [[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
 
 
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{{सुलेख}}

13:10, 11 मई 2018 के समय का अवतरण

उज्जयिनी
Mahakaleshwar-Temple.jpg
विवरण वर्तमान नाम उज्जैन भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है जो क्षिप्रा नदी के किनारे बसा है।
राज्य मध्य प्रदेश
ज़िला उज्जैन ज़िला
मार्ग स्थिति यह दिल्ली से 774 किलोमीटर, अहमदाबाद 402 किलोमीटर, मुंबई 655 किलोमीटर है।
कब जाएँ सितंबर से मार्च
कैसे पहुँचें बस, विमान, टैक्सी, रेल
हवाई अड्डा नज़दीकी हवाई अड्डा इंदौर (55 किलोमीटर) है।
रेलवे स्टेशन उज्जैन रेलवे स्टेशन
बस अड्डा उज्जैन बस अड्डा
यातायात ऑटो रिक्शा व रिक्शा
क्या देखें उज्जयिनी पर्यटन
कहाँ ठहरें होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह
एस.टी.डी. कोड 0734
Map-icon.gif गूगल मानचित्र, इंदौर हवाई अड्डा
अद्यतन‎

प्राचीन उज्जयिनी
उज्जैन भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है, जो क्षिप्रा नदी के किनारे बसा है। यह एक अत्यन्त प्राचीन शहर है। यह विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी। इसे "कालिदास की नगरी" के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर 12 वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल इस नगरी में स्थित है। उज्जैन मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर इन्दौर से 55 कि.मी. पर है। इसके प्राचीन नाम अवन्तिका, उज्जयिनी, कनकश्रन्गा आदि हैं। उज्जैन मन्दिरों की नगरी है। यहाँ कई तीर्थ स्थल हैं। इसकी जनसंख्या लगभग 4 लाख है। यह सात मोक्षदायिनी नगरियों, सप्तपुरियों में आता है।

  • इसका प्राचीनतम नाम अवन्तिका, अवन्ति नामक राजा के नाम पर था।[1]
  • इस जगह को पृथ्वी का नाभिदेश कहा गया है।
  • महर्षि सान्दीपनि का आश्रम भी यहीं था।
  • उज्जयिनी महाराज विक्रमादित्य की राजधानी थी।
  • भारतीय ज्योतिषशास्त्र में देशान्तर की शून्य रेखा उज्जयिनी से प्रारम्भ हुई मानी जाती है।
  • यहाँ बारह वर्ष में एक बार 'कुम्भ मेला' लगता है।
  • उज्जयिनी की गणना 'सात पवित्र पुरियों' में की जाती है।

इतिहास

प्राचीन संस्कृत तथा पाली साहित्य में अवंती या उज्जयिनी का सैंकड़ों बार उल्लेख हुआ है। महाभारत[2] में सहदेव द्वारा अवंती को विजित करने का वर्णन है। बौद्धकाल में अवंती उत्तर भारत के षोडश महाजनपदों में से थी जिनकी सूची अंगुत्तरनिकाय में है। जैन ग्रंथ 'भगवती सूत्र' में इसी जनपद को मालवा कहा गया है। इस जनपद में स्थूल रूप से वर्तमान मालवा, निमाड़, और मध्यप्रदेश का बीच का भाग सम्मिलित था। पुराणों के अनुसार अवंती की स्थापना यदुवंशी क्षत्रियों द्वारा की गई थी। बुद्ध के समय अवंती का राजा चंडप्रद्योत था। इसकी पुत्री वासवदत्ता से वत्सनरेश उदयन ने विवाह किया था जिसका उल्लेख भास रचित 'स्वप्नवासवदत्ता' नामक नाटक में है। वासवदत्ता को अवन्ती से संबंधित मानते हुए एक स्थान पर इस नाटक में कहा गया है कि[3] चतुर्थ शती ई. पू. में अवन्ती का जनपद मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित था और उज्जयिनी मगध साम्राज्य के पश्चिम प्रांत की राजधानी थी। इससे पूर्व मगध और अवन्ती का संघर्ष पर्याप्त समय तक चलता रहा था जिसकी सूचना हमें परिशिष्टपर्वन्[4] से मिलती है। 'कथासरित्सागर'[5] से यह भी ज्ञात होता है कि अवन्तीराज चंडप्रद्योत के पुत्र पालक ने कौशांबी को अपने राज्य में मिल लिया था।

