एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "०"।

"उत्तर गीता" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति")
छो (श्रेणी:गीता (को हटा दिया गया हैं।))
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'उत्तरगीता' [[महाभारत]] का ही एक अंश माना जाता है। प्रसिद्ध है कि [[पाण्डव|पाण्डवों]] की विजय और राज्य प्राप्ति के बाद श्री [[कृष्ण]] के सत्संग का सुअवसर पाकर एक बार [[अर्जुन]] ने कहा कि भगवन! युद्धारम्भ में आपने जो गीता-उपदेश मुझको दिया था, युद्ध की मार-काट और भाग-दौड़ के बीच मैं भूल गया हूँ। कृपा कर वह ज्ञानोपदेश मुझको फिर से सुना दीजिए। श्री कृष्ण बोले की अर्जुन, उक्त उपदेश मैंने बहुत ही समाहितचित्त (योगस्थ) होकर दिव्य अनुभूति के द्वारा दिया था, अब तो मैं भी उसको आनुपूर्वी रूप से भूल गया हूँ। फिर भी यथास्मृति उसे सुनाता हूँ। इस प्रकार श्री कृष्ण का बाद में अर्जुन को दिया गया उपदेश ही 'उत्तरगीता' नाम से प्रसिद्ध है। स्वामी [[शंकराचार्य]] के परमगुरु [[गौडपादाचार्य]] की व्याख्या इसके ऊपर पायी जाती है। जिससे इस ग्रन्थ का गौरव और भी बढ़ गया है।
+
[[चित्र:Uttaragita.jpg|thumb|150px|उत्तरगीता]]
 +
'''उत्तर गीता''' [[महाभारत]] का ही एक अंश माना जाता है। प्रसिद्ध है कि [[पाण्डव|पाण्डवों]] की विजय और राज्य प्राप्ति के बाद श्री [[कृष्ण]] के सत्संग का सुअवसर पाकर एक बार [[अर्जुन]] ने कहा कि भगवन! युद्धारम्भ में आपने जो गीता-उपदेश मुझको दिया था, युद्ध की मार-काट और भाग-दौड़ के बीच मैं भूल गया हूँ। कृपा कर वह ज्ञानोपदेश मुझको फिर से सुना दीजिए। श्री कृष्ण बोले की अर्जुन, उक्त उपदेश मैंने बहुत ही समाहितचित्त (योगस्थ) होकर दिव्य अनुभूति के द्वारा दिया था, अब तो मैं भी उसको आनुपूर्वी रूप से भूल गया हूँ। फिर भी यथास्मृति उसे सुनाता हूँ। इस प्रकार श्री कृष्ण का बाद में अर्जुन को दिया गया उपदेश ही 'उत्तर गीता' नाम से प्रसिद्ध है। स्वामी [[शंकराचार्य]] के परमगुरु [[गौडपादाचार्य]] की व्याख्या इसके ऊपर पायी जाती है। जिससे इस ग्रन्थ का गौरव और भी बढ़ गया है।
  
 
{{प्रचार}}
 
{{प्रचार}}
 
{{लेख प्रगति
 
{{लेख प्रगति
|आधार=आधार1
+
|आधार=
|प्रारम्भिक=
+
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
 
|माध्यमिक=
 
|माध्यमिक=
 
|पूर्णता=
 
|पूर्णता=
 
|शोध=
 
|शोध=
 
}}
 
}}
 
+
==संबंधित लेख==
[[Category:नया पन्ना]]
+
{{गीता2}}{{महाभारत}}
 +
[[Category:महाभारत]]
 +
[[Category:पौराणिक कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

13:04, 13 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

उत्तरगीता

उत्तर गीता महाभारत का ही एक अंश माना जाता है। प्रसिद्ध है कि पाण्डवों की विजय और राज्य प्राप्ति के बाद श्री कृष्ण के सत्संग का सुअवसर पाकर एक बार अर्जुन ने कहा कि भगवन! युद्धारम्भ में आपने जो गीता-उपदेश मुझको दिया था, युद्ध की मार-काट और भाग-दौड़ के बीच मैं भूल गया हूँ। कृपा कर वह ज्ञानोपदेश मुझको फिर से सुना दीजिए। श्री कृष्ण बोले की अर्जुन, उक्त उपदेश मैंने बहुत ही समाहितचित्त (योगस्थ) होकर दिव्य अनुभूति के द्वारा दिया था, अब तो मैं भी उसको आनुपूर्वी रूप से भूल गया हूँ। फिर भी यथास्मृति उसे सुनाता हूँ। इस प्रकार श्री कृष्ण का बाद में अर्जुन को दिया गया उपदेश ही 'उत्तर गीता' नाम से प्रसिद्ध है। स्वामी शंकराचार्य के परमगुरु गौडपादाचार्य की व्याख्या इसके ऊपर पायी जाती है। जिससे इस ग्रन्थ का गौरव और भी बढ़ गया है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख