कठिनशाला

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कठिनशाला अथवा 'कठिनमण्डप' भगवान बुद्ध के समय बौद्ध काल में वह स्थान हुआ करता था, जहाँ बौद्ध भिक्षुओं के लिए "चीवर" सिले जाते थे। यह स्थान पक्का बना होता था, जिसमें फट्टे को टाँगने के लिए नागदन्त तथा कीले लगे होते थे।

  • साधु-सन्यासियों और भिक्षुकों द्वारा धारण किये जाने वाले परिधान को 'चीवर' कहा जाता था। यह वस्त्र का एक छोटा टुकड़ा होता था।
  • चीवर को भली प्रकार से सीने के लिए एक अन्य वस्तु का आविष्कार किया गया था, वह वस्तु थी- 'सीने का फट्टा'। इसके सहारे चीवर ताना जा सकता था, जिससे उसकी सिलाई सीधी हो और सीने में भी आसानी हो।
  • चीवरों का सीने का भी एक खास स्थान होता था, जिसे 'कठिनशाला' व 'कठिनमण्डप' कहा जाता था।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. चुल्ल. 5-11-6

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