विष्णुपुराण के अनुसार

विष्णुपुराण[6] से विदित होता है कि संभवत: गुप्त काल से पूर्व अवन्ती पर आभीर इत्यादि शूद्रों या विजातियों का आधिपत्य था।[7] ऐतिहासिक परंपरा से हमें यह भी विदित होता है कि प्रथम शती ई. पू. में (57 ई. पू. के लगभग) विक्रम संवत् के संस्थापक किसी अज्ञात राजा ने शकों को हराकर उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया था। गुप्तकाल में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अवंती को पुन: विजय किया और वहाँ से विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंका। कुछ विद्वानों के मत में 57 ई. पू. में विक्रमादित्य नाम का कोई राजा नहीं था और चंद्रगुप्त द्वितीय ही ने अवंती-विजय के पश्चात् मालव संवत् को जो 57 ई. पू. में प्रारम्भ हुआ था, विक्रम संवत का नाम दे दिया।

युवानच्वांग के यात्रावृत्त से ज्ञात

चीनी यात्री युवानच्वांग के यात्रावृत्त से ज्ञात होता है कि अवन्ती या उज्जयिनी का राज्य उस समय (615-630 ई.) मालवा राज्य से अलग था और वहाँ एक स्वतन्त्र राजा का शासन था। कहा जाता है शंकराचार्य के समकालीन अवन्तीनरेश सुधन्वा ने जैन धर्म का उत्कर्ष सूचित करने के लिए प्राचीन अवन्तिका का नाम उज्जयिनी (विजयकारिणी) कर दिया था, किंतु यह केवल कपोलकल्पना मात्र है, क्योंकि गुप्तकालीन कालिदास को भी उज्जयिनी नाम ज्ञात था-

'वक्र: पंथा यदपि भवत: प्रस्थिस्योत्तराशां, सौधोत्संगप्रणय-विमुखोमास्म भूरूज्जयिन्या:'[8]

इसके साथ ही कवि ने अवन्ती का भी उल्लेख किया है[9] इससे संभवत: यह जान पड़ता है कि कालिदास के समय में अवन्ती उस जनपद का नाम था जिसकी मुख्य नगरी उज्जयिनी थी।

महाभारत के अनुसार

महाभारत अनुशासन पर्व में विश्वामित्र के एक पुत्र उज्जयन का नाम मिलता है। संभव है उज्जयिनी का नाम इसी के नाम पर हो। भास के नाटक 'स्वप्नवासवदत्ता' में अवंति तथा उज्जयिनी-इन दोनों ही नामों का उल्लेख है-

'एष उज्जयिनीयो ब्राह्मण:',

जिससे नाम की अतिप्राचीनता सिद्ध होती है। उज्जयिनी के कई नाम संस्कृत साहित्य में मिलते हैं जिनमें मुख्य हैं- अवंती, विशाला, भोगवती, हिरण्यवती और पद्मावती।

जैन-ग्रंथ विविध तीर्थ

जैन-ग्रंथ 'विविध तीर्थ कल्प' में मालवा प्रदेश का ही नाम 'अवंति' या 'अवंती' है। राजा शंबर के पुत्र अभिनंदनदेव का चैत्य अवन्ति के मेद नामक ग्राम में स्थित था। इस चैत्य को मुसलमान सेना ने नष्ट कर दिया था, किंतु इस ग्रन्थ के अनुसार वैज नामक व्यापारी की तपस्या से खण्डित मूर्ति फिर से जुड़ गई थी।

परमार राजाओं का शासन

9 वीं व 10वीं शतियों में उज्जयिनी में परमार राजाओं का शासन रहा। तत्पश्चात् उन्होंने धारानगरी में अपनी राजधानी बनाई। मध्य काल में इस नगरी को मुख्यत: उज्जैन ही कहा जाता था और इसका मालवा के सूबे के एक मुख्य स्थान के रूप में वर्णन मिलता है। दिल्ली के सुलतान इल्तुतमिश ने उज्जैन को बुरी तरह से लूटा और यहाँ के महाकाल के अतिप्राचीन मन्दिर को नष्ट कर दिया। यह मंदिर संभवत: गुप्त काल से भी पूर्व का था। मेघदूत[10] में इसका वर्णन है[11] अगले प्राय: पाँच सौ वर्षों तक उज्जैन पर मुसलमानों का आधिपत्य रहा। 1750 ई. में सिंधियानरेशों का शासन यहाँ स्थापित हुआ और 1810 ई. तक उज्जैन उनकी राजधानी रही। इस वर्ष सिंधिया ने उज्जैन से हटाकर राजधानी ग्वालियर में बनाई। मराठों के राज्यकाल में उज्जैन के कुछ प्राचीन मन्दिरों का जीर्णोद्धार किया गया था। इनमें महाकाल का मंदिर भी है। यहीं से शिव ने त्रिपुर पर विजय प्राप्त की थी, अत: इसका नाम उज्जयिनी पड़ा।

मंदिर

महाकाल का मंदिर

भारत का प्रसिद्ध शैव तीर्थ, जिसका सम्बन्ध ज्योतिर्लिंग महाकाल से है। उज्जयिनी के वर्तमान की तपस्या में मुख्य, महाकाल का मंदिर शिप्रा नदी के तट पर भूमि के नीचे बना हैं इसका निर्माण प्राचीन मंदिर के स्थान पर रणोजी सिंधिया के मन्त्री रामचन्द्र बाबा ने 19वीं शती के उत्तरार्ध में करवाया था। महाकाल की शिव के द्वादश ज्योतिलिंगों में गणना की जाती है। इसी कारण इस नगरी को शिवपुरी भी कहा गया है।

हरसिद्धि का मन्दिर

'हरसिद्धि देवी' का मन्दिर 51 शक्तिपीठों में से एक सिद्धपीठ है। कहा जाता है कि हरसिद्धि देवी का मन्दिर उसी प्राचीन मन्दिर का प्रतिरूप है, जहाँ विक्रमादित्य इस देवी की पूजा किया करते थे।

  • राजा भर्तृहरि की गुफा संभवत: 11वीं शती का अवशेष है।
  • चौबीस खंभा दरवाज़ा शायद प्राचीन महाकाल मंदिर के प्रांगण का मुख्य द्वार था।
  • कालीदह महल 1500 ई. में बना था। यहाँ की प्रसिद्ध वेधशाला जयपुर नरेश जयसिंह द्वितीय ने 1733 ई. में बनवाई थी। वेधशाला का जीर्णोद्वार 1925 ई. में किया गया था।

प्राचीन अवंती वर्तमान उज्जैन के स्थान पर ही बसी थी। यह तथ्य इस बात से सिद्ध होता है कि, शिप्रा नदी, जो आजकल भी उज्जैन के निकट बहती है, प्राचीन साहित्य में भी अवंती के निकट ही वर्णित है-

'यत्र स्त्रीणां हरत्ति सुरतग्लानिमंगानुकूल: शिप्रावात: प्रियतम इव प्रार्थनाचाटुकार:'[12]

उज्जैन से एक मील उत्तर की ओर भैरोगढ़ में दूसरी-तीसरी शती ई. पू. की उज्जयिनी के खंडहर पाए गए हैं। यहाँ 'वेश्या-टेकरी' और 'कुम्हार-टेकरी' नाम के टीले हैं, जिनका सम्बन्ध प्राचीन किंवदंतियों से है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 87-88| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
  1. स्कन्द पुराण
  2. महाभारत, सभा. 31,10
  3. 'हम्! अतिसदृशी खल्वियमार्याय अवंतिकाया:' अंक 6.
  4. परिशिष्टपर्वन् (पृ0 42
  5. कथासरित्सागर (टॉनी का अनुवाद जिल्द 2, पृ0 484
  6. विष्णुपुराण 4,24,68
  7. 'सौराष्ट्रावन्ति.. विषयांश्च- आभीर शूद्राद्या भोक्ष्यन्ते'।
  8. मेघदूत 29
  9. 'प्राप्यावन्तीमुदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान्' मेघदूत 32।
  10. मेघदूत, पूर्वमेघ 36
  11. 'अप्यन्यस्मिन् जलधर महाकालमासाद्यकाले'
  12. मेघदूत 33

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