एलिजा इम्पी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

एलिजा इम्पी (1732-1809 ई.) वेस्टमिनिस्टर में शिक्षा तथा गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स का सहपाठी था। इम्पी 1773 ई. के रेग्युलेटिंग एक्ट द्वारा कलकत्ता के सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 1774 ई. में कलकत्ता पहुँचा। 1775 ई. में एलिजा इम्पी की अध्यक्षता में ही नंदकुमार के मुक़दमे की सुनवाई हुई थी।

  • एलिजा इम्पी ने जालसाज़ी के अभियोग में नंदकुमार को फ़ाँसी की सज़ा दी।
  • बहुत से लोगों का विचार है कि इस मुक़दमें में वारेन हेस्टिंग्स की मित्रता ने इम्पी को प्रभावित किया।
  • 1777 ई. में वारेन हेस्टिंग्स के कथित इस्तीफ़े पर भी एलिजा इम्पी ने उसके पक्ष में ही निर्णय दिया।
  • एलिजा इम्पी ने वारेन हेस्टिंग्स के विरोधी, सर फ़िलिप फ़्राँसिस को भी ग्रांड कांड में 50,000 रुपये हर्जाना देने का निर्णय दिया।
  • इम्पी के नेतृत्व में 1779 ई. में सुप्रीम कोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र के प्रश्न पर कौंसिल से झगड़ा करना शुरू कर दिया। जो उसकी प्रतिष्ठा को गिराने वाला था।
  • वारेन हेस्टिंग्स ने जैसे ही उसे मुख्य न्यायाधीश के रूप में मिलने वाले 8000 पौंड वार्षिक वेतन के अतिरिक्त 6000 पौंड वार्षिक वेतन पर सदर दीवानी अदालत का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया, यह झगड़ा समाप्त हो गया।
  • पार्लियामेंट ने इस सारी कार्रवाई को अत्यन्त अनियमित ठहराया और 1782 ई. में इम्पी को वापस बुला लिया। उसके विरुद्ध महाभियोग भी चलाया गया।
  • इम्पी पर जो महाभियोग चलाया गया, उसमें से कांसीजोड़ा कांड भी इसके लिये ज़िम्मेदार था।
  • एलिजा इम्पी ने पार्लियामेंट के समक्ष अपनी सफाई पेश की और महाभियोग की कार्रवाई को समाप्त कर दिया।
  • 1790 ई. में एलिजा इम्पी पार्लियामेंट का सदस्य चुना गया और 1796 ई. तक सदस्य रहा।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-53

संबंधित लेख