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उनवास जो [[राजस्थान]], [[उदयपुर]] से 48 किलोमीटर की दू्री पर हल्दी घाटी के निकट स्थित है, यह [[दुर्गा]] मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर [[पिप्पलादमाता]] के नाम से विख्यात है। 10वीं सदी में निर्मित यह मंदिर जगत के [[अम्बिका]] मंदिर का समकालीन है तथा यह एक गुहिल शासक अल्लट के राज्यकाल में निर्मित हुआ था। इस मंदिर की गणना मातृपूजा परंपरा के अंतर्गत बने झालरापाटन तथा जगत के मंदिर समूहों में की जाती है, जहाँ पर एकान्तिक रुप से शक्ति के किसी रुप की ही अर्चना की जाती थी। इसमें दुर्गा देवी के [[महिषमर्दिनी]] स्वरुप को शांत व वरद रुप की दिव्यता को प्रस्तुत किया गया है। मूर्तिकला की अपेक्षा वास्तुकला के अभिप्रायों के विकास के अध्ययन के लिए उनवास का मंदिर अधिक महत्वपूर्ण है। मंदिर की पीठिका के अलंकरणात्मक अभिप्रायों का इस मंदिर में अभाव है।
 
उनवास जो [[राजस्थान]], [[उदयपुर]] से 48 किलोमीटर की दू्री पर हल्दी घाटी के निकट स्थित है, यह [[दुर्गा]] मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर [[पिप्पलादमाता]] के नाम से विख्यात है। 10वीं सदी में निर्मित यह मंदिर जगत के [[अम्बिका]] मंदिर का समकालीन है तथा यह एक गुहिल शासक अल्लट के राज्यकाल में निर्मित हुआ था। इस मंदिर की गणना मातृपूजा परंपरा के अंतर्गत बने झालरापाटन तथा जगत के मंदिर समूहों में की जाती है, जहाँ पर एकान्तिक रुप से शक्ति के किसी रुप की ही अर्चना की जाती थी। इसमें दुर्गा देवी के [[महिषमर्दिनी]] स्वरुप को शांत व वरद रुप की दिव्यता को प्रस्तुत किया गया है। मूर्तिकला की अपेक्षा वास्तुकला के अभिप्रायों के विकास के अध्ययन के लिए उनवास का मंदिर अधिक महत्वपूर्ण है। मंदिर की पीठिका के अलंकरणात्मक अभिप्रायों का इस मंदिर में अभाव है।
 
==सम्बंधित लिंक==
 
==सम्बंधित लिंक==
{{उदयपुर के दर्शनीय स्थल}}
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{{राजस्थान के पर्यटन स्थल}}
 
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10:46, 21 जून 2010 का अवतरण

उनवास जो राजस्थान, उदयपुर से 48 किलोमीटर की दू्री पर हल्दी घाटी के निकट स्थित है, यह दुर्गा मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर पिप्पलादमाता के नाम से विख्यात है। 10वीं सदी में निर्मित यह मंदिर जगत के अम्बिका मंदिर का समकालीन है तथा यह एक गुहिल शासक अल्लट के राज्यकाल में निर्मित हुआ था। इस मंदिर की गणना मातृपूजा परंपरा के अंतर्गत बने झालरापाटन तथा जगत के मंदिर समूहों में की जाती है, जहाँ पर एकान्तिक रुप से शक्ति के किसी रुप की ही अर्चना की जाती थी। इसमें दुर्गा देवी के महिषमर्दिनी स्वरुप को शांत व वरद रुप की दिव्यता को प्रस्तुत किया गया है। मूर्तिकला की अपेक्षा वास्तुकला के अभिप्रायों के विकास के अध्ययन के लिए उनवास का मंदिर अधिक महत्वपूर्ण है। मंदिर की पीठिका के अलंकरणात्मक अभिप्रायों का इस मंदिर में अभाव है।

